Manish Sharma

Tragedy Drama

2  

Manish Sharma

Tragedy Drama

क्योंकि वो मेरी पत्नी थी

क्योंकि वो मेरी पत्नी थी

3 mins
301




जब से मेरे घर में,

उसका रिश्ता आया,

क्या बताऊँ दोस्तों,

मैं फूला नहीं समाया,

मस्त मयूरा मन का,

लगा संजोने सपने,

मात पिता बहिन बेटियाँ,

झूम उठे सब अपने,

उसकी आने की खुशी मे,

मिठाँइया अब बटनी थी,

                क्योंकि वो मेरी पत्नी थी .....


मन में कितने स्वप्न संजोए,

पुलकित थे मेरे रोएँ-रोएँ,

हर्ष मेरे जो मन में था,

जोश मेरे जो तन में था,

उसके घर में जाना था, 

अपने घर उसको लाना था, 

उम्मीदें उसी से कितनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी......


आ गया वो वक्त,

जिसका सबको इंतजार था,

घोड़ी सजी सेहरा सजा,

गले में मेरे हार था,

चाँद सी दुल्हन जो मेरे,

बैठी थी अब सामने,

एक दूजे के हाथ अब,

हमको जो थे थामने,

फेरी विवाह के मण्डप में,

दोनों की अब लगनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी ........


मात पिता के स्वर्णिम सपने,

करने थे अब पूरे हमने,

किया था वादा उसने मुझसे,

साथ तेरा ना छोड़ूँगी,

बनके जीवन संगिनी तेरी,

हाथ तेरा ना छोड़ूँगी,

स्वर्ग समान था जीवन मेरा,

ढेर सारी खुशियाँ अपनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी ......


एक दिवस था ऐसा आया,

मात पिता ने उसे बुलाया,

राखी का त्योंहार अनोखा,

सबसे मिलने का है मौका,

खुशी-खुशी तैयार हो गई,

पिता के अपने साथ हो गई,

हुआ मेरा मनवा उदास,

जुदाई जो मिलनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी .......


बीत गए यूँ दिवस चार,

हो गया मैं इतना बीमार,

किया फोन दस बीस बार,

आया ना कोई समाचार,

एक दिन सासू ने बुलवाया,

रिश्ते को उसने तुड़वाया,

आकर के यहाँ करो फैंसला,

अब इसको नही वहाँ भेजना,

निर्धनता के कारण,

वो मुझको नहीं मिलनी थी,

                क्योंकि वो मेरी पत्नी थी ......


चाहे कोई कुछ भी करले,

बात करूँगा उससे पहले,

लगातार जब फोन किया,

उसने स्विच ना आँन किया,

जब कभी लाइन उठ जाती,

टी वी की आवाजें आती,

उसकी मधुर आवाजें,

अब कानों में नहीं पड़नी थी,

                क्योंकि वो मेरी पत्नी थी ......


रैन दिवस बीते की एक दिन,

फोन उन्ही का आया,

मुझको अपने घर वालों संग,

थाने में बुलवाया,

भाई मित्र सगे बहनोई,

पहुँचे महिला थाने,

उसको लाने की कोशिश में,

लगे उसे मनाने,

हार गए सब मना मना के,

बात नहीं अब बननी थी,

                 क्योकि वो मेरी पत्नी थी......


क्या सच में पत्नी ऐसी होती है ? (बिल्कुल नही )


जीवन में ना गया कभी था,

मैं पुलिस की चौकी,

उस कुलटा औरत ने,

मेरी इज्जत उसमें झोंकी,

घाव दिया था ऐसा उसने,

जिसकी ना हो भरपाई,

अपनों के संग दु:खी हुआ मैं,

आँखें मेरी भर आई,

खान-पान सब छूट गया,

और लगा कलेजा फटने,

इस पीड़ा के कारण मेरे,

रैन दिवस ना कटने,

हाय विधाता यह पीड़ा अब,

जीवन से नहीं हटनी थी,

                क्योंकि वो मेरी पत्नी थी.....


मर्म मर गया,

शर्म मर गई,

ऐसी आई औरत,

ता जिन्दगी बनी बनाई,

मिट्टी मे मिल गई शोहरत,

स्वाभिमानी जीवन मेरा,

जिसमें कोई दाग न था,

सुलक्षणा मिलेगी पत्नी,

ऐसा मेरा भाग न था,

माता ने देखा था सपना,

ऐसी कुलवधु आएगी,

अपने संग-संग इस कुटुम्ब में,

चार चाँद लगवाएगी,

इस संताप की गहरी पीड़ा,

मन से अब ना हटनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी .....


कोर्ट कचहरी के चक्कर मे,

मन के सब अरमान जले,

बैठा जस्टिस सन्मुख मेरे,

जमीं नही थी पाँव तले,

आई सामने मेरे जब वो,

नफरत से दिल भर आया,

उसको लाने की खातिर मैं,

दुआ सलाम सब कर आया,

लाज ना देखी उसके मुख पर,

थी उपहास की धारा,

त्रिया के इस चरित्र के कारण,

बन गया था मैं बेचारा,

ये शराबी पति हमारा बात,

ये बात उसने बकनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी.....


मृत्यु की सैय्या पर,

लेटी मेरी प्यारी मातरी,

अग्नि मे अर्पण करने की,

पुरी हो गई तैयारी,

जीवन मे एक पल जो सुख का,

देखा ना था माता ने,

ऐसा लेख था उसका लिखा,

निष्ठुर भाग्य विधाता ने,

अश्रु की अविरल धारा मे,

जीवन मेरा डुब गया,

इस निष्ठुर जीवन से मेरा,

मानो नाता टुट गया,

उसी रैन मेरी पत्नी ने,

परपुरूष संग नाता जोडा,

मुझे जैसे निर्धन प्राणी से,

उसने बिल्कुल नाता तोडा,

डोली उसकी उठनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी......


उसने दुजा ब्याह रचाया,

दुजा पति भी रास न आया,

मुझ पर जो इल्जाम लगाया,

दुजा पति वैसा ही पाया,

गरिमा कन्यादान की खोकर,

उसने मारी मुझको ठोकर,

पश्चाताप की ज्वाला मे,

उसका गर्व गुमान जला,

बद्दुआ दिल से करता हुँ,

उसका ना हो कभी भला,

अंधकार की गहरी छाया,

जीवन से ना हटनी थी,

               क्योंकि वो मेरी पत्नी थी .......


सृष्टि की सुंदर रचना मे,

औरत का है हाथ बड़ा,

कोई उसके साथ खड़ा है,

कोई उसके पाँव पड़ा,

जीवनी सुता भार्या भगनी,

कहीं कहीं पर माया ठगनी,

ये चाहे तो जग तर जाये,

ये चाहे तो जग मर जाये,

लक्ष्मी रूप को धारण करके,

जिस जिस के भी घर मे गई,

ऐसी कुल की कई पीढियां

हाथो हाथ ही तर भी गई ।




Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy