Akanksha Gupta

Drama Thriller

4  

Akanksha Gupta

Drama Thriller

गुप्तचर भाग-4

गुप्तचर भाग-4

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अगले दिन यह घोषणा की गई कि महाराज अंनत का स्वास्थ्य अनुकूल न होने के कारण पूजन अगली पूर्णिमा के दिन सम्पन्न किया जायेगा।

इस घोषणा के बाद अब मार्गशीर्ष यात्री दल में सम्मिलित प्रत्येक व्यक्ति की गतिविधियों पर दृष्टि रखने लगा। दल में कुछ भी संदिग्ध गतिविधियाँ नहीं हुई।

मार्गशीर्ष को समझ मे नहीं आ रहा था कि कौन हो सकता था जो कलिंग की प्रत्येक घटना की सूचना मगध पहुंचा रहा है?इसी उधेड़बुन में उसे पता ही नहीं चला कि सिध्रदना कब उसके निकट आ कर खड़ी हो गई।

सिध्रदना(हँसते हुए)-यदि आपके दिवास्वप्न समाप्त हो गए हों तो इधर भी ध्यान देने का कष्ट करें। कोई आपकी कब से प्रतीक्षा कर रहा है।

मार्गशीर्ष(चौकते हुए)-क्षमा करना सिध्रदना। मेरा ध्यान कही और था इसलिए तुम्हारे आने का भान भी न हुआ।

सिध्रदना(हल्की मुस्कुराहट के साथ)-हाँ जब कार्य से तनिक अवकाश प्राप्त हो ही गया तो अपनी प्रियतमा के विषय में विचार करना स्वाभाविक है।

मार्गशीर्ष(झेंपते हुए)-अपने मस्तिष्क को थोड़ा विश्राम दिया करो।

कुछ भी काल्पनिक विचार करने में दक्ष है यह।

सिध्रदना(हँसते हुए)-उचित है। अन्य व्यक्तियों को सत्य का पाठ पढ़ाने वाला आज स्वयं ही असत्य का आचरण करें तो और कोई कर भी क्या सकता है।

मार्गशीर्ष(सयंत रहते हुए)-तुम्हें कोई विशेष कार्य था जो मुझसे मिलने आई थी?

सिध्रदना(चहकते हुए)-हाँ जब हमें तनिक अवकाश प्राप्त हो ही गया है तो हमने अपनी सखियों के साथ वनभ्रमण का कार्यक्रम आयोजित किया है और मैं तुम्हें इसी की सूचना देने आई थी।

मार्गशीर्ष(कुछ सोचते हुए)-उचित है परन्तु रात्रि होने से पूर्व सुरक्षित स्थान पर लौट कर आ जाना।

सिध्रदना(प्रसन्नता से खिलखिलाते हुए)-उचित है। हम सभी रात्रि होने से पूर्व नियत स्थान पर लौट आयेंगे।

सिध्रदना के जाने के बाद मार्गशीर्ष सोच में पड़ गया। सिध्रदना ने कुछ भी तो अनुचित नही कहा। वह भी तो किसी को प्रेम करता है और वह कोई और नहीं अपितु सिध्रदना ही थी। यह भावनाएँ तो बाल्यकाल से ही हृदय में स्थान ले रही थी परंतु अब तक उसे बता नही पाया। कभी साहस ही नहीं हुआ उससे कुछ भी कहने का। कही वह उसकी मित्रता भी खो बैठे।

मार्गशीर्ष ने सिध्रदना को वनभ्रमण की आज्ञा इसलिए दी ताकि उसे इन परिस्थितियों से दूर रखा जा सके। वह नही चाहता था कि सिध्रदना किसी तरह के संकट में घिरे। इससे स्वयं वह भी वास्तविक अपराधी तक सरलता से पहुंच सके।

संध्या काल का समय था। मार्गशीर्ष की दृष्टि शिविर में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति की गतिविधि पर गिद्ध की भांति जमी हुई थी। कुछ समय पश्चात ही उसे एक आकृति शिविर में से निकल कर वन की ओर जाते हुए दिखाई दी। यही वह गुप्तचर था जिसकी तलाश मार्गशीर्ष को थी। मार्गशीर्ष ने उसका बिना किसी ध्वनि के अनुसरण किया। धीरे-धीरे वह अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा था कि तभी वह आकृति एक नियत स्थान पर रुक जाती है और एक विशेष प्रकार के पक्षी की ध्वनि उच्च स्वर में उच्चारित करती है।

तभी एक अज्ञात व्यक्ति बाहर निकल कर आया और उस आकृति से वार्तालाप करने लगा और मार्गशीर्ष उनके निकट की शिला के पीछे ही छुपा हुआ था इसलिए वह उनकी बातों को सुन सकता था।

गुप्तचर-तुम यहाँ पर क्या कर रहे हो?यदि किसी ने हमें एक साथ देख लिया तो उचित नहीं होगा। तुम अभी ही वापस लौट जाओ।

अज्ञात व्यक्ति-मैं तुम्हें तुम्हारे कर्तव्य का स्मरण कराने आया हूँ। आशा है कि तुम दिये गए कार्य को शीघ्र ही पूर्ण कर मगध साम्राज्य के लक्ष्य प्राप्ति में सहायक बनोगी।  

गुप्तचर-मुझे अपने कर्तव्य का भली भांति ज्ञान है। आप निश्चिंत होकर वापस जा सकते है।

अज्ञात व्यक्ति-तो वह अभी तक जीवित क्यों है?तुमने उसका वध क्यों नहीं किया?कितने अवसर मिले थे तुम्हें इस कार्य को पूर्ण के

करने के लिए परंतु तुम सदैव असफल ही रही। उस छदम आक्रमण के समय तुमने उसका रक्षण किया। कही तुम अपने लक्ष्य से भटक तो नहीं रही हो?

गुप्तचर-यह क्या आक्षेप है?मेरे परिश्रम पर प्रश्न करने का आपको कोई अधिकार नही है। मैने कितने वर्षो तक यह जीवन जिया है अपने वास्तविक जीवन को भूलकर। आप मेरी निष्ठा पर प्रश्नचिन्ह नही लगा सकते।

मार्गशीर्ष(सोचते हुए) - यह एक कन्या है, परंतु यह है कौन और कितने वर्षों से हमारे राज्य के आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी मगध तक पहुंचा रही है?जो भी हो इसे आज ही पकड़ना होगा। (तभी उसकी तन्द्रा टूटती है। )

गुप्तचर- उचित है। जो कार्य अपूर्ण है उसे पूर्ण करना होगा। अभी पूजन एक माह पश्चात होगा तब तक हमें इन्हें इतना भयभीत करना होगा कि बिना युद्ध के ही आत्मसमर्पण सम्भव हो सके। अभी तुम लौट जाओ। आगे की योजना परिस्थितियों के अनुसार बनाई जाएगी।

उसके बाद जैसे ही वह अज्ञात व्यक्ति लौट रहा होता है तभी मार्गशीर्ष पीछे से निकल कर उसपर आक्रमण कर देता है।

इस अचानक हुए हमले में वह मारा जाता है लेकिन वह गुप्तचर भाग निकलता है। मार्गशीर्ष उसे पकड़ने के लिए पीछे भागता है लेकिन कोई लाभ नहीं होता। तभी उसे कुछ मिलता हैं जिसे देखकर वह चौक जाता है।

क्रमशः


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