Sunny Lakhiwal

Inspirational Tragedy

4.8  

Sunny Lakhiwal

Inspirational Tragedy

गुलाम

गुलाम

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रमेश को एक अच्छी कंपनी में अच्छे वेतन के साथ जॉब मिली। वो काफी खुश था और खुशी-खुशी मिठाई लेकर अपने घर लौट रहा था। तभी वह एक अनजान शख्स से टकराया और मिठाई गिर गयी। अब रमेश का गुस्सा सातवें आसमान पर था। रमेश उस अनजान शख्स से लड़ने लगा- "कितनी महंगी मिठाई थी जो तुमने गिरा दी और मेरा कितना नुकसान कर दिया। तुम्हें मिठाई का मुल्य चुकाना पड़ेगा, मैं तुम्हे यहाँ से तभी जाने दूँगा जब तुम मेरी मिठाईयो का मूल्य अदा करोगे।"

वह अनजान शख्स हाथ जोड़कर कहने लगा- "बाबू जी मैं इस शहर में नया हूँ, रोजगार की तलाश में गाँव में माँ व बीवी-बच्चो को छोड़कर शहर आया हूँ। मेरे पास पैसे तो नहीं पर मैं आपके घर काम कर सकता हूँ जिससे मैं आपकी मिठाइयों का कर्ज भी चुका दूँगा और मुझे रोजगार भी मिल जायेगा। मैं आपके घर का गुलाम बन कर रहूँगा। आप जो बोलोगे वो काम करूँगा, बस आप मुझे कुछ पैसे दे देना। जिससे मेरे परिवार का गुजारा हो सके।"

रमेश यह बात सुनकर बहुत खुश हुआ क्योंकि उसे भी घर के काम के लिए एक नौकर की आवश्यकता थी। रमेश ने उसका नाम पूछा तो उसने कहा - "रामू !"

अब रामू, रमेश के साथ रमेश के घर गया और वहाँ काम करने लगा। सप्ताह, महीना व पूरा वर्ष बीत गया। जब भी रामू घर जाने की बात करता तो रमेश कहता- "तू चला जायेगा तो घर काम कौन करेगा, तेरा बाप।"

दिनोदिन रमेश का वेतन बढ़ता गया पर रामू का वही का वही था। एक रोज रामू के घर से फोन आया कि उसकी माँ कि तबीयत खराब है उसे जाना पड़ेगा। रामू ने यह बात रमेश को कही कि उसकी माँ बीमार है, उसे कुछ पैसों के साथ घर जाना पड़ेगा, तो रमेश ने गुस्से में कहा- "तेरी माँ आज ही मर रही है क्या ? 5-10 दिन बाद चले जाना अपना वेतन लेकर।"

रामू रोता रहा पर रमेश अपनी जिद पर अटल था। दो दिन बाद खबर आयी कि रामू की माँ का स्वर्गवास हो गया है। रामू को बहुत दुख हुआ और अपने मालिक रमेश पर गुस्सा भी आया, लेकिन वो क्या कर सकता था क्योंकि रमेश उसका मालिक था और वो उसका गुलाम। रमेश ने रामू को कुछ पैसे दिये जिससे वह गाँव गया और माँ का अंतिम संस्कार करके वापिस लौट आया। रमेश का व्यवहार तो वही था पर रामू के चेहरे की हँसी जा चुकी थी। कुछ दिन गुजरे ही थे कि रमेश की माँ की तबीयत अचानक खराब हो गयी।

रमेश की पत्नी ने उसके ऑफिस फोन किया कि रमेश को घर भेज दो। रमेश ने अपने बॉस से छुट्टी माँगी तो बॉस ने साफ-साफ मना कर दिया कि आज उसे छुट्टी नहीं मिल सकती क्योंकि कंपनी का काम आज बहुत ज्यादा है और रमेश का बॉस कहता है- "वह घर जा तो सकता है पर वह अपने रोजगार से हाथ धो बैठेगा।" रमेश को ना चाहते हुये उस दिन काम करना पड़ा। जब वह शाम को घर लौटा तो पता चला कि आज उसकी माँ को रामू ठीक समय पर हॉस्पिटल ना ले जाता तो उसकी माँ मर जाती।

रमेश को अपनी गलती का पछतावा था। रमेश ने रामू गले लगाया और शुक्रिया अदा किया। रामू से क्षमा भी माँगी क्योंकि रामू को घर नहीं भेजा था इसलिए। रमेश ने रामू का वेतन भी बढ़ा दिया। अब रामू बहुत खुश था, लग रहा था कि रामू के चेहरे की हँसी लौट रही थी।

रमेश को समझ आ गया था कि इस दुनिया में हर इंसान किसी-ना-किसी का गुलाम होता है।


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