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Prafulla Kumar Tripathi

Drama

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Prafulla Kumar Tripathi

Drama

गुल मुहम्मद !

गुल मुहम्मद !

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गूढ़ रिश्तों की एक अदृश्य डोर मुझे उस दौर में दिखाई दी थी जब गुल मुहम्मद नहीं रहे। आख़िर गुल मुहम्मद न तो अपने परिजन थे न अपने जाति धरम के । फिर भी जाने कौन सी डोर थी जो उनको पिताजी से बांधे हुए थी। पिताजी गये कि बस एक महीने के अंदर उन्होंने भी इस दुनियां से अपने आपको रुख़सत कर लिया।

वर्ष 2011की नौवीं तारीख़ को गोरखपुर में सभी लोग इकट्ठे होकर भतीजे धवल की शादी के समारोह को मना रहे थे। पिताजी ने खुश मुहम्मद को भी निमंत्रण दिया था और सपरिवार वे आये भी थे। चूंकि वर पक्ष ब्राह्मण परिवार से था और वधू पक्ष बंगाली परिवार से इसलिए ढेर सारे रस्म रिवाज गड्मगड हो चले थे। दहेज़ का नामोनिशान नहीं था क्योंकि भतीजे ने ख़ुद ही अपनी पसंद को जीवन साथी बनाने का मन बना लिया था।

खुश मुहम्मद को उस दिन पिता जी से यह कहते सुना था कि आचार्य जी,आपने जो सोचा था वह देर से ही सही अब जाकर फलीभूत हो रहा है। और,और फिर दोनों के अट्टहास से कइयों का ध्यान उनकी ओर चला गया था।

बात यह थी कि मेरे पिताजी एक ख़ास संगठन से जुड़े होने के नाते बच्चों की इन्टरकास्ट मैरिज और दहेज रहित सम्बंध बनाने के लिए वचनबद्ध थे। लेकिन पितामह की मौजूदगी में उनकी यह सोच अमल में नहीं आ सकी थी और वे अफ़सोस करके रह गये थे। इतना ही नहीं संगठन से भी उलाहनों के शिकार हुए थे। परमात्मा ने उनको अनसुना नहीं नहीं किया और उनकी वेदना के मर्म को समझा था और अब दूसरी पीढ़ी ने ख़ुद ही रास्ता बना दिया था। पिताजी इस सम्बंध से अति प्रसन्न थे। पितामह गुजर चुके थे और टोका टोकी के सारे किले ध्वस्त हो चुके थे।

शादी होने के बाद सभी खुशी खुशी अपने घर गये। लेकिन अगले ही दिन बहू भोज के समय पिताजी को डाइनिंग रुम में भोजन निगलने में कुछ दिक्कतें महसूस हुईं। उनको लगातार खांसी आ रही थी।

असहज स्थिति में उन्होंने खाना छोड़ दिया। परिजनों ने तत्काल उनको चिकित्सकीय परामर्श दिलाया । डाक्टरों ने कुछ जांचें लिखीं। आनन फानन में वे सारी जांच सम्पन्न हुईं। रिपोर्ट अभी आनी थी कि एक दिन पिताजी के गले से खांसी के साथ खून भी आ गया। शादी की सारी खुशियों को मानो ग्रहण लगता चला जा रहा था। हमेशा मुखर रहने वाले पिताजी मौन में जाने लगे।

सभी को एक अनजान डर सताने लगा। ई.एन.टी.विशेषज्ञ डा.यादव को जब सारी रिपोर्ट्स दिखाई गई तो उन्होंने पूछा क्या आचार्य जी सिगरेट आदि लेते हैं?भाई साहब ने कहा बिल्कुल नहीं। वे पूर्ण शाकाहारी हैं। आगे डाक्टर ने कहा कि इनके गले में कुछ कैंसर के तत्व दिखाई दे रहे हैं जो प्राय:स्मोकिंग से डेवलप होते हैं। आप लोग इन्हें यथाशीघ्र मुम्बई ले जाइये।

विवाह का सारा उन्माद ग़ायब हो गया था और जनवरी 2012 में उन्हें टाटा के कैंसर अस्पताल में मुम्बई दिखाया गया। वहां डाक्टरों ने उनकी बीमारी की पुष्टि कर दी और आगे के ट्रीटमेंट की योजना बना दी। पिताजी संत पुरुष थे। उन्होंने कहा कि यह बीमारी भी प्रभु प्रसाद है और तुम लोग नाहक में परेशान होते हो। मुझे अब यूं ही छोड़ दो। लेकिन ऐसा भला क्या संभव था ? बावज़ूद इस बात के कि उनके पास गिनती का जीवन है,परिजनों ने उनका कीमोथैरेपी आदि कठिन इलाज शुरू करा दिया।

पहली कीमोथैरेपी होते ही आचार्य जी भयंकर रुप से असहज और कमजोर दिखने लगे। वे अब कुछ भी निगल पाने में असमर्थ थे। लिक्विड डायट मुश्किल से ले पाते थे। उनकी आंखें हमेशा शून्य को निहारती थीं। मैनें एक दिन लिखकर पूछा कि आप इन क्षणों को किस तरह ले रहे हैं तो उन्होंने जो उत्तर दिया वह चौंकाने वाला था । उन्होंने लिखा;

" जब रामकृष्ण परमहंस अंतिम दिनों में गंभीर रुप से अस्वस्थ होकर बिस्तर पर थे तो उन्होंने ऐसे ही एक प्रश्न के उत्तर में कहा था कि तूं अगर संसार में है तो तुझ पर संसार और परिवार का बोझ तो चढ़ा ही रहेगा । देह धरे का दन्ड है। देखता नहीं, कितना दाहक रोग इस गले में आकर बैठ गया है !लाख उद्योग के बाद भी हिलता डुलता नहीं। मां की लीला है..........रहस्य भी वही जानें ! " गुल मुहम्मद भी साथ में थे और मुझे अब तक याद है उसे पढ़कर उनकी आंखों से आंसुओं के मोती लुढ़क पड़े थे। आचार्य जी को लोग देखने आते थे लेकिन आचार्य जी अब बोल पाने में भी असमर्थ होने लगे थे। गुल मुहम्मद तो जैसे पागल हो उठे थे। वे कुशीनगर से गोरखपुर रोज़ आते,आचार्य जी के साथ रहते।

ध्यान लगाकर प्रार्थना करते कि जिन आचार्य जी ने असंख्य लोगों के अन्धकार मय जीवन को अपने मूल्य वान परामर्श से प्रकाशमान कर दिया था उन आचार्य जी को भगवान दुख से उबारें। लेकिन कल की सुबह पर से विश्वास डगमगा रहा था। उनकी सुबह हो..न हो !

पी.जी.आई.लखनऊ से कीमोथैरेपी की तीसरी डोज़ देकर डा.शालीन कुमार आश्वस्त कर रहे थे कि अब आचार्य जी अपने आपको बेहतर पा सकेंगे। उधर मुम्बई के डाक्टर ने जनवरी 2012में ही आचार्य जी के जीवन के पटाक्षेप की संभावित तारीख़ बता दी थी जो निकट ही थी। उच्च शिक्षित और दुनियां देखे सुने आचार्य जी भी अपने इस कठिन दौर और उसके अंजाम से अच्छी तरह वाकिफ़ थे।

31अप्रैल को अचानक उनकी तबीयत ख़राब होने लगी और आनन फानन में एम्बुलेंस से उन्हें गोरखपुर के एक नर्सिंग होम में दाखिल किया गया । गुल मोहम्मद भी भागे भागे लगभग बदहवासी के आलम में नर्सिंग होम पहुंचे।

वे जोर जोर से प्रभु नाम का सिद्ध कीर्तन कर रहे थे और प्रभु से प्रार्थना किये जा रहे थे कि उनके आचार्य को बचा लें। लेकिन अब उनके लिए भगवान का बुलावा आ गया था। पहली मई की सुबह उन्हें हार्ट अटैक आया और जब तक इलाज शुरू होता कि दुबारा अटैक आया..और आचार्य जी ने देखते देखते दम तोड़ दिया। घर के लोगों से ज्यादा गुल मुहम्मद चीख चिल्ला रहे थे। चीखते चीखते वे बेहोश हो गये थे।

आचार्य जी के निधन के ठीक एक महीने बाद ख़बर आई कि पूजा करते करते उनके अनन्य शिष्य गुल मुहम्मद भी चिर समाधि में चले गये। आज तक मुझे समझ में नहीं आया कि गुल मुहम्मद मेरे कौन थे ?आचार्य जी से उनका क्या रिश्ता था ?

उन दोनों का इस संसार से लगभग एक साथ जाने का क्या निहितार्थ था ?


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