गोद लिया था हमने
गोद लिया था हमने
राजेश और रीता की शादी को 6 साल हो गए थे, लेकिन उनकी गोद अभी तक सूनी थी| डॉ ने कहा कि "रीता माँ नहीं बन सकती"।
तो दोनों ने मिल कर के फैसला लिया कि वो बच्चा गोद लेंगे।
एक दिन राजेश ने रात के खाने पर अपने माँ पापा और दादी से कहा" पापा! मुझे आप सब को ये बताना था कि हम दोनों सोच रहे थे कि एक बच्चा गोद ले लें। लेकिन उससे पहले आप सबकी सहमति होना भी जरूरी है, ताकि बच्चे को सबका प्यार समान रूप से मिल सके।"
इतना सुनते राजेश के पिता और दादी दोनों एक दूसरे की तरफ देखने लगे।
तो राजेश ने कहा "क्या हुआ? पापा"
"कोई बात है क्या? अगर आप की सहमति नहीं होगी तो कोई बात नहीं हम इंतज़ार कर लेंगे।"
तभी दादी की आंखों में आंसू देख के राजेश ने कहा "दादी आप क्यों रो रही हैं? बच्चे होना न होना तो भगवान की मर्जी है, क्या फर्क पड़ता है बच्चा गोद लिया हो या खुद का जन्म दिया हुआ। बच्चा तो बच्चा होता है।"
"सही कहा, बच्चा तो बच्चा होता है"-दादी ने कहा।
"लेकिन ये फैसला लेने से पहले मैं कुछ बताना चाहती हूँ जिससे तुम दोनों अनजान हो|"
"पर माँ" राजेश के पिता ने बोला|
"नहीं बेटा! आज मत रोक मुझे बता देने दे| ताकि जो गलती मैंने की वो ये दोनों ना करें। इसलिए ये बात जानना बहुत जरूरी है इन दोनों को। बेटा तुम्हारी एक बुआ थी रूपा, रूपा को मैंने गोद लिया था, जन्म नहीं दिया था| मेरी शादी के 7 साल हो गए थे, तब शादियां कम उम्र में ही हो जाती थीं| 14 साल की थी मैं जब मेरी शादी कर दी गयी और विदाई भी। तुम्हारे दादाजी अकेले पुत्र संतान थे तो सबको उम्मीद थी कि मुझे भी एक बेटा हो जाये जिससे वंश का नाम आगे बढ़े| पर 7 साल तक कोई बच्चा ना होने के कारण सबने मुझे बांझ कहना शुरू कर दिया।
एक दिन तुम्हारे दादाजी सफेद गमझे में लिपटी हुई एक नवजात बच्ची को ले के आये। जिसे कोई बगीचे में पैदा होते ही छोड़ गया था। जिसे हमने सबके मना करने पर भी पालने का निर्णय किया। रूपा के आने से हमारे सुने आंगन में खुशियां आ गयी , धीरे धीरे पूरे परिवार ने भी उसे अपना लिया ,लेकिन जैसे ही बिटिया 2 साल की हुई मैं गर्भवती हो गई और तुम्हारे पापा को जन्म दिया। सभी कहने लगे बड़े शुभ कदम हैं रूपा के।
तभी कुछ छ: महीने बाद मैं मायके गयी। वहाँ सब कहने लगे। "अरे! बेटा,अपना खून अपना ही होता है। पता नहीं किस जाति धर्म की है और खून तो अपना रंग दिखा ही देता है।"
जाने कब कैसे ये बाते मेरे दिमाग में घर कर गयी और मैंने उस नन्ही सी बच्ची से दूरी बनानी शुरू कर दी। लेकिन सच से अंजान रूपा तो मुझे ही अपनी दुनिया अपनी प्यारी माँ मानती थी| मेरा ऐसा रूखा व्यवहार रूपा के प्रति तुम्हारे दादा जी को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
रूपा धीरे धीरे इसी भेद भाव के साथ बड़ी होती गयी| कच्ची उम्र नादानी की होती है उसे बाहर के लोगों से पता चल गया कि उसे मैंने जन्म नहीं दिया मैं उसकी सगी माँ नहीं हूँ। उसने मुझसे घर आ के सच जानना चाहा और मैंने बिना उसकी मन की स्थिति जाने से सच बता दिया।
उसने क्या सोच समझा पता नहीं उसने खाना पीना छोड़ दिया और इस बात पर मैंने भी ध्यान नहीं दिया। अचानक एक दिन उसकी तबीयत बिगड़ गई। जब हम उसे अस्पताल ले के पहुंचे तो पता चला उसे ब्रेन हेमरेज हो गया और 20 साल की रूपा हमें छोड़ के चली गयी। उसके जाने के बाद मुझे उसकी डायरी मिली जिसमें उसने अपने प्यार और तिरस्कार दोनों बातें लिखी थीं और आखिरी में
ये बात तुम्हारे दादा जी को और मुझे अंदर ही अंदर कचोटती रही। तुम्हारे दादा जी को इस बात का इतना गहरा सदमा लगा कि 6 महीने बाद वो भी मुझे छोड़ के इस दुनिया से चले गए| जाते वक्त उनके आखिरी शब्द यही थे गोद लिया था हमने उसे अपनी खुशी से फिर ये भेद क्यों किया। क्यों तुम यशोदा नहीं बन पायी और मैं नंद। और इसी ग्लानि के साथ मैं आज तक जिंदा हूं। मैं अनाथालय में जाके महानता नहीं बल्कि अपने किये हुए पाप का पश्चाताप करने जाती हूं|
बेटा किसी को गोद लेने का निर्णय करना ।जितना आसान है उतना ही मुश्किल काम है उस बच्चे को परवरिश देना और उसका विश्वास जीतना ताकि वो अपनी कोई भी बात निःसंकोच आप से कह सके। उसे ऐसा ना लगे कि उसे गोद ले के कोई एहसान किया गया है
अभी तुम्हारी शादी को सिर्फ 6 साल हुए हैं। और भगवान की कृपा से रीता गर्भवती हो गई तो क्या तुम दोनों मिल के दोनों बच्चो को समान प्यार दे पाओगे।
फैसला बहुत ही सोच विचार के लेना।
तब रीता ने कहा-" सही कहा आपने दादी इसीलिए हमने ये बात आप सबसे बतायी। ताकि हमसे कोई भूल हो तो आप हमें राह दिखा सके,हम आपसे वादा करते है ,कि उस बच्चें को हम वो सब कुछ देंगे वही प्यार वही दुलार वही अधिकार जो हम खुद के जन्में बच्चे को देते है। कभी कोई भेदभाव नही होगा। चा फिर बात प्यार की हो या भविष्य में प्रॉपर्टी की सब पर उसका समान अधिकार होगा।