Rashi Singh

Drama

1.0  

Rashi Singh

Drama

गिरगिट

गिरगिट

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''अब बात न बनेगी जी, लल्ला को दूसरो विवाह करनो ही पड़ेगो।'' ठकुराइन ने ठाकुर साहब के हुक्के में तम्बाखू की पुड़िया खोलते हुए कहा।

''पर भयो का है, कैसी बौरा रही है, अनाप-शनाप बक रही है।'' ठाकुर साहब ने गुर्राते हुए कहा।

''अब हमकौ दादी बननो है। बस हम कछऊ न जानत।'' ठकुराइन ने अपना पल्ला संभालते हुए कहा।

''जो बहुरिया माँ न बन पायेगी, जाय तो निकार देओ घर से।'' ठकुराइन ने ठाकुर साहब के तनिक नज़दीक आते हुए कहा।

''अरे काहे! सिर पर पड़ी आ रही हो?'' ठाकुर साहब ने झल्लाते हुए कहा।

''आज लल्ला को भी भ्रम मिट जायगो, गयो है डाक्टर के धौरे बाहुरिया को इलाज करबाने।'' और इस बात पर दौनो जोर से हँस दिये।

''अरे बहू लल्ला को का है गयो? कहाँ है? घर नाय आयो?'' ठकुराइन ने कई सवाल एक साथ कर डाले 

''माँ जी --वो ---वो ---!''

''अरे का बो-बो जल्दी बता का है गओ?'' ठकुराइन ने परेशान होते हुए कहा।

''वो दवाई लेने गये हैं!''

''अरे दवाई से कछू न होयगो, सब बेकार है, तेरे न होयगी औलाद।'' ठकुराइन ने मुँह बनाते हुए कहा।

''माँ जी वो अपनी दवाई लेने गये है, हम...हम तो बिल्कुल ठीक हैं।'' बहू ने सकपकाते हुए कहा।

''अब किसका विवाह करे? चलो बहू का कर देंगे।'' ठाकुर साहब ने मुँह ब आवाज़ बनाते हुए कहा।

''अरे नाय, हम तो कह देंगे कि बहू में ही कमी है हमारो लल्ला तो कतई ठीक है।' दोनो गिरघिट की तरह रंग बदलने लगे।


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