गाँव की डरावनी कहानी हिंदी में
गाँव की डरावनी कहानी हिंदी में


इस कहानी के सभी पात्रों, जगह के नाम बदले हुए हैंऔर इस कहानी का मकसद किसी भी तरह के अन्धविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है।
इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह horror story चुड़ैल का प्यार एक गाँव दिवानपुर की है। गांव के त्रिभुवन काका के पास बहुत सारी गायें थी।
वो उनका दूध बाजार में बेचते और उसी से उनकी रोजी रोटी चलती थी।वे रोज सुबह दूध निकालने के बाद गायों को लेकर इस गांव से उस गांव, कभी नदी किनारे, कभी ताल तो कभी जंगल में घूमा करते और दिन ढलते ही गांव की और निकल पड़ते।
दिनभर वे घर से बाहर ही रहते इसलिए भूख मिटाने के लिए वे सत्तू तो कभी कुरमुरा तो कभी रोटी और उसके साथ ही दूध, दही, लस्सी या मठठा { छाछ } भी ले जाते और किसी पेड़ की छाया में खा पीकर मस्त रहते।
प्यास लगाने पर किसी गाँव के बाहर लगी नल, ट्यूबेल या फिर कुएं से पानी निकाल कर पी लेते। वैसे ठंडी के दिनों में वे पानी भी ले जाती, लेकिन गर्मी के दिनों में पानी गर्म हो जाने के कारण वे पानी नहीं ले जाते। बोर होने पर पुराने गाने गुनगुनाते। यही उनकी दिनचर्या थी और वे इससे खुश भी थे। एक बार की बात है।
त्रिभुवन काका बीमार हो और ऐसे बीमार हुयी कि ठीक होने का नाम ही ले रहे थे। एक दिन बीता, दो दिन बीता लेकिन कोई आराम नहीं हुआ और उधर गायों का बुरा हाल। उन्हें तो सिवान में घूम – घूम कर चरने की आदत थी।
वे रम्भा – रम्भा कर आसमान सिर पर उठा लीं। त्रिभुवन काका की पत्नी पुवाल वगैरह गायों को खाने के लिए देती, लेकिन गाय उसे खाना तो दूर देखती भी नहीं थीं… मानों अनसन पर बैठ गयी हों।
उसपर दिन भर खूंटे के इधर – उधर घूम – घूमकर गोबर से पूरी जमीन कीचड़ कर दी और कुछ तो इतनी सयानी थी कि नाद में ही पैर डालकर खड़ी हो गई। उनका हठ देखकर त्रिभुवन काका बड़े परेशान हो गए। उनकी तो हिम्मत नहीं पड़ रही थी तो उन्होंने अपने साले के लड़के को बुला लिया।
उसका नाम राकेश था। १८ साल की उम्र में ही वह बहुत ही होशियार था। उसके घर पर भी गायें थी तो उसे इनसब चीजों की जानकारी थी। दूध दही खाकर गबरू जवान बन गया था। कोई उसे देखकर कोई उसे १८ साल का कह ही नहीं सकता था।
उसे त्रिभुवन के सारे काम संभाल लिए। वह साथ में अपनी किताबे भी ले जाता और पेड़ की छाया में पढ़ाई भी करता। त्रिभुवन काका बड़े खुश हुए। गर्मी का दिन था।
खेतों में घास गर्मी की वजह से ख़त्म हो गयी थी और उसे इस इलाके की जानकारी भी नहीं थी। वह गायों को लेकर पास के जंगल में पहुँच गया और कब वह घने जंगल में पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चला।दोपहर का समय हुआ था। राकेश को प्यास लगी। पानी गर्म हो जाने के कारण उसने पानी गिरा दिया था। वह इधर – उधर जंगल में पानी की तलाश में घुमने लगा।
अचानक उसे एक कुवां दिखाई दिया। उसकी जान में जान आई। वह झट से कुएं के पास पहुंचा तो देखा गर्मी के कारण पानी काफी नीचे था। उसने एक छोटी बाल्टी जिसे वह अपने साथ रखता था उसे अपनी धोती से बांधकर पानी निकालने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुआ। पानी काफी नीचे था।
उसने बहुत कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं हुआ। वह थक गया था और पसीने पूरी तरह भीग गया था। वह हारकर पेड़ की ओत लेकर बैठ गया। तभी उसे पायल की छम – छम की आवाज सुनाई दी। वह चौंका कि इस जंगल में और दोपहर के समय कौन आ सकता है। उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक बेहद खुबसूरत लड़की अपनी कातिलाना अदाओं के साथ राकेश की ओर चली आ रही थी।
राकेश उसे एकटक देखता रह गया। उस किशोरी की खूबसूरती में राकेश खो गया था। पास आकर उस किशोरी ने नटखट अदा के साथ राकेश को पूछी ” प्यास लगी है क्या ? मैं पानी पिला दूँ।” राकेश तो जैसे सुध – बुध खो बैठा था, उसने घबराकर हाँ में सिर हिला दिया। किशोरी आगे बढ़ी और कुएं की जगत पर पहुंचकर अपने दोनों हाथों की अंजुली बनाई और कुएं में झुक गयी। राकेश जैसे सम्मोहित हो गया था। उसे कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था।
किशोरी ने पानी निकाला और राकेश की तरफ बढ़ी। राकेश बिना कुछ बोले अपने अपने हाथों की अंजुली बनाकर अपने मुंह से सटा दिया। किशोरी ने अपने अंजुली का जल राकेश के अंजुली में उड़ेलना शुरू किया और राकेश ने उस अमृत रूपी जल को पीना शुरूकर दिया।
वह अलग बात थी कि उसके अंजुली का आधा पानी जमीन पर गिर रहा था क्योंकि अभी भी वह उस किशोरी के चहरे की खूबसूरती को एकटक पिए जा रहा था। ना तो किशोरी के हाथ से जल ख़त्म हो रहा था और ना ही राकेश की प्यास ही बुझ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सदियों की प्यास आज तृप्त हो रही हो।
यह सिलसिला आधे घंटे तक चला। तभी किशोरी ने ध्यान दिया कि राकेश पानी कम पी रहा था और उसके चहरे का रसपान अधिक कर रहा था तो वह असहज होते हुयी बोली ‘ और पिलाऊं कि बस ?
राकेश कुछ बोल ना सका सिर्फ ना में सर हिला दिया। उसके बाद उस किशोरी ने प्यार भरी आवाज में कहा ” अच्छा मैं चलती हूँ। ” राकेश अब भी कुछ नहीं बोला सिर्फ हाँ में सिर हिला दिया। वह किशोरी बलखाती हुयी जंगल में गम हो गयी। राकेश कुछ देर कुएं की जगत पर बैठा रहा और फिर अचानक वह उठा और गायों की और चल दिया।। लेक्किन अब उसकी चाल बदल गयी थी।
उसके मन में प्यार के अंकुर फूटने लगे थे। गायों को लेकर राकेश घर पहुंचा। आज वह बहुत ही खुश था। उसके मन में प्यार की तरंगे हिलोरे मार रही थीं। वह रह – रह कर कोई प्यार भरा गीत गाने लगता था। उसकी भूख – प्यास सब गायब हो गयी थी। वह खोया – खोया सा रहने लगा। उसे हर समय वही क्षण दिखाई दे रहे थे।
उस खुबसूरत चेहरे को वह भूल ही नहीं पा रहा था। उसने रात को खाना भी नहीं खाया और सोने चला गया, लेकिन नींद कहा आ रही है। वह करवटें बदलता और प्यार के तराने छेड़ता। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उसे क्या हो गया है। क्यूँ उसकी भूख, उसका चैन, उसकी नींद उड़ गयी है।
अचानक उसका दिमाग ठनका और वह डर के मारे कापने लगा। उसका बदन पसीने से लथपथ हो गया था। वह जोर से चीखा और जबतक त्रिभुवन काका और उनकी पत्नी आती वह बेहोश हो चुका था। त्रिभुवन काका उसके चहरे पानी छिड़के और भी जतन किये, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
तभी त्रिभुवन काका की पत्नी इमिरिति देवी ने हनुमान चालीसा का पाठ शुरू किया। अभी दो ही लाइन उन्होंने पढ़ीं थी कि राकेश तेज आवाज में हंसा, लेकिन आश्चर्य यह था कि यह हंसी राकेश की नहीं होकर किसी लड़की की थी। अब तो त्रिभुवन काका और इमिरिति देवी के प्राण सूख गए। वे वहाँ से तेजी से निकले और पास के ही रामखेलावन ओझा के पास पहुंचे और सारा माजरा कह सुनाया।
इसपर ओझा ने कहा कि जंगल में ही कोई बात हुई होगी। चलो घर चल कर देखते हैं। ओझा, त्रिभुवन काका और उनकी पत्नी जैसे ही बाहर निकले एक काली बिल्ली ने तेजी से उनका रास्ता काटा। रामखेलावन ने कहा कि चुड़ैल कोई छोटी – मोटी चुड़ैल नहीं है। इसे हम अकेले नहीं संभाल सकते।
आप गाँव के और भी लोगों को साथ लो और वहा सभी लोग एक साथ गायत्री मन्त्र का ऊँचे स्वर में जाप करेंगे और यह घंट, शंख बजायेंगे। कोई थोड़ा भी नहीं डरेगा। वह तमाम तरह के हथकंडे अपनाएगी। कभी रोना, कभी मायूस होना, कभी डराना लेकिन सबको पाठ जारी रखना है।जैसे ही सभी लोग त्रिभुवन काका के घर पहुंचे तो एक तेज हंसी के साथ ही राकेश छत की चाहरदीवारी पर चलने लगा। सबके होश उड़ गए। लेकिन किसी ने हार नहीं मानी और गायत्री मन्त्र का जाप शुरू कर दिया और साथ ही घंट, शंख आदि बजाना शुरू कर दिया। रात के समय इस तरह की आवाज से अगल – बगल के गाँव वाले भी बहुत ही अचंभित हुए और गुटों में वे भी इस गाँव की तरफ आने ल इधर ओझा ने अपने कार्य शुरू किये। जैसे – जैसे ओझा के मन्त्रों का प्रभाव बढ़ता वह चुड़ैल और भी भयानक तरके से लोगों को डराती। कभी वह उलटे पाँव चलती तो कभी छत पर उलटा चलने लगाती तो कभी भीड़ के किसी एक ख़ास की तरफ तेजी से बढती, लेकीन वह किसी को छू नहीं पाती।५ घंटे तक यह कार्यक्रम चला। सुबह के ४ बजने वाले थे। तभी ओझा की नजर वहाँ गिरे गुलाब के फूल पर पड़ी। उसपर खून लगा हुआ था। उसने वह फूल जैसे ही उठानी की कोशिश की चुड़ैल खूब जोर से चिल्लाई और एक भयानक रूप बनाकर तेजी से ओझा की और झपटी,लेकिन तबतक ओझा ने फूल को आग में डाल दिया और आग में डालते ही राकेश का शरीर शांत होने लगा और कुछ ही समय में एक तेज चीत्कार के साथ एक काला गहरा धुवां राकेश के मुंह से निकला और राकेश उठकर बैठ गया। पूरा माहौल सामान्य हो गया था।ओझा के पूछने पर राकेश ने सारी बात बता दी और उसने बताया कि उसे रात को नींद नहीं आ रही थी तभी वह चुड़ैल मेरे पास उसी रूप लड़की के रूप में आई। तब मुझे शक हो गया। मैंने उससे उसका नाम पूछा।वह कुछ नहीं बोल रही थी। उसने इस गुलाब के फूल के कांटे को मेरे अंगुली से चुभा दिया और जैसे ही इसमें खून लगा वह अपने असली रूप में आ गयी।इस घटना के बाद राकेश के साथ ही त्रिभुवन काका भी उस जंगल की तरफ जाना छोड़ दिए। लोग इस चुड़ैल का प्यार से काफी हतप्रभ थे। कई दिनों तक यह बात लोगों के बीच केंद्र विन्दु बनी रही।