फ़रिश्ता
फ़रिश्ता
सुबह के पांच बजे थे। निक्कू की माँ निक्कू को जगा रही थी। निक्कू की उम्र नौ साल और कुछ महीनों की रही होगी।निक्कू उठने में आनाकानी कर रहा था।
अब आप सोच रहे होंगें की इस उम्र के तो हर बच्चे स्कूल जाने के लिए इतनी सुबह उठना नहीं चाहते। लेकिन नहीं।
निक्कू को उसकी माँ उसे इतनी सुबह स्कूल जाने के लिए नहीं... ढ़ाबे पर जाने के लिए उठा रही थी।
निक्कू सुबह पाँच बजे उठता, ढ़ाबे पर जाता, दिन भर वहाँ काम करता और रात आठ बजे के लगभग थक कर वापस अपने घर आ जाता। घर क्या, वह मिट्टी, गारे और खपरैल से बना एक छोटा सा कमरानुमा था जहाँ निक्कू के अलावा उसकी माँ, सात साल की बहन और चार साल का भाई एक साथ रहते थे। निक्कू के पिता की मौत 2 साल पहले एक बीमारी से हो गयी थी। घर देखने और चलाने वाला कोई नही था। बेबस माँ थी जो पति के चले जाने के सदमे में थी और उस पर से दो छोटे भाई बहन । घर में खाने को कुछ नहीं था। गांव के कुछ लोगों ने निक्कू को ढ़ाबे पर काम करने को लगा दिया। और तब से निक्कू की यही दिनचर्या हो गयी।
ढाबे पर जाना, जूठे बर्तनों को उठाना, उसको धोना,मेज साफ करना, पानी का मग और गिलास रखना, लोग क्या खाएंगे और वग़ैरह वग़ैरह । और सिर्फ इतना ही नहीं,इसके अलावा मालिक के बहुत सारे ताने, आने जाने वालों की गालियां, भद्दी बातें जो उसकी उम्र के बच्चों के सुनने के लिए नहीं होती हैं और कभी कभी तो मार भी।
इतनी छोटी उम्र में निक्कू के नाज़ुक कधों पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी आ गयी थी। वो ये सब संभालने की कोशिश करता,अकेले बैठ कर रो लिया करता, दिन भर काम करता, बदन में दर्द हो जाए तो भी नही रुकता था, हफ्ते के सातों दिन वह जी तोड़ मेहनत करता ताकि उसका घर चल सके, उसकी माँ और भाई बहन भूखे न सोए।
निक्कू का बालमन कभी कभी वहाँ से भाग जाने का करता, उसका नाज़ुक मन हर रोज़ टूटता, ढ़ाबे पर आये अपने उम्र के बच्चों को उनके माँ-बाप के साथ देखता, उन्हें खेलता, इधर उधर भागता, नखरे करता देखता तो उसका भी मन होता की वो भी ये सब कर पाता। उसका भी मन होता की बस्ता उठा कर अपने भाई बहन के साथ वो भी स्कूल जाता, किताबें पढ़ता, लिखता, सीखता लेकिन ये सब बस उसके ख़्वाब मात्र थे।
वो कैद था। वो ये बात जानता था। वो आज़ाद होना चाहता था । लेकिन वो ये भी जानता था की उसे ही अब अपने परिवार की देखभाल करनी है।
कोमल मन इतनी छोटी उम्र में हर वो बात जान चुका था जिसे हम सब मैच्यूरिटी कहते हैं और इंतज़ार करते हैं उस उम्र का उस तज़ुर्बे का जब ये हमें हासिल होती है।
एक दिन ढ़ाबे पर तीन लोगों का एक छोटा सा परिवार आया। एक नौजवान था, उसकी पत्नी और उसकी माँ।
उन लोगों ने खाने की कुछ चीज़ें आर्डर की और आपस में बातें करने लगे।
इतने में ढ़ाबे के अंदर से चिल्लाने और रोने की आवाज़ें आने लगी। वो नौजवान उठा और आवाज़ के तरफ बढ़ा।
उसने देखा की ढ़ाबे का मालिक निक्कू के कान ऐंठ कर उसे थप्पड़ मार रहा था और उस पर चिल्ला रहा था। वहीं निक्कू हाथों को जोड़े रो रहा था और माफ़ी मांग रहा था
।
उस नौजवान ने बीच बचाव कर के रोका और पूछा की इतनी बेरहमी से क्यों मार रहे हो इस बच्चे को ?
जब उस नौजवान को सारी बातें पता चली की निक्कू यहॉं काम करता है और उसने आज बर्तनों को धोने में देरी कर दी इसलिए उसे मार पड़ रही है तो नौजवान का बहुत गुस्सा आया और उसने ढ़ाबे के मालिक को डांटा की इतनी छोटी उम्र के बच्चे से काम करवाते हो और ऊपर से ऐसा अमानवीय व्यवहार करते हो, तुम्हे शर्म आनी चाहिए। ढ़ाबे का मालिक भी बीच में अचानक से आये हुए उस नौजवान से लड़ने लगा। उस नौजवान ने कहा की ये जुर्म है और मैं थाने में इसकी रिपोर्ट करूँगा । ढ़ाबे का मालिक इस बात से डर गया और वहीं माफी मांगने लगा।और कसम भी खाई की आईंदा किसी बच्चे से काम नही करवाऊंगा।
फिर वह नौजवान निक्कू को अपने परिवार के पास लाया। उससे यहाँ ढ़ाबे पर काम करने की वजह जानी।
सब कुछ जान कर वह कुछ रुआंसा हो गया। उसने ठान लिया की अब इस बच्चे को इस गहरी दर्द भरी खाई से निकाल कर रहेगा। उसने अपनी माँ और पत्नी से कुछ बातें की और फिर सभी निक्कू के साथ उसके घर की तरफ बढ़ चले। घर पहुँच कर नौजवान ने निक्कू की माँ से बात की।
उनको समझाया और बताया की ये गलत है। परिवार का पेट भरना एक चीज़ है और अपनी पूरी ज़िन्दगी इस नन्ही उम्र में खो देना ...ये भयावह है और गलत है।
नौजवान ने निक्कू की माँ से कहा कि परिवार चलाने के लिए आप स्वयं काम कर सकती हैं। इस पर निक्कू की माँ ने कहा कि वह ऐसा करना चाहती है लेकिन उसे घर का काम करने के सिवा और कुछ नहीं आता और गांव में लोग इन कामों के लिए दूसरों को रखते नहीं। और मैं अपना घर छोड़ कर शहर भी नही जा सकती क्योंकि वहाँ हमारे रहने का कोई ठिकाना भी नहीं होगा। यहाँ कम से कम सिर ढकने के लिए छत तो है।
मैं मजबूर हूँ और इन्हीं परिस्थितियों के कारण निक्कू को काम करना पड़ता है।
इस पर उस नौजवान ने कहा की अगर आप कहें तो मेरे पास आपके लिए एक काम है। मैं और मेरी पत्नी हम दोनों ही काम पर जाते हैं। माँ घर पर अकेली रहती हैं। घर भी बड़ा है और अकेले घर की देखभाल करना उनके लिए मुश्किल है। तो अगर आप हमारे साथ शहर चलने को तैयार हो जाए तो हम आपको अपने घर काम पर रख लेंगे। और बच्चों का दाखिला भी स्कूल में हो जाएगा। रहने की भी फ़िक्र नहीं होगी। हमारे मकान में ही आप रह भी सकती हैं।
इतना सुनने के बाद निक्कू के माँ की आँखें भर आयीं और वो घर आये उस फ़रिश्ते के आगे हाथ जोड़ कर उसे दुआएँ देने लगी। वो खुश थी की उसके बच्चों के लिए अब वह कुछ कर सकती हैं और अपने बच्चों को स्कूल भी भेज सकती हैं।
वहीं निक्कू के लिए यह सपने के सच होने जैसा था और उस कैद की ज़िन्दगी से आज़ाद हो कर बहुत खुश था।
वह खुश था की वह अब स्कूल जा सकेगा।
उस नौजवान ने मदद का हाथ आगे बढ़ा कर निक्कू की ज़िन्दगी तो बचा ली लेकिन आज भी हमारे देश में न जाने कितने ही ऐसे निक्कू हैं जो बाल मज़दूरी के श्राप में अपनी मासूमियत खो रहे हैं और उनकी थकी आँखें किसी फ़रिश्ते का इंतज़ार कर रही हैं।