Dipti Biswas

Romance Tragedy

4.5  

Dipti Biswas

Romance Tragedy

फ़्लर्ट@लव

फ़्लर्ट@लव

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विशाखा जल्दी जल्दी सीढ़िया चढ़कर आख़िरकार तेरहवें फ्लोर तक पहुंच ही गयी। लिफ़्ट अचानक छठे माले पर ख़राब हो गयी थी,बेवजह समय बर्बाद करना उसे गवारा नहीं लगा। और जून की तपती दोपहर की गर्मी को भी मात देते हुए वो लगातार सीढ़िया चढ़ते हुए सिध्दार्थ के फ़्लोर तक पहुंच ही गयी।

पसीने से लतपथ, हांफती हुई विशाखा, ग़जब की खूबसूरती ढा रही थी। गुलाबी रंग की पतली सी बाजू कट टॉप पसीने से भींगकर उसके देह से चिपक गयी थी। और उस ट्रांसपेरेंट टॉप के भीतर उसके जिस्म की बारीक बनावट भी साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी। जांघो से बुरी तरह चिपकी हुई उसने एक ब्रांडेड जीन्स पहनी हुई थी, जो कि इतने जगहों से कटा हुआ था कि उसके गोरे जांघ और जांघो पर बने काले तिल भी साफ़ दिख रहे थे।

नई पीढ़ी के स्टाइल और पसंद की शानदार उदाहरण थी वो। चेहरा गोरा और पतला था, ग़ौर करने वाली चीज थी उसके बाएं हाथ के पांचों उंगलियों में सोने पर हीरे के मोती लगे पांच अंगूठियां थी। जिस से ये मालूम चलता है कि विशाखा एक रईस खानदान की लड़की है। ख़ैर गज़ब का कॉन्फिडेंट चेहरे पर लिये घूम रही थी वो।

सीढ़िया चढ़कर कुछ देर हाँफती रही फ़िर फ़्लैट नंबर 56 पर जाकर उसने दरवाज़ा नॉक किया। जिसके नेमप्लेट में लिखा था,(मिस्टर सिद्धार्थ रॉय)। फ्लैट के दरवाज़े पर नॉक होने के तुरंत बाद ही दरवाज़ा एक झटके में खुल गया। जैसे कोई दरवाज़े पर पहले से ही खड़ा बेसब्री से विशाखा का ही इंतजार कर रहा था।

तेरहवें फ़्लोर के सीढियों के अंत में छुपी दो आँखे लगातार विशाखा को घूर रही थी। विशाखा के नॉक करने के तुरंत बाद दरवाज़ा खुला, और दो जवां मजबूत मर्दाना हाथो ने विशाखा को इस तरह भीतर की ओर खींचकर ले गया, जैसे कोई वहशी दरिंदा अपने शिकार को एक पल में झपट लेता है।

विशाखा के भीतर जाते ही फ़्लैट का दरवाज़ा बन्द हो गया।

फ़्लैट के अंदर:- बेडरूम की सफ़ेद चादर जो कि महज़ चंद मिनटों पहले ही बिल्कुल सधी हुई अपनी जगज पर टिकी थी। अब उस चादर में अनगिनत सिलवटें पड़ चुकी है। पसीने से भींगा गुलाबी टॉप, अब सोफ़े पर उल्टा पड़ा हुआ है। चल रहे पंखे की हवा में खुद को सुखाने की कोशिश कर रहा है। जीन्स टॉप और उसके भीतर पहनने वाले तमाम कपड़े कमरे के किसी न किसी कोने में पड़ा हुआ है। विशाखा के मदहोश सिसकियों से कमरा गूंज रहा है। पर ग़ौर से सुन ने पर कमरे के भीतर से मध्यम आवाज़ में बज रहा एक बेहद रोमांटिक गाना सुनाई दे रहा था। " बेइंतहा... बेइंतहा यूं प्यार कर बेइंतहा..कोई कसर ना रहे, तेरी ख़बर ना रहे छू ले मुझे इस क़दर बेइंतहा!!!!"

पूरे डेढ़ घंटे बीत चुके थे, विशाखा की सिसकियों के जगह अब उसकी खिलखिलाहट सुनाई दे रही थी। कपड़े अब भी अस्त व्यस्त ही पड़े हुए थे, पर विशाखा की नजरें बता रही थी कि वो जल्द ही अपने कपड़ों की तलाश शुरू करेगी।

सिद्धार्थ डार्क कलर का एक हॉट जवान लड़का। उम्र तकरीबन 25 वर्ष, इस कमरे में विशाखा के सिसकियों की वजह वही था। पर अब वो किचन में था, विशाखा के पसंद का डार्क कोल्ड कॉफी बना रहा था, और वहीं से भद्दे डबल मीनिंग के जोक्स मार मार के विशाखा को हँसा रहा था।

अचानक विशाखा की खिलखिलाहट रुक गयी जब बेड के एक कोने में पड़ा उसका महंगा एंड्रॉयड फ़ोन वाइब्रेशन मोड़ पर किसी के मैसेज आने का संदेश देने लगा। झट से उसने मोबाइल पकड़ा तो व्हाट्सएप एप्पलीकेशन में करण के पांच अनरीड मैसेज थे। चैट ओपन कर वो उन मैसेजेस को पढ़ने लगी।

उंगली से सिद्धार्थ को चुप रहने को इशारा कर उसने अपना सारा ध्यान मोबाइल पर मैसेज रीड करने पर लगाया।

वेयर आर यू...?

विश प्लीज लिशन मी !

प्लीज सेंड मी...योर लाइव लोकेशन।

एंड टेल मी वेयर आर यू ?

विष तुम इतनी केयरलेस कैसे हो सकती हो..? तुम्हें ज़रा भी अंदाजा है, आज तुम्हारी मीटिंग "ओबरॉय एंड कंपनीज" के डायरेक्टर से है। वे आधे घंटे से मीटिंग हॉल में तुम्हारे प्रेजेंटेशन का वेट कर रहे है।

अनरीड मैसेज विशाखा ने रीड कर लिए, और उसे लगा जैसे उसके पावँ के नीचे से किसीने ज़मीन ही खींच ली हो। रिप्लाई करने का टाइम नहीं था उसके पास।

जल्दी से अपने बिखरे कपड़ो को किसी तरह पहनकर वो बग़ैर सिद्धार्थ से कुछ कहे, वहाँ से उसी तेज़ी से निकल गयी जिस तेज़ी से वो यहाँ आयी थी। अगर आज उसके जगह उसके जूनियर ने प्रेजेंटेशन कर दिया तो उसका फ्यूचर ही बर्बाद हो जाएगा। एक अच्छी बात ये हूई की लिफ़्ट अब तक बन चुकी थी। लिफ़्ट में ही उसने एक ओला कैब बुक किया और लिफ़्ट से बाहर निकलते ही उसे अपनी कैब नज़र आई।

कैब के बैठने के तुरंत बाद उसने अपने मोबाइल का लॉक खोला और करण के चैट में जाकर मैसेज टाइप किया

"आई एम कमिंग लव...गिव मी जस्ट फिफ्टीन मिनट्स"!

साथ ही उसे कुछ याद आया और उसने मोबाइल के गेलेरी में जाकर उन सेल्फियों को हाईड किया जो अभी थोड़ी देर पहले ही उसने बग़ैर कपड़ो के सिद्धार्थ के साथ क्लिक किये थे।

ट्रैफिक के वजह से वो फिफ्टीन मिनट के बजाय ट्वेंटी थ्री मिनट बाद अपने ऑफिस पहुँची। कैब को 175 रूपीस पे कर वो भागकर ऑफिस के मीटिंग हॉल में जाने लगी, जहां उसका वेट किया जा रहा था। पर इसी बीच रिसेप्शनिस्ट ने उसे टोका " विशाखा मैडम ओबरॉय एंड कंपनीज के लोग आधे घंटे में आ रहे हैं। तब तक आप अपने प्रेजेंटेशन वर्क को फाइनल टच दे दीजिये"।

व्हाट...? वो लोग अब तक पहुँचे नहीं...?

तो फ़िर करण ने मुझे इस तरह से झूठ बोलकर क्यों बुलाया। आख़िर उसके दिमाग़ में क्या बात आयी थी। कही उसे मुझपर शक तो नहीं। यही सब सोचते हुए विशाखा मीटिंग हॉल में पहुँची और धम्म से वहाँ रखे सोफ़े पर बैठ गयी।

तभी वहां एक चपरासी विशाखा के लिए ठंडा पानी लेकर आया। तो विशाखा ने उस से कहा " सुनो पानी रखने के बाद ज़रा करण सर से कहना मुझसे यहाँ आकर मिलें।"

"पर करण सर तो पिछले दो घंटे से कही बाहर गए हुए हैं मैडम"। चपरासी जवाब देते हुए चला गया।

अब व्हाट्सएप पर करण से सवाल करने की बारी विशाखा की थी।

इस से पहले की विशाखा व्हाट्सएप पर करण से किसी तरह का सवाल करती, रिसेप्शनिस्ट के साथ मीटिंग हॉल में आते हुए उसे दो लोग नजऱ आये जो ओबरॉय एंड कंपनीज के अधिकारी थे। उसके बाद जो मीटिंग शुरू हुई तो कब लंच टाइम खत्म हुआ, कब शाम खत्म हुई पता ही नहीं चला। रात के 9 बजे तक चल रही मीटिंग के बाद आखिरकार जीत विशाखा की हुई।

जिस काम की जिम्मेदारी उसे मिली थी उस से कंपनी को एक बहुत बड़ा फ़ायदा होगा और उस फ़ायदे का ट्वेंटी परसेंट मिलेगा विशाखा को। जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी रकम है।

चेहरे पर जीत की ख़ुशी लिए विशाखा मीटिंग हॉल से बाहर निकली। वो चाहती थी वो जल्द से जल्द जाकर ये बात करण से कहे। पर उम्मीद से परे उसे नाईट शिफ्ट की रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि करण सर आज दोपहर से ही लापता है, फ़ोन स्विच ऑफ है।

चिंता की एक हल्की सी शिकन उसके चेहरे में आई और वो फ़िर हड़बड़ाकर ऑफिस से बाहर निकल गयी। कैब बुक किया और अपने उस घर के तऱफ चली गयी,जहाँ वो करण के साथ पिछले साढ़े तीन सालों से रह रही थी, बग़ैर उस से कोई रिश्ता जोड़े। दोनो लिव इन में थे।

कार के खुले शीशे से ठंडी बहती हवा गाड़ी के भीतर आ रही थी। शायद जब विशाखा मीटिंग हॉल में व्यस्त थी, तब भयानक गर्मी से आम जन जीवन को राहत पहुचाने के लिए बारिश हुई थी।

इस हवा ने ये असर किया कि विशाखा की आँखे बंद हो गयी। और धीरे धीरे वो एक नींद में समा गयी। बेहद खूबसूरत नींद। बंद आँखों के भीतर ही सही, उसका डर उसके मस्तिष्क में बार बार कौंध रहा था।

उसने देखा करण नशे में चूर है। वो सोफ़े पर बैठकर एक के बाद एक ड्रिंक की ग्लास खत्म किये जा रहा है। समंदर सी गहरी करण की आँखों मे उसे अपने लिए वितृष्णा के भाव साफ़ दिख रहे थे। अपना बैग दीवार पर बने हेंगर में टांगते हुए वो करण के बिल्कुल नज़दीक चली गयी, करण अब भी उसे गुस्से में घूर रहा था। करण को शांत कराने के लिए, या करण के दिल के भीतर छुपी बात को जान ने के इरादें से ही शायद विशाखा ने अपने सूखे होंठ करण के वाइन से डूबे होंठो में कुछ इस तरह मिला दिया कि दोनों मिलकर एक हो गए।

करण गुस्से में था और अपना गुस्सा उसने विशाखा के नाज़ुक पतले होठों पर निकाला, बेरहमी से विशाखा के होंठो को काट रहा था वो, इतनी बेरहमी से की विशाखा इसके दर्द से तिलमिला गयी। इस वक़्त के अलावा अगर किसी और वक़्त में करण ऐसा करता तो विशाखा उसे उसी पल दूर झटक देती, और एक दो थप्पड़ भी लगा देती। पर इस वक़्त करण के गुस्से को कंट्रोल करना ज़्यादा जरूरी था। इसलिए विशाखा ने अपने दर्द को इग्नोर किया और अपना टॉप उतारने की कोशिश करने लगी। उसे लगा जैसे सब ठीक है, बेकार ही उसे ऐसा महसूस हुआ कि करण उसपर शक कर रहा था। उसके दिमाग़ का डर अब नियंत्रित होने लगा था।

पर तभी कमरे में एक ज़ोरदार आवाज़ गुंजी। करण ने विशाखा के कोमल गालों पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ा था। और एक भद्दी गाली..."रंडी"....करण के मुंह से निकल पड़ा था।

गालों के दर्द को हाथ से ढंकते हुए विशाखा सवाल,और गुस्से से करण को घूरने लगी। तभी उसकी घूरती नजरों को देखकर करण ने हरकत बदली, और वाइन भरे ग्लास को अपने मुंह मे उड़ेल दिया। इससे पहले की गले से होते हुए वाइन पेट तक पहुँचता, करण ने मुँह के भीतर का वो बदबूदार वाइन का पूरा घुट ही विशाखा के चेहरे में थूक दिया।

और इसी के साथ कैब में बैठी विशाखा की नींद हड़बाकर खुल गयी। नींद से जागकर भी उसे लगा कि उसके मुंह मे वाक़ई कोई गिला पदार्थ गिरा था, फ़िर थोड़ी देर बाद उसे समझ आया कि बाहर बारिश फ़िर से शूरु हो चुकी है, और बारिश का पानी ही उसके चेहरे को भिंगो कर गया था।

अब मुश्किल से और 10 मिंट लगेंगे घर तक पहुंचने में। कार के खिड़की को बंद कर वो उस बुरे सपने को सोचने लगी। अभी अभी जो गुस्सा उसने सपने में करण के आंखों में देखी थी, वैसा गुस्सा तो उसने आज तक कभी जागती आंखों से नहीं देखा इन चार सालों में। वो बुरी तरह डर चुकी थी। और सोच रही थी कि जिस खेल को वो शुरू कर चुकी है, उस खेल को जल्द ही उसे खत्म करना होगा। पर दूसरे ही पल उसे सिद्धार्थ की याद आयी और वो मुस्कुरा पड़ी। उन अंतरंग पलों के यादों में खो गयी जो आज ही दोपहर में उसने सिद्धार्थ के साथ जिये थे।

सिद्धार्थ की यादें उसके रोम रोम में छुपे वासना को जगा देती है। अंगड़ाई लेते हुए वो उत्तेजित हो जाती है। और मुस्कुरा देती है। गैलरी से सिद्धार्थ की हाइड फ़ोटो को निकालकर उसे बेतहाशा चूमने लगती है। अभी भी उसने यही किया, पर मोबाइल के स्क्रीन में सिद्धार्थ के पीक पर जब उसने होंठ गड़ाए ही थे, कि तभी उसे कैब के पहले कोच में बने बैक मिरर पर कैब बॉय की दो आँखे दिखाई पड़ी। जो लालच, और हवश में विशाखा को ही घूर रही थी।

झट उसने अपनी आँखें वहां से फ़ेर ली और गैलरी को बंद कर वो व्हाट्सएप पर चली गयी, आर्चीवड में जाकर उसने सिद्धार्थ के चैट को ओपन किया और एक मैसेज किया

" डील इस फाइनल, आई एम सो हैप्पी माह बॉय....कल पार्टी डन। रात में कॉल करूँगी सोना मत"। और इसके साथ ही ढ़ेर सारे किश वाले इमोजी भी।

कैब से उतरते और पैसे देते वक़्त विशाखा की आँखें फ़िर एक बार कैब बॉय के वहशी आँखों से टकराई, पर ऐसे ही तमाम आँखों को वो नजरअंदाज कर दिया करती है। अब हर आँखों में वो कशिश तो नहीं जो सिद्धार्थ के आँखों में है।

मुंबई के एक आलीशान सोसाइटी में करण का अपना एक मकान है। विशाखा भी यही रहती है, करीब पिछले साढ़े तीन सालों से। जब से उसने करण के ऑफिस में जॉब पकड़ी थी, उसके छह महीने बाद ही उसने करण के दिल में और उसके घर में अपनी जगह बना ली। बेइंतहा चाहता है उसे करण, इस बात से ख़ुद पर नाज़ करती है विशाखा।

ख़ैर घुप्प अंधेरे में डूबा हुआ था घर। उसे लगा कि करण अब तक घर आया ही नहीं है, ना जाने कहा है। हालांकि उस भयानक सपने के बाद उसे करण से डर भी लग रहा था। और वो चाह भी रही थी की करण से उसकी मुलाकात आज ना ही हो।

पर उसके घर में घुसने के चंद सेकंड बाद ही पूरे घर की लाइट ऑन हो गयी। और उसके ऊपर रेडीमेट फूलों की बरसात होने लगी। घर के हॉल के बीचोबीच खड़ी विशाखा के आस पास पूरी भीड़ शामिल थी। जो कि अब तक अंधेरे के वजह से नहीं दिखाई दे रही थी। जोशीले तालियों की आवाज़ से पूरा हॉल गूंज रहा था।

ये वही लोग थे जो करण के ऑफिस में काम करते है। विशाखा की जीत पर सब यहाँ उसे बधाई देने आए थे। करण मंद मंद मुस्कुराते हुए विशाखा को ही प्यार से देख रहा था। छोटी सी पार्टी की पूरी तैयारी थी।

ओह इसका मतलब ऑफीस से गायब होकर करण ने दिन भर आज यही किया। वो दौड़कर करण के गले लग गयी, और धीरे से उसके कानों के पास जाकर पूछने लगी, "अगर डील कैंसल हो जाती तो...."?

इसके जवाब में करण ने विशाखा के चेहरे को अपने दोंनो हाथो में भर लिया, और बड़े प्यार से कहा, "मुझे तुम्हारे शातिर दिमाग पर पूरा भरोशा है जानेमन।, तुम्हारा दिमाग़ क्या सोच सकता है, क्या कर सकता है, और क्या क्या खेल इस दिमाग़ में खेले जाते हैं, इसके पल पल की ख़बर मुझे है।

करण के जवाब से फ़िर एक बार तालियों की गड़गड़ाहट होने लगी। पर पता नहीं क्यों विशाखा को लगा जैसे करण ने बड़ी चालाकी से उसे ये ताना मारा है।

ख़ैर देर रात तक पार्टी चलती रही। करण खुशी से आज कुछ ज़्यादा ही पी गया। जब सभी लोग चले गए, तब तक रात के दो बज चुके थे। घर्र घर्र की आवाज़ के साथ विशाखा के मोबाइल में सिद्धार्थ के अनलिमिटेड मैसेज आते जा रहे थे।

इधर सोने से पहले करण विशाखा से बस एक राउंड सेक्स की जिद्द कर रहा था। पर विशाखा का दिमाग़ उसके फ़ोन पर आ रहे मैसेजेस पर था। उसने बाथ का बहाना बनाकर जल्दी से फ़ोन उठाकर बाथरूम के भीतर चली गयी।

सारे कपड़े उतारकर वो बाथटब के भीतर हल्के गुनगुने पानी में अपने जिस्म को डुबोये धीमे आवाज़ से सिद्धार्थ से बातें कर रही थी। उसे करण के इस सरप्राइज पार्टी के बारे में बता रही थी, और लेट से कॉल करने के लिए सॉरी भी बोल रही थी। उसे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था, उसकी इन हरकतों को कोई बड़े आराम से अपने लैपटॉप पर देख रहा है।

करीब आधे घंटे बाद जब विशाखा कमरे में आई तब तक करण सो चुका था। एक गहरी नींद में।

फ़िर वो कौन है जो विशाखा पर इस क़दर नजऱ जमाये हुए हैं, कि बाथरूम में भी उसने हाइड कैमरे को सेट कर दिए।

करण की बाहों में, और सिद्धार्थ के ख्यालों में विशाखा की रात गुज़र गयी। सुबह उसकी नींद करण के आवाज़ से खुली, बेड पर बैठे बैठे ही वो किसी से फ़ोन पर बात कर रहा था। लाबोनि! कहकर किसी को संबोधित कर रहा था। शायद किसी नए स्टाफ़ से बात हो रही थी। विशाखा उठकर वाशरूम चली गयी।

थोड़े ही देर बाद, करण ने वाशरूम के दरवाज़े पर से ही विशाखा को जल्दी तैयार होने को कहा, और उसके साथ किसी से मिलने जाना है इसकी जानकारी दी।

नए नए मिले प्रोजेक्ट पर काम करने का आज पहला दिन था, विशाखा के लिए। हर चीज़ में परफेक्ट विशाखा आज भी किसी परफेक्ट लेडी बॉस से कम नहीं लग रही थी। उसने ब्लैक कलर का एक वन पीस टॉप पहना है, हाथ में ब्रांडेड घड़ी,जो कि करण ने ही उसे पिछले महीने यूरोप टूर से लौटते वक्त लाकर दिया था। ब्लैक गॉगल्स और सहूदगी से बंधे बाल, वाक़ई विशाखा की पर्सनालिटी देखने लायक है। करण के ऑफिस की हर महिला स्टाफ़ विशाखा के किस्मत पर जलती है। एक दो इतना हैंडसम, फिट, डेसिंग, इतने बड़े बिसनेस मैन का साथ ऊपर से जिस्म के हर अंग से बहती उसकी सुंदरता, मर्द तो मर्द लड़किया भी उसे देखकर देखती ही रह जाती है।

हाथ में कुछ जरूरी फाइल्स लिए वो करण के साथ कार के फ्रंट सीट में बैठ गयी। और आधे घंटे बाद कार मुंबई के एक जाने माने सोसाइटी के बाहर आकर रुकी।

करण ने विशाखा को बताया कि यहाँ लावण्या का घर है। वही लावण्या जिस से सुबह फ़ोन पर करण लाबोनि कहकर बात कर रहा था। ख़ैर इतने बिजी शेड्यूल के वाबजूद लावण्या से अलग से मिलने के लिए टाइम निकालने के पीछे की क्या वजह हो सकती है वो विशाखा नहीं समझ पायी, ख़ैर ये तो उस से मिलकर ही पता चलेगा।

लावण्या को देखकर तो विशाखा भी चौक गयी, इतनी सुंदर इतनी प्यारी लावण्या जिसे देखकर भी उसे लाबोनि कहकर पुकारने का ही मन करता है।

सुनहरे लंबे बाल, बड़ी बड़ी आंखे जिनपर काजल लगा हुआ है। हल्के हरे रंग का एक चूड़ीदार सूट पहने वो किसी पवित्र देवी की तरह सुंदर है। जिस वक़्त विशाखा की नज़र लावण्या पर पड़ी थी उस वक़्त लावण्या अपने लैपटॉप पर कुछ काम कर रही थी, विशाखा को देखकर उसने झट अपने लैपटॉप को दूसरे तरफ़ मोड़ दिया। लैपटॉप के स्क्रीन पर सौलह लाइव कैमरे चल रहे थे, पर किस लॉकेशन में ये लिखना अभी ग़लत होगा।

ख़ैर बहुत गर्मजोशी से मिली थी लाबोनि इन दोनों से। बातों बातों में करण ने बताया कि लाबोनि और करण प्लस 2 से ग्रेजुएशन तक क्लासमेट रहे। लाबोनि टेक्नोलॉजी साइंस की स्टूडेंट थी, और करण एकाउंट्स का। पर लाइबेरी और कैंटीन में दोनों अच्छे दोस्त थे। ग्रेजुएशन के बाद लाबोनि अमेरिका के आई टी रिसर्च सेंटर में ट्रेनिंग के लिए चली गयी।

पर हर तरह का ज्ञान बटोरने की चाहत रखने वाली लावण्या को अब किसी बड़े कंपनी को और किसी शानदार प्रोजेक्ट को कैसे हैंडल करना है ये सीखना है। इसलिए लावण्या ने करण से कांटेक्ट किया। और करण ने भी इसके लिए सहमति दे दी।

करण चाहता है विशाखा को मिले इस नए प्रोजेक्ट में लावण्या उसकी पर्सनल असिस्टेंट बनकर उसके साथ काम करें। इसमें कोई दिक्कत विशाखा को भी नहीं थी। बस एक बात उसे नहीं जंच रही थी, वो चाहती थी इस प्रोजेक्ट में कोई पहले से सीखा हुआ लड़का हो, ताकि वो दिन हो या रात किसी भी वक़्त विशाखा के एक कॉल पर उसके साथ काम करने के लिए तैयार रहें। पर लावण्या एक लड़की है तो ज़ाहिर सी बात है देर रात तक वो विशाखा के साथ नहीं रुक सकती।

करण जैसे चाह ही रहा था कि विशाखा ये बात रखें। उसने तुरंत इसका जवाब दिया, " विश लाबोनि इस पूरे प्रोजेक्ट के दौरान हमारे साथ उसी घर में रहेगी, और तुम्हारे साथ दिन रात काम करेगी।

ख़ैर सारी बातें क्लियर होने के बाद विशाखा और करण ऑफिस के लिए निकले। और लाबोनि एक घंटे बाद पहुँचेगी।

लाबोनि के ऑफिस पहुँचने के तुरंत बाद विशाखा को समझ आ गया कि लाबोनि किसी से कम नही। काम सीखने की एक जबरदस्त ललक उसने लावण्या के भीतर देखी। जो कि विशाखा के लिए फायदेमंद बात थी।

बस एक बात थी जो उसे परेशान कर रही थी, लावण्या घर पर जिस लैपटॉप में काम कर रही थी, और विशाखा को देखते ही उसने लैपटॉप को हड़बड़ाकर पीछे घुमा दिया था।

पर साइड में बने मिरर पर विशाखा उस खुले हुए लैपटॉप का बिस फ़ीसदी हिस्सा देख पा रही थी। जिसमें किसी कैमरे की लाइव रेकॉर्डिंग चल रही थी। पता नहीं क्यों वो लोकेशन विशाखा को करण के हॉल के एक हिस्से की दिखाई पड़ी। वो तब से कुछ सवालों से जूझ रही है, पर ये बात वो लावण्या से डायरेक्ट तो नहीं पूछ सकती।

ख़ैर उसे उम्मीद थी कि लावण्या के साथ काम करने के दौरान वो जरूर इस बात से पर्दा उठाएगी। लावण्या का करण के ऑफीस का पहला दिन जबरदस्त रहा। वो खुश नज़र आ रही थी। शाम में वो तीनों एक साथ घर जाने वाले थे, पर विशाखा ने किसी फ्रेंड से मिलने का बहाना बनाकर लाबोनि और करण को घर भेज दिया। लेकिन करण अच्छे से जानता है कि विशाखा जैसी लड़की की कोई फीमेल फ्रेंड नहीं हो सकती। तरक्की के रास्ते पर बहुत आगे जाने की ख्वाहिश लिए तो विशाखा ने अपने रूढ़िवादी परिवार को भी त्याग दिया। चंड़ीगढ़ से भागकर मुम्बई आये उसे शायद सात साल हो गए। इन सात सालों में उसने एक बार भी मुड़कर पीछे नहीं देखा। बस आगे बढ़ती रही। उसके पास समय ही नहीं, कि वो किसी से दोस्ती करें। उसने पैसों के अलावा कभी किसी को नहीं चुना सिवाय करण के। ऐसा करण को लगता है। 

इधर विशाखा करण की दूसरी कार लेकर सिद्धार्थ के बोले जगह पर जाने लगी, जहां पिछले दो घंटे से सिद्धार्थ विशाखा का ही इंतजार कर रहा था। सिद्धार्थ की एक झलक ने विशाखा के जिस्म के भीतर की सारी थकान ही दूर कर दी, और विशाखा एक नाज़ुक जान मासूम सी प्रेमिका की तरह जाकर सिद्धार्थ के गले से लग गयी।

ये वहीं पल है जिन्हें विशाखा दिल खोलकर जीना चाहती है। पर सिद्धार्थ बहुत नाराज़ नज़र आया उसे। फाइव स्टार होटल में बैठा सिद्धार्थ अब तक पांच कप कॉफी का आर्डर दे चुका था, और पी चुका था। विशाखा उसे मनाती रही पर सिद्धार्थ उसे हर बार टेढ़े जवाब ही देता रहा। और उन जवाबों को सुनकर विशाखा के भीतर एक अजीब सा दर्द हिलोरे मारने लगता।

वो सोच रही थी, दो महीने पहले तक उसके लाइफ में सिद्धार्थ के लिए कोई जगह ही नहीं थी। पर अब सिद्धार्थ उसके वजुद में ऐसे समा गया है, जैसे वो उसके बिना ख़ुद को सोच ही न पाएगी। ख़ैर सिद्धार्थ को ना मान ना था ना वो माना।

विशाखा ने सिद्धार्थ को उसके फ़्लैट तक ड्राप किया। कार से उतरते वक़्त अचानक सिद्धार्थ को पता नहीं क्या सुझा उसने कार को दुबारा लॉक किया, काले शीशे में छुपा ये कार विशाखा की अब फेवरेट कार बन चुकी थी। सिद्धार्थ विशाखा को खींचते हुए कार के पिछले सीट पर ले गया। विशाखा समझ चुकी थी, सिद्धार्थ का गुस्सा अब ठंडा पड़ चुका है। वो भी सिद्धार्थ के इशारे से बिल्कुल वैसा ही करती जैसे सिद्धार्थ चाहता था।

काले शीशे के भीतर दोनों ने अपने अपने जिस्म के गर्माहट को शांत किया। विशाखा के काले ब्रा के लास्ट हुक को लगाते हुए सिद्धार्थ को लगा जैसे दूर कही से कोइ उन दोनों को देख रहा है। पर शीशे तो काले रंग के थे। फ़िर कोई कैसे उन्हें देख सकता है। विशाखा कपड़ें पहन चुकी थी, हा बाल बिखर चुके थे पर उन्हें ठीक करने के लिए विशाखा के पास कोई चीज़ नहीं थी।

रात के दस बज चुके थे, सिद्धार्थ को ड्राप कर जब विशाखा घर पहुँची तो घर में कोई नहीं था। ना ही लावण्या ना ही करण। गेट पर खड़े वॉचमैन ने कहा अब तक कोई घर आया ही नहीं।

तो फ़िर वे दोनों पिछले तीन घंटे से कहा है...? क्या जो खेल छुप छुपकर विशाखा खेल रही है। वही खेल करण खुल्लम खुल्ला खेल रहा है..? मन मे उमड़ रहे सवालों के उथल पुथल के साथ विशाखा अपने कमरे में चली गयी।

विशाखा को कमरे में पहुँचकर भी सुकून नहीं मिल रहा था। वो लगातार कभी करण को कभी लाबोनि को कॉल लगा रही थी। पर दोनों में से कोई कॉल नहीं पिक कर रहे थे।

बग़ैर डिनर किये ही विशाखा सो गई। जानबूझकर नहीं दरअसल उसकी आंखें लग गयी। अभी उसे नींद में समाए दो या ढाई घंटे ही हुए होंगे, उसे लगा जैसे कोई उसके कमरे के ओपन डोर से उसे झांक रहा है।

उसके पूरे जिस्म में एक झुरझुरी सी फ़ैल गयी। उसने चादर को खींचकर अपने पूरे जिस्म को ढक लिया। न जाने क्यों उसे डर लग रहा था। उसने ये भी नहीं सोचा कि उसे जाकर देखना चाहिए कि कौन है जो उसे झांक रहा है। एक बार और उसने दोनों को कॉल लगाया पर अब करण का फ़ोन स्विच ऑफ और लावण्या का फ़ोन व्यस्त आ रहा था। फ़ोन रखकर फ़िर से सोना चाहती थी की उसे दरवाज़े पर किसी के होने का पुख़्ता आभास हुआ, उसने झट साइड लैंप को ऑन कर दिया।

और उसे बिल्कुल दरवाज़े के पास लाबोनि दिखाई दी। जो कि विशाखा के ही जालीदार नाइटी में थी। उसे देखकर विशाखा बेड से उठकर खड़ी हो गयी। और सबसे पहला सवाल " करण कहाँ है...?

लावण्या:- करण अपने कमरे में है। घर आते वक्त करण और मेरा एक्सीडेंट हो गया था। उनके सर में चोट आई है। मैं उन्हें लेकर हॉस्पिटल गयी थी। अभी कुछ देर पहले ही हम घर पहुँचे। अभी वो अपने कमरे में सो रहे हैं। आप मिल लीजिये। उन्होंने हॉस्पिटल जाने के दौरान ही मुझसे कहा था कि मैं आपको बता दूं, पर बेवजह आपको डिस्टर्ब करना मुझे अच्छा नहीं लगा। यहाँ आने के बाद मुझे याद आया कि मैं तो अपने घर से अपना लगेज लेकर आना भूल ही गयी,इसलिए आपके कपड़ो का इस्तेमाल करना पड़ा। मैं सुबह होते ही अपना सामान ले आऊंगी।

विशाखा मन ही मन सोच रही थी कपड़े ही यूज़ करने थे, तो कोई और ड्रेस पहन लेती इस तरह किसी और के घर में नेट वाली नाइटी पहनने का क्या मतलब है।

ख़ैर विशाखा को करण के चोट की ज़्यादा परवाह नहीं थी। उसे इस बात की खुशी थी, की करण और इसका कोई चक्कर नहीं चल रहा। उसने अलमारी से एक दूसरा ड्रेस निकालकर लावण्या को दे दिया।

और ख़ुद करण के कमरे में चली गयी। जहां चैन से करण सो रहा था। उसके माथे पर पट्टी बंधी हुई थी। विशाखा उस से बात करना चाहती थी, पर करण गहरी नींद में सो चुका था। विशाखा भी उसके पास में ही सो गयी।

सुबह विशाखा की नींद देर से खुली, उसने देखा करण अपने जगह पर नहीं है। शायद वो वाशरूम गया होगा। विशाखा ने देखा बाथरूम का दरवाज़ा खुला है। और बाथरूम में करण और लाबोनि एक साथ है। विशाखा दरवाज़े पर से झांककर उन दोनों को देखने लगी।

लावण्या करण की ड्रेसिंग कर रही थी। विशाखा को अजीब तो लगा, करण के इतने पास जाने का हक़ तो सिर्फ़ उसे था। पर वो ये सोचकर इस चीज़ को इग्नोर कर गयी कि दोनों कॉलेज टाइम से अच्छे फ्रेंड है।

ख़ैर सुबह फ़िर उसी भागमभाग के साथ शुरू हुयी। आज करण घर पे ही रुका था रेस्ट करने के लिए। विशाखा और लाबोनि एक साथ ऑफिस पहुँचे, पर पहले उन्होंने लाबोनि के घर से लाबोनि का लगेज भी ले लिया और लाबोनि ने ड्रेस भी चेंज कर लिया।

दोपहर के वक़्त लाबोनि और विशाखा एक साथ लंच पर गए, दोनों की अच्छी बॉन्डिंग हो गयी थी अब तक। बातों बातों में लाबोनि ने विष को बताया कि, वो कॉलेज के दिनों से ही करण पर फ़िदा थी। और शायद अब भी है। दोनों ने उस वक़्त इस बात को हँसते हुए ही टाल दिया था। पर विशाखा के भीतर कही चुभ गयी थी ये बात।

पर जिस प्रोजेक्ट पर वो काम कर रही थी वो कोई मामूली प्रोजेक्ट नहीं था। पूरे दिन में उसे तीन से चार मीटिंग्स अटैंड करने पड़ रहे थे। कभी प्लांट के वर्करों से, कभी सुपरवाइजरों से, कभी सेल्स डिपार्टमेंट के स्टाफ़ से। इस तरह उसका पूरा दिन गुज़र रहा था, और इन पलों में लाबोनि साये की तरह उसके साथ रहती। लाबोनि के दोनों आंख हमेशा विशाखा पर ही होती। अजीब लड़की थी, कोई इतना कैसे डूब सकता है किसी काम में, अब तो विशाखा सिद्धार्थ के फ़ोटो तक को निकालकर चुम नहीं पाती, इस काम के लिए भी उसे वाशरूम जाना पड़ता था। इसलिए चिढ़ जाती थी विशाखा कभी कभी लावण्या पर।

देखते ही देखते तीन दिन गुज़र गए। इन तीन दिनों में विशाखा काफ़ी व्यस्त रही। पर आज छुट्टी का दिन था, यानी संडे। आज इन तीनों को (विशाखा, लाबोनि और करण) मुंबई के समुद्र किनारे जाने का मन हुआ। करण बहुत अच्छे से तैयार हुआ था, आज सर पे लगे हुए चोट से उसने पट्टी भी उतार ली। पर एक चीज़ से विष हैरान थी, पट्टी हटने के बाद उसने देखा करण के सर पे ऐसा कोई निशान ही नहीं था चोट का जिसपर पट्टियां लगाई जाए। ऐसा ही झटका उसे तब भी लगा था जब उसने एक्सीडेंट वाले दिन के बाद कार को देखा था जिसपर एक खरोंच तक नहीं थी।

विशाखा की एक खूबी है वो तबतक लोगों को नहीं टोकती जब तक कि वो ख़ुद सच्चाई पर से पर्दा न हटा लें। आज भी उसे चुप रहना ही बेहतर लगा। पर उसे समझ आ गया था कि उस दिन जब लाबोनि और करण देर रात घर पहुँचे थे,और इस देरी का कारण उन्होंने उनके साथ हुए एक्सीडेंट को बताया था। वो पूरी तरह से झूठ था।

एक झटके में संडे गुज़र गया। और अब आ गया काम पर लगने का दिन, आज रात घर आने के बाद करण ने बताया कि अमेरिका में उसे किसी मीटिंग में जाना है, पर जिस मीटिंग में उसे जाना है, उसके लिए एक फीमेल पार्टनर का भी साथ होना चाहिए। विशाखा नए प्रोजेक्ट से हिल भी नहीं सकती तो फ़िर करण के साथ कौन जा सकता है।

कोई आकर्षक दिखने वाली जवान खूबसूरत लड़की, का जिक्र हो और नाम लावण्या का ना आये ऐसा हो ही नहीं सकता। आख़िर में ये तय हुआ कि इस 7 दिनों के अमेरिकन टूर में करण के साथ लाबोनि जाएगी करण की फीमेल पार्टनर बनके।

विशाखा का दिल इस बात की मंजूरी देना तो नहीं चाहता पर कही न कही हर वक़्त लाबोनि का साथ उसे अनकंफर्ट फील करता था। वो चाहती थी इन सात दिनों में वो भी चैन से जिये और सिद्धार्थ के साथ वक़्त ही वक़्त बिताए। इसलिए उसने बहुत बड़ा रिक्स लेकर ही सही उन दोनों को एक साथ अमेरिका भेज दिया।

ऐसा नहीं था कि लाबोनि करण के साथ होने पर विशाखा ज्वैल्स फील करती है। पर वो इस बात से डरती है कि कही करण का दिल लाबोनि पर आ गया तो उस से वो सब चीज छीन लिया जाएगा जो करण के भरोशे ही उसे मिला है। वो तो सिद्धार्थ के साथ किसी और लड़की के नाम से जलती है। करण तो बस उसके लिए सोने के अंडे देने वाला एक मुर्गा है। 

उसे करण से वो सारी चीजें मिलती है, जो उसे कोई और नहीं दे सकता। नाम,जगह,पैसा,आलीशान घर और कार वो सब कुछ। बदले में बस उसे करण के साथ अनचाहा सेक्स करना पड़ता है,जो कि विशाखा के लिए बहुत बड़ी बात नहीं थी। यहाँ तक पहुँचने में उसने कई सारे सीढ़ियों को पार किया है और हर सीढ़ी पर चढ़ने के दौरान उसे ख़ुद को उस सीढ़ी को सौंपना ही पड़ा है। कामयाबी मुफ़्त में तो नहीं मिल सकती है ना। कामयाबी एक खूबसूरत जिस्म मांगती है जो कि बेशक विशाखा के पास है। जीरो से लेकर हंड्रेड के बिल्कुल नज़दीक पहुँच चुकी विशाखा हर वो पैतरा जानती है जो उसे कामयाब बना सकती है।

पर इंसान चाहे कितना भी चालाक क्यों न हो, एक मासूम दिल से खिलवाड़ करने वाला वो धोखेबाज शख्स ज़्यादा दिन खुश नहीं रह सकता। वो शायद ये नहीं जानती की जिस तेज़ी से वो करण को बर्बाद करने पर लगी है, उसी सिद्धत से कोई करण को आसमान पर पहुचाने में लगा है। एक औरत किसी आदमी के दुनियां को बर्बाद भी कर सकती है और आबाद भी।

ये वही सात दिन है, जो विशाखा को जीवन के असली पैतरे दिखाएगी। इन्हीं सात दिनों में विशाखा बर्बाद हो जाएगी। पर इस बात की हल्की सी भी भनक विशाखा को नहीं है।

करण और लावण्या की फ्लाइट रात के दो बजे की थी। करण रात भर जागकर पैकिंग कर रहा था, विशाखा उसे बेकार की चीज़ें ले जाने को मना करती, पर करण पता नहीं क्यों ऐसी पैकिंग कर रहा था जैसे वो सात दिनों के लिए नहीं बल्कि सात जन्मों के लिए अमेरिका जा रहा है।

पर विष जानती है, करण ऐसा ही है। हमेशा कही बाहर जाने से पहले डरता है ना जाने क्यों। विशाखा एक लंबी चौड़ी महंगे ब्रांडेड चीज़ो की लिस्ट करण को सौंप चुकी है। ऐसा वो हर बार ही करती है।

करण और लावण्या के जाने के बाद विशाखा ने राहत की एक लंबी गहरी सांस ली। अब वो सिद्धार्थ से मिल सकती है, बग़ैर किसी के डर से। चलिए आज मिलवाते है, सिद्धार्थ से।

लंबे कद काठी का, सावला रंग का एक जवान लड़का। एक छोटे शहर से मुम्बई में अपनी किस्मत आज़माने आया था, और काफ़ी हद तक सफल भी रहा। छोटे मोटे रियलिटी टीवी शो में एंकरिंग के ऑफर तो उसे मिल ही जाते हैं। दो महीने पहले उसकी मुलाकात एक इंटरव्यू के दौरान विशाखा से हुई थी। दरअसल एक परफेक्ट बिसनेस मैन करण का इंटरव्यू लेने को भेजा गया था सिद्धार्थ को,और वहीं उसकी मुलाकात हुई थी विशाखा से। अपने मीठी मीठी बातों में उसने विशाखा को फसा लिया। मोबाइल नंबर के आदान प्रदान हुए और फ़िर मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया।

ऐसा नहीं था कि सिद्धार्थ भी विशाखा पर उसी सिद्धत से फ़िदा था जितना कि विशाखा सिद्धार्थ पे मरती है। सिद्धार्थ बस मुफ़्त में जिंदगी के मज़े ले आ रहा था, महंगे होटलों में खाना खा रहा था, मुँह मांगी रकम विशाखा से ले रहा था। इस महंगे महानगर में और क्या चाहिए एक नौजवान लड़के को।

इधर विशाखा दिन ब दिन सिद्धार्थ के बाजुओं में खुद को फ़साती जा रही है। भागमभाग जिंदगी में उसने कभी सिद्दतों वाली मुहब्बत को महसूस नहीं किया पर, अब करती है सिद्धार्थ के साथ। विशाखा बेवकूफ नहीं है वो जानती है सिद्धार्थ उससे बस फ़ायदा उठाता है। वो सब जानती है, पर ख़ुद को रोक पाना उसके वश में नहीं था अब। शारीरिक जरूरतें पूरा करने के लिए उसे सिद्धार्थ की जरूरत थी, और रईसों की जिंदगी को जीने के लिए उसे करण की जरूरत थी। इसलिए उसने समझौता कर लिया था। करण को झूठा प्यार और अपना जिस्म देकर वो उस से अपने बैंक के बैलेंस को बढ़ाती। और उन्हीं पैसों का एक छोटा हिस्सा सिद्धार्थ पर खर्च कर वो अपनी जिस्मानी भूख मिटाती। और सिद्धत वाली उस मुहब्बत को ख़ुद के भीतर महसूस करती।

ख़ैर रात के ढाई बजे ही विशाखा सिद्धार्थ के फ़्लोर पे पहुँची। आज तो उसे जी भर के अपनी प्यास बुझानी थी। आज उस से सवाल पूछने वाला कोई नहीं था। पर उम्मीद से परे उसे सिद्धार्थ के दरवाज़े पर ताला लटका हुआ नजऱ आया। और फ़ोन स्विच ऑफ।

वो वापस लौट आयी। सुबह की पहली किरण के साथ अपने काम पर लग गयी। मानना पड़ेगा विशाखा के जुनून को मानना पड़ेगा। काम के प्रति उसके दीवानगी को मानना पड़ेगा। अपने प्रोजेक्ट के काम पर ऐसी लगी थी वो की उसे कानो कान भनक तक नहीं पड़ी की उसके पीठ पीछे कंपनी के पुराने फ़ाइल को,पुराने नाम को मिटा दिया गया। जैसे सबकुछ शुरू से शुरू होता है, वैसे ही बदलाव शूरु हो चुके थे।

जिन लोगों के नाम पर उसका अपना वजूद टिका था। वो अब धीरे धीरे ढह रहा था। वो लोग उसके जीवन से जा चुके थे। दोपहर खत्म होने के बाद उसे इन सात दिनों का पहला झटका लगा। जब रेस्टुरेंट में लंच के दौरान उसने अपना एटीएम कार्ड यूज़ करना चाहा तो उसे बताया गया कि उसके एकाउंट के एक रुपए भी नहीं है। लाखों रुपये आख़िर एक झटके में कैसे उड़ सकते हैं। विशाखा का दिमाग़ सुन्न पड़ने वाला था। उसे लग रहा था हो ना हो ये काम जरूर सिद्धार्थ का होगा, तभी तो वो गायब है। अनगिनत बार कॉल लगाने के वाबजूद सिद्धार्थ का फ़ोन स्विच ऑफ ही आ रहा था।

इधर लावण्या और करण भी पूरी तरह लापता थे। करण के अमेरिका वाले नंबर पर भी फ़ोन लगाने पर नंबर नॉट रिचेबल ही था। उसने जल्दी से कैश निकालकर बिल पे किया और ऑफिस के तरफ़ भागी।

वहां रिसेप्शन काउंटर में जो ख़बर उसे मिली उसे सुनकर उसके होश उड़ गए। रिसेप्शनिस्ट ने बताया कि कंपनी के तरफ़ से खोले गए सारे बैंक एकाउंट को ब्लॉक कर दिया गया है।

विशाखा :-पर क्यों....?

रिसेप्शनिस्ट :- पता नहीं मेम करण सर का ऑर्डर था। आप बैंक के मैनेजर से बात कर लीजिएगा कल।

आख़िर ये क्या हो रहा है.... क्यों करण ने सारे एकाउंट बंद करवा दिए। इन्हीं बैंक एकाउंट के तहत तो सारे काम होते थे। करण ने ही ये एकाउंट विशाखा को दिया था। जिसमें ही विशाखा की सैलरी जाती थी। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था की इस तरह बग़ैर उसे बताएं करण उस एकाउंट को बंद करवा देगा। ख़ैर करण ने ये किया है तो जरूर कुछ सोच समझकर ही किया होगा। उस से बात कर के ही ये पता चलेगा। हताश परेशान विशाखा उस घर में लौट आयी जो अब करण का भी नहीं था। विशाखा के बर्बादी का पहला दिन गुज़र गया।

बहुत सारे सवालों और बुरे ख्यालों के साथ विशाखा का दिन खत्म हुआ। और ये ऐसी पहली रात थी, जब विशाखा रात भर जागती रही। एक पल के लिए भी उसे नींद नहीं आयी। वो लगातार उन तीनों को कॉल लगाती रही लावण्या को, करण को और सबसे ज़्यादा सिद्धार्थ को। पर तीनों ही ऐसे लापता थे जैसे उन लोगों का विशाखा की दुनियां में कोई अस्तित्व ही ना हो।

एक ऐसा पल भी आया कि विशाखा अपनी लाचारगी पर रो पड़ी। एक बेहद अनजाना सा डर उसके रगों में समा चुका था। सुबह के करीब चार बजे उसे नींद आयी,वो भी तब जब उसने लगातार एक एक कर बारह सिगरेट सुलगाये और उनके धुंए को अपने फेफड़ो में भर लिया।

उस धुंए से भरे कमरे में ही वो सो गयी। सुबह करीब दस बजे उसे किसी ने आकर जगाया, घर का वॉचमैन था ये। उसने कहा कि कुछ लोग आए हैं और वे करण सर के तीनों गाड़ी की चाबियां मांग रहे हैं।

विशाखा ने आधे खुले आँखों से ही सवाल किया "चाबियां पर क्यों..."?

आप चलिए न मैडम बाहर मुझे तो कछु नहीं आया समझ। बोल रहे हैं तीनो गाड़ी उन्होंने खरीद ली है।

ओह माय गॉड अब ये क्या नया नाटक है। विष नेट वाली पारदर्शी नाइटी में ही घर से बाहर दौड़ पड़ी। बाहर एक अच्छी ख़ासी भीड़ थी। जब भीड़ में से कुछ बदचलन लोग विशाखा को उस हद तक घूरने लगे जैसे उस नेट वाली नाइटी के उस पार उन्हें सब दिख रहा है। तब विशाखा को आभास हुआ कि उसने वाक़ई कोई ग़लती की है।

वो दुबारा अंदर गयी और ड्रेस बदल कर आ गयी। अब तक करीब सुबह के 11 बज चुके थे। दस बारह लोगों के भीड़ में से दो लोग आगे आये और उन्होंने फ़िर वही बात दोहराई "मैडम कार की चाबियां हमें ला दीजिये। वैसे भी हमने बहुत देर इंतजार कर लिया "है।

विशाखा बहस नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसने उन पेपर्स की मांग की जिस से उसे मामला कुछ समझ आता।

पेपर्स उसके हाथ आये तो उसे दूसरा झटका लगा, करण के साइन किये हुए बिल्कुल ओरिजनल पेपर्स थे ये, जिनपर साफ़ साफ़ लिखा था कि करण ने अपनी तीनों गाड़िया इन लोगों को बेच दिया है। बहुत ही मामूली रकम में। पर करण ने ऐसा क्यों किया। आख़िर क्या वजह थी एक साथ तीनों कार बेचने की..? विष जानती है करण को नए नए कार के मॉडलों के कलेक्शन का शौक तो है पर एक साथ तीनों कार बेचने की वजह उसे समझ नहीं आयी। और तो और इतना करने के पहले करण ने उस से पूछना तक जरूरी नहीं समझा। लाख रोकने की कोशिशों के बाद भी दो आँसू विष के आंखों ने निकलकर गालों पर लुढ़क ही आये ये थे, अपमान के आँसू। अभी तो उसे धोखे के आंसू भी निगलने है। बुरा दौर तो अब शुरू हुआ है।

बहुत हारा हुआ महसूस कर रही थी वो ख़ुदको। पर बस सात दिन, उसके बाद वो एक एक सवाल का जवाब मांगेंगी करण से। ख़ैर अभी सबसे ज़्यादा जरूरी था ओबरॉय एंड कंपनीज के द्वारा दिये गए इस करोड़ो के प्रोजेक्ट पर काम करना।

वो फ़िर से एक कैब बुक कर ऑफिस के लिए निकल गयी। फ़िर ऑफिस पहुँचने के बाद उसकी नज़र कंपनी के गेट वन के पास लगी भीड़ पर पड़ी। वैसे तो उसे गेट फाइव तक जाना था क्योंकि वहीं प्लांट एरिया पड़ता था, और उसे देखना था मटेरियल कितना रेडी हुआ है। जिसे डिस्पैच करना है, जल्द से जल्द।

उसने देखा गेट के नेम प्लेट पर कुछ काम हो रहा था। पर वो जल्दी में थी, वो सीधे ऑफिस चली गयी। जहां एक और चीज़ बन्द लिफ़ाफ़े के भीतर उसका ही इंतजार कर रही थी।

अपने केबिन के भीतर पहुचकर उसकी मुलाकात उसी लिफ़ाफ़े से हुई। किसी कुलकर्णी इंडस्ट्रीज जी के लेटरहेड में लिखा ये एक पत्र था। जिसमें वो लिखा था जिसकी कल्पना तक विशाखा के जेहन में नहीं पहुँची थी।

साफ़ साफ़ शब्दों में उस पर लिखा था।

" मिस विशाखा...

पिछले चार सालों से आप मिस्टर करण के फैक्टरी में एक स्टाफ़ के तौर पर काम कर रही है। आपने उनके कंपनी को क्या रिजल्ट दिए हैं ये मैं नहीं जानता। पर अब आप जानते हैं, कि ये कंपनी मिस्टर करण ने मुझे बेच दिया है। सिर्फ़ कंपनी ही नहीं अपने प्रोडक्ट भी। और कुछ वफ़ादार और काबिल स्टाफों को भी उन्होंने मुझे सजेस्ट किया है। जिनके लिस्ट में आपका नाम नहीं था। उन्होंने आपके कैरेक्टर के विषय में मुझसे कोई बात नहीं कि। इसलिए बड़े खेद के साथ मुझे ये लिखना पड़ रहा है कि आप हमारे साथ काम नहीं कर सकती।भविष्य में अगर हमें आपकी जरूरत पड़े तो हम ख़ुद आपसे संपर्क करेंगे।                                             

इस बात को मान लेना विष के लिए इतना आसान नहीं था। उसे अभी भी लग रहा था जैसे, कही से करण आएगा और उसे हग करते हुए कहेगा "ये सब झूठ है डार्लिंग"। उसे लग रहा था जैसे सभी लोग मिलकर उसे बेवकूफ बना रहे थे।

पर कुछ बातें अब विशाखा को समझ आ रही थी। वो जानती थी, करण उसे उस हाल पर छोड़ कर गया है कि वो कहि की न रहें। बट व्हाई करण...? आनन फ़ानन में उसने, मिस्टर ओबरॉय को कॉल लगाया और इस बात की जानकारी दी कि करण ने उनके साथ धोखा किया है,एडवांस के रुपये लेकर उन्होंने कंपनी किसी और को बेच दी।

पर इधर तो मामला ही पेचीदा था। मिस्टर ओबरॉय ने बताया कि करण ने उनके साथ कोई धोखा नहीं किया उन्होंने करण को एक भी रुपए एडवांस में नहीं दिए। और उन्हें इस बात की जानकारी भी है, की करण ने अपनी कंपनी कुलकर्णी इंडस्ट्रीज को बेच दिया है। और अब वे बिसनेस कुलकर्णी जी के साथ ही करेंगे।

विशाखा ने उनसे पूछा कि तो फ़िर उस मीटिंग का क्या जो आपलोगों ने मेरे साथ किया थी। हम पार्टनर बने थे।

एक मज़ाकिया हँसी हँसते हुए मिस्टर ओबरॉय ने कहा कि कौन सी मीटिंग की बात कर रही है मैडम आप..? मिस्टर करण के कहने पर तो मीटिंग कैंसल कर दी गयी थी। मीटिंग तो परसों है, मिस्टर कुलकर्णी जी के साथ।

हे भगवान...विशाखा शायद अब चक्कर खाकर गिरने ही वाली थी। उसके मुंह से कोई बोल नहीं निकल रहे थे। मिस्टर ओबरॉय ने हेलो हेलो कहते हुए फ़ोन कट कर दिया। और उस फ़ोन काटने पर होने वाली आवाज़ विशाखा के कानों पर बजने लगी। उसके नसों पर जैसे ये आवाज किसी हथौड़े की चोट बनकर पड़ रही थी।

तो फ़िर उस दिन मीटिंग में आये ओबरॉय एंड कंपनीज के लोग नकली थे। करण के पैसे से ख़रीदे हुए लोग थे वे। जिन्होंने पूरे पाँच घंटे तक विशाखा को बेवकूफ बनाया। शायद इसलिए करण ने पार्टी पहले से ऑर्गनाइज कर रखा था।

उसके नंगे सीने में सर घुसाए रात पर पड़े रहने वाला, मासूम चेहरे वाला, करण इतना चालाक है कि उसने विशाखा के ख़िलाफ़ ही इतना भयानक षड्यंत्र रच डाला की विशाखा सोच तक नहीं पायी। उसके पैर कांप रहे थे। लड़खड़ाते कदमों के साथ अब वो एक गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए महानगर के एक छोटे से थाने में चली गयी। पता नहीं ये रिपोर्ट किसकी होगी, अमेरिका के नाम पर लापता हुए करण की या बग़ैर कोई सुराग और वजह के लापता हुये सिद्धार्थ की। ये तो वही जाने।

ना जाने जिंदगी विशाखा को और कौन कौन से पैतरे दिखाएगी।

स्थानीय पुलिस थाने में पहुँचकर विशाखा को पता चला कि करण लापता नहीं था। उसके अमेरिका जाने की, अपनी कंपनी कुलकर्णी को बेचने की,और अपना घर एक सामाजिक संस्था को दान में दे देने की ख़बर विशाखा के अलावा पूरे शहर को है। इंस्पेक्टर ने बताया कि मीडिया को एक ओपन इंटरव्यू देकर गए हैं मिस्टर करण। आप कहा थी मैडम...? सुनने में तो आता है कि आप मिस्टर करण के काफ़ी क्लोज थी। इतने क्लोज की आप दोंनो एक ही घर में रहते थे। फ़िर ये सब जानकारी आपको क्यों नहीं है...?

हारी हुई विशाखा आख़िर क्या जवाब देती। ख़ुद भी तो वो यही सोच रही थी कि ये सब खेल जब करण खेल रहा था उस वक़्त वो आख़िर कहाँ थी। भगौड़े सिद्धार्थ के बाहों में, या फ़िर इस झूठे ओबरॉय के प्रोजेक्ट में हद से ज़्यादा व्यस्त। महंगे कपड़ो में लिपटी विशाखा अपने बेजान जिस्म के साथ वापस उस घर में लौट आयी जहां से भी अब बहुत जल्द उसे निकलना पड़ेगा।

उस आलीशान घर का एक एक कोना विशाखा को चिढ़ा रहा था। दीवारें चिल्ला चिल्ला के हँस रही थी उसपर। ख़ुद को अपने गुस्से को कंट्रोल करना उसके वश के बाहर होता जा रहा था। इस वक़्त अगर करण उसके पास होता तो यकीनन वो अपने लंबे नाखूनों से करण का मुंह नोच लेती। अगर इस तरह मुँह के बल गिराना ही था उसे, तो फ़िर आसमान के बिल्कुल पास ले जाने की जरूरत ही क्या थी...? विशाखा पूछना चाहती थी बहुत से सवाल।

पर उसका सर दर्द से फटा जा रहा था। वो वापस कमरे में गयी और फ़िर उसने सिगरेट फूंकना शुरू किया। उस वक़्त तक जब तक की उसे नींद नहीं आ गयी। असल में नींद नहीं कह सकते उसे, दिमाग़ पर हुए इस भयंकर चक्रवात को वो झेल नहीं पाई, और उसने अपनी आँखे बंद कर ली। ख़ुद को शून्य में छोड़ दिया उसने।

छोटी सी रात बहुत लंबी लग रही थी उसे। बंद आँखों में दिखाई दे रहा था उसे वो सब कुछ, जो वो खुले आँखों से नहीं देख पायी कभी। उसे दिखाई दे रहा था करण, वहीं डिम्पल वाली स्माइल के साथ उसके तरफ़ आ रहा है। उसके हाथ में आर्किड फूलों का एक खूबसूरत गुलदस्ता है। उसके दिल में विष के लिए बेहिसाब मुहब्बत है।

करण चाहे एक दिन बाद ही विशाखा से क्यों न मिलें पर उस एक दिन की बैचेनी भी वो करण के आँखों मे देख लेती थी। करण उसे हग करता है, और उसके बाहों के घेरे में विशाखा ख़ुद को सेफ फील करती है। आज भी करण मुस्कुराते हुए चला आ रहा है, पर इस बार करण से ज़्यादा विशाखा बैचेन है। वो दौड़कर करण के गले से लगना चाहती थी, पर उतनी ही तेज़ी से वो खाली सफ़ेद दीवार से जा टकराई। वहाँ करण नहीं था, वहां बस सिगरेट के नशे का खुमार था जो उसे करण दिख रहा था। दीवार से टकराकर विशाखा के होंठ, नाक और माथा बुरी तरह फट चुका था। उसके घुटनों से खून निकल रहा था। लहूलुहान विशाखा वहीं गिर पड़ी।

दर्द का अहसास उसे नहीं था। वो धोखे के आग में जल रही थी। करण के साथ के लिए छटपटा रही थी। इसी कश्मकश में रात गुज़र गयी। और फिर आयी एक नई सुबह, ऐसी सुबह जो सारे सवालों के जवाब देगी।

सुबह विशाखा की नींद उसके फ़ोन के आवाज़ से खुली, जो कि लगातार बज रहा था। किसी का कॉल आ रहा था। कही करण तो नहीं, बेजान विष के भीतर किसी ने जैसे जान फूंक दी हो। हड़बाकर वो अपना फ़ोन ढूंढने लगी। बेड पर से फ़ोन उठाने के दौरान आ रही कॉल कट हो चुकी थी। विशाखा ने देखा कोई अननोन नंबर से कॉल था।

उसने हड़बाकर दुबारा उसी नंबर पे कॉल किया तो उधर से किसी लेडी की आवाज़ आयी। अरे ये तो नंदिनी है:- करण के ऑफिस की रिसेप्शनिस्ट। जो अब शायद कुलकर्णी की रिसेप्शनिस्ट बन चुकी थी। वो अब क्या लूटने के लिए कॉल कर रही है मुझे, विशाखा यही सोच रही थी कि उधर से आवाज आई। " मैडम करण सर ने मुझे कॉल किया था। आपको अपनी मेल आईडी चेक करने को कह रहे हैं। कुछ भेजा है उन्होंने।"

ओह माय गॉड..." ओके ओके" ....कहकर विशाखा ने नंदिनी के कॉल को कट किया, और जल्दी से लैपटॉप की खोज की। कल दोपहर से खाली बैठे बैठे लैपटॉप की बैटरी अब अपनी आख़िरी सांसे गिन रहा था। विशाखा ने जल्दी से उसे सांसे दी और फटाफट उसने अपना आईडी ओपन किया।

उफ़्फ़ नए नए प्यार में पड़ी कोई सोलह साल की लड़की के पास जब उसके दिल मे बसने वाले शख़्स की चिट्ठी आती है, और वो धड़कते सांसो को काबू में रखकर जिस तरह कागज़ में लिखें उन शब्दों को पढ़ती है। कुछ ऐसी ही बैचेनी आज विशाखा को भी थी। आँखों मे आँसुओ का सैलाब उमड़ रहा था, मेल रूपी करण के उस पत्र को पढ़ते वक़्त विशाखा की आँखे धुंधली और शब्द लड़खड़ा रहे थे।

"डिअर विष....

जानता हुँ अब तक तुम पछता रही होगी। क्योंकि मैंने तुमसे वो सब वापस ले लिया जो तुम्हें मुझसे मिला था। तुम जान ना चाहती होगी कि ये सब मैंने क्यों किया, कैसे किया, और किस वक़्त किया। मैं सब कहूंगा पर उस से पहले तुम्हें थोड़ा और दर्द देना चाहता हूं। तुम्हें लाचार होते हुए देखना चाहता हूँ। इसलिए अभी इसी वक़्त तुम उस घर से निकल जाओ, मैं नहीं चाहता संस्था वाले लोग आकर तुम्हें धक्के मारकर उस घर से बाहर निकाले। एक घंटे बाद दुबारा मेल करूँगा।"

इन चंद लाइनों को पढ़कर ही विशाखा टूट चुकी थी। उम्मीद की एक हल्की सी झलक भी अब मिट चुकी थी। करण सज़ा दे रहा था उसे,उसकी बेवफाई की सज़ा। कुछ कपड़े और अपनी खो चुकी पहचान के साथ विशाखा उस घर से निकल गयी। इसी घर में पूरे अधिकार के साथ उसने पूरे साढ़े तीन साल गुजारें थे। एक एक पल उसे याद आ रहे थे।

बेघर विशाखा यहाँ से सीधे रेलवे स्टेशन की तरफ़ चल पड़ी जहां उसे अपने लैपटॉप को चार्ज भी करना था। अभी पंद्रह मिनट बचे ही थे एक एक पल को वो बहुत बेसब्री से गुजार रही थी। चंद मिनट बचे ही होंगे कि फ़िर लैपटॉप पर नोटिफिकेशन आया "यु हैव ए न्यू मैसेज"...

एक क्लिक "ओपन" के साथ फ़िर करण का मैसेज विशाखा के सामने था।

"डिअर विष...

अब तुम जानती हो कि तुम्हारी हालात ज़ीरो पर आ गयी है। पर कुछ बातें अभी भी है जो तुम नहीं जानती। वो मैं कहूंगा तुमसे। बताऊंगा की इंसान चाहे कितना भी चालाक क्यों न हो जाये, किस्मत कभी भी पलट सकती है। जिंदगी कभी भी जोरदार तमाचा जड़ सकती है।

अब सुनो शुरुआत कहा से हुई। करीब एक महीने पहले मैं एक मीटिंग में व्यस्त था, उसी वक़्त तुम्हारा एक मैसेज मेरे व्हाट्सएप पर आया। तुम्हारी उपस्थिति हमेशा ही मुझे खुशी देती है, इसलिए उस अनरीड किये मैसेज को देखकर ही मैं मुस्कुरा पड़ा। हालांकि तुम काम के दौरान कभी मैसेज नहीं करती। ज़्यादा जरूरी तो कॉल कर देती हो। इसलिए मैं खुद मैसेज को देखने के लिए बैचेन था। करीब आधे घंटे बाद मैंने तुम्हारे चैट को ओपन किया तो, तुमने उस मैसेज को डिलीट फ़ॉर एवरीवन कर दिया था। और साथ मे लिखा था ये मेसेज ग़लती से तुम्हारे पास गया किसी और को भेजना था।

सच कहूँ मुझे उस वक़्त तक तुमपर बेइंतहा यकीन था की तुम सिर्फ़ मेरी हो। पर फ़िर भी एक बैचेनी मुझपर असर कर रही थी,आख़िर तुमने क्या भेजा था। तुम शायद नहीं जानती थी कि मेरे मोबाइल में एक ऐसा ऐप्प भी था जो किसी के भी भेजने के बाद डिलीट किये हुए मैसेज और फोटोज़ मुझे दिखा देता था। ( ऐसा ऐप्प वास्तव में प्ले स्टोर पर मौजूद हैं, बस इसका नाम लिखना मुझे उचित नहीं लगा)।

मैंने उस ऐप्प में जाकर देखा तो मेरे होश ही उड़ गए। तुमने अपनी एक न्यूड फ़ोटो भेजी थी मुझे जो कि तुमसे ग़लती से मेरे पास आ गयी थी। तुम्हारे कहे मुताबिक वो तस्वीर तुम किसी और को भेजना चाहती थी। पर किसको इस बात ने उस दिन के बाद से मुझे जीने नहीं दिया। तुमसे मैं डायरेक्ट नहीं पूछ पाया। और ख़ुद तुमपर नजऱ रखने लगा।

एक के बाद एक तुमने मुझे बहुत से धोखे दिये विश। मैं देखता रहा, तुम्हें ट्रैक करता रहा। औऱ सबकुछ जानकर भी तुम्हारे साथ सामान्य रहने की कोशिशें करता रहा। तुम्हें अंदाजा भी है ये पल कितने ख़तरनाक थे मेरे लिए।

तुम तो जानती थी विश मैं अनाथ था। कोई नहीं मेरा। मैंने तो अपना सारा प्यार तुमपे ही वार दिया था। मैं सबकुछ जानता था, बस एक बात नहीं समझ पा रहा था कि मैंने तो तुम्हें सबकुछ दिया था किसी चीज़ की कमी नहीं की, फ़िर सिद्धार्थ से तुम्हें ऐसा क्या मिल रहा था जो मैं तुम्हें नहीं दे पा रहा था। इस बात की बैचेनी ने ही मुझे जासूस बना दिया।

इन्हीं दिनों मुझे लावण्या का कॉल आया। और हम में क्या बात हुई ये मैं तुम्हें बाद में कहूंगा। फिलहाल मैंने ही उसे यहां बुलाया क्योंकि तुम्हारे पास किसी को हर वक़्त रखने के लिए मुझे उसकी जरूरत थी। विशाखा! जिस लावण्या को तुम अस्सिस्टेंट बनाकर दिन रात अपने पीछे पीछे घुमाती थी, न वो अमेरिका की एक जानी मानी सफ़ल बिसनेस वोमेन है। करोड़ो की मालकिन है वो। टेक्नीकल चीजों का अच्छा ज्ञान होने के वजह से ही मैंने उस से मदद मांगी। और वो आयी। उसके आने के बाद हमने घर के उन कोनों में भी कैमरे फिट किये जहां नहीं होने चाहिए। और उन्हीं कैमरों में देर रात तक तुम्हें सिद्धार्थ पे फ़ोन पर बातें करते हुए, नंगी तस्वीरें भेजते हुए कई बार लावण्या ने देखा, और मुझे इन्फॉर्म करती रही। सिद्धार्थ के फ़्लैट तक तुम्हारे पीछे पीछे वो ही गयी थी, जिस दिन ओबरॉय के साथ तुम्हारी मीटिंग थी। मीटिंग फेक क्यों थी इसकी वजह भी मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा।

ख़ैर लावण्या ने ही मौका पाकर तुम्हारे फ़ोन को हैक कर लिया था। और तुम्हारे बैंक एकाउंट से सिद्धार्थ के अकाउंट में जाने वाले लाखों ट्रांसफर की रकम मुझे दिखाई देने लगी थी। विष तुमने जरा भी नहीं सोचा एक अनाथ आश्रम से निकलकर इस मुकाम तक पहुँचने के लिए मैंने क्या कुछ नहीं किया होगा, कितनी मेहनत की होगी। और मेरे खून पसीने के कमाए उन्हीं पैसों को तुम सिद्धार्थ पर उड़ाती रही।

ख़ैर अब देखो एक बजने वाले हैं। एक बजकर तीस मिनट पर तुम्हारी मीटिंग डॉक्टर कुणाल के साथ है। इसलिए कैब बुक करो और जल्दी से वहां पहुँचो एक ओर झटका तुम्हारा वहीं इंतजार कर रहा है। वहां से निकलकर सीधे आदित्या इन् होटल चली जाना बुकिंग पहले से तुम्हारे नाम पर है।

मैं शाम में पांच बजे दुबारा मेल करूँगा। तब तक मिले सदमे से संभल जाना आगे और भी चीजें तुम्हारे इंतजार में है।

करण के एक एक शब्द में विष को करण की सच्चाई और ख़ुद के धोखे का ऐसा भयानक रूप नजऱ आ रहा था कि वो अंदर तक सहम जाती। उसके कट चुके होठ अब सूजकर फूल गए थे। किसी बदहवास पागल जैसी हालत हो चुकी थी उसकी।

एक बारी तो डॉक्टर कुणाल भी उसे पहचान नहीं पाए। पर उसके बाद उन्होंने उसके टेस्ट लेने शुरू किए। विशाखा ये तक नहीं जानती थी की क्यों उसके टेस्ट लिए जा रहे हैं, उसे क्या हुआ है..? पर जल्द ही उसे अगला झटका लगा जब डॉक्टर कुणाल ने विशाखा को अल्ट्रासाउंड रूम में बुलाया और अल्ट्रासाउंड होने के दौरान डॉक्टर कुणाल ने विशाखा को कहा "विशाखा जी आपके बेबी के हार्ट बीट सुनिये, बेबी अब सिक्स वीक और टू डेज का हो गया है।

दुनियां की हर औरत इस ख़बर को सुनकर खुशी से फुले नहीं समाती। पर विशाखा के लिए ये वाक़ई एक झन्नाटेदार झटका था। वो प्रेग्नेंट थी और इसकी ख़बर उसे भी नहीं थी। हालांकि कुछ शारीरिक तकलीफें उसे कुछ दिनों से हो रही थी पर काम के प्रेशर में वो इन तकलीफों को नजरअंदाज करती रही। कुछ सोचने समझने की स्तिथि में नहीं थी वो। डॉक्टर कुणाल के दिए दवाइयों को लेकर वो उस होटल में आ गयी जहां उसकी बुकिंग पहले से करण ने कर रखी थी।

एक लाचार पड़े जिस्म के ऊपर एक और मासूम सी जान सांस ले रहा था। अब कहा जाएगी वो इस बच्चे को लेकर...?हे ईश्वर मेरी गलतियों की सज़ा क्या अब तू इस बच्चे को देगा?

यही सब विशाखा सोच रही थी कि होटल का एक वेटर उसके लिए लंच ले आया। और लंच के साथ साथ करण का एक मैसेज भी..." मेम सर ने आपको लंच फिनिश करने को कहा है, और इसके बाद मेडिसिन लेकर आराम करने को।" इतना कहकर वेटर तो चला गया, पर विशाखा सोचने लगी। अनगिनत ख़याल उसके जेहन में आ जा रहे थे।

ख़ैर भूख तो उसे लगी ही थी। उसने लंच किया दवाई ली और सो गयी। पर नींद में भी वो शाम के पांच बजने का इंतजार कर रही थी। ठीक साढ़े चार बजे उसके कमरे में कॉफ़ी आ गयी। और उस कॉफी को देखकर विशाखा के आंसू निकल पड़े। करण कितने प्यार से उसे जहर खिला रहा था। उसे याद था विशाखा को ठीक साढ़े चार बजे हार्ड कॉफी की तलब होती थी। और ये वही हार्ड कॉफी थी। करण तो झटके भी उसे इतना प्यार जताते हुए दे रहा था, कि उसका दिल हो रहा था कि वो करण के पैरों में गिरकर उस से माफ़ी मांग ले। और बस एक मौका मिलने पर, वो अपनी सारी जिंदगी करण के इशारों पे गुजार दे। पर वो जानती है जो गलतियां उसने की है उसकी माफ़ी शायद वो खुद को ही न दे पाएं।

ख़ैर नए सदमें के लिए तैयार बैठी विष! लैपटॉप खोले बेसब्री से घड़ी की सुइयों को पांच बजते हुए देख रही थी। और ठीक पांच बजे उसके इनबॉक्स में एक नया मैसेज आया।

डिअर विष,

एंड लिटिल बेबी...

विष जानती हो तुम्हारे प्रेग्नेंट होने की ख़बर मुझे आज से दस दिन पहले ही पता चल चुकी थी। जब रूटीन स्टाफ़ हेल्थ टेस्ट की रिपोर्ट मेरे पास आई थी। उसमें लिखा था तुम प्रेग्नेंट हो। हालांकि उस से पहले भी मैंने इस बात पर ग़ौर की थी कि पिछले दो महीने से तुम्हें पीरियड नहीं हुए थे।पीरियड के बाद के दो दिनों तक तुम बेहिसाब दर्द से तड़पती हो,इसलिए मैं हर बार ही इस वक़्त का ख़याल रखता हूँ ताकि उन दिनों तुम पर काम का ज़्यादा प्रेशर ना हो।

फ़िर तुम्हारे रिपोर्ट ने सब क्लियर कर दिया। और मैं ये भी समझ चुका था, की तुम्हारे गर्भ में सास ले रहा ये नन्हा बच्चा मेरा नहीं था। क्योंकि तुम जानती हो इन मामलों में मैं कितना सतर्क रहता हुँ। बग़ैर कंडोम के मैंने कभी तुम्हारे साथ सेक्स नहीं किया चाहे मैं कितने भी नशे में रहूँ।

अब सुनो लावण्या मेरे पास क्या ऑफर लेकर आई थी। उसने मुझसे कहा कि क्यों न मैं अपना बिसनेस अमेरिका जाकर शुरू करूँ उसके हस्बैंड के साथ पार्टनर शिप कर के। वहां की इकॉनमी इंडिया के मुकाबले काफ़ी मजबूत है। और लावण्या की इतनी पहुँच तो थी कि वो उस बड़े देश में मुझे और तुम्हें सेट कर पाती। फ़िर हमने मिकलर ये खेल खेला। इस बीच हमने भी कई सारे झूठ बोले तुम्हारे पीछे जासूसों की तरह पड़े रहे। एक्सीडेंट वाली बात भी झूठी थी। तुम्हें ओबरॉय के उस फेक मीटिंग में भेजा, ताकि तुम उस काम मे इतनी उलझ जाओ की तुम्हें कानो कान भनक तक न पड़े की तुम्हारे पीछे मैंने सबकुछ बदल दिया। लावण्या का तुम्हारे साथ रहने की दो वजह थी। पहली तुम्हें उसी काम मे उलझाए रखने की, तुमपर नजऱ रखने की और कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां मुझे देते रहने की। दूसरी वजह थी, विष मैं जानता हुँ तुम्हें, तुम किसी काम मे इस हद तक घुस जाती हो कि तुम्हें भूख प्यास नींद की भी परवाह नहीं रहती। पर लावण्या हर पल तुम्हारे साथ रही ताकि वो तुम्हारा ख़याल रख सकें। क्योंकि बात अब सिर्फ़ तुम्हारी नहीं थी अब तुम्हारे भीतर एक और जान बस रही थी।

अब सिद्धार्थ की सच्चाई सुनो, मैं तुम्हारे प्रेग्नेंसी रिपोर्ट को लेकर सिद्धार्थ के पास गया था उसे ये बताने की तुम उसके बच्चे की माँ बन ने वाली हो, इसलिए वो अब तुम्हें पूरे रीति रिवाजों के साथ अपना लें। पर पता है उसका क्या जवाब था,पहले तो उसने इस चीज को स्वीकारने तक से मना कर दिया कि तुम उसके बच्चे की माँ बन ने वाली हो। फ़िर जब मैंने उस से कहा कि इस बात की सच्चाई तो हमें डीएनए टेस्ट से ही पता चल जाएगा, तो वो डर गया। और ऐसा ज़हर उगला की मेरी आत्मा तक रो पड़ी। उसने कहा कि अगर विशाखा के पेट मे मेरा बच्चा है तो मैं उस से कहूंगा कि वो बच्चे को मार डालें या जन्म के तुरंत बाद उसे किसी अनाथालय में छोड़ आये। क्योंकि ना तो मैं विशाखा की जिम्मेदारी लूंगा न बच्चे की।

मैं पहले से एक अनाथ की जिंदगी जी चुका हूं विष! मैं समझता हूँ उस दर्द को। इसलिए मैंने उसी वक़्त ये फैशला लिया कि तुम्हारे इस बच्चे को मैं कभी अनाथ नहीं बन ने दूँगा। मैंने सिद्धार्थ से कहा कि अगर वो बच्चे को अपना नहीं सकता तो वो तुम्हें भी पूरी तरह भूल जाये, कम से कम कुछ दिनों के लिए ही सही बग़ैर तुम्हें कुछ बताए इस शहर से कही दूर चला जाये। इस से उसे कोई दिक्कत भी नहीं थी बस इस काम के बदले उसने मुझसे पूरे पच्चीस लाख रुपये लिए और मेरे अमेरिका निकलने वाले दिन ही वो भी इस शहर को छोड़कर चला गया। शायद पच्चीस लाख ख़त्म होने पर वो दुबारा तुम्हें लूटने आ जायेगा ये सोचकर। पर वो नहीं जानता कि खुलकर उसपे बेहिसाब खर्च करने वाली विशाखा आज ख़ुद सड़क पे आ चुकी हैं।

अब सुनो आख़िरी और सबसे बड़ा झटका क्या है। पर पहले अपने आँसू पोछ लो। ख़ुद को संभाल लो, तैयार कर लो।

डिअर विष...

"आज से चार साल पहले मैंने तुम्हें देखा था। जब तुम रिसेप्शनिस्ट के लिए इंटरव्यू देने मेरे ऑफिस आयी थी। मैं अपने केबिन में बैठे बैठे लगभग आधे घंटे तक तुम्हें देखता रहा, और देखता रहा तुम्हारे बेबाक अंदाज को। कुछ करने की, बहुत ऊँचाई में जाने की तुम्हारे उस ललक को मैं देखता रहा।

मैनेजर को कहकर मैंने ही तुम्हें बग़ैर इंटरव्यू के ही सेलेक्ट करवाया। और उसी दिन से तुम मेरे दिलों दिमाग़ में छा गयी। मैं हर पल तुम्हें सोचता। सच कहूँ अपने अहसास तुम्हें बयां करना बहुत भारी काम था मेरे लिए। क्योंकि तुमसे पहले कभी मैं किसी लड़की से अपना दिल तक नहीं जोड़ पाया था।

पर हैरानी हुई, कितनी आसानी से तुमने स्वीकार लिया था मुझे। सबकुछ तुमने ही आसान बनाया। मैं तो डरता ही रहा। पहले प्रपोज करते वक़्त डरा, फ़िर तुम्हें मेरे घर रहने के लिए बोलते वक़्त डरा, रिसेप्शनिस्ट का काम छोड़ तुम्हें ऊँचे पद पर ले आते वक़्त डरा। डरता था कही मेरे इस तरह तुमपर हो रहे मेहरबानी से तुम्हारा सेल्फ रेस्पेक्ट हर्ट न हो। पर तुमने सबकुछ सहर्ष स्वीकारा।

ऐसा नहीं है कि तुमने सिर्फ़ मुझसे लिया ही है। तुमने मुझे दिया भी है, तुम्हारे हार्डवर्क और ब्रिलियंट माइंड से कंपनी को हमेशा ही प्रॉफ़िट हुआ।

पहले तुम मेरे ऑफिस में आई,फ़िर घर में, और फ़िर मेरे रगों में समा गयी। मैं दिलों जान से सिर्फ़ तुम्हें ही चाहता रहा। ऐसा नहीं था कि जीवन में खूबसूरत लड़कियों से पाला नहीं पड़ा, पर तुम्हारी पर्सनालिटी मुझे हमेशा ही अट्रैक्ट करती है।

मेरे साथ एक ही बिस्तर पर रात गुज़ारते वक़्त तुम सिर्फ़ अपने जिस्म के सारे कपड़े ही खोलती थी, पर मैं अपनी आत्मा को, अपने भावनाओं को मेरे भीतर बसे उस अगाध प्रेम के समंदर को खोलकर ही तुमसे संबंध बनाता था। और हर बार ही हमबिस्तर होने के बाद मेरा प्यार तुम्हारे लिए और अधिक बढ़ता जाता था।

इस तरह साल बीत ते रहे, तुम मेरे जीवन में और ज़्यादा महत्वपूर्ण बनती रही। मैं सोच रहा जल्द ही तुमसे शादी करूँ, और सारे रीति रिवाजों के साथ तुम्हें अपना लूं।

ख़ैर छोड़ो गुज़रे कल को याद करना बहुत तकलीफ़ देता है मुझे। जब भी याद करता हूँ तुमसे मिले धोखों को, अंदर तक टूट जाता हूं। मेरा प्यार उतना कमज़ोर नहीं था विश जितना तुमने उसे समझ लिया था। तुम मुझसे नहीं मेरे पैसों से प्यार करती हो ये बात मुझे काफ़ी बाद में पता चला।

पर अब जब सच्चाई हम दोनों के सामने ही है। तो अब मैं कोई खेल नहीं खेलना चाहता।

लावण्या और मैंने पहले ये तय किया कि सिद्धार्थ की हकीकत तुम्हें बताकर उस से तुम्हें दूर कर दूं। और कड़ी नजऱ रखते हुए तुम्हें अपने साथ रहने के लिए मजबूर करूँ, ऐसा नहीं करने पर तुम्हे ब्लैकमेल करता रहूँ की, मैं तुमसे सब छीन लूंगा। पर पता नहीं क्यों इस बात की गवाही मेरा दिल मुझे नहीं दे रहा था। क्योंकि ग़लती सिर्फ़ सिद्धार्थ की तो नहीं थी। ग़लत तो तुमने भी किया था, धोखा तो तुम भी दे रही थी। तो सज़ा तो तुम्हें मिलनी ही चाहिए, इसलिए तुम्हें बर्बाद करने की साजिश रची हमने। एक के बाद एक झटके दिए तुम्हें। ताकि तुम उस सज़ा को महसूस करो जो ग़लती तुमने की है। पर असल में बस ये हुआ कि मैं अमेरिका पहले आ गया, और तुम्हारी भी सारी चीजें ले आया बग़ैर तुम्हें बताए। सबकुछ तुम्हारा ही है विष बस इंडिया से वो अब अमेरिका पहुँच गया है। वो सारी चीज़ें तुम्हारा ही इंतजार कर रही है।

मुझे पता है, तुम्हारा दिल अब काफ़ी हद तक साफ़ हो चुका है। जानता हुँ तुम अब सिर्फ़ और सिर्फ़ मुझे चुनोगी। पर फ़िर भी मैं चाहता हूँ एक बार सिर्फ़ एक बार तुम सबकुछ याद करो और एक आख़िरी फैशला लो।

मैं चाहता हूं, हम दोंनो इस अमेरिका में अपनी एक अलग दुनियां बसायें। जहां कोई सिद्धार्थ ना हो। सिर्फ़ मैं और तुम और हमारे आस पास हो लावण्या जैसे सच्चे दोस्त।

सुनो अब इतना भी मत रो, इस बार कोई अहसान नहीं कर रहा तुमपर, मैं खुद तुम्हारे बग़ैर टूट चुका हूँ। तुम्हे अपने पास रखें बग़ैर मुझे चैन नहीं मिलेगा। और फ़िर मैंने कहा ना तुम्हारा शातिर दिमाग़ हमेशा ही मुझे फ़ायदा देता है, तो यहाँ भी देगा। वैसे तो यहाँ सबकुछ सेट है, पर अपने पार्टनर के बिना मैं अधूरा हूँ। ईन दो दिनों में तुमने जो कुछ भी झेला है उसके लिए मुझे माफ़ कर देना, पर ये जरूरी था ना।

नहीं तो सिद्धार्थ जैसे लोगों की कमी तो अमेरिका में भी नहीं है। चलो अब आँसू पोछो, थोड़ी देर में विशाल आएगा वहाँ एक रिपोर्टर को साथ लेकर। सिद्धार्थ की सच्चाई उस रिपोर्टर को सच सच बता देना। ताकि पच्चीस लाख खत्म होने तक उसका फ्यूचर भी तबाह हो जाये। और विशाखा जैसी कोई औऱ लड़की उसके प्यार में पागल ना हो, उसके मीठे मीठे बातों में ना फसें। मुझे यकीन है तुम ऐसा करोगी, अगर नहीं तो कोई बात नहीं। तुम विशाल को वहां से वापस भेज देना। और सिद्धार्थ का ही इंतजार करती रहना।

याद रखना तुम पर कोई दवाब नहीं है। तुम्हारा जो दिल करें वही करो। विशाल के पास वो सारे डाक्यूमेंट्स रेडी है जिससे आज रात ही तुम अमेरिका के लिए निकल पाओ।

लौट आओ विष! तुम्हरा करण तुम्हारे बग़ैर जी नहीं पायेगा। यहाँ आकर भूल जाना वो सारी चीजें, भूल जाना कि तुम्हारे पास जो बेबी है वो उस कमीने सिद्धार्थ का है। क्योंकि ये मैं भी भूल चुका हूं। वो हमारा बेबी होगा, मेरा और तुम्हारा। सारी चीज़ें भूलकर लौट आओ। रात के दो बजे तुम्हारी फ्लाइट है। 1 दिन बाद जब सुबह यु.एस. के एयरपोर्ट पर तुम्हारी फ्लाइट लैंड करेगी तो मैं बेसब्री से वहाँ तुम्हारा इंतजार करता हुआ मिलूंगा। फ्लाइट में अपना ध्यान रखना विष! इस बार बेबी भी होगा तुम्हारे पास। उसकी धड़कने सुनी न आज तुमने, उन धड़कनों का ख़्याल रखना। अब कोई मेल नहीं करूंगा बस मिलूंगा तुमसे।

बहुत अकेला पड़ गया हूँ, इन दो दिनों में ही तुम्हारे बिना। अब रोना बन्द करो, तैयार हो जाओ विशाल जल्द ही आ रहा है।"

लैपटॉप बन्द कर दिया विशाखा ने। वो सच में रो रही थी। उसके आँखों के आँसुओ के साथ ही उसके भीतर से बह रहा था उसका घमंड, और धोखे वाली नियत। विष धूल चुकी थी। करण के एक एक शब्द ने उसे अहसास दिला दिया था कि जिंदगी बहुत मुश्किल से सबकुछ देती है, पर एक झटके में सबकुछ ले लेती है। वाक़ई करण से मिला ये सबसे बड़ा झटका था विष के लिए।

उसे अब पैसों से कोई स्नेह नहीं था,वो तो करण के प्यार के तलाश में थी। करण को एक बार ज़ोर से गले लगाने के लिए वो तड़प उठी। पहली बार उसने अपने गर्भ में प्यार से हाथ फेरा,और अपने बच्चे को यकीन दिलाया की वो अब सेफ है।

खुशी और पश्चयताप के आंसू तब तक नहीं रुके जब तक दरवाज़े पर विशाल न आ गया। विशाल जो बिसनेस के काम से ही करण से जुड़ा था पर धीरे धीरे विशाल और करण अच्छे दोस्त बन गए।

विशाल और रिपोर्टर को विशाखा ने सिद्धार्थ और उसके बीच का हर सच बता दी। और सवुत के तौर पर कुछ फोटोग्राफ्स भी दे दिए। वो जानती है भारतीय पत्रकार तिल को ताड कैसे बनाते हैं। किसी की बर्बादी ठान ले तो बर्बाद कर के ही छोड़ते है। उसी वक़्त विशाखा ने अपने मोबाइल से हर वो चीज़ डिलीट कर दिया जो सिद्धार्थ से जुड़ी हुई थी।

उसके फ़ोन में, उसके आंखों में, उसके दिल में और उसके चेहरे के कॉन्फिडेंट में अब बस करण था। सिर्फ़ और सिर्फ़ करण।

सच्चाई और बिस्वास का हाथ थामे विशाखा अमेरिका के लिए निकल पड़ी। जहां उसका करण और उसकी जिंदगी बाहें फैलाये उसी का इंतजार कर रहे है।

प्रिय पाठकों...

उम्मीद रहेगी अंत आप सब को पसंद आये। कहानी कैसी लगी कमेंट बॉक्स में बताएं। एक बात और कहूंगी, कहानी की नायिका बहुत खुशकिस्मत थी,जो उसे करण जैसा साफ़ दिल पार्टनर मिला। वरना महानगर के फुटपाथ में आपको ऐसी बहुत सी लाचार विशाखा जरूर दिख जाएगी, जिन्होंने बहुत कुछ पाने के लालच में अपना सबकुछ खो दिया। इसलिए मुफ़्त में कामयाबी के पीछे जाने से बेहतर है करण की तरह ज़ीरो से ही शुरुआत करें ताकि आपकी काबिलियत आपका साथ कभी न छोड़े।

लव, सेक्स, फ़्लर्ट और धोखे की ये कहानी अब खत्म हुई।

                              सरप्राइज पार्ट

अमेरिका के उस एयरपोर्ट में जब विशाखा करण से मिली तो उन दोनों के उस मुलाकात को शायद वहां खड़ा एक एक शख़्स कभी नहीं भूल सकता।

एक दूसरे के सीने से लगके, एक दूसरे के होठों को चूमकर दोनों ने अपने अपने प्यार को इस क़दर जताया कि उन्हें अपने आस पास दौड़ती जिंदगी की भी ख़बर नहीं रही। सभी देशी,विदेशी लोग दोनों के उस मिलन को देखकर ख़ुशी से तालियां बजा रहे थे।

दोनों की तंद्रा तब टूटी जब लावण्या ने दोनों को धीरे से अलग किया,और ये दिखाया कि सभी की नजरें मुस्कुराते हुए उन दोनों को ही देख रही थी। लावण्या से मिलकर विशाखा ने अपने दोंनो हाथ जोड़ लिए। उसके बाद करण के हाथों में हाथ लिये विशाखा अपने घर आ गयी। उस घर में जो अमेरिका में करण का घर था। उसके नेमप्लेट में विशाखा का भी नाम था।

जिंदगी फ़िर उसी रफ़्तार से शुरू हुई। करण के पास अब दो दो ज़िम्मेदारी थी, नए नए काम को देखना और विशाखा का ख़याल रखना। यहाँ आकर बसने के लगभग एक महीने बाद, दोनों ने हिंदू रीति रिवाजों से शादी कर ली। और विदेशी तौर तरीकों से दोनों ने एक शानदार पार्टी दी। वक़्त गुजरता गया, विशाखा के डिलीवरी के दिन अब नज़दीक आ रहे थे। करण और विशाखा हर पल बेसब्री से आने वाले नन्हें मेहमान का इंतजार कर रहे थे। तरह तरह की तैयारियां कर रहे थे।

विशाखा दुबारा एक बार करण के निस्वार्थ प्यार को पाकर ख़ुद को इस दुनियां की सबसे ख़ुशनसीब इंसान समझती है। सिद्धार्थ से जुड़े एक एक चीज़ को भुलाकर विशाखा भी करण को उतना ही प्यार दे रही थी जितना कि करण उसे।

पर सिद्धार्थ आया, दुबारा आया उनके जीवन में। सिद्धार्थ का नाम भर सुनकर विशाखा सिहर उठी। धक धक करने लगा उसका दिल। एक अनजाने डर ने उसे डरा दिया। शायद सिद्धार्थ के पच्चीस लाख ख़त्म हो चुके थे अब ,और इसलिए वो फ़िर विशाखा की जिंदगी तबाह करने आ गया। ऐसे ही कुछ खयालात विशाखा पर हावी हो रहे थे।

हुआ यूं कि अचानक एक शाम जब विशाखा और करण फुर्सत के कुछ पल एक साथ बीता रहे थे, तब इंडिया से विशाल का फ़ोन आया!!

विशाल :- "हेलो करण भाई! जल्दी से इंडियन न्यूज़ चैनल लगा, एक काम कर यूट्यूब पर लगा। इंडियन एंकर सिद्धार्थ सिन्हा लिखकर सर्च कर। देख बन्दे ने क्या इंटरव्यू दिया है, प्रेस वालों को। जल्दी कर भाई"।

फ़ोन स्पीकर पे था, विशाखा उन दोनों के बीच हुए बातों को सुन चुकी थी। वो डर रही थी। करण ने जाकर अपने स्मार्ट एंड्रॉइड टी.वी. को ऑन किया, और सिद्धार्थ को सर्च करने लगा। इस बीच वो मज़बूती से विशाखा के हाथ को पकड़े रहा, और विशाखा करण के बाहों में ही चिपकी रही। करण उसे अहसास दिला रहा था कि चाहे कुछ भी हो वो उसका ये हाथ नहीं छोड़ेगा और विशाखा शायद करण को जताना चाहती थी कि वो उसके सीने से कही दूर जाना नहीं चाहती।

ख़ैर डर तो करण भी रहा था, पर उसने विशाखा को संभाला। और फ़िर शुरू हुआ सिद्धार्थ का वीडियो, जिसमें कुछ रिपोर्टर सिद्धार्थ से वो सारे सवाल पूछ रहे थे जो सवाल विशाखा वहां छोड़कर आयी थी। अपने करियर को बचाने के लिए वो भरसक प्रयास कर रहा था। अपनी कहानी कुछ इस तरह बतानी शुरू की उसने।

" देखिए, ये बात सच है कि मैं और जाने माने बिसनेस मैन मिस्टर करण की गर्लफ्रैंड, हम दोनों रिलेशन में थे। पर ये बात बिल्कुल झूठ है कि मिस विशाखा मेरे बच्चे की मां बनने वाली थी,या है। मिस्टर करण अमेरिका शिफ्टिंग से पहले आये थे मेरे पास, विशाखा जी की प्रेग्नेंसी रिपोर्ट लेकर। पर उस दिन भी मैंने उनसे कहा था कि ये मेरा बच्चा नहीं हो सकता। पर उन्होंने इस बात पर यकीन नहीं किया। उस वक़्त ही अगर मैं सच बोल देता तो शायद उन्हें यकीन हो जाता, पर मेरे भीतर बसा मर्द मुझे सच बोलने से रोक रहा था। फ़िर जब उन्होंने कहा कि विशाखा के लाइफ से दूर हो जाओ और उन्होंने ही मुझे पच्चीस लाख रुपये दिए तो फ़िर मैं यहाँ से चला गया। पर अब मेरे पैसे ख़त्म हो चुके हैं, इसलिए मैं दुबारा वो काम यानी एंकरिंग करना चाहता हूँ, जो पहले करता था इसलिए सबकुछ सच सच बता रहा हूँ।

इस शहर में जब मैं आया था, तो मेरे पास कुछ भी नहीं था। जो थोड़े मोड़ें टैलेंट के दम पर मैं यहाँ आया था, यहां पहुँचने के बाद वो टेलेंट भी मुझे छोटा ही लगा। क्योंकि मुंबई नाम के इस बड़े से शहर में मै मुझसे भी ज़्यादा टैलेंटेड और खूबसूरत लोगों को फुटपाथ में जिंदगी गुज़ारते हुए देख रहा था।

ख़ैर इन्हीं कंगाली के दिनों में मेरी मुलाकात एक आवारें, लोफर इंसान से हुई,नाम लेना मैं जरूरी नहीं समझता। उसने मुझसे कहा कि एक बहुत आसान से तरीके से मैं पैसे कमा सकता हूं, कम से कम तब तक के लिए जब तक कि मुझे कोई ढंग का काम न मिलें, तब तक इसी तरीके से मैं मुंबई में जी सकता हूँ। और वो तरीका था, स्पर्म डोनेट करने का।

स्पर्म डोनेट करना मुंबई के बेरोजगार नौजवानों का पैसे कमाने का एक बेहतरीन ज़रिया माना जाता है। पैसों की लालच में आकर ही इस दलदल में,मैं भी बुरी तरह फंस गया। और पूरे एक साल तक मैं ये काम दिन रात करता रहा। जिसके नतीज़े ये निकले की मैं बुरी तरह बीमार पड़ गया। और उस दिन हॉस्पिटल में मेरे कुछ टेस्ट रिपोर्ट आये जिनमें लिखा था कि अत्यधिक स्पर्म डोनेट करने के वजह से मेरे शरीर के वे हिस्से कमज़ोर पड़ गए हैं, जो स्पर्म बनाते हैं। इसलिए अब मैं कभी बाप नहीं बन पाऊंगा। इस बात ने मुझे दुःखी जरूर किया पर इसके कुछ दिनों बाद से ही मुझे काम मिलने लगे, और मैं इस बात को भूल गया। पर वो टेस्ट रिपोर्ट मेरे पास आज भी है जो ये साबित कर देंगे कि मिस विशाखा मेरे बच्चे की माँ बन ही नहीं सकती। मुझपर ये ग़लत इलाज लगाया जा रहा है कि मैंने उन्हें प्रेग्नेंट कर के छोड़ दिया।

मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि मिस विशाखा मिस्टर करण के ही बच्चे की माँ बन ने वाली है।"

इतना सुनने के बाद करण ने टी.वी. बन्द कर दिया, और विशाखा और करन एक दूसरे के तरफ़ मुँह फाड़े देखते रहे। करण ने उसी वक़्त अपने फैमिली डॉक्टर को फ़ोन किया और उनसे पूछने लगा "क्या कंडोम यूज़ करने के बाद भी प्रेगनेंसी पॉसिबल है"?

उसके बाद डॉक्टर ने उन दोनों को समझाया कि कई बार घटिया क्वालिटी के कंडोम हो या ग़लत तरीके से लगाया जाए या फ़िर अत्यधिक उत्तेजना के वक़्त कंडोम फटने से शुक्राणु अपना काम कर जाते हैं पर बच्चे के जन्म के बाद डीएनए टेस्ट के द्वारा आप ये पता कर सकते हैं कि बच्चा आख़िर किसका है।

डॉक्टर से बात होने के बाद करण की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। पता नहीं क्यों उसे पूरा यकीन था कि ये बच्चा जो कुछ दिनों बाद ही उसके हाथों में आने वाला है,वो उसी का बच्चा है। और विशाखा तो सच जानती ही थी, उसे पता चल चुका था ये बच्चा करण का ही था। उसके मन से एक भारीपन ख़त्म हो चुका था।

इस दिन को बीते कुछ दिनों बाद ही विशाखा ने एक स्वस्थ और क्यूट बेबी बॉय को जन्म दिया। और उसके जन्म ने ही ये प्रूफ़ कर दिया था कि वो करण का ही बेटा था। हूबहू करण का ही बेबी वर्ज़न था वो।

देखते ही देखते तीन साल गुज़र गए। विशाखा ने कई बार करण से कहा कि वो डीएनए टेस्ट करवा लें। पर करण को इसकी कोई जरूरत ही नहीं पड़ी। नन्हा करण बिल्कुल अपने पापा पर ही गया था। वहीं आंखे, मुस्कुराते वक़्त वही डिम्पल आते। वहीं रंग और वही चाल, वहीं भोलापन।

माँ से बस उसकी एक चीज़ मिलती थी, वो थी किसी काम पर पूरे गहराई से समा जाने की उसकी क्षमता।


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