Archana Pandey

Drama

5.0  

Archana Pandey

Drama

एक थी सुगंधा

एक थी सुगंधा

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न्यूयॉर्क में खिड़की पर बैठी सुगंधा अपने दिल के दर्द को ख़ुद से ही कहने बैठती, रोज ख़ुद से ही ख़ुद का दर्द कह के रो लेती। चार साल पहले पति के साथ ब्याह के बाद न्यूयॉर्क पहुँची थी आँखों में हजारों सपने थे| पति रमेश के प्यार की आस लगाए इस अनजाने शहर में सिर्फ पति के साथ और उस रिश्ते के विश्वास पर चली आई जो माँ बाबा ने जोड़ा था रमेश के साथ।


कुछ महीने तो सब कुछ ठीक चला लेकिन कुछ दिनों बाद रमेश ने अपना नया रंग दिखाया, सुगंधा रमेश के इस रूप को देख सन्न थी| रमेश कितने कितने दिनों तक घर नहीं आता, पूछने पर सुगंधा को उसके हद और दायरे के बारे में मे याद दिलाता| हद तो तब हो गई जब एक लड़की को लेकर घर मे आ गया। नशे में धुत पति को देख उसके पाँव के तले से जैसे किसी ने जमीन खींच ली हो| वो रात सुगंधा के लिए अमावस की रात से भी काली थी।


सुबह हुई तो रमेश से इस पर बात करनी चाही तो आज रमेश ने वो कह दिया जिसकी कल्पना मात्र से किसी विवाहित स्त्री की रूह कांप जाए| उसने कहा,


"सुगंधा लड़कियां मेरी कमजोरी हैं, माँ पापा के कहने पर मैंने शादी तो तुमसे कर ली| तुमसे वादा करता हूँ तुम जो चाहो वो तुम्हें दूँगा, जैसे रहना चाहो वैसे रहो, सारी सुख सुविधा है तुम्हारे पास| बस मैं कहाँ जाता हूँ किसके पास जाता हूँ ये मत पूछना| यहाँ तुम्हें किसी चीज की कमी नहीं होगी लेकिन हर वक्त मेरे साथ की कल्पना मत करना।


सुगंधा खड़ी रह गई पाषाढ़ शीला सी, उस वक्त आँसू का एक कतरा भी ना बहा उसकी आँखो से। अब परदेश में अकेले रोज यूँ ही बैठ कर ख़ुद का दर्द सुनती है और उन दिनों को याद करके मुस्कुराने लगती है जब वो अपनों के पास अपने गाँव अपने खेड़ा में थी। अपना परिचय अपने गाँव का परिचय, अपने बाबा का परिचय, सुनाती है परदेश की हवाओं को, उड़ते सूखे पत्तों को, अनजाने लोगों की घूरती निगाहों को, "कि एक थी सुगंधा"| गुजरात का छोटा सा गाँव और उसी गाँव में खेतों के बीच बना स्याम जी मेहता मेरे बाबा का घर| घर का बड़ा सा आँगन गुलजार था, खूब रौनक लगी थी| हो भी क्यों ना? उस घर की एकलौती बेटी सुगंधा (यानी मेरी) की शादी जो थी ठीक दो दिन बाद सुगंधा इस घर से विदा हो जाएगी| ये सोच स्याम जी की पत्नी सविता जी, मेरी माँ के आँखो से आँसू आ गए, तभी मेरी बुआ ने आकर उन आँसुओं को पोछते हुए कहा...


"ये क्या भाभी, आप रो रही हैं? सुगंधा को इतना अच्छा रिश्ता मिला है, लड़का अमेरिका में रहता है| हमारी सुगंधा वहां राज करेगी राज और आप यहाँ आँसू बहा रही हो, चलो उठो कितनी तैयारी करनी है।"


ननद की बातों को सुन माँ मुस्कुराई और फ़िर शादी की तैयारी में लग गई| इकलौती बेटी थी सुगंधा और उसकी खुशियों के लिए कुछ भी करने को तैयार थे माँ बाबा। जब ये शादी की बात चली तो उन्हे लगा कि बेटी अमेरिका में राज करेगी| अपनी हैसियत से बढ़ कर दान दहेज के बारे में सोचा उन्होंने। बेटी की शादी शानो शौकत से हो इसके लिए कैसे बाबा ने एक पल नहीं लगाया अपना खेत का एक टुकड़ा बेचने में| माँ ने उनको रोकने की कोशिश की, तो बाबा बोल पड़े "सविता मुझे मत रोको, ये सब मेरी सुगु और परेश का ही तो है! जितना हक परेश का हमारी जायदाद में है उतना ही सुगु का भी है।"


बाबा मुझे प्यार से सुगु ही बुलाते थे "मेरी सुगु"! उस प्यार के एहसास ने ही जिंदा रखा हुआ है बाबा परदेश में आपकी सुगु को। कितनी धूम धाम से शादी हुई थी मेरी कि ऐसी शादी पूरे गाँव में किसी की ना हुई थी| भीगी पलकों से माँ बाबा ने उस दिन मुझे विदा किया था ताकि मेरी आँखो में आँसू ना आए। लेकिन मेरी पलकें भीगी हैं बाबा, अम्मा!! कैसे कहूँ कि मुझे ले जाओ! मुझे पता है बाबा कि मेरा दुख आप को तोड़ देगा, लेकिन बाबा मैं आना चाहती हूँ आप के पास, अम्मा के पास|" ये रोज ख़ुद ही ख़ुद से कहती और आँखो से अश्रु धारा बह निकलती।


सुगंधा भाग जाना चाहती थी यहाँ से, लेकिन जब भी माँ बाबा की खिलखिलाती हुई आवाज सुनती थी फ़ोन पर तो हिम्मत नहीं होती थी| वो सब कहे जो उसके हृदय में था, इस अभागी बेटी के दर्द को दिखाने की हिम्मत जुटाती पर जब भी बाबा की आवाज सुनती...


"मेरी रानी बिटिया कैसी है?" तो मुँह से निकलता "ठीक हूँ बाबा"|


हर बार सोच के बैठती कि अबकि बार कह दूँगी कि बाबा आ जाओ ले जाओ लेकिन जुबान सिल सि जाती| कैसे अपनों से कह दूँ कि जिसको आपने मेरा भागयविधाता बनाया था उसने तो मुझे जीवन भर का आघात दे दिया है| इस उम्र में माँ बाबा को तकलीफ़ नहीं देना चाहती थी| उसके माँ बाबा जानते थे कि वो बहुत खुश थी फ़िर वो उनके सुंदर सपने को तोड़ने का पाप नहीं लेना चाहती थी। एक दिन यूँ ही बैठी थी खिड़की पर ख़ुद को सुनाने और ख़ुद की ही सुनने के लिए| कितने दिनों से रमेश घर नहीं आया था, उस कष्ट को कह रही थी ख़ुद से| लेकिन आज उसकी आँखो से आँसू नहीं बह रहे थे, उन आँखों ने भी आज आँसू बहाने से इंकार कर दिया था| वो समझ गई कि बस अब मेरी अंतरआत्मा ने भी मेरे दुखों को सुनने से इंकार कर दिया| लगा कि बस बहुत हुआ रोना धोना!


एक झटके से उठी भाग कर कमरे में गई और झटपट तैयार हो गई, लेकिन आज उसने अपने पसंद का सलवार कुर्ता नहीं पहना| आज वो इस समाज के रंग मे रंग गई, बिल्कुल अमेरिकन बन गई थी| आज अपनी मासूमियत को उतार मंगलसूत्र के साथ गहनों के डब्बे में रख दिया| अपने आप को शीशे में देख मुस्कुराई, जैसे ख़ुद का ही परिहास कर रही हो और बोल पड़ी "एक थी सुगंधा"|


सड़क पर निकल पड़ी स्वछंद परिंदे सी, अपनी खुशियों को तलाशने| वो उस अप्रवासी परिंदे सी थी जो उड़ के परदेश तो पहुँच गई थी लेकिन उसमें वो हौसला नहीं था कि उड़ के पुनः अपने देश जा सके। अब खुश थी सुगंधा, सिर्फ इसलिए कि माँ बाबा से झूठ ना कहना पड़े कि बाबा मैं खुश हूँ"।


दोस्तों मेरी नई कहानी उम्मीद है कि आप सभी को पसंद आएगी| सराहना और आलोचना दोनों ही मुझे स्वीकार होंगे, आप खुले मन से बताइए कि कहानी कैसी लगी।


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