एक था चित्रकार ....
एक था चित्रकार ....
जब एक लड़का अपने घर से दूर किसी जंगल में बैठा अपने आभावग्रस्त जीवन के बारे में सोच रहा था, तब उसे आवाज़ आई कि "तुम्हारे घर पर कुछ लोग आये हुए हैं ।" उसने जब यह सुना तो उसे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि इस तरह की बातें तो वह रोज़ सुनता आया है । कोई न कोई उसके गॉंव में घूमता हुआ वहाँ आ ही जाता था । सूरज अब जाने के लिए तैयार हुआ , तो मानो उसने उस लड़के को भी कहा," अब तुम भी घर जाओ । क्या पता कौन सा सवेरा तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा ।" उसने सूर्य के ईशारे को पता नहीं समझा या नहीं समझा, मगर उसके कदम
घर की ओर बढ़ गए ।
घर के अंदर कुछ लोग उसके बनाये गए चित्रों को निहार रहे थे। उन्होंने उसे देखा तो उसके पास आये औऱ उसके बनाये चित्रों की तारीफ़ कर रहे थे। तो आप है, जिन्होंने ये चित्र बनाए हैं । उसने हाँ में सिर हिला दिया। उसका परिचय जानकर उन लोगों ने निश्चय कर लिया कि इस आदिवासी की प्रतिभा को इस विजन में खोने नहीं देंगे। और यही से सफर शुरू हुआ , गोंड परिवार, में जन्मे 'जनगढ़ सिंह श्याम का'। जो पाटनगढ़ मंडला जिले, पूर्वी मध्य प्रदेश के गाँव के रहने वाले थें। बचपन से ही इतनी गरीबी देखी कि रोजी-रोटी के लिए स्कूल छोड़कर खेती और पास के एक शहर में भैंस चराने के लिए मजबूर हो गए। ये सब काम करते हए वे मिट्टी , पत्तों फलों , फूलों, पेड़ की छालों से रंग लेकर अपने घर की दीवारों को अपनी चित्रकारी से सजा देते ।
वे अपने घर में की दीवारों पर देवी-देवताओं, पक्षियो और पशुओं के चित्रों से घेरा बनाते ताकि उनके परिवार को भी सुरक्षा का एहसास रहे । उनके बनाए हुए चित्र बोलते नज़र आते थे। जब एक दिन महान चित्रकार जगदीश स्वामीनाथन उन्हें खोजते हुए उनके घर आ पहुँचे तो उनकी दीवार पर साक्षात् हनुमान जी को देखकर नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सके । स्वामीनाथन ने उन्हें अपने साथ भोपाल चलने के लिए कहा । और उनकी बात का समर्थन किया उनकी पत्नी नंकुसिया बाई ने । जिनसे उन्होंने सोलह साल की उम्र में शादी की थी।
साल 1982, इतिहास के पन्नों में गर्व से अंकित है, क्योंकि उस दिन स्वामीनाथन ने फरवरी में भारत भवन की उद्घाटन प्रदर्शनी में जंगगढ़ की पहली नमूना पेंटिंग का प्रदर्शन किया था । उसके बाद जनगढ़ को भारत भवन के ग्राफिक कला विभाग में नियुक्त कर लिया गया । और वह अपने परिवार के साथ प्रोफेसर कॉलोनी, भोपाल में स्वामीनाथन के घर के पीछे रहने लग गए।
प्रसिद्धि प्रतिभा को ढूँढ़ते हए छब्बीस वर्षीय जनगढ़ को साल 1986 में, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक शिखर सम्मान पुरस्कार से सम्मानित करने आ पहुँची। फ़िर वे कहाँ रुकने वाले थें, उन्हें बाद में विधान भवन के लिए बाहरी भित्ति चित्र बनाने के लिए कमीशन दिया गया । यह विधान भवन प्रसिद्ध वास्तुकार चार्ल्स कोरिया द्वारा डिजाइन किया गया था।
अब तो उन्हें नए नाम भी मिलने लगे। आलोचक उदयन वाजपेयी ने जंगगढ़ को भारतीय कला के एक नए स्कूल के सर्जक के रूप में श्रेय दिया है, जिसे वे 'जंगर कलाम' कहते हैं। जंगगढ़ ने अपने चित्रों में आकृतियों और पैटर्न बनाने के लिए रंगीन बिंदुओं की रेखाओं, छोटे अंडाकारों की पंक्तियाँ, डॉट्स के बैंड, कभी-कभी संकीर्ण स्क्विगल्स और छोटे अनियमित अमीबा जैसे रूपों का प्रयोग करते थें । उनके बनाए गए डॉट्स टैटू गोंड जीवन से प्रेरित थे ।
वाजपेयी जंगगढ़ की कला के बारे में कहते हैं:
"जंगगढ़ कलाम पारधन संगीत का एक रूपांतर है। संगीत का दृश्य रूप में परिवर्तन। प्रधान संगीत की ख़ासियत यह है कि इसमें संगीत नोटों का अशांत संतुलन है। वह संगीत अधिकांश आदिवासी संगीत की तरह अशांत संतुलन में रूप धारण कर लेता है। इसमें न तो पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का सामंजस्य है और न ही ख्याल या नाट्य का राग।"
अब उनकी कला क देश के साथ-साथ विदेशों में भी पहचान मिलने लगी। जापान, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका की दीर्घाओं में उनके बने चित्र छटा बिखेर रहे थे। 2001 में, जापान ने इस कलाकार को अपने यहाँ ऐसा बुलाया कि जनगढ़ की कला तो जीवित रह गई परन्तु वे सदा के लिए मिट गए। उनके दूसरे निवास के दौरान मिथिला संग्रहालय में जंगगढ़ ने खुद को फांसी क्यों लगा ली? आज तक इसका ज़वाब नहीं मिल पाया है । वे तो जापान को इतना पसंद करते थे कि उन्हने अपनी बेटी का नाम भी 'जापानी' रख दिया था ।
हालाँकि उनकी मृत्यु पर, एमएफ हुसैन, मंजीत बावा और निर्मल वर्मा जैसे कलाकारों और लेखकों ने भारत और जापान की सरकारों से उनकी आत्महत्या की रहस्यमय परिस्थितियों की जांच करने का आग्रह किया था, पर सियासत हमेशा ही भोले मानव को छलती नज़र आई है । आज जनगढ़ हमारे बीच नहीं है, मगर उन्होने गोंड आदिवासी प्रजाति को जो नई पहचान दिलवाई, वह सराहनीय है । एक छोटे से गॉंव से उनकी कला निकलकर विदेश की दीवारों पर छाने लगी । और यही कला उन्हें सदा के लिए अमर कर गई है । आज भी उनके चित्र इतिहास के पन्नों में अपनी छटा बिखेरते हुए वर्तमान को भी रंग-बिरंगा कर रहे हैं ।