एक तड़पती माँ का दर्द
एक तड़पती माँ का दर्द


मेरी, ऐसी दशा, तूने क्यों बनाई,
अपने ही हाथों से मैं बृद्धाश्रम में छुड़वाई,
जिस को, नहीं मिलता,
माँ का प्यार, वह हो जाते हैं बेहाल,
लाखों रिश्ते, तुम बना लो
फिर चाहे, तुम अनेक रिश्ते, अपना लो,
कहीं नहीं मिलेगा, उस माँ के जैसा प्यार
यही है, असली माँ का प्यार !
जिंदे पर, तुम ना पूछते, बृद्धाश्रम में,
तुम छुड़वाते, मरने के बाद, खाना तुम तर्पण करते।
कुत्ता, कौआ,को खाना तुम डालते,
यह कैसी, रीति-रिवाज बनाई।।
अपनी माँ ही आज, बृद्धाश्रम में छुड़वाई......
9 महीने, तुझको मैं, पेट में रखती,
हर सपने को मैं संजोती,
तेरी खुशियों, के लिए, मैं खुद लड़ जाती,
सारी सारी रात में जग कर, तेरी मैं देखभाल करती।
मैं कौन हूँ, मेरी क्या पहचान है, यह सब मैं भूल जाती
मेरी ऐसी दशा क्यो बनाई ......
रोती हूं, मैं तड़पती हूँ, हर रोज सोचती हूँ
कल तू आएगा वापस तू मुझे अपने घर ले जाएगा।
फोन में, तुझको लाखों करती, पर तू ना फोन उठाता है
तू हुआ, आज पैसे वाला, तू किसी और का कहलाता है।
पर मैं, आश करके, बे मौत मर जाती हूँ,
आंखों मेरी, मुद गई, शरीर मेरा कंकाल हुआ।
अपनी खुद की, औलाद थी,
पर तू अर्थी मेरी उठाना ना सका।
मेरी ऐसी दशा क्यों बनाई.......
इससे तो अच्छा, मै कभी ना, माँ बन पाती,
ऐसा दुख, में हंसते-हंसते, सह जाती।
मेरी भी, रुह काँपती है, मेरा भी दिल रोता है,
मैं खुद, अपनी औलाद को, पैदा करके।
आज वृद्धाश्रम में रह पाई,
मेरी जायदाद पर, तूने सारा हक जमाया।।
मेरा सब कुछ था, फिर भी मुझे पराया किया,
मेरी ऐसी कौन सी, गलती हुई, मुझे तू ना पहचान सका।
अपनी माँ की, ममता को, तू भूल गया,
इससे तो अच्छा होता, तू जहर दे देता।
मैं आज, मौत को, प्यारी हो जाती,
पर तूने मुझे, जैसा भी चाहा।
आज मेरी ममता, भी तेरे लिए रोती हूँ
कभी तुझे मैं बद्दुआ, नहीं देती हूँ।
तू हमेशा, खुश रहना, मेरे लाल,
ऐसी अपनी वाणी को, विराम देती हूँ,
मेरी ऐसी दशा क्यों बनाई।