Indu Verma

Romance

4  

Indu Verma

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एक प्यार ऐसा भी

एक प्यार ऐसा भी

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दो दोस्त ,एक दूसरे पर जान देने वाले,..साहिल ..बेहद निडर, बेबाक।गौरव, नटखट चलबुला .. संयोगवश दोनों की पसंद भी एक ही निकली पूर्णिमा.. शांत पर स्कूल की शान । हर फील्ड मे आगे,बात क्लास 12th की है । पूर्णिमा मेस की लाइन मे थी. अचानक उसकी नज़रें साहिल पर पड़ी । उसे लगा कि शायद उसकी नज़रें उस पर ही है । फिर कुछ सोचा मुझ पर क्यूँ होंगी । वह आगे बढ़ गयी । पर सिलसिला यही नहीं रुका । क्लास के बाहर ग्राउंड , हर जगह उसे कोई देख रहा था । ये साहिल ही था । ज़ब भी कहीं से गुजरती साहिल का नाम कोई दोस्त पुकारता या उस पर साहिल की नज़रें होती । कुछ कुछ समझ आने लगा था अब पूर्णिमा को । एक दिन क्लास मे सहेली प्रिया के साथ थी..प्रिया को बताने लगी साहिल की बात । प्रिया मुस्कुराते हुए पूर्णिमा को देखने लगी "कितनी भोली है तू , सिर्फ साहिल नहीं कोई और भी है जो चाहता है तुझे ।" पूर्णिमा जस की तस रह गयी । कुछ कह ही नहीं पाई । हिम्मत करके पूछा.. कौन? वही जो गाना भी गाता है तेरे लिए ही । चाँद सी महबूबा हो मेरी! नटखट, चुलबुला पूर्णिमा पहचान गयी । बोल ही उठी" क्या ये गौरव है ।"

"हाँ मना किया था उसने तुझे बताने के लिए । कसम दी थी पर मै खुद को रोक न सकी ।" अब तो पूर्णिमा के पैरों तले की जमीन ही खिसक गयी । दोनों दोस्त , एक ही प्यार । कई रात सो नहीं पाई , समझ नहीं पाई , जैसे ही दोनों को देखती रोंगटे खडे हो जाते । छुटटी लेकर कुछ दिन घर चली गयी । पर आना तो वही था । वापिस लौट प्रिया से फिर बात हुई । साहिल ने गौरव को सब बता दिया था अपनी चाहत के बारे मे । अब गौरव की परीक्षा थी दोस्ती व प्यार मे एक को चुनने की । गौरव ने प्यार को दोस्ती पर कुर्बान कर दिया ।, साहिल का साथ देने आगे बढ़ गया । रोज एक नया दिन, कुछ चुलबुली बाते, पूर्णिमा पर टिकी नज़रें । पूर्णिमा अब भी समझ नहीं पा रही थी । सब जानते हुए किसी से कुछ ना कह सकी । अपने दिल की बात दिल मे ही रख गयी ।. उधर साहिल वैसे तो निडर पर पूर्णिमा के सामने कभी एक शब्द ना कह पाया ।, गौरव साहिल की मदद करने मे लगा था कभी,रोटोमैक पैन देकर । लिखते लिखते लव हो जाये कह जाना कभी साहिल की लाई हुई पर्क दे जाना । पूर्णिमा दोनों के प्यार को समझ रही थी । दो हीरे । दोनों ही बेहद चाहने वाले । पर किसी के लिए फैसला नहीं कर पाई ।. तीनों अपने दिलों मे ही बातें रख गए । स्कूल से विदाई का समय आ गया ।. रो रहे थे अंदर ही अंदर.. पर लबों पर कुछ नहीं आया । संस्कार, समाज, जाति सब खडे थे दुश्मन बन कर.. सब बिछुड़ गए । जज़्बात सबके अंदर ही रह गए । कुछ नहीं कह सके एक दूसरे से ।

18 वर्ष बाद मिले तीनों , शादीशुदा हैं, बच्चे हैं,पर आज भी वही खडे हैं। अच्छे दोस्त हैं आज भी तीनों । एक दूसरे के लिए इज्जत है, प्यार है, एक टीस है .. पर दिल मे दफ़न कुछ ख्वाहिशे भी हैं

याद आते हैं वो दिन ।. 

तेरी जुल्फ जो उड़ी, जंजीर बन गई 

तेरी नज़र जो उठी तकदीर बन गई 

मैंने तो यूँ ही रेत मे उंगली घुमाई 

ना जाने कैसे तेरी तस्वीर बन गई ।



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