Saroj Verma

Drama

4.5  

Saroj Verma

Drama

एक मुट्ठी इश्क़--भाग(७)

एक मुट्ठी इश्क़--भाग(७)

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गुरप्रीत का ऐसे मे मां बनना, सबके लिए फिक्र वाली बात हो गई थीं, घरवालों का और पति का अब तक कुछ पता नहीं था, सब बहुत बड़े सदमे आ गए थे।

शाम होने को थीं, दूसरी कोठरी अभी बनी नहीं थी, हलकी गुलाबी ठंड वाला मौसम था, गुरप्रीत कोठरी में आराम कर रही थीं, इम्तियाज भी गुरप्रीत के साथ ही बगल मे लेटा था, करें भी एक साल का बच्चा जो ठहरा वो गुरप्रीत को ही अब अपनी समझने लगा, तभी गुरप्रीत उठी और बाहर आकर चूल्हा सुलगाने लगी, फात़िमा ने गुरप्रीत को बाहर देखा तो पास आकर बोली।

 तू बाहर क्यों आई?

 सोच रही थीं कि खाना बना लूं, गुरप्रीत बोली।

चल !चुपचाप अंदर जाकर लेट जा, तेरी तबियत ठीक नहीं हैं, ये सब मैं कर लूँगी, फात़िमा बोली।

नहीं, आपा! करने दो ना, ऐसी कौन सी बड़ी खुशखबरी हैं मेरे लिए, ये तो मेरे लिए जी का जंजाल हैं, ना मेरे पति का पता और ना घरवालों का, क्या करूँ तबियत ठीक रखकर, ऊपर से ये मनहूस ख़बर, गुरप्रीत बोली।

तभी बाहर खड़े इख़लाक ने ये सब सुना और झोपड़ी के दरवाज़े के करीब जाकर कहा___

ये कैसीं बातें कर रही हैं मोहतरमा! दिमाग़ ख़राब हो गया ।है आपका, जो नन्ही सी जान अभी दुनिया में नहीं आई हैं उसे मनहूस कह रहीं हैं, ख़बरदार जो आज के बाद ऐसे लफ्ज़ आपने मुँह से निकाले तो।

 तभी फात़िमा भी बोल पड़ी , सही तो कह रहा हैं, वो मनहूस नहीं है फरिश्ता हैं.. फरिश्ता, शायद इसी फरिश्ते की वजह़ से तू सलामत है, ये क्यों नहीं सोचती और जो भी है, मै हूँ ना अभी, तुझे और बच्चे को कुछ नहीं होने दूँगी।

 इख़लाक की बात सुनकर, गुरप्रीत को ये सोचकर रोना आ गया कि पराये लोगों के आसरे हूँ तो कोई कुछ भी कहेगा, अभी तक अपने होते तो ऐसी बातें ना सुननी पड़तीं।

 रात होने को थीं, फात़िमा ने सारे बच्चों को खाना खिलाकर इख़लाक के लिए थाली परोस दी, इख़लाक़ खाकर उठा तो फात़िमा ने गुरप्रीत से कहा, चल खाना खा ले।

तभी, इख़लाक़ बोला__

हां, आपा!ठीक से खाना खिलाना और कल से और दूध ले लिया करो, बच्चों के साथ साथ इन्हें भी दूध की जरुरत है, बच्चे की सेहद अच्छी रहनी चाहिए, बच्चा कम से कम स्वस्थ रहेंं, अच्छा मैं बाहर सोने जा रहा हूँ, जरा मेरा बिस्तर तो देना।

तभी, गुरप्रीत गुस्से से बोली___

आपा!मुझे खाना नहीं खाना हैं, इतनी बातें सुनकर ही मेरा पेट भर गया।

तू तो पागल है, उसकी बातों का क्यों बुरा मानती है, उसे तेरी फिक्र हैं तभी तो गुस्सा किया उसने और फिर तू चिंता करेंगी तो बच्चे की सेहद पर असर पडे़गा, फात़िमा बोली।

 तभी इख़लाक अपना बिस्तर बाहर ले जाते हुए बोला___

आपा!मेहमान से कहो कि खाना खा ले, नहीं तो हमें इससे भी ज्यादा गुस्सा करना आता है।

तभी फात़िमा हंसते हुए बोली__

तुम दोनों भी ना कैसे छोटे बच्चों की तरह मुँह फुलाते हो, चल अब गुस्सा थूक दे और चल खाना खा लेते हैं,  ले तेरे लिए आज नींबू भी खरीदकर लाई थीं, दाल मे निचोड़ ले, स्वाद अच्छा लगेगा खाने का।

 और गुरप्रीत हंसते हुए खाना खाने बैठ गई।

दूसरे दिन अभी ठीक से दिन भी दिन भी ना निकला था कि इख़लाक कोठरी की दीवार बनाने के लिए मिट्टी तैयार करने लगा, लौदें बना बनाकर दीवार खड़ी करने लगा, आहट पाकर गुरप्रीत की आंख खुल गई और इम्तियाज को खुद से बिल्कुल धीरे धीरे अलग करके सिर पर दुपट्टा डालकर बाहर आकर देखा तो इख़लाक काम में लगा हुआ था।

 आप रात को सोए नहीं क्या?गुरप्रीत ने इख़लाक से पूछा।

क्यों?मोहतरमा! आप ऐसा क्यों पूछ रहीं हैं, इख़लाक़ ने गुरप्रीत से पूछा।

 भोर होते ही काम पर लग गए, बन जाएगी दूसरी कोठरी ऐसी भी क्या जल्दी है, गुरप्रीत बोली।

अरे, सर्दियाँ बढ़ने वालीं हैं अब हालात भी सुधर गए हैं और फिर दूसरी कोठरी तैयार होते ही आपके परिवार वालों को भी तो ढूढ़ना हैं, पता नहीं कौन कहाँ हैं? इख़लाक बोला।

 जी, मैं भी दिनरात यही सोचती रहती हूँ, गुरप्रीत बोली।

आप अपने शौहर की बहुत याद आती होगी ना! वैसे कितने साल हो गए आपकी शादी को, इख़लाक ने गुरप्रीत से पूछा।

जी अभी मुश्किल से दो ढा़ई महीने ही हुए होगें, गुरप्रीत बोली।

जी, मुझे पूछने का हक तो नहीं है लेकिन क्या आपलोगों का प्रेमविवाह था, इख़लाक ने गुरप्रीत से पूछा।

जी, पता नहीं, प्रेम था या नई उम्र का आकर्षण, बस कुछ मुलाकातें हुई और समाज ने इसे प्रेम का नाम दे दिया और बदनामी के डर से, हम दोनों से शादी के लिए पूछा गया तो हम लोगों ने हां कर दी और फिर बुजुर्गों को जो सही लगता हैं वहीं होता है घरों में, हम छोटो को तो बस मानना पड़ता हैं और जिससें शादी हो गई वहीं सब कुछ हो जाता हैं हम लड़कियों के लिए, हम लड़कियों की किसी भी चीज के लिए पसन्द नापसंद कुछ मायने नहीं रखती, गुरप्रीत बोली।

अच्छा तो ये बात हैं, अब मुझे भी देख लीजिए, मैने और मेरी बीवी ने तो एक दूसरे का चेहरा भी नहीं देखा था और निकाह पढ़वा दिया गया, ये सब रिश्ते नाते ऊपर वाले की मर्ज़ी से बनते हैं, जो वो चाहे वहीं होता है, इख़लाक़ बोला।

जी, शायद आप सही कह रहे हैं, गुरप्रीत बोली।

चलिए, अब आपको कोई भी भारी काम करने की जरूरत नहीं हैं और अब आप कुएँ से पानी भी नहीं खींचेगी, ऐसी हालत मे कोई भी भारी काम करना सेहद को नुकसान पहुंचा सकता हैं, इख़लाक बोला।

जी, अच्छा, गुरप्रीत बोली।

क्या?जी अच्छा! हम आपकी सलामती के लिए ही कह रहे हैं और आप हैं के बुरा मान जातीं हैं कल रात आप मुंह फुलाए थी और खाना भी नहीं खाना चाहतीं थीं, इख़लाक बोला।

जी, वो थोड़ा बुरा लग गया था, गुरप्रीत बोली।

हम तो आपके भले के लिए ही कह रहे थे, आपको बुरा लगा तो माफ़ करें, इख़लाक बोला।

जी ऐसी बात नहीं हैं, गुरप्रीत बोली।

 जी आप अपनी सेहद का ख्याल रखें, हम तो इतना ही कह रहे थे, मोहतरमा!इख़लाक बोला।

जी, अब मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ, आपको ठंड लग रही होगी, मिट्टी गीली हैं ना, गुरप्रीत बोली।

और गुरप्रीत कोठरी के भीतर चाय बनाने चली गई।

 दो चार दिन की कड़ी मेहनत के बाद दूसरी कोठरी भी तैयार हो गई, उसमे सभी की मेहनत लगी थी, तब इख़लाक फात़िमा से बोला कि मैं इन मोहतरमा के घरवालों के बारे मे पता करने जाता हूँ, अब तो हालात बहुत सुधर गए हैं, शायद कोई तो मिल जाए तो इन मोहतरमा को रहने का ठिकाना मिल जाएगा, कब तक हमारे साथ रहेंगी और घरवाले खुशखबरी सुनकर कितने खुश होगें।

फात़िमा बोली, हां !यही ठीक रहेगा, जिसकी अमानत है उसी के पास जल्द से पहुंच जाए जो हमसे हो पाया हमने किया, ज्यादा दिन हमारे साथ रहेगी तो बच्चों को भी लगाव हो जाएगा, फिर बच्चों को सम्भालना मुश्किल हो जाएगा।

बिल्कुल सही कह रहीं है आपा आप, मैं कल ही खुद के जाने का बन्दोबस्त करता हूँ, कल ही कुछ पैसों का इंतजाम करता हूँ, इख़लाक़ बोला।

 और दूसरे दिन ही इख़लाक पैसों रूपयों का बन्दोबस्त करकें गुरप्रीत से उसके ससुराल और मायके का पता पूछ कर निकल पड़ा सबको ढूंढ़ने।।

इख़लाक दो तीन दिन के बाद लौटा, खुश होकर गुरप्रीत ने मटके मे से पानी दिया और बोली सब कैसे हैं?

 तब तक फात़िमा भी इख़लाक के पास आकर बैठ गई।

इख़लाक उदास होकर बोला, जहां जहाँ गया मायूसी ही हाथ लगी मोहतरमा, कोई भी नहीं मिला, आपके मायके के घर को तो पूरी तर जला दिया गया था, सबने कहा कि सिक्खों के परिवार से शायद ही कोई बचा हो, उस गांव में उस गांव के हालात देखकर तो मेरा मन भर आया, सबका सबकुछ तहस नहस हो चुका है, फिर आपके ससुराल पहुंचा तो आपके सास ससुर को दंगाईयों ने उसी रात दोनों को छुरा भोंक कर ऐसे ही छोड़ दिया, रातभर खून रिसता रहा और फिर दोनों खत्म हो गए और आपके शौहर के बारे मे कहा कि उस रात दंगाईयों ने बस के बहुत से लोगों को मार दिया था, अब उसमें आपके शौहर भी शामिल थे ये पक्का नहीं पता और अगर शामिल होते तो हालात ठीक होने पर उन्हें घर पहुँचना चाहिए था लेकिन वे अब तक नहीं पहुंचे इसका मतल़ब हैं कि कहीं ना कहीं कुछ तो हुआ हैं।

ये सुनकर गुरप्रीत के तो जैसे होश ही उड़ गए, उसकी आंखो से आंसू बह निकले, इतने सारे लोगों का एक साथ दुनिया से चले जाना, बहुत ही दुखद होता है और फिर साधारण इंसान के लिए एक साथ इतना बड़ा दुख झेलना मुश्किल भी तो होता है, इंसान सम्भालें भी तो कैसे सम्भालें खुद को।

और गुरप्रीत खुद को सम्भाल ना पाई और बेहोश होकर गिर पड़ी, फात़िमा ने उसे सम्भाला, पानी के छींटे मारे तब गुरप्रीत होश में आई और फात़िमा से लिपटकर फूट फूटकर रोने लगी____

 आपा! ऐसा महसूस तो होता था लेकिन भरोसा ना था, एक आश बची थी मन मे कि कोई ना कोई तो बचा ही होगा लेकिन आज वो आश भी खत्म हो गई, अब क्या करूँ, कहाँ जाऊँ कोई सहारा ना रहा मेरा, गुरप्रीत रोते हुए बोली।

चुप हो जा मेरी बच्ची, ऐसे नहीं रोते, कोई नहीं है तेरा, ऐसा क्यों कह रही हैं, अभी मै तो हूँ, अब तुझे फिक्र करने की जरुरत नहीं है, तू जब तक चाहे यहाँ रह सकती हैं, फात़िमा दिलासा देते हुए बोली।

 थोड़ी देर यूं ही रोते रोते, गुरप्रीत, फात़िमा की गोद मे अपना सिर रखकर एक छोटे बच्चे की तरह सो गई जैसे की बहुत सुकून मिल गया हो।

फात़िमा धीरे से उठी और सारे बच्चों को बाहर ले जाकर बोली कि कोई भी जीनत़ को नहीं जगाएगा, बेचारी बहुत दुखी हैं, उसकी तबियत भी ठीक नहीं हैं थोड़ी देर सोएगी तो उसे आराम मिल जाएगा, परेशान हैं बेचारी।

क्रमशः___


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