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Saroj Verma

Drama

4  

Saroj Verma

Drama

एक मुट्ठी इश्क़--भाग(५)

एक मुट्ठी इश्क़--भाग(५)

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अचानक ही इख़लाक़ का एक साल का बेटा रो पड़ा, इख़लाक़ ने चुप कराने की कोशिश करनी चाहीं लेकिन बच्चा शायद मां के लिए रो रहा था, गुरप्रीत को बच्चे पर रहम आ गया, उसने उसे गोद मे उठा लिया, गुरप्रीत ने बच्चे को जैसे ही गोद मे लिया बच़्चा चुप हो गया।

 शायद ये आपको अपनी अम्मी समझ रहा हैं, इख़लाक़ बोला।

तभी इख़लाक़ की तीन साल की बेटी भी जाग गई और अपनी आंखो को मलते हुए उसने पूछा___

ये कौन हैं? अब्बू!अम्मीजा़न वापस आ गई ।

 नहीं, बेटा , ये भी हमारी तरह परेशान हैं, हमारे साथ ये भी चलेंगी, इख़लाक़ ने कहा।

बहुत प्यारी बच्ची हैं, गुरप्रीत बोली।

 जी, ये मेरी बेटी शाहीन और बेटा इम्तियाज, इन दोनों की अम्मी दंगाईयों के भेंट चढ़ गई।

जी, बहुत दु:ख हुआ जानकर, गुरप्रीत, इख़लाक से बोली।

जी, आपके भी तो आपसे बिछड़ गए होगें, इस अफरातफरी के वक्त़, इख़लाक ने गुरप्रीत से पूछा।

जी, सास ससुर को छोड़कर हम पति पत्नी, मेरे मां बाप के पास भागे थे लेकिन रास्ते मे लोगों ने बताया कि उस गांव मे सब बर्बाद हो चुका है, इसी बीच पता नहीं मेरे पति भी मुझसे बिछड़ गए और ये कहते कहते गुरप्रीत रो पड़ी ।

चुप हो जाएं, मोहतरमा!अपने आंसू पोछ लें, दंगे थमते ही, आपके शौहर को ढू़ढ़ने की कोशिश करूँगा, इख़लाक ने गुरप्रीत को तसल्ली देते हुए कहा।

जी, बस अब तो उम्मीदें ही बाकी़ रह गई हैं, गुरप्रीत बोली।

जी, मोहतरमा!उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम हैं, इख़लाक़ बोला।

पता नहीं, ऊपरवाले को क्या मंजूर हैं, क्यों इतना कह़र बरस रहा हैं, गुरप्रीत बोली।

 ऊपरवाले की कोई गल़्ती नहीं हैं मोहतरमा! ये सब तो हम इंसानों का कुसूर हैं, जो हम आपसी भाईचारे को भुला नफरत की आग लगा रहे हैं, मुल्क को समसान बना दिया हैं, क्या मिलेगा?इस नफरत से, खुदा जाने, इख़लाक़ ने कहा।

सच, कहा आपने, इख़लाक़ जी, गुरप्रीत बोली।

अच्छा, मोहतरमा! पास मे ही मेरी बहन का गांव हैं, हमें वहां जाना हैं, आप ऐसा किजिए, पर्दा कर लीजिए, जिससे हमें सब एक परिवार समझें, आप इम्तियाज को सम्भालें और मैं शाहीन को सम्भालता हूँ, अभी एक गाँव और पड़ेगा, वहां से कुछ खा पीकर चलते हैं, बच्चे कब से भूखें हैं, इख़लाक़ बोला।

ठीक है, जैसा आप ठीक समझें, गुरप्रीत बोली।

और दोनों निकल पडे़, आगे गाँव की ओर, रास्ते मे एक नहर पड़ी, वहां उन्होंने नीम के पेड़ से दातून तोड़कर दांत साफ किए और नहर में हाथ पैर धोकर आगे बढ़ चले।

गाँव के बाहर ही एक ढ़ाबा मिला, वह ढ़ाबा किसी बुजुर्ग का था, वहां वो बुजुर्ग एक चारपाई पर बैठे थे, उस ढ़ाबे में एक बावर्ची था और एक परोसने वाला, अभी वहां का तन्दूर सुलगा नहीं था, साफ सफाई हो रही थीं, छत के नाम पर वहाँ एक छप्पर था, एक दो चारपाईं पड़ी थीं, उस ढ़ाबे को देखकर लग रहा था कि जैसे कि बहुत कम ग्राहक वहां आते होगें।

तभी इख़लाक़ ने उनके पास जाकर पूछा__

चचा जान!क्या बच्चे के लिए थोड़ा दूध मिल सकता हैं।

हां, मियां!मिल तो जाता, लेकिन दंगों की वजह से सब डर गए इसलिए कोई भी आज सामान लेकर नहीं आया, ढा़बे वाले बुजुर्ग बोले।

जी, कोई बात नहीं, थोड़ा पानी ही पिला दीजिए, इख़लाक बोला।

क्या बात करते हों?मियाँ! बच्चे को दूध ही चाहिए तो वो रही बकरी, अभी लोटे मे दूध निकाल देता हूँ, कम से कम बच्चे तो भूखें ना रहेंं, वो बुजुर्ग बोले।

शुक्रिया, चचाजान, आपने जो रहमत बरसाई हैं, हम पर, अल्लाह् आपको दुआएँ देगा, इख़लाक़ बोला।

 अरे, मियां! तुम भी कैसीं बातें करते हो, मै भी मौलवी हूँ, लोगों की भलाई करते उम्र बीत गई, आज ढ़ाबा इसलिए खोला था कि भूखे, बेसहारों की मदद कर सकूँ, मगर कमबख्त सामान ही नहीं आ पा रहा, मौलवी साहब बोले।

तब तक मौलवी साहब ने बातें करते करते बकरी का दूध दोहकर लोटे मे इख़लाक़ को दे दिया, दूध पीते ही दोनों बच्चे सो गए, पेट भरते ही दोनों को नींद आ गई।

तभी मौलवी साहब ने पूछा___

मियाँ!ये आपकी बेग़म हैं।

 जी, हां!इख़लाक़ ने झूठ बोलते हुए कहा।

 ये बात गुरप्रीत को बहुत बुरी लगी।

बहुत नसीब वाले हो मियाँ जो पूरा परिवार सही सलामत हैं, नहीं तो अगल बगल के गांवों के जो हालात हैं, सुनने से कलेजा मुँह को आता हैं, मौलवी साहब बोले।

जी!सब ख़ुदा की रहमत हैं, इख़लाक़ बोला।

आप और आपकी बेग़म भी भूखे होगे, हमारे पास कोई भी सामान नहीं हैं कि आप लोगों को भी कुछ खाने को देदे लगता हैं बगल वाले हाट से मंगवाना पड़ेगा, मौलवी साहब बोले।

 जी, मै कुछ मदद करूं आपकी, इख़लाक़ ने पूछा।

नहीं मियाँ, ये हैं ना दोनों लड़के, इन्हें भेजता हूँ, मौलवी साहब बोले।

 और इख़लाक़ चुपचाप जाकर गुरप्रीत के पास पेड़ की छांव के नीचे आ बैठा।

तभी गुरप्रीत गुस्से से बोली, आपने ये क्यों कहा कि मैं आपकी बेग़म हूँ।

आप खफा़ ना हो मोहतरमा! इसके सिवा और कोई चारा नहीं था, कम से कम ये हमेँ एक ही परिवार समझ रहें और कुछ बताता तो बता नहीं ये लोग कौन सी तोहमतें लगा बैठे हैं, आप अभी नादान हैं मोहतरमा!दुनिया दारी नहीं आती आपको, इख़लाक़ बोला।

 ठीक है, मुझे ज्यादा ना समझाएँ, दुनिया दारी, मैं ये कह रही थीं क्यों ना आप हाट जाकर कुछ आटा नमक और कुछ आलू और एक दो मिट्टी के बरतन ले आएं तो हम अपना खाना खुद बना सकते हैं, गुरप्रीत बोली।

आपकी बात तो ठीक हैं मोहतरमा! लेकिन पैसे कहाँ हैं, मै तो कुछ भी नहीं ला पाया, सिवाय बच्चों के, इख़लाक बोला।

 ये रही, मेरी सोने की जंजीर, इसे बेचकर जो मिले तो खरीद लीजिएगा, गुरप्रीत बोली।

क्यों मोहतरमा! हमें निकम्मा समझ रखा हैं क्या आपने, कि आप से ना जान ना पहचान और आपके गहने बेचकर, मैं अपनी भूख मिटाऊँ लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी कि आप औरतों कि ऐसे मुश्किल हालातों में भी आपको घर गृहस्थी सूझ कैसे जाती हैं, इख़लाक बोला।

 जी, हम औरतें ऐसी ही होतीं हैं, हम बहुत कठोर होती हैं खुद से ज्यादा दूसरों के बारें में सोचतीं हैं, गुरप्रीत बोली।

 तभी शाहीन जाग गई और पानी मांगने लगी, इख़लाक़ बोला अभी लेकर आता हूँ।

इख़लाक मौलवी साहब के पास पहुंचा और बोला, पानी चाहिए।

 हां, मियाँ! क्यों नहीं, तुम ऐसा करो , ये मटका और लोटा, बेटी के पास ही रख दो, मैं कुएँ से और पानी भरकर रखवा लूंगा, मौलवी साहब बोले।

बहुत बहुत शुक्रिया, मौलवी साहब, लेकिन आप क्यों जह़मत उठाते हैं, मै ही खुद घड़ा भरकर रख देता हूँ, इख़लाक बोला।

वैसे मियाँ, आपका और आपकी बेग़म का नाम क्या है?मौलवी साहब ने पूछा।

जी मै इख़लाक और उनका नाम जीनत़ हैं, इख़लाक बोला।

 बहुत अच्छे बरखुरदार, जोड़ी सलामत रहे, मौलवी साहब बोले।

तभी इख़लाक पानी भरकर लाया और धीरे से बोला___

आज से आपका नाम जीनत़, जब तक आपके शौहर नहीं मिल जाते तब तक और हम सब एक परिवार, अभी मौलवी साहब आपका नाम पूछ रहे थे तो मैने आपका नाम जीनत़ बताया, इख़लाक ने गुरप्रीत से कहा।

ये क्या है? पहले अपनी बेग़म बनाया अब मेरा नाम भी बदल दिया, ये क्या बदसलूकी हैं, जी, गुरप्रीत गुस्से से बोली।

 लेकिन मोहतरमा, जब तक हम मेरी बहन के घर सुरक्षित नहीं पहुंच जाते, तब तक आपकी पहचान छुपाकर रखनी पड़ेगी, इख़लाक बोला।

ठीक है, आप जैसा समझे, लेकिन अब इन लड़को के साथ हाट जाकर कुछ सामान ले आइए, गुरप्रीत बोली।

और इख़लाक कुछ देर मे लड़को के साथ जाकर कुछ सामान लेकर आ गया, गुरप्रीत ने फौरऩ उसी पेड़ के नीचे दो पत्थर लगाकर चूल्हा सुलगाया, मिट्टी के बरतन मे आटा गूंथ कर , हाथ से पानी लगाकर मोटी मोटी रोटी सेक ली कुछ आलू और बैंगन भूनकर भरता बनाकर इख़लाक और बच्चों को परोस दिया और इख़लाक से बोली, मौलवी साहब से खाने के लिए पूछ लीजिए।

इख़लाक ने मौलवी साहब से पूछा लेकिन मौलवी साहब ने कहा, ये दोनों बच्चे बना रहे हैं, हम साथ मिलकर ही खाएंगे।

 दिन चढ़ आया था, मौलवी साहब ने दोनों को आगे से रोक दिया, बोले हालात काबू में आ जाएं तो सुबह निकल जाना, तुम लोग यहाँ महफूज हो और इख़लाक मौलवी जी की बात मानकर सपरिवार वहीं ढ़ाबे के पास पेड़ के नीचे रूक गया, बाजार से इख़लाक चटाई और चादर भी ले आया था।

रात को सबका खाना ढ़ाबे पर ही बन गया, उस दिन कोई भी ग्राहक नहीं आया और रात को सब खाना खाकर कुछ इधर उधर की बातें करके लेट गए।

तभी कुछ देर बाद कुछ लोग हाथों मे हथियार लेकर आ खड़े हुए, उन्होंने मौलवी साहब से पूछा, ये कौन हैं?

मौलवी साहब बोले, अपने ही लोग हैं मियाँ, ये इख़लाक़ हैं मेरी फूफूजान का बेटा, बेचारे के पास कुछ नहीं बचा इसलिए मेरे पास आसरा मांगने चला आया और मै कैसे मना कर सकता था।

तभी शोर सुनकर शाहीन जाग गई__

उस भीड़ में से एक शख्स आगे आया और उसने शाहीन से पूछा__

क्या नाम हैं बेटा तुम्हारा__

शाहीन.., शाहीन बोली।

और सब शाहीन का जवाब सुनकर आगे बढ़ गए, शायद अब उन्हें तसल्ली हो चुकी थी।

क्रमशः__


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