Saroj Verma

Drama

4.5  

Saroj Verma

Drama

एक मुट्ठी इश्क--भाग(३)

एक मुट्ठी इश्क--भाग(३)

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गीली हालत मे गुरप्रीत बग्घी लेकर घर पहुंची और सुखजीत ने उसकी हालत देखी और अच्छे से दोनों बाप बेटी की खबर ली___

मैं तो कह कहकर हार गई लेकिन बाप बेटी तो मन मे ठान ली हैं कि मेरी कोई बात नहीं सुननी, सयानी लड़की उल्टी सीधी हरकतें करती फिरती हैं और बाप को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ता, लड़की को तैरना नहीं आता और कूद पड़ी बग्घी लेकर नहर में, अभी कुछ हो जाता तो मैं क्या करती इकलौती संतान हैं, सालों बाद घर मे सन्तान हुई थी, कैसे रातभर जाग जागकर पाल पोसकर बड़ा किया लेकिन नहीं, ये क्यों मानने लगी मेरी बात.....

और इतना कहकर सुखजीत फूट फूटकर रोने लगी।

सुखजीत को रोता देखकर बलवंत उसके पास आकर बोला___

चुप हो जा सुखजीते, आज के बाद ऐसा नहीं होगा, आज के बाद गुरप्रीत ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगी जिससे तुझे दु:ख हो, बलवंत बोला।

और गुरप्रीत भी सुखजीत के गले लग कर रो पड़ी और बोली___

माफ कर दो मां, आज के बाद तुम्हारी सारी बातें मानूँगी।

 दोनों मां बेटी के मन का मैल आंसू बनकर बह गया, दिनभर गुरप्रीत सुखजीत के साथ घर के कामों मे हाथ बँटाती रही, अब वो अपनी मां का और दिल दुखाना नहीं चाहती थीं।

रात हुई, गुरप्रीत खाना खाकर बिस्तर पर लेटी कि सुबह हुई घटना के बारें में सोचने लगी, आखिर कौन था वो, जिसने मुझे बचाया, नहीं तो आज तो बस जान जाने ही वाली थी, भला हो उसका, वैसे देखने मे भी, इतना बुरा नहीं था, शक्ल से तो शरीफ ही लग रहा था, गुरप्रीत यही सब सोच रही थी कि सुखजीत अपना काम निपटा कर गुरप्रीत के पास आकर बोली___

क्या सोच रही हैं? लाडो।

कुछ नहीं मां, बस यहीं सोच रही थी कि मुझे तैरना नहीं आता और अगर उस लड़के ने मुझे समय पर आकर बचा ना लिया होता तो आज तो बस..., गुरप्रीत बोली।

 हां! लाडो, भला हो उस लड़के का, वैसे कौन था वो, क्या नाम था उसका?सुखजीत ने पूछा।

मैंने ये सब तो पूछा ही नहीं, गुरप्रीत बोली।

तू भी ना, लाडो! चल अब सो जा, सुखजीत बोली।

और दोनों मां बेटी सो गई।

 दूसरे दिन दोपहर तक सुखजीत अपने घर के सारे का निपटा चुकी थीं, बहुत दिनों से सोच रही थीं कि अपने लिए एक सलवार कमीज सिल डाले, कपड़ा तो उसने बहुत समय पहले लाकर रख लिया था लेकिन समय नहीं निकाल पाई थी, सिलाई के लिए, कपड़ा उठाकर उसने निशान लगाएं, कैंची से काटने ही जा रही थी कि आंगन के दरवाज़े पर दस्तक हुई....

 आती हूँ.. इतना कहकर सुखजीत ने दरवाजा खोला तो उसकी पडो़सन संतोष थीं जो रिश्ते मे चचेरी देवरानी भी हैं।

अरे, संतोष तू, चल आजा, सुखजीत बोली।

संतोष अंदर आकर बोली___

 ये लो सुखजीत भाभी, आज जलेबियाँ बनाईं थी तो सोचा थोड़ी आपको भी दे आऊं।

अच्छा किया, लेकिन किस खुशी में, कुछ है क्या?किसी का जन्मदिन तो नहीं हैं, सुखजीत ने पूछा।

नहीं भाभी, मेरा भाई आया हैं, बुआ का लड़का सरबजीत, मेरा तो कोई सगा भाई नहीं हैं, बस उसी के लिए जलेबियाँ बनाईं थीं, यहाँ से को पन्द्रह किलोमीटर दूर बुआ का गाँव हैं, बेचारा कल सुबह साइकिल से आया, गीली हालत मे था, मैंने पूछा कि क्या हुआ तो बोला, एक लड़की नहर मे डूब रही थी , उसे बचाने के चक्कर मे गीला हो गया, संतोष बोली।

अच्छा! तो वो लड़का सरबजीत था, जिसने मेरी लाडो की जान बचाई, सुखजीत बोली।

क्या कह रहीं हैं भाभी, संतोष बोली।

 हां कल तो जैसे आफत ही आ गई थी, कल अगर सरबजीत समय पर नहीं पहुँचता, तो पता नहीं क्या हो जाता।

 हां, भाभी सही कह रहीं हैं, सब वाहेगुरू की कृपा हैं, हमारी बच्ची सही सलामत हैं, संतोष बोली।

हां, बिल्कुल सही कहा और सुना सब ठीक हैं, सुखजीत ने संतोष से पूछा।

हां, सब ठीक है, देखिए ना बुआ ने मेरे लिए कित्ते सुंदर सलवार कमीज भेजे हैं, कितनी अच्छी कसीदाकारी हैं, सोचा आप ठीक से निशान लगा कर काट देंगी, बाकी सिल तो मैं लूँगी, मुझसे काटने मे खराब हो संतोष बोली।

हां, रख जा और नाप की एक जोड़ी सलवार कमीज दे जाना, समय मिलते ही काट दूँगी, सुखजीत बोली।

संतोष बोली, ठीक है भाभी, गुरप्रीत कहाँ हैं दिख नहीं रही।

कह रहीं थीं कम्मो के पास जा रही हूँ, कम्मो की शादी हैं ना अगले महीने, उसकी शादी का सामान आ गया हैं, वहीं देखने गई हैं।

भाभी, गुरप्रीत को घर भिजवा देना, बुआ ने और भी सामान भेजा हैं, कुछ सूखे मेवे हैं बहुत ज्यादा हैं, इतना मै क्या करूँगी, गुरप्रीत कुछ ले आएगी, संतोष बोली।

 ठीक है, उसके आते ही बोल दूंगी, सुखजीत बोली।

अच्छा भाभी! अब मैं चलती हूँ और इतना कहकर गुरप्रीत चली गई।

गुरप्रीत , कम्मो के घर से वापस आई,

तू आ गई, संतोष चाची बुला रही थीं अपने घर, बोली गुरप्रीत को भेज देना, सुखजीत बोली।

लेकिन क्यों, गुरप्रीत बोली।

ये जलेबियाँ देने आईं थीं, बोली बुआ ने कुछ सामान भेजा हैं, इतना मै क्या करूँगी, गुरप्रीत को भेजकर मंगवा लेना, सुखजीत ने गुरप्रीत से कहा।

ठीक है मां, मै चाची के घर हो कर आती हूँ, गुरप्रीत इतना कहकर संतोष के घर चली गई।

लेकिन सुखजीत, गुरप्रीत को सरबजीत के बारे मे बताना भूल गई।

गुरप्रीत, संतोष के घर पहुंची ही थी कि सरबजीत को देखकर थोड़ा झेंप गई और संतोष से बोली, अच्छा चाची जाती हूँ फिर कभी आऊँगीं,

 तभी सरबजीत बोल पड़ा, अरे आप! कल आपका परिचय लेना ही भूल गया।

 तभी संतोष बोली, ये ऐसी ही है।

गुरप्रीत थोड़ी देर ही संतोष के घर रूकी और सामान लेकर वापस आ गई।

इतनी जल्दी घर आने पर सुखजीत ने पूछा__

अरे, तू इतनी जल्दी आ गई,

 हां! मां, वहीं कल वाला लड़का था चाची के घर मे मिला, जिसनें मुझे डूबने से बचाया था, गुरप्रीत बोली।

हां, लाडो, मै बताना भूल गई, संतोष ने बताया था कि वो उसकी बुआ का लड़का हैं, सुखजीत बोली।

और मैं जल्दी इसलिए आ गई कि कल मैंने तुझसे वादा किया था कि अब से मै तुम्हारे कामों में हाथ बँटाया करूँगी, आज रात का खाना मुझे बनाने दो, गुरप्रीत बोली।

लेकिन लाडो, तू कैसे करेंगी, सुखजीत बोली।

मैं सब कर लूंगी, बस मुझे बताती रहना गुरप्रीत बोली।

और उस दिन रात का खाना गुरप्रीत ने बनाया और दोनों मां बाप को एक साथ बैठा कर गरम गरम रोटियाँ खिलाई।

आज तो खाने का मजा ही आ गया, सुखजीत बोली।

 हां, भाई, ये चने की दाल, आलू बैंगन की भुजिया, टमाटर की चटनी, क्या बात हैं, जीती रह पुत्तर! बलवंत बोला॥

थोड़ी देर बाद गुरप्रीत खाना खाने बैठी तो देखती हैं कि किसी मे नमक ज्यादा तो किसी मे मिर्च ज्यादा, उसकी आंखों मे आंसू आ गये___

आप लोग कितना झूठ बोलते हैं, खाना एक भी अच्छा नहीं बना, गुरप्रीत रोते हुए बोली।

वो क्या हैं ना पुत्तर तूने इतने प्यार से खाना बनाया था, कैसे तेरा दिल तोड़ सकते थे, बलवंत बोला।

अब तू भी जल्दी से खाना खा ले और रो मत, सुखजीत बोली।

गुरप्रीत रोते हुए बारी बारी से दोनों के गले लग गई और फिर खाना खाने बैठ गई।

गुरप्रीत का संतोष के घर जाना अब बहुत बढ़ गया था, शायद वो सरबजीत को पसंद करने लगी थी और सरबजीत भी गुरप्रीत से मिलने कभी कभी चला आता लेकिन ये सब सुखजीत को पसंद नहीं आ रहा था आखिर मां हैं, बेटी को गलत राह पर जाते हुए कैसे देख सकती हैं।

सरबजीत भी एकाध हफ्ते रहा फिर चला गया लेकिन पन्द्रह दिन भी नहीं बीते दोबारा आ पहुंचा, अब तो सुखजीत को ये बरदाश्त ना हुआ और उसने संतोष से कह ही दिया कि अपने भाई से कह दो कि गुरप्रीत से जरा दूरी बनाकर रहें, कुछ ऊंच नीच हो गई तो समाज मे दोनों परिवारों का नाम खराब होगा।

इस बात को संतोष भी सुखजीत से कहने का सोच रही थी, लेकिन संकोचवश कह नहीं पाई और सुखजीत से बोली____

भाभी! क्यों ना ऐसा करें, दोनों से पूछ लेते हैं ना कि दोनों एकदूसरे को अगर पसंद करते हैं तो हम उनका ब्याह करा देते हैं, वैसे भी गुरप्रीत ब्याह लायक हो ही गई हैं और सरबजीत भी एक दो साल ही बड़ा होगा, गुरप्रीत से, इससे बदनामी भी नहीं होगी और दोनों बच्चे भी खुश हो जाएंगे।

 सुखजीत को संतोष की सलाह अच्छी लगी, दोनों परिवारों के बीच सम्बन्ध की बात हुई, गुरप्रीत और सरबजीत से भी दोनों की पसंद पूछी गई, सबकी रजामंदी से रिश्ता पक्का हो गया और कुछ दिनों में ब्याह भी हो गया।

सरबजीत और गुरप्रीत अपनी शादीशुदा जिंदगी मे बहुत खुश थे, ब्याह को दो तीन महीने ही बीते थे कि गुजरात के १९६७ के दंगे शुरू हो गए, चारों ओर अफरातफरी का माहौल था, हर तरफ बस खौफ ही खौफ, हिन्दू मुसलमान एकदूसरे के खून के प्यासे थे, दहशत ही दहशत थी, लोग अपने घरों मे भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे थे, आपसी भाईचारे और दोस्ती को दागदार किया जा रहा था_____

  क्रमशः___


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