Sanjay Nayak Shilp

Romance

2.5  

Sanjay Nayak Shilp

Romance

एक मुठ्ठी दुआ, भाग 2

एक मुठ्ठी दुआ, भाग 2

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मैं हिंदुस्तानी महिलाओं की श्रृंगार की प्रिय पसन्द हूँ, कोई भी उत्सव हो, त्योंहार हो या कोई शादी समारोह , हर जगह मेरा बोलबाला रहता है, मेरे बिना हर रस्म अधूरी है, मैं हर उम्र की महिलाओं को लुभाती हूँ, जाने कितने ही गीत मुझे लेकर बनाये गए, गाये गए, दुल्हनों का तो खास श्रृंगार हूँ ही, लेकिन कंवारी ललनाओं का भी प्रेम हूँ मैं, मुझमें जाने कितनी ही नव यौवनाओं ने अपने प्रियतम का नाम छुपाकर लिखा है, और जब में रच जाती हूँ , तो दुनिया की नजरों से छुपाकर जाने कितनी ही बार मुझ में लिखकर छुपाये नाम को चूमा जाता है, मेरा तो रोज का अनुभव है ये, मैं हर जगह हूँ, सर्व व्यापी, मुझे अमीर गरीब का कोई भेदभाव नहीं।

यूँ तो मैं रोज किरदार देखती हूँ, अच्छे बुरे, दुखी सुखी सब, पर जो किरदार मैं आपके सामने लाना चाहती हूं वो दो तो आपके सामने ले आई, बाकी कहानी में जो भी शामिल होता जाएगा मैं आपसे जोड़ती चली जाऊंगी, खैर शाम ढल चुकी थी, 8 बज गए थे, शहर की सड़कें चकाचोंध रोशनी से नहाई हुई थीं। और सड़कों पर भागम भाग कायम थी।

इस वक़्त बहुत से जोड़े बाजार में थे एक जोड़ा और बैठा था एक रेस्तरां में, और बहुत सुंदर लग रहा था, परन्तु उनके चेहरे पर रौनक नहीं थी, जैसी अक्सर दो जवां साथियों के चेहरे और दिखाई देती है जब वो दोनों अकेले में इस वक़्त एक दूसरे के साथ बैठे हों, मैं अनुराधा नाम की उस लड़की के हाथों की शोभा बढ़ा रही थी, जिसमे उसने अपनी चुन्नी के पल्लू को कस कर पकड़ा हुआ था, या यूं कहुँ दबोचा हुआ था जैसे अपने दर्द का सारा बदला उस निरीह दुप्पट्टे के पल्लू से निकालना चाहती थी।

वेदना उन दोनों के चेहरे पर सपष्ट दिखाई दे रही थी, और उनके टेबल पर पड़ी कॉफी ठंडी हो चली थी, रेस्तरां का वातावरण अपनी रुमानियत पर था और, मद्धिम आवाज में संगीत की लहरियों पूरे रेस्तरां को अपने मे डुबाये हुए थी। जहां वो दोनों बैठे थे वो टेबल बाल्कनी के पास था, और वहाँ से बाहर की सड़क का नजारा ऐसा लग था जैसे, सैंकड़ों जुगनुओं को किसी दौड़ में लगा दिया गया हो

उनका हारना जीतना तय नहीं था, उन्हें बस दौड़ते रहना था, स्ट्रीट लाइट्स यूँ थी जैसे किसी फौज की प्लाटून को सावधान की मुद्रा में एक कतार में खड़ा कर दिया गया हो, जिन्हें सुबह तक हिलने की भी इजाजत नहीं थी।

“तो आखिर हमारी प्रेम कहानी का अंत हो ही गया, संजय तुमने सोच ही लिया है कि हम दोनों शादी नहीं कर सकते हैं,और तुम्हें अपने घरवालों की मर्जी से ही शादी करनी होगी।” उस लड़की ने कहा।

“अनु, तुम तो जानती हो मैं अपने माता पिता की इकलौती संतान हूँ, और हमारे जीवन पर प्रथम अधिकार उनका है, उन्होंने मेरे जीवन की हर इच्छा को पूरा किया है क्या मैं उनकी एक इच्छा को पूरा नहीं कर सकता, मैं सोचता था उनके खिलाफ जाकर भी तुमसे शादी कर लूंगा, पर जब से पापा को बिजनेस में घाटा हुआ, और उन्हें जो दिल का दौरा पड़ा गई उसने हमें हिलाकर रख दिया है, अनु मैं पापा के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।” संजय बोला।

“और मेरे बिना जीवन की कल्पना कर सकते हो , है ना संजय, पर शायद तुम भूल गए हो, हमने भी साथ जीने मरने की कस्में खाई हैं, और हम स्कूल टाइम से ही एक दूसरे को चाहते हैं, और ये बात हम दोनों के घरवालों को भी पता है, और तुम भी ये जानते हो कि मेरे दिल मे न तुम्हारे अलावा कोई आया है और न ही आ पायेगा, हां ये अलग बात है तुम किसी और के हो रहे हो।” अनु बोली।

“अनु, सच बात तो ये है कि मेरे जीवन में भी तुम्हारे अलावा न कोई चाहत जागी है, और न ही कभी जागेगी, लेकिन ये भी अपनी जगह सच है कि मैंने तुम्हें बहुत प्यार किया है, पर इस वक़्त मैं धर्मसंकट में हूँ, एक तरफ तुम हो जो मेरा प्यार है, और मेरी जिंदगी है, दूसरी और मेरे माता पिता हैं, जिनका मैं प्यार हूँ और जिंदगी हूँ, मैं जिसकी तरफ भी जाऊंगा किसी एक अपने एक प्यार को खो दूंगा, हर हाल में नुकसान मेरा ही होगा अनु, और मैं निर्णय ही नहीं कर पा रहा हूं, मेरा दिल कहता है सब कुछ छोड़ छाड़ कर तुम्हें अपना लूं और अपना प्यार पा लूं, और दिमाग कहता है कि मेरे माता पिता को दुख न दूँ, उनकी ख्वाहिशें पूरी करूँ, मगर मैं मजबूर हूँ, कामिनी मेरे पापा के बिजनेस पार्टनर खन्ना अंकल की बेटी है और मेरे पापा उनको हमारी शादी का वचन दे चुके हैं, और मुझे उनके वचन के आगे अपना वचन छोटा लग रहा है जो मैंने तुम्हें दिया है, हाँ मैं जानता हूँ मैं कभी कामिनी को दिल से नहीं अपना पाऊंगा वो शादी महज समझौता होगी, और कभी तुम्हें भुला नहीं पाऊंगा, हमेशा तुम्हे प्यार करता रहूंगा। तुम मुझे बेवफा, मतलबी डरपोक कुछ भी कह सकती हो।” संजय बोला।

अनु कुछ देर चुप रही और अपने दुपट्टे के किनारे से उलझी रही, उसका चेहरा झुका हुआ था और उसकी आँखें नम थी और जुबान खामोश थी, संजय उसे बहुत ही द्रवित नजरों से देख रहा था, उस टेबल का माहौल दर्द में डूब गया था, वो दोनों ही एक दूसरे के गले से लिपटकर रोना चाहते थे लेकिन वो सार्वजनिक जगह उन्हें ऐसा करने से रोक रही थी, दोनों के दिलों में कसक थी और एक दुजे को खोने का झंझावात चल रहा था। उन्हें पता चल गया था उन दोनों को इस मोड़ से जुदा होना ही था, उन्हें न चाहते हुए भी अपने प्यार को खोना पड़ रहा था , उस वक़्त दुनिया की हर चीज उन्हें बेगानी लग रही थी बस उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था, जैसे किसी ने उनका दिल निचोड़ दिया हो और उनका दिल किसी हवा निकले हुए गुब्बारे की तरह नुचा हुआ पड़ा हो।

वैटर आया वो उन्हें जानता था, ये टेबल उनकी परमानेंट टेबल थी जिस पर वो दोनों बैठा करते थे, वो कोई 3 साल से यहां रैगुलर आते रहते थे, वैटर ने आर्डर का पूछा तो उसे कोई जवाब नहीं मिला, उसने कहा बिल ला दूँ तो दोनों ने सहमति में गर्दन हिला दी, वैटर वहाँ से चला गया।

बिल पे करने के बाद अनु आगे आगे चल पड़ी, संजय ने जल्दी से आगे बढ़कर उसका हाथ थाम लिया, एक पल के लिए अनु ठिठकी और उसके साथ चल पड़ी, बाहर आकर दोनों संजय की गाड़ी में बैठ गए, संजय ने गाड़ी बढ़ा दी।

“मुझे भूल जाओगे क्या?.......” अनु ने होले से पूछा।

“अनु…..ऐसा मत कहो ना, लव यू अनु…….।” संजय ने तड़पकर कहा। अनु उसके गले से लिपट गई, संजय यंत्रवत गाड़ी चलाता रहा, अनु की भीगी आंखों ने संजय का शर्ट भिगो दिया, कुछ देर यूँही रहने के बाद अनु संयत हुई और अपनी सीट पर सही से बैठ गई, संजय का चेहरा कठोर हो गया, “अनु सुनो, मैं शादी के बाद भी तुम्हें ही चाहता रहूँगा, मैं कभी तुमसे मिलने आऊँ तो इनकार मत करना मिलने से।” संजय बोला।

“संजय , मैं शादी नहीं करूंगी , जिन्दगी भर तुम्हारा लौट आने का इंतजार करूंगी, और मैं तुम्हें मिलने से इनकार नहीं करूंगी, मगर कभी मेरा मन तुमसे मिलने को किया तो…….?”अनु बोली।

“तो तुम जब बुलाओगी दौड़ा चला आऊंगा, पर तुम मुझसे वादा करो तुम्हें मेरे प्यार की कसम तुम भी जल्दी शादी कर लोगी।” संजय ने बहुत ही तड़पकर गुजारिश की।

“मुझे घर ड्राप कर दो संजय……….मेरा मन ठीक नहीं हैं।” अनु ने संजय से कहा।

कार में खोमोशी छा गई,और मैं भी चुपचाप उनके दर्द को महसूस करते हुए दुखी हो चली थी।

संजय नायक 'शिल्प'

क्रमशः


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