अकेलेपन का कंधा.....
अकेलेपन का कंधा.....


हवा के समुद्र से भरी, सूर्य के तेज से घिरी,शीतल जल के तालाबों से सजी एक जगह जहां से कोसों दूर देखा भी जाए तो जनमानस का कोई चिह्न नहीं।शहर की दुनिया से एकदम अलग यहां का दृश्य मन को प्रफुल्लित करने वाला है। यहां की सुनसान अपने में खोई हुई सड़कें भी सुंदर एवं सजीला भाव प्रकट करती हैं। पेड़ो का अपनी धुन में झुकना झूमना एवं पत्तियों का गुनगुनाना अकेलेपन के मजे को और रोचक करता है। संसार के सभी सुख होने के कारण शहर के निवासी इस मनोरम एवं रमणीय स्थान को अद्वितीय एवं सूनसान जंगल कहते हैं।
सड़को के दोनों ओर पेड़ एक क्रिया में सजे हैं। उनके पीछे लगभग पचास एकड़ की जमीन है सारी ज़मीनें बिक गई है परंतु अकेलेपन के कारण लोग आज तक यहां अपना बसेरा बसाने में असमर्थ हैं।
यह अद्भुत दृश्य मेरे लिए एक सपने से कम नहीं है। मेरे अकेलेपन का साथी और मेरी उदासी का मरहम। शहर में पली, दुनिया के सभी सुख सुविधाओं में जकड़ी एक लड़की जिसके माता पिता ने उसकी झोली खुशियों से भर दी। भगवान का दिया सब कुछ था मेरे पास सिवाय एक साथी के जो मेरा अकेलापन दूर कर सके।सुबह पांच बजे के उठे मेरे मम्मी पापा के पास शायद इतना वक़्त नहीं की वे अपनी इकलौती बेटी के साथ कुछ समय बिता सकें।
अंधकार में डूबी मेरी जिंदगी का बस वह जंगल ही तो सहारा था।कई दिनों बाद जब मैं वहां गई तब वहां मुझे एक कागज़ दिखा जिस पर कुछ लिखा हुआ था पर वह हवा में कटी पतंग की तरह उड़ता ही जा रहा था आखिर कई कोशिशों के बाद वह मेरे हाथ में आ ही गया उसे पढ़कर मुझे ऐसा जैसे मेरी जिंदगी का अंधकार आनंदमय सवेरे में बदल गया। उसमें लिखा था--
"कभी भी जब अपनी किस्मत से हारना तब अपने उन दो सितारों को दोष न देना जिनके वज़ह से तुम इस दुनिया में हो।उन्होंने हमेशा तुमसे सबसे ज्यादा प्यार किया है बस कभी कभी तुम्हारी ही नज़र का धोखा होता है या उम्र का तेज की तुम उन्हें समझ नहीं पाते और अपने ही हाथ से अपने दोनों सितारों को अनुराग के आकाश से उतार कांटे की सेज पर पटक देते हो।"