Jwalant Desai

Romance

4.7  

Jwalant Desai

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एक लड़की भीगी भागी सी

एक लड़की भीगी भागी सी

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एक लड़की भीगी भागी सी..."पता नहीं क्यों समीर सुबह से यह गाना गुनगुना रहा था।शायद यह मौसम का असर था। सुबह से ही आकाश पर काले बादल मंडरा रहे थे।ऐसा लग रहा था जैसे कभी भी बरसात हो सकती है। लेकिन कभी-कभी जो सोचा जाता है वो होता नहीं है। पूरा आकाश काले बादलों से भरा होने के बावजूद मौसम की पहली बारिश अभी भी लोगों को तरसा रही थी। लेकिन बिना बारिश के ही मौसम बहुत खुशगवार हो गया था। और इस कुछ दिन और मौसम का मजा लेते हुए समीर आज अपनी बाइक निकालने की जगह पैदल ही अपने ऑफिस की ओर चल पड़ा था।वैसे भी समीर की ऑफिस उसके घर से कुछ खास दूर नहीं थी।

"एक लड़की भीगी भागी सी..."गुनगुनाते हुए समीर ने ऑफिस में कदम रखा।

"वाह भाई! अभी बारिश हुई नहीं और तुम भीगी भागी लड़की भी देख आए? कहां देखी?" यह त्रिवेदी था।

"वो और होंगे जिनको भीगी भागी लड़कियां दिखती होंगी। मैं तो जब भी बारिश में निकलता हूं मुझे भीगी गाय भैंस ही दिखती है!" समीर बोला।

"अपनी अपनी किस्मत है भाई!" कहकर त्रिवेदी चला गया।

समीर अपने डेस्क पर बैठा। पर पता नहीं क्यों आज उसका काम में मन नहीं लग रहा था। और काम में मन ना लगने का कारण वह भली भांति जानता था। वह कारण था काव्या!काव्या उसी के ऑफिस में काम करती थी और समीर की एक बहुत अच्छी मित्र भी थी। पर समीर तो अपने मन में कुछ और ही भावनाएं पाले बैठा था। मन ही मन समीर काव्या से प्यार करने लगा था लेकिन आज तक ये बात उससे कहने की को हिम्मत नहीं कर पाया था।

लेकिन आज का मौसम समीर के मन में उत्साह जगा रहा था।

"आज तो बता ही दूंगा।"उसने मन ही मन सोचा।

उसने चोर नजरों से काव्या की ओर देखा। कितनी सुंदर लग रही थी वह! कितनी भोली भाली थी!कितनी नाज़ुक सी और छुई मुई सी लगती थी!

"बॉस बुला रहे हैं" चपरासी का यह संदेश है सुनकर समीर बड़ी अनिच्छा से अपने सपनों की दुनिया से बाहर आया।

"आता हूं भाई।" बोलकर वो बॉस की केबिन की ओर बढ़ चला।

"समीर कल मैनेजमेंट के साथ मीटिंग है। तुम पिछले 3 सालों के सेल्स का प्रेजेंटेशन बनाना है। यह प्रेजेंटेशन मुझे आज ही चाहिए ताकि मैं आज उसे देख कर सुधार कर सकूं।"

"पर यह तो बहुत बड़ा काम है। 1 दिन में कैसे होगा?"

"देखो करने को आज ही है। चाहो तो तो काव्या की मदद ले लो"बॉस ने फरमान जारी कर दिया।समीर को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई थी। तुरंत वह काव्या की ओर गया और उसे काम समझाया।काम करते-करते शाम हो गई। फिर भी अभी काम थोड़ा बाकी था। एक-एक करके ऑफिस के कर्मचारी जाने लगे लेकिन समीर और काव्या नहीं जा पाए। पर इस चक्कर में समीर अपने दिल की बात भी नहीं कर पाया।अंत में एक ऐसा समय आया जब ऑफिस में उन दोनों के अलावा सिर्फ बॉस था। काम खत्म करते-करते रात के 9:00 बज चुके थे।

"अरे समीर देर काफी हो चुकी है। तुम एक काम करो काव्या को उसके घर छोड़ आओ।"बॉस ने कहा।

"ठीक है।"समीर को तो यही चाहिए था!

इसी दोनों ऑफिस कॉन्प्लेक्स से बाहर निकले, तो बाहर का नजारा देखकर स्तब्ध रह गए। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी। सड़क पर सन्नाटा छाया हुआ था।

"क्या करें?" समीर ने पूछा।

"देर बहुत हो चुकी है। अभी और रुकना संभव नहीं। चलो बारिश में ही चलते हैं।" काव्या ने कहा। और दोनों ने बारिश में कदम रख दिया। एक पल में ही बारिश ने दोनों को भिगो दिया।

"एक लड़की भीगी भागी सी..." समीर फिर गुनगुनाने लगा।

"ये क्या गाना गा रहे हो समीर!" काव्या ने ऐतराज जताया।

"अरे! ये गाना तो सवेरे से मेरी ज़ुबान पर आ रहा है जाने क्यों...वैसे भीगने के बाद तुम भी कमाल लग रही हो!"

"अच्छा! फ्लर्टिंग कर रहे हो!"काव्या ने लताड़ा, पर उसकी आवाज़ में गुस्सा नहीं था। बारिश अब थम चुकी थी। लगता था ये दोनों को भिगोने का कुदरत का कोई षड्यंत्र था!

"अब तो बोल ही दे बेटा, अब नहीं बोला तो कभी नहीं बोल पाएगा!"समीर ने मन ही मन सोचा।

"मुझे तुमसे कुछ कहना था काव्या!" वह बोला।

"अभी रास्ते में खड़े खड़े कहोगे क्या? जो कहना है कल ऑफिस में कह देना।"काव्या ने आंखें नाचा कर कहा।समझ तो वह चुकी थी कि समीर क्या कहना चाहता है लेकिन वह समीर को सताना चाहती थी।

"नहीं वह क्या है कि... मैं कुछ... बात यह है कि...." समीर बोलते हुए हकला गया।

"अरे इससे कुछ नहीं होगा। जो सुनना है हमसे सुनो जानेमन!!" अंधेरे में से एक आवाज आई।उन्होंने चौक कर उसको अंधेरे कोने की तरफ देखा। कहां है आदमी खड़े थे तो शक्ल से ही गुंडे नजर आ रहे थे।समीर सतर्क हो गया। उसे हालत सही नहीं नजर आ रहे थे।

"चलो यहां से" उसने धीरे से कहा।

"क्यों? तुम कुछ कहना चाहते थे ना?कह दो ना!"काव्या ने साफ इंकार कर दिया!

"तुम समझ नहीं रही हो! यहां खतरा है, ये लोग.."अभी समीर बोल ही रहा था कि वह तीनों एकदम नजदीक आ गए।समीर ने तीनों गुंडों की ओर देखा। जरूरत पड़ने पर क्या वो इन तीनों का मुकाबला कर सकता था? उसे इस बात की संभावना कम ही नजर आई। एक गुंडा होता तो वो भीड़ भी जाता, लेकिन एक साथ तीन,,,यह कोई फिल्म थोड़ी चल रही थी!और काव्या!वह तो कुछ समझने को तैयार ही नहीं थी!

खुद आगे बढ़ कर गुंडों से पूछ रही थी,"तो आप क्या सुनना चाहते थे भाई साहब?"

"भाई!"एक गुंडे ने ठहाका लगाया।"भाई बोलती है! अभी तेरी यह गलतफहमी दूर कर देते हैं!"

दूसरे गुंडे ने आगे बढ़कर काव्या का हाथ पकड़ लिया।तभी जैसे बिजली कौंधी।

क्या हुआ यह तो समीर के भी समझ में नहीं आया। पर काव्या ने उछल कर एक गुंडे के मुह पर लात मारी और दूसरे गुंडे की गर्दन पर वार किया। एक क्षण में दोनों गुंडे धराशाई होकर सड़क पर पड़े थे। तीसरा गुंडा फटी फटी आंखों से यह दृश्य देख रहा था।

"आ तू भी आ!" काव्या ने उसे ललकारा।लेकिन वो बिना पीछे देखे सिर पर पैर रखकर भाग खड़ा हुआ!समीर अचंभित दृष्टि से काव्या को देख रहा था।

काव्या मुस्कुराई, "कराटे सीखने के अपने फायदे है! अच्छा तुम कुछ कह रहे थे!"

"मैं...." आगे समीर कुछ बोल नहीं पाया।

काव्या ने एक गहरी सांस ली। फिर कहा,"ठीक है।लगता है मुझे ही कहना पड़ेगा। समीर मैं तुमसे प्यार करती हूं। क्या तुम भी मुझसे प्यार करते हो? और देखो मना मत करना वरना तुम जानते हो मैं क्या कर सकती हूं!"

समीर मुस्कुराया,"अब अपनी किस्मत से कौन लड़ सकता है!"कहकर उसने अपनी बाहें फैला दी।और वो भीगी भागी लड़की उसकी बाहों में आ गई!



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