Jwalant Desai

Thriller

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Jwalant Desai

Thriller

बरसात की रात

बरसात की रात

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मूसलाधार बारिश हो रही थी।सुजीत इस वक्त एक लोकल ट्रेन में बैठा हुआ था। ट्रेन मंथर गति से अपने गंतव्य स्थान की ओर बढ़ रही थी।

और उसका गंतव्य स्थान था धर्मागढ़ जो महानगरों के बीच बसा एक छोटा सा गांव था।

"कहां फस गया!" सुजीत बुदबुदाया और अपने आसपास देखा। रात के समय होने के कारण इस वक्त लोकल ट्रेन में भीड़ बिल्कुल नहीं थी। वैसे भी बारिश में कौन बाहर निकलता है!

सुजीत धर्मगढ़ में ठाकुर अजीत पाल के घर जा रहा था। ठाकुर अजीत पाल की बेटी स्वाति से उसकी शादी की बात चल रही थी। सुजीत तो आना ही नहीं चाहता था लेकिन जब उसने स्वाति का फोटो देखा तो विचार बदल दिया। सचमुच स्वाति बहुत सुंदर थी। और इसीलिए वह समय निकालकर धर्मागढ़ की ओर जा रहा था।

"धर्मागढ़ आ गया।" तभी एक ग्रामीण ने कहा और सुजीत अपने विचारों में से बाहर निकला।

धर्मागढ़ का रेलवे स्टेशन छोटा सा था। सुजीत ने देखा कि बारिश के कारण इक्का-दुक्का लोग ही प्लेटफार्म पर नजर आ रहे थे l फिर थोड़ी देर सुजीत बरसात को निहारता रहा।सुजीत धर्मगढ़ आ तो गया था पर अब उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आगे क्या किया जाए।

बारिश ने अब रौद्र रूप ले लिया था। उसके अंदाजे से कहीं ज्यादा रौद्र! और अब समय भी रात का हो चला था जिसके कारण कोई सवारी मिलने की संभावना भी कम ही थी।

"कहां जाना है आपको?"तभी एक अनजान आवाज आई। सुजीत ने पलट कर देखा। वह एक पच्चीस या छब्बीस साल का नौजवान था। न जाने कब वह सुजीत के पास आ गया उसको पता ही नहीं चला।

सुजीत हंसा,"ठाकुर अजीत पाल के यहां जाना है मुझे! लेकिन अभी सोच रहा हूं इस बारिश में कैसे जाऊं l"

युवक मुस्कुराया।"लगता है आज आपको रात प्लेटफार्म पर ही गुजारनी पड़ेगी।"

"नहीं। यहां तो ठीक से बैठने की भी जगह नहीं। मैं यहां नहीं रुक सकता। लेकिन ठाकुर साहब का घर भी यहां से 5 किलोमीटर दूर है। क्या करूं समझ में नहीं आता।"

"तो फिर एक उपाय है। मै एक शॉर्टकट जानता हूं जो काफी कम समय में आपको ठाकुर अजीत पाल के घर पहुंचा देगा। मैं सिर्फ ₹500 लूंगा।"

"तो रास्ता दिखाने का भी पैसा लोगे क्या?"

"बारिश नहीं होती तो मैं वैसे ही आपको ठाकुर अजीत पाल के घर छोड़ जाता। इस मूसलाधार बारिश में परेशान होने का कुछ तो फायदा होना चाहिए!"

"लेकिन मैं तुम पर भरोसा कैसे कर सकता हूं?"

नौजवान हंसा,"मैं आपको लुटेरा लगता हूं क्या? फिर भी नहीं आना तो मत आइए। वैसे एक बात बता दू की अगर मैं कोई गलत आदमी होता तो पैसे नहीं मांगता बल्कि यह कहता कि मुझे ठाकुर अजीत सिंह ने भेजा है आपको लेकर आने के लिए। अगर मैं ऐसा कहता तो क्या आप नहीं आते?"

सुजीत को बात ठीक लगी। उसने 500 का नोट युवक को थमाया और बोला,"ठीक है भाई रास्ता दिखा।"

युवक मुस्कुराया और उसने सुजीत को अपने पीछे आने का इशारा किया। सुजीत ने अपनी छतरी खोली और युवक से कहा,"आजा भाई तू भी छतरी के अंदर।"

युवक हंसा,"नहीं मुझे जरूरत नहीं। मुझे पानी से डर नहीं। क्योंकि मुझे तो बारिश में घूमने में मजा आता है।"युवक अनजाने रास्तों से आगे बढ़ रहा था। बारिश अभी भी चालू थी। एक तो रात का समय और ऊपर से पूरा आकाश काले बादलों से छाया हुआ था। इसके कारण इतना अंधेरा हो चुका था कि हाथ को हाथ तक नहीं दिखाई दे रहा था। लेकिन युवक बड़ी आसानी से अनजाने रास्तों से उसको अपनी मंजिल के करीब ले जा रहा था।

तभी अचानक युवक थमककर खड़ा हो गया।

"क्या हुआ?"सुजीत ने शंकित स्वर में पूछा।

" अभी थोड़ी देर में बारिश थम जाएगी।इसलिए बारिश में परेशान होने का कोई मतलब नहीं। सामने एक छोटा सा मंदिर है वहां जा कर बैठते है"

"लेकिन लग तो नहीं रहा कि बारिश थमेगी।"सुजीत बोला।

"हम गांव के लोग बादल की गरज से बता सकते है बारिश कितना चलेगी। आप बस दस मिनट इंतज़ार करो।" युवक ने कहा।सुजीत के पास वैसे भी युवक की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। वो युवक के पीछे पीछे मंदिर में प्रवेश कर गया।दस मिनट गुज़र गए। बारिश अभी भी उसी वेग में गिर रही थी। सुजीत ने युवक से कहा, "क्यों,दस मिनट तो गुज़र गए।अब क्या कहते हो?"

"हा! इस बार मेरा अंदाजा गलत साबित हुआ। लेकिन कोई बात नहीं। बड़े बड़े महारथी लोगो के अंदाजे गलत साबित हो जाते है।"

"जैसे?"

"जैसे...आप!"

"मतलब?"

युवक ने अजीब स्वर में कहा,"क्या आप भूतों पर विश्वास करते है?"

"ये कैसा सवाल है?'

"जवाब दीजिए!"

"नहीं। मैं भूतों पर विश्वास नहीं करता।"

"तो आपका अंदाजा गलत साबित हुआ! मैं एक भूत हूं!"

एक क्षण तो सुजीत कुछ नहीं बोला,फिर ठहाका मार कर हंस पड़ा।"अच्छा तो अब भूतों में भी बेरोजगारी हो गई है कि तुमको पैसा कमाने के लिए राहगीरों को रास्ता दिखाना पड़ रहा है!"

लेकिन युवक गंभीर था। उस ने कहा, "रास्ते में एक नदी आई थी देखी थी तुमने?ठाकुर अजीत पाल सिंह के आदमियों ने मुझे मार कर मेरी लाश इसी नदी में फेंक दी थी!क्योंकि मैं और उसकी बेटी स्वाति एक दूसरे से प्यार करते थे! जो कि ठाकुर बर्दाश्त नहीं कर पाया! लेकिन स्वाति अब किसी और कि भी नहीं हो सकती! इसलिए जहां से आए हो वहीं लौट जाओ!" कहते कहते युवक का स्वर हिंसक हो उठा।

सुजीत ने आश्चर्य से युवक की ओर देखा,"अच्छा तुम भूत हो! ओहो मैं तो डर गया! अपनी झेंप मिटाने के लिए तुम कुछ भी कहानी सुनाओगे और मैं विश्वास कर लूंगा?"

युवक उठकर सुजीत के पास आया और उसके एकदम नजदीक खड़ा हो गया।"तो आप नहीं मानते कि मैं भूत हूं। ठीक है, एक बार यही बात मेरी आंखों में आंखे डाल कर कहो!"

अब सुजीत को थोड़ी बेचैनी होने लगी थी। फिर भी उसने युवक कि आंखों में देख कर कहा,"नहीं। मैं नहीं मानता कि तुम भूत हो। और अगर हो तो साबित करके दिखाओ।"

युवक मुस्कुराया।"अभी मानोगे! जब तुम्हारी नजरो के सामने मैं गायब हो जाऊंगा।"अभी सुजीत कुछ कह पाए उससे पहले युवक गायब हो चुका था!

अब सुजीत को आतंक का एहसास हुआ! उसने पूरे मंदिर में युवक को ढूंढा पर वो कहीं नहीं मिला! फिर अचानक उसे ऐसा लगा जैसे उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा रहा हो और वो बेहोश हो गया!अचानक कोई चीखा!

जब सुजीत की आंख खुली तो वो चौंक गया। वो मंदिर में नहीं परन्तु किसी कमरे में था और बिस्तर पर लेटा हुआ था।

उसने देखा चीखने वाली एक लड़की थी जिसे वो देखते ही पहचान गया! वो स्वाति थी!तो क्या वो ठाकुर अजीत पाल सिंह के घर में था?पर कैसे? वो तो मंदिर में था!तभी लड़की की चीख सुनकर कुछ लोग वहां पहुंच गए।

"क्या हुआ बेटी?" एक आदमी ने पूछा।

"मैं गेस्ट रूम की सफाई करने आई तभी देखा की ये आदमी बिस्तर में सोया था!"

"कौन हो भाई? और यहां क्या कर रहे हो?"

सुजीत अब कुछ संभाल चुका था,उसने कहा "मैं बताता हूं लेकिन पहले आप यह बताइए कि क्या यह ठाकुर अजीत पाल सिंह का घर है?"

"हां,लेकिन तुम कौन हो? अरे कहीं तुम सुजीत तो नहीं?"आखिर एक बुज़ुर्ग ने मुझे पहचान ही लिया! शायद वह ठाकुर अजीत पाल सिंह था।

"ये एक अजीब कहानी है।"सुजितने कहा और पूरी बात बताता चला गया। यह सुनकर सारे लोग गंभीर हो गए।

फिर सुजीतने पूछा,"क्या यह बात सच है?"

उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया गया। बुज़ुर्ग ने कहा "आप आराम करिए!" और सारे लोग वहां से चले गए। अबस्वाति से मुलाकात करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं था।लेकिन एक दिन ठाकुर अजीत पाल सिंह एक घर में गुजारने के बाद जब सुजीत जा रहा था तो उसने ठाकुर अजीत सिंह से कहा"अगर यह बात सच है तो स्वाति की शादी का ख्याल कुछ समय के लिए तो दिमाग से निकाल कर दे!"ठाकुर ने कोई उत्तर नहीं दिया।

लेकिन सुजीत के जाने के कुछ समय बाद!स्वाति घर की छत पर एक नौजवान के साथ खड़ी थी।

दोनों मुस्कुरा रहे थे।

नौजवान भोला,"देखा सब कुछ कैसे अच्छे से निपट गया! तुम बेकार में इतना घबरा रही थी ना! सुजीत को यह शक भी नहीं हुआ कि सामने कोई भूत नहीं बल्कि विक्रम था! वही प्रेमी जिसकी उसने कहानी सुनाई थी!"

स्वाति मुस्कुराई," फर्क सिर्फ यही था कि विक्रम मारा नहीं गया था। इसको तुम ने बचा लिया था भैया!"

"अरे भला मैं अपनी बहन के प्यार को कैसे मिट जाने देता? जैसे मुझे अपने पिताजी के इरादों का पता चला मैंने अपने आदमियों को यह कांड करने से मना कर दिया। विक्रम को शेयर भेज दिया गया और पिताजी को यह बताया गया कि विक्रम को मार कर उसकी लाश नदी में फेंक दी गई है!"

"लेकिन यह शादी करने वालों का उपाय भी अपने खूब निकाला भैया!"

"इसमें कमाल मेरा नहीं बल्कि विक्रम का है। विक्रम बहुत अच्छा हिप्नोटिस्ट है। उस दिन मंदिर में भी विक्रम ने सुजीत को हिप्नोटाइज कर दिया था इस वजह से विक्रम सामने होते हुए भी उसको नजर नहीं आया। और बेहोश कर देने वाली जड़ी बूटियों वह मैंने पहले से जलाई थी जिस का असरहोते ही वह बेहोश हो गया l और उसने समझा यह होगा कि वह भूत की वजह से बेहोश हुआ है!"

"जब सवेरे अपने घर में उसकी आंख खुली तब तो वह आश्चर्यचकित रह गया था"स्वाति हंसी।

"3 लोगों के लिए एक आदमी को उठाकर चुपचाप घर में ले आना क्या बड़ी बात है?"

"तो अब क्या होगा"

"यह कहानी पूरे गांव में फैल चुकी है । इस गांव में से तो कोई तुमसे शादी करने से रहा! कोई बाहर से आएगा तो फिर कोई और नया नाटक करेंगे। तब तक मैं तुम्हारी शादी विक्रम से कराने का कुछ प्रबंध तो कर ही लूंगा!"और दोनों भाई बहन खुल कर हंस पड़े!



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