एक लड़की और 23 दरिंदे
एक लड़की और 23 दरिंदे


वास्तविक घटना : एक लड़की और 23 दरिंदे
12 अप्रैल को माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी के हवाई अड्डे पर उतरते हैं । वाराणसी में उन्हें बहुत से उद्घाटन और शिलान्यास के कार्यक्रम करने थे ।
आखिर वाराणसी से संसद सदस्य भी हैं वे । इसलिए उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र से विशेष लगाव भी है । उतरते ही वे वाराणसी के संभागीय आयुक्त , जिला मजिस्ट्रेट एवं वाराणसी के पुलिस कमिश्नर से पूछते हैं
"अब उस लड़की की हालत कैसी है" ?
प्रधानमंत्री जी के इस प्रश्न पर तीनों आला अधिकारियों के हाथ पांव फूल जाते हैं । उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक प्रधानमंत्री किसी लड़की की तबीयत के बारे में इस प्रकार अप्रत्याशित रूप से पूछ लेंगे ? वे आपस में एक दूसरे का मुंह देखने लगे तब प्रधानमंत्री जी ने कहा
"मैं उस लड़की की बात कर रहा हूं जिसके साथ 23 लड़कों ने कई दिनों तक बलात्कार किया था" ।
अब जाकर संभागीय आयुक्त और कलेक्टर को थोड़ी राहत मिली क्योंकि मामला पुलिस विभाग का था और इसके लिए पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल जिम्मेदार था और वह वहीं पर उपस्थित भी था ।
मोहित अग्रवाल ने जैसे तैसे प्रधानमंत्री जी को जवाब दिया क्योंकि उसे भी तब तक इस घटना के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं था । यह घटना हमारी पुलिस की कार्य प्रणाली और उसकी संवेदना का काला अध्याय दिखाती है । पुलिस भी कहां की ? उन आदित्यनाथ योगी की जिसकी कानून और व्यवस्था की मिसालें पूरे देश में दी जाती हैं आजकल ।
लेकिन पुलिस का यह हाल देखकर लग रहा है कि हकीकत कुछ और ही है ।
जैसे ही प्रधानमंत्री जी ने उस घटना की जानकारी ली तो वाराणसी का प्रशासन और पुलिस विभाग दोनों सुपर एक्टिव मोड़ में आ गए । आखिर मामला प्रधानमंत्री जी के संज्ञान में आ गया था ।
यह इस देश की विडंबना है कि जब तक मुख्यमंत्री या कोई बड़ा नेता, अधिकारी अथवा मीडिया किसी मुद्दे को नहीं उछाले तब तक सरकारी विभाग सोए पड़े रहते हैं । वैसे भी पुलिस की इमेज जनता में कैसी है हम सब अच्छी तरह से जानते हैं । अब लग रहा है कि पुलिस पूरे देश की एक जैसी ही है । असंवेदनशील , लापरवाह और अनुत्तरदायी ।
आइए अब इस घटना की पूरी जानकारी लेते हैं ।
29 मार्च को एक ड्राइवर की बेटी जो कॉलेज में पढ़ती थी और जो मात्र 19 वर्ष की थी , कुछ किताबें बाजार से लेने के लिए घर से बाहर निकलती है ।
रास्ते में उसे उसकी कॉलेज का दोस्त राज विश्वकर्मा मिल जाता है । वह उसे किताबें दिलवाने का कहकर अपनी बाइक पर बैठा लेता है और वाराणसी के कैफे कॉन्टीनेन्टल में ले आता है ।
दरअसल राज विश्वकर्मा नशीले पदार्थों का सेवन करने का अभ्यस्त है । दारू , ड्रग्स , नॉन वेज और लड़की इन सबके लिए पैसे की जरूरत होती है । राज विश्वकर्मा यह सब करता था । लेकिन पैसा कहां से आए ? राज विश्वकर्मा को पैसा चाहिए पर दे कौन ?
कैफ़े कॉन्टीनेन्टल के मालिक अनमोल गुप्ता को राज विश्वकर्मा जैसे लड़के चाहिए जिन्हें पैसे की जरूरत है । ऐसे लड़कों से वह अपना धंधा चला सके । दोनों एक दूसरे की जरूरत पूरा कर देते हैं ।
राज विश्वकर्मा पर जब उधारी बहुत चढ़ जाती हैं तो अनमोल गुप्ता उससे अपने उधार के पैसे मांगता है । पर उसके पास पैसे हैं कहां ?
तब अनमोल गुप्ता उससे एक डील करता है कि वह उसके कैफे का एजेंट बन जाए । अनमोल गुप्ता ने ऐसे 15 एजेंट बना रखे हैं । उसे एजेंट के रूप में तीन काम करने होंगे
1. ड्रग्स के लिए नये ग्राहक बनाने होंगे
2. ड्रग्स की सप्लाई भी करनी होगी
3. लड़कियों से दोस्ती करके उन्हें ड्रग्स की आदी बनाना होगा । उनके न्यूड वीडियो बनाने होंगे ।
इन सब कामों के लिए उसे पैसा भी मिलेगा ।
अनमोल गुप्ता कैफे की आड़ में ड्रग्स और लड़कियों के न्यूड फोटो का धंधा करता था । लड़कियों से "धंधा" भी करवाता था वह । न्यूड फोटो और वीडियो को अपने "एप" में दिखाने का भी काम करता था जिसके लिए लोगों को मेम्बर बनाता था और मोटी कमाई करता था ।
इसके लिए कुछ लड़कियां अपना स्वयं का न्यूड फोटो और वीडियो बनाकर उसे भेज देती थीं और उसके बदले में पैसा भी लेती थीं और कुछ लड़कियों को ड्रग्स देकर उन्हें बेहोश कर दिया जाता था । उनकी बेहोशी की हालत में न्यूड फोटो लेकर और न्यूड वीडियो बनाकर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता था ।
अनमोल गुप्ता और उसका बाप शरद गुप्ता यह काम बरसों से कर रहे थे । लेकिन या तो पुलिस इतनी बेखबर है कि उसे कुछ पता नहीं होता है या फिर पुलिस की हफ्ता वसूली के चलते वह ऐसे धंधे चलने देती है । अब ये योगी आदित्यनाथ जी के लिए एक उदाहरण हो सकता है कि उनके राज्य में ऐसे पुलिस वालों के साथ क्या सलूक किया जाए ? क्या ऐसे वर्दी वाले अपराधियों का एनकाउंटर नहीं हो सकता है ? ऐसे लोगों का एनकाउंटर होना ज्यादा जरूरी है जिससे बाकी लोगों को सबक़ मिल जाए ।
तो राज विश्वकर्मा ने अपनी उधारी चुकाने के लिए उस मासूम लड़की को हथियार बनाया । उसने उसकी कॉफी में ड्रग्स मिला दिया जिससे वह बेहोश हो गई और उसने उसका फोटो शूट किया फिर उसके साथ बलात्कार किया ।
जब वह अपना "काम" खत्म कर कमरे से बाहर आया तब उसके दो दोस्त कमरे के बाहर ही खड़े थे । उसने उन्हें भी "काम" करने के लिए अंदर भेज दिया ।
इसके बाद उस लड़की को नोंचने का जो सिलसिला 29 मार्च को शुरू हुआ था वह 4 अप्रैल तक बदस्तूर चलता रहा । उसे बार बार ड्रग्स दिया जाता और उसके साथ बारी बारी से बलात्कार किया जाता रहा । पूरे वाराणसी शहर में अलग अलग इलाकों में अलग अलग होटल रेस्टोरेंट में यह काम होता रहा ।
एक एक लड़के ने न जाने कितनी बार बलात्कार किया था उसके साथ ।
वह लड़की जब भी होश में आती थी , तब वह अपने साथ होने वाले दुष्कृत्य को सहन नहीं कर पाती थी और दर्द से जोर जोर से चीखतीं चिल्लाती थी । लेकिन उन नृशंस , बर्बर दरिंदों के पाषाण हृदय पर उसकी चीखों का कुछ असर नहीं होता था । बल्कि वे उसकी चीखों से और अधिक आनंदित होते थे ।
इधर पुलिस का हाल सुनिए । 29 मार्च को जब रात के 9-10 बजे तक वह लड़की घर नहीं आई तब लड़की का पिता पुलिस स्टेशन में FIR लिखाने गया । पुलिस ने रिपोर्ट तो लिख ली लेकिन आंख कान दिमाग सब बंद कर सो गई । पुलिस यही करती है । राज्य कोई सा हो । उत्तर प्रदेश की पुलिस कोई अलग थोड़े ना हैं । बेचारे माता पिता उसे स्वयं ढूंढते रहे लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ धरे बैठी रही ।
4 अप्रैल को मुंह अंधेरे एक सड़क के किनारे वह लड़की पड़ी हुई मिली तो पुलिस उसे उठाकर थाने में ले आई । इतना बड़ा काम कर दिया पुलिस ने , यह क्या कम है ? वह उसे कुत्तों को नोंचने ( वैसे सात दिनों से दो पैर वाले कुत्ते उसे नोंच ही तो रहे थे ) के लिए छोड़ सकती थी । अब चार पैर वाले कुत्ते भी नोंच लेते तो क्या फर्क पड़ जाता ? उनका भी पेट भर जाता । लेकिन यहां पर पुलिस ने अपना "मानवीय" चेहरा दिखला दिया था ।
पुलिस स्टेशन में लड़की के मां बाप को बुलवा लिया गया । उन्होंने पहचान कर बता दिया कि लड़की उन्हीं की बेटी है । लड़की उस समय बेहोश थी वह भी ड्रग्स के कारण ।
अब यहां पर पुलिस की भूमिका पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है । क्या बेहोशी की हालत का पुलिस को अनुमान लगा कर उसका मेडिकल टेस्ट नहीं करवाना चाहिए था कि वह आखिर बेहोश क्यों है ?
दूसरी बात यह है कि जब एक जवान लड़की सात दिनों बाद सड़क के किनारे पड़ी मिली थी तो क्या उसके गुप्तांगों की जांच नहीं होनी चाहिए थी ? कहीं उसके साथ बलात्कार तो नहीं हुआ है ? उसका DNA नहीं होना चाहिए था ?
लेकिन पुलिस ने कुछ नहीं किया बल्कि मां बाप को कह दिया कि फटाफट यहां से इसे ले जाइए । बेचारे मां बाप उसे ले आए ।
घर पर वह दो दिन तक बेहोश रही थी ।
तीसरे दिन जब उसे होश आया तो वह अपने बाप की शक्ल देखकर डर गई । घरवाले कुछ समझ पाते इतने में उसका भाई आया तो वह उसे भी देखकर जोर से चीख पड़ी । उसके बाद तो वह मर्द का चेहरा देखते ही जोर से चीख पड़ती थी और बेहोश हो जाती थी ।
उसकी मां उसकी हालत समझ गई और उसने समस्त मर्दों को उस कमरे से बाहर निकाल दिया तब जाकर वह नॉर्मल हो पाई ।
अब उसकी मां ने उससे पूछना शुरू किया तो वह रोने लगी और रोते रोते अपनी आपबीती सुनाने लगी ।
कहने लगी कि जब वह होश में आती तो कोई न कोई उसे नोंच रहा होता था । उसे कुछ खाने को दिया जाता था उसमें ड्रग्स मिला होता था जिससे वह बेहोश हो जाती थी । उसके बाद फिर कोई उसे रोंद देता था ।
घटना सुनकर मां का दिल दहल गया । उसने अपने पति से सारी बात कही तो बेचारा ड्राइवर पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने चला गया । लड़की ने 12 लड़कों के नाम बता दिए थे जिन्हें वह जानती थी ।
इनमें अनमोल गुप्ता , राज विश्वकर्मा , सुहैल , साजिद , आयुष, तनवीर, इमरान, दानिश, शब्बीर, अमन खां, राज खां , जाहिर खां वगैरह थे ।
ये उसके कॉलेज के साथी थे ।
उसके अलावा उसने कहा कि 11 लोगों ने भी उसके साथ बलात्कार किया था , उनके नाम वह नहीं जानती है । बेहोशी की हालत में और कितने लोगों ने उसके साथ बलात्कार किया होगा , इसका अनुमान नहीं है । निश्चित रूप से यह संख्या 23 से अधिक ही होगी ।
लेकिन पुलिस का काम अब भी वैसा ही लापरवाही वाला , अनुत्तरदायी और आपराधिक ही रहा, जैसा पहले था । उसने 6 लड़के गिरफ्तार कर लिए लेकिन न तो उनकी शिनाख्त करवाई । न उनका मेडिकल करवाया और न उनका DNA करवाया ।
इसका फायदा उनका वकील उठाएगा और उन्हें बाइज्जत बरी करवा देगा ।
इसके लिए क्या इन पुलिस वालों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए ?
अब जबकि प्रधानमंत्री जी ने इस घटना के बारे में जानकारी ली है तो अब पुलिस और प्रशासन की नींद टूटी है । अब तक 12-13 लोग गिरफ्तार हो गये हैं । उनका मेडिकल भी हो गया है । लेकिन घटना के दस दिन बाद मेडिकल होने का कोई मतलब नहीं है । उससे कुछ सिद्ध नहीं होगा । क्या ऐसे लापरवाह पुलिस अधिकारी और कर्मचारियों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही नहीं होनी चाहिए ? क्या उन्होंने अपराधियों को बचाने में मदद नहीं की थी ? मेरी राय में तो इनका एनकाउंटर होना चाहिए जिससे भविष्य में कोई पुलिस वाला एसा कृत्य नहीं करे ।
अब आते हैं लड़कियों पर । इन लड़कों के मोबाइल में 540 लड़कियों के न्यूड फोटो और वीडियो मिले हैं जिन्हें लोगों को दिखा दिखा कर पैसे लिए जाते थे और इनमें से कुछ लड़कियों से सेक्स रैकेट भी चलाया जा रहा था ।
इनमें लगभग 100 लड़कियों ने स्वेच्छा से न्यूड फोटो शूट किया था और कपड़े उतारते हुए अपने वीडियो बनाकर अनमोल गुप्ता को भेजे थे । इसके लिए उन्होंने पैसे लिए या नहीं , यह जांच का विषय है । यदि इन्होंने पैसे लिए तो क्या यह वेश्यावृत्ति में नहीं आता है ? यदि नहीं तो इसे भी वेश्यावृत्ति में शामिल करने के लिए कानून में बदलाव करना चाहिए ।
हमें सोचना चाहिए कि हम कहां जा रहे हैं ? हमारी बेटियां स्वेच्छा से न्यूड फोटो शूट करके उसे बाजार में बेच रहीं हैं । क्या इसे आधुनिकता कहा जाए या स्वच्छंदता या कुछ और ? उनके मां बाप क्या कर रहे हैं ? अपनी बेटियों पर ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं ? इस पतन के लिए कौन जिम्मेदार हैं ?
बेटे कहां जा रहे हैं , क्या कर रहे हैं ? किसके साथ रह रहे हैं ? इस पर कौन ध्यान देगा ? उनका भविष्य कौन बर्बाद कर रहा है ? मां बाप को उन पर भी ध्यान देना होगा अन्यथा वे ड्रग्स और सेक्स के रेकेट में फंस जाएंगे ।
और अंत में न्यायपालिका के लिए दो शब्द ! वैसे तो मेरा पहले भी न्यायपालिका में ज्यादा विश्वास नहीं था लेकिन जब से जज के घर में नोटों का पहाड़ मिला है तब से तो विश्वास बिल्कुल ही उठ गया है ।
जब अनमोल गुप्ता और उसके बाप शरद गुप्ता पर एक मुकदमा पहले ही चल रहा था तो हाईकोर्ट ने उन्हें जमानत पर क्यों छोड़ा ? क्या वह जज जिसने इन्हें जमानत दी, उसे इस जघन्य अपराध के लिए दोषी नहीं माना जाना चाहिए ?
सब लोग मिलकर विचार करें । और विचार ही नहीं करें अपितु अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाएं । भ्रष्ट पुलिस वालों के विरुद्ध , भ्रष्ट जजों के विरूद्ध और भ्रष्ट नेताओं के विरुद्ध ।
अपने जवान होते बेटे और बेटियों पर विशेष ध्यान दें । उनके मोबाइल को खंगालते रहें जिससे उनकी वास्तविक स्थिति ज्ञात होती रहे और ऐसी घटनाओं से बचा जा सके ।
आप अपने विचार कॉमेंट करके बता सकते हैं ।
श्री हरि
15.4.2025