एक कप वाली दोस्ती
एक कप वाली दोस्ती
बरसात की बात है |मेरा उसके साथ बैठने का बड़ा मन था।उसके साथ बैठ के अपनी बातें करनी की बड़ी तलब सी जागी थी उस दिन।मुझे ना बारिश सच में बहुत पसंद है पर उस दिन की बारिश मानो जैसे वो मेरे पूरे ख़्यालों को अपनी बूँदो से गिला कर उसे बाँह रही हो और मुझे रोक रही हो ।पर मेरा मन तो बन चुका था उससे मिलने का।मैंने कुछ नही सोचा छाता लिया चप्पल पहनी और निकल पड़ी ।बरसात से लड़ते भीगते मैं अपने घर के पास के नुक्कड़ पर जाकर बैठ गयी |बस ऑर्डर दिया और उसका इंतेज़ार करने लगी।मुझे मालूम था कि उसे आने में वक़्त लगेगा।उन इंतेज़ार की घड़ियों में मैंने सोच लिया था कि मुझे उसके साथ बैठ के क्या क्या बातें करनी है।पर मुझे पता था कि वो ग़ुस्से से उबल रही होगी।उसका ग़ुस्से से उबलना भी जायज़ था भई बिना बताये अचानक से मिलने की चाह कर लेना और वो मना भी नही करती हर समय बस हाज़िर हो जाती है।और भले ग़ुस्से में ही गरम सही , सुकून तो देती है ।ऐसे ही इंतेज़ार का वक़्त बीत गया और ठीक पंद्रह मिनट बाद वो आइ।ग़ुस्से से गरम पर सुकून से भरी ।फिर क्या मैंने उससे हाथ मिलाया उसको उठाया और उसकी चुस्कियों के साथ ही मेरी बातें शुरू हो गयी और मुझे पता ही नही चला कि एक कप चाय कब मेरी इतनी अच्छी दोस्त बन गई।