एक इतवार और सब्जी बाज़ार

एक इतवार और सब्जी बाज़ार

3 mins
14.6K


 

विवाह के बाद से हर  इतवार बाज़ार जाना और थैले भर भर कर सब्जियां लाना मेरे जीवन की एक स्थायी ,अटल ,अनचाही और अनिवार्य (दु:)घटना बन गयी है भले ही सप्ताह के सातों दिन ताजी सब्जियां मिल जाती हों  , फ़िर भी , अपनी अर्धांगिनी को , आगे के हफ़्ते में अपनी रसोई में पड़ने वाले दुर्भिक्ष की आशंका से निश्चिन्त रखने , मैं हर रविवार बिला-नागा अपने हथियार  (थैले) उठाये रणक्षेत्र (बाज़ार) को चल पड़ता हूं ।

बाज़ार में ताज़ी सब्जियां , खासकर मौसमी फ़ल एवं सब्जियों की बहार मुझे सदा से ही  लुभाती रही है । किसानों एवं विक्रेताओं के अपने हरित

खज़ाने पर रह रह कर फ़िरते हाथों का दुलार ,

उन्हें ताज़ादम रखने के लिये किये शीतल जल की बौछार ,

इनके गुणों का उच्च-स्वर प्रचार ,

अपने माल का वाज़िब दाम पाने की मासूम चाहत

और ग्राहकों से इसरार ,

ये सब आपको निसर्ग के इनाम-ओ-इकराम से मालामाल कर देने की कुव्वत रखती है । पर यहां रुपल्ली- दो रुपल्ली के लिये होने वाली घिसघिस, सौदेबाजी कभी कभी खटक जाती है । इन सौदेबाजों की फ़ितरत भी अजीब होती है , 10 रु किलो टमाटर मिलें या 10 रु में दो किलो , ये कभी भी खुद को सौदेबाजी के अपने अधिकार से वंचित नहीं रखना चाह्ते । 25 बरस हो गये हैं मुझे भी बाज़ार करते ,लेकिन 2-2 रु बचाने वाले इन शूरवीरों में से किसी को भी मैंने अम्बानी बनते नहीं देखा ,उलटे वक्त के गुज़रने के साथ उनके चेहरे की मुर्दनगी और उस पर और सस्ते की चाह दर्शाती याचना की रेखाओं को और गहरे होते पाया ।

रुपये दो रुपये कम करा कर खुद को स्मार्ट समझने का भ्रम पालने वाले , आखिरकार बदले में पाते क्या हैं ? एक बनावटी खुशी, दिमाग में निरन्तर बढ़ती लालच की बेल ,जो अन्ततः इनकी पूरी विचार श्रृंखला को ही संदूषित कर देती है । ऐसी छोटी सौदेबाजी से बच पायें तो क्रेता – विक्रेता के बीच एक मृदुल हंसी के रिश्ते बन जाते हैं । मैं कई ऐसे किसानों – व्यापारियों को बरसों से देखता आया हूं ,कुछ के नाम मालूम हैं बहुतों के नहीं , पर मैं उन सब के लिये भइया हूं । किसी रविवार ना दिखूं तो , अगले इतवार सभी पूछेंगे ,

कैसे हैं भइया ? पिछले बार दिखे नहीं , सब कुशल तो है ?

ये निश्छल अपनापन कि

आज आपको कछु ना देंगे , आज आपके लायक सब्जी नहीं

 

तो कभी कहेंगे , भइया इ लेई जाओ , अपने खेत की है

 

पहली तुड़ाई की भिण्डी है , आपके इन्तज़ार में किसी को बेची नहीं

 

एक गुड़ बेचने वाला हरदम आग्रह करता है , भइया ना खरीदो ,थोड़ा चख लो , शगुन कर दो ,

 

सोचता हूं , इन सब्जी वालों से सौदेबाज़ी न कर , उन्हें वाज़िब दाम देकर

मैं वो सब पा जाता हूं , जो कहीं ज्यादा गहरा , ज्यादा प्रगाढ़ है

 

एक अपनापन ,

उनकी आखों में अपने प्रति आदर,

अच्छी क्वालिटी , सही तौल , सही सलाह ,

और एक अबोला शुभचिन्तन !!

 

इतवार का सब्जी बाज़ार , मैं कभी घाटे में नहीं रहा !!!!

                    --------------रविकांत राऊत

 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational