एक दिन सबका
एक दिन सबका


वैभव सहर का सबसे अमीर आदमी है ,वो फलों का बिजनेस करता है और उसके कंपनी के फल और फलों से बने प्रोडक्ट देश _विदेश तक जाती है ,वैभव अपने जिंदगी में बहुत से कठनाइयों को झेला है ,आज वो आसमान में चमकता सितारा बन चुका है ।
वैभव अपने मां और पिता की वर्षी के दिन मंदिर में दान और पुण्य करने गया ,मंदिर की पूजा खत्म होने के बाद ,वैभव सीढ़ी से उतर ही रहा था की उसकी नजर वहीं रोती हुई एक महिला पर पड़ी ,वो उस महिला के पास गया और बोला "आप रो क्यों रही है आपको क्या तकलीफ है मुझे बताइए मैं हर संभवआपकी मदद करूंगा।" ,महिला पीछे मुड़ी और वैभव का पैर पकड़ रोने लगी वैभव उस है और उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है ,
दर असल ये औरत कोई और नहीं बल्कि वैभव की चाची रंजू है ,ये वही रंजू है जो रानियों की तरह जिंदगी जिया करती थी ,खुद के सुख के आगे वो कभी किसी का भला नही सोचती ,जब वैभव के माता _पिता सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए ,तब से वैभव को वो हमेशा ताना दिया करती की तेरे मां बाप के कैसे कर्म होंगे जो भगवान ने ऐसा सजा दिया ,अब उसे कौन समझाए की दुख अच्छे लोगो के जीवन में भी आती है कोई हमेशा खुश या हमेशा दुखी नही रहता।
अपनी चाची की बातों और व्यवहार से दुखी हो वो शहर चला आया ,वहां उसने फलों की ठेला लगानी शुरू की और देखते ही देखते करोड़पति बन गया।
वैभव अपनी चाची को ,कहता है "चाची आपकी ऐसी हालत कैसे?" ,वो बोली "मैने तुम्हारे साथ जो दुर्व्यवहार किया बस उसी की सजा है मुझे माफ कर दो,आज मेरे अपने बच्चे ही मुझे बोझ समझ निकाल दिया अब मेरे लिए इस दुनिया में कोई नहीं।"
वैभव चाची का हाथ पकड़ गाड़ी में बैठता है और अपने आलीशान घर में ले जाता है तभी दौड़ी _दौड़ी वैभव की पत्नी आती है ,वैभव अपनी चाची से कहता है "ये सब कुछ आपका है ,मां की जगह आप ही तो हो हमे आशीर्वाद देने के लिए।" ,और अपनी चाची का हाथ पकड़ घर के अंदर ले जता है ,यह सब देख उसकी चाची के आंसु रुक नही पा रहे थे ,और अपने किए पे शर्मिंदा हो रही थी।