समझो सबके दर्द को
समझो सबके दर्द को


उपहास उड़ाओ न किसी का
बता के उसके कर्म को
आंसु तो आंसु होते है
समझो सब के दर्द को
कोई महलों में सोता है
कोई सड़क पे बैठा मजबूर है
कोई राजा बना बैठा गद्दी पे
कोई दिन भर थकता मजदूर है
कोई अहंकारी मनुष्य है जीवन में
तो कोई दानवीर एक फरिश्ता है।
इंसान बने हम मनुष्य बने हम
त्यागे व्यर्थ के शर्म को
आंसु तो आंसु होते है
समझो सब के दर्द को
किस्मत और समय सबका
होता नही है एक समान
बेबस जो है समय का मारा
करे न कभी उनका अपमान
जो बुरे समय के हालातों से लड़ता है
वक्त एक दिन उनका भी बदलता है
मदद करे हम एक दूजे का
मान के अपने धर्म को
आंसू तो आंसू होते हैं
समझो सब के दर्द को।