एक बार फिर से आ जाओ

एक बार फिर से आ जाओ

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आज अरसे बाद फिर से एक बार खुद को वही छोड़ आई मैं जहाँ तुम्हारे वजूद की हलकी सी खुशबू पाई थी मैंने। आज परिमल की पुरानी यादों ने फिर से मन पे डेरा जमा दिया और मैं चल पड़ी यादों के सफर में। 

आज भी अच्छे से याद है वो पल जब पहेली बार तुमसे नज़रे मिली थी और तु धीरे से मुस्कुराया था। उस वक़्त ना तुम जानते थे और ना ही मैं जानती थी की ज़िन्दगी का सफर हमे साथ मिलकर तय करना है।  तेरी आँखों में अजीब सी कशिश थी। तुम कुछ भी नहीं बोल रहे थे पर तुम्हारी आँखे बिना बोले ही सब बयाँ कर रही थी, पर नादाँ थी जो तेरे प्यार को समज नहीं पा रही थी। हमारे बिच ना कभी कोई बाते हुई ना ही कोई मुलाक़ातें हुई। फिर भी कुछ तो ऐसा हुआ था जो तु मेरी रूह में समा गया था। प्यार कैसा होता है नहीं जानती थी पर कुछ तो था जिसे मैं समज नहीं पा रही थी। धीरे धीरे दूर होते हुए भी तू मेरे पास रहने लगा था और चाहकर भी अपनी ज़िन्दगी से तुम्हे कभी दूर नहीं कर पाई थी। हर पल में सिर्फ तेरा ही ख्याल,तेरी ही बाते, अच्छा लगता था। तेरी मासूम सी हंसी को अकेले में याद करके अजीब सा सुकून मिलता था। अकेले में खुद से बाते करती थी। परिमल की सरिता और ये सोचते ही खुश हो जाती थी। 

धीरे धीरे वक़्त अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रहा था और साथ में खुद से अन्ज़ान कोई ख्वाब मेरी पलकों पे पलप रहा था। तुमसे बाते करना अच्छा लगता था, पर कैसे करू ये समझ नहीं आ रहा था। देखते ही देखते मेरी कॉलेज की पढाई भी ख़तम हो गई। बहुत सारे सपने थे इन आँखों में, कुछ बनना था। अपनी खुद की पहेचान बनानी थी। पर जैसे ही कॉलेज ख़तम हुआ पापा ने आगे की पढाई के लिए साफ इनकार कर दिया और मेरे लिए रिश्ते आने शुरू हो गए। दिल को पूरा यकीं था की अगर यही प्यार है तो आप मुझसे बहुत प्यार करते हो और इसीलिए आप मेरे घर पे आकर माँ पापा से मेरा हाथ अवश्य मांगोगे। नादाँ थी मैं,जो बिना कुछ तुमसे कहे तुम्हारा ही इंतज़ार करती रही। तुम नहीं आये कभी नहीं आये। कई बार दिल ने चाहा की माँ पापा से मैं खुद बात करुँ पर बताऊ तो भी कैसे, जब तुम्हारे दिल में क्या है ये तक नहीं जानती थी। क्या बताती मैं यही की जिसे प्यार करती हूँ वो भी मुझसे प्यार करता है की नहीं ये तक नहीं पता था। 

एक दिन फिर रिश्ते की बात आई और मेरी शादी तय कर दी गई और मैं हमेशा के लिए मेरे जीवनसाथी के साथ चली गई। हाँ, हर्ष बहुत ही अच्छा लड़का है, मुझसे बहुत प्यार भी करता है। मेरा बहुत ख्याल रखता है। उसकी एक हँसी के लिए मैं बेचैन रहेती हूँ। अगर वो परेशान होता है तो मुझे अच्छा नहीं लगता। शायद समय के साथ मैंने समझौता करना सिख लिया है या फिर हर्ष के प्यार ने मुझे बदल दिया है। सच्चे प्यार को समझने लगी हूँ। प्यार को निभाना हर्ष से ही तो सीखा है मैंने। ज़िन्दगी की राहों में मुश्किलें तो बहुत आती है पर सच्चा जीवनसाथी का साथ मिला हो तो रास्ते का सफर आसान हो जाता है। 

वक़्त हाथ में से रेत की तरह फिसलता गया। हर्ष और सरिता दोनों अपनी ज़िन्दगी को प्यार से संवारने को आगे बढ़ते गए। मैं कभी कभी हर्ष को प्यार से डाँटती भी की हर्ष आप ऐसा मत कहो, मुझे मेरा काम करना आता है। हर्ष को मुझे परेशान करने में बड़ा मज़ा आता था। मैं हर्ष से प्यार करने लगी थी। उसका परेशान करना अच्छा लगता था। माना की हर्ष को कभी कभी डाँटती हूँ पर फिर खुद पे ही गुस्सा भी आता है। कभी सोचती कितना प्यार है हम दोनों में फिर भी दिल के किसी कोने में परिमल की यादे थी जो बार बार दिल पे दस्तक दे रही थी। मैं उसे अनदेखा कर अपना आशियाना प्यार से सजा रही थी। सबकुछ तो ठीक है मेरे जीवन में, प्यारा सा पति है, जो मुझपे अपनी जान छिड़कता है, प्यारे से दो बच्चे है और खूबसूरत सा घर है। इससे ज्यादा ज़िन्दगी से क्या चाहिए मुझे ?

आज जब परिमल की याद आई तो सोच रही हूँ की क्या वो प्यार था की ये प्यार है जो हर्ष से करती हूँ ? अगर हर्ष की और का मेरा प्यार ही है तो परिमल की याद क्यों आई ? क्यूँ मै बेचैन हुई आज ? ये सारे सवाल सिर्फ सवाल ही रहे। दिल में आज अजीब सा सुकून था। कभी कभी कुछ यादें ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाती है माना की उन यादों का हमारी ज़िन्दगी में कोई स्थान नहीं होता। अब हर्ष के साथ बिते वो सारे लम्हे याद आने लगे जब मैंने नए सफर की शुरुआत की थी। 

शादी करके हर्ष के साथ नए सफर की शुरुआत तो की पर ये सफर आसान नहीं रहा। बहुत सी मुश्किलें आई पर हर्ष के साथ से मैं उन सारी मुश्किलों से लड़ गई। दिन बीतने लगे, उसकी हर बात मेरे लिए पत्त्थर की लकीर होती थी। कभी कभी उसकी एक बात से बहुत दुःख होता था की वो मुझे समझ नहीं पाता था। पर ये सब मैंने वक़्त पे छोड़ दीया था। हर्ष अपने काम में और मैं अपने काम में व्यस्त रहने लगे। फिर भी दोनों अपने लिए थोड़ा सा वक़्त तो निकाल ही लेते थे। धीरे धीरे प्यार बढ़ता गया। आँगन में बच्चे की आवाज़ गूंजने लगी। ज़िन्दगी अच्छे से चल रही थी। मैं भी हर्ष के साथ खुद के वजूद को भूलके घर में व्यस्त रहने लगी थी। 

इसी दौरान हमारे बीच दूरिया आने लगी। मेरी बाते सुनना उसके लिए जरुरी नहीं था। क्या हो रहा था मुझे समज नहीं आ रहा था, ये दूरियाँ क्यों आ रही थी ? कितनी अजीब बात थी, कभी लगा था की हम दोनों एकदूसरे से कितना प्यार करते है और ये प्यार कभी कम नहीं होगा। हर्ष की ज़िन्दगी में शायद कोई और शामिल हो गया था। अब उन्हें मेरी कोई भी बात पसंद नहीं आती थी, हर बात पे वो कहेते ये ऐसे नहीं,ऐसे करो। मैं भी तंग आने लगी। सबकुछ अपनी और से अच्छे से संभाला हुआ था। फिर अचानक से क्या हो गया था, कहाँ पे मेरी और से कोई कमी रह गई थी?

इतने में अलार्म बजा तो पता चला की सुबह हो गई है। आज शरीर साथ नहीं दे रहा था, अजीब सी बेचैनी हो रही थी। फिर भी मैं उठी और किचन की और चल दी। कहेते है जब मन बेचैन हो तो तन भी स्वस्थ नहीं रहता। जल्दी से चाय और नास्ता तैयार किया और मेज पे रखकर हर्ष को बुलाया। हर्ष चार दिन के लिए अपने काम से बहार जा रहे थे। एक बार मेरी और देखा और नास्ता करने बैठ गए। बोले तुम नहीं करोगी क्या ? मैंने अपनी प्लेट में नास्ता लेते हुए बोला करती हूँ। नास्ता करते वक़्त मैंने कुछ सोचा और बोला, थोड़े दिन के लिए अपनी माँ के पास जाना चाहती हूँ। उन्होंने कुछ नहीं बोला सिर्फ मेरी और देखा और हम्म कहा। फिर अपनी बैग लेकर बहार निकलने लगे,अचानक से कुछ याद आया हो जैसे मेरी और पलटे ओर बोले मेरे वापस आने तक रुक जाना। कुछ जरुरी बात करनी है, मेरा दिल धड़क उठा। हां कहते हुए वही रखी ख़ुर्शी पे बैठ गई,और सोचने लगी ऐसी क्या बात होगी ? कही सच में उसकी ज़िन्दगी में कोई और तो नहीं ? 

ये सोचते ही काँप उठी। हर्ष को किसी और के साथ सोचना भी गंवारा नहीं, दूरियाँ चाहे कितनी भी हो रिश्ते में फिर भी हम अपने साथी को किसी और के साथ नहीं देख सकते। जैसे तैसे चार दिन बित गए, पर इन चार दिनों में ना हर्ष ने बात की और ना ही मैंने। मेरी हालत तो बहुत ख़राब हो गई थी। मैंने आज एक फैसला ले लिया था की गलती चाहे जिसकी भी हो आज अपने रिश्ते की दूरियाँ मुझे मिटानी है।  

सुबह तो रोज होती है पर आज की सुबह कुछ और थी।  आँख जब खुली तो अजीब सा सुकून दिल में था। सूरज की रौशनी मेरे प्यारे से आशियाने को रोशन कर रही थी। बहार बगीचे में रंगबेरंगी तितलियाँ अपनी धुन में उडी जा रही थी। पंछी आसमाँ में यहाँ से वहाँ उड़ रहे थे। एक पल तो लगा जैसे मेरे अंदर भी कोई तितली है जो बहार उड़ने को विचलित है। जल्दी से उठी और मन ही मन हर्ष से बाते करने लगी। हर्ष, माना की कुछ गलती आपकी थी तो कुछ मेरी भी थी, जिसकी वजह से हम दोनों अलग होते ही गए। पास रहकर भी हम दोनों अलग रहने लगे जैसे कोई अजनबी मिले हो। तब अचानक से मेरी गुड़िया ने आकर मेरा हाथ पकड़ा, गले लग गई और बोला ; मम्मा मम्मा, पापा घर कब आएँगे ? गुड़िया हम दोनों को जान से भी प्यारी है। मैंने गुड़िया के गाल पे प्यारा सा चुम्बन किया और बोला, पापा थोड़ी देर में आ जायेंगे। वो खुश होकर नाचने लगी। उसे खुश देखकर मैं भी बहुत खुश हुई। 

इतने सालों में बहुत कुछ खोया है मैंने, या शायद हम दोनों ने। जल्दी से घर का सारा काम निपटा दिया, गुड़िया के साथ हर्ष के आने का इंतज़ार करने लगी। आज इंतज़ार ख़तम ही नहीं हो रहा था। इंतज़ार करते करते दिल ने आज अहेम फैसला लिया की आज से हर्ष की पसंद मेरी पसंद होगी। हर्ष जब वापस आएंगे तो बोलूंगी उसे की हर्ष,एक मौका दे दो, एक बार फिर से मेरी ज़िन्दगी में वापस आ जाओ। सबकुछ वैसा ही होगा जैसा आप चाहोगे। 

मित्रो, यहाँ कहानी में ट्विस्ट है,एक बार फिर से आ जाओ ये परिमल के लिए नहीं है पर हर्ष के लिए है। जिसके साथ उसने सात फेरे लिए है, ज़िन्दगी भर साथ निभाने का वादा किया है। वापस अपनी कहानी की और चलते है। 

हर्ष के आने का वक़्त हो गया। मैं दरवाज़े पे खड़ी बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही थी। इतने में हर्ष दिखाई दिए। आज मैंने उसकी मनपसंद साड़ी पहनी थी। हर्ष आये और गुड़िया को गले लगाकर मेरी और देखके बोले, आज बहुत खूबसूरत लग रही हो। मैं मुस्कुराई, फिर अचानक से हर्ष ने मेरा हाथ पकड़ा और बोले,सरिता आज मैं तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ, तुम भी ईमानदारी से उसका जवाब देना। मैं एक पल के लिए थम सी गई पर फिर दूसरे ही पल खुद को संभाला और बोला, बोलो हर्ष, क्या पूछना चाहते हो ? 

उसने मेरी आँखों में देखा और बोले, क्या तुम मुझे अब भी अब भी प्यार करती हो ? क्या इतने दिनों में तुमने मुझे कभी भी मिस किया ?कभी मन नहीं किया बात करने का ?

मैंने प्यार से उसकी आँखों में देखा, उसके गाल पे चुम्बन किया और बोली, क्या अब भी इसका जवाब देना जरुरी है ? बात रही तुम्हे मिस करने की तो इतने दिन तुम्हारे बिन कैसे काटे है ये मैं ही जानती हूँ। एक पल ऐसा नहीं जिसमे तुम शामिल हो। माना मैंने कॉल नहीं किया पर तुमने भी तो नहीं किया था ?

हर्ष ने कहा, कर सकता था पर मेरे अहम ने रोक लिया। आज गुड़िया के प्यार ने और तेरी मुस्कान ने मुझे पिघला दिया। सोचा की तुम्हारे साथ ही रहना है। उसने मेरे गाल को चूमा और कहा, सरु तेरे सिवा ओर कोई भी नहीं है मेरी ज़िन्दगी में। क्या हम दोनों फिर से पहेले की तरह साथ ख़ुशी से नहीं रह सकते ? जवाब में मैं उनके सिने से लिपट गई। आज बहुत खुश थी मैं। हर्ष ने मुझे अपनी बाहों से जकड लिया और मेरी आँखों से गम रूपी आंसू बहने लगे। अब जो आंसू थे वो ख़ुशी के थे जिन्हे देखकर गुड़िया भी मुस्कुरा रही थी। 

हर्ष ने कहा, रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं जिन्हें प्यार से सींचना जरुरी होता है, जवाब में मैंने भी हाँ कहकर बात का स्वीकार किया। 

बस, प्यार के रिश्ते की इतनी सी कहानी है। 


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