Gyaneshwar Anand GYANESH

Romance

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Gyaneshwar Anand GYANESH

Romance

एक अधूरी सी मुहब्बत

एक अधूरी सी मुहब्बत

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बाहर बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, बिजली भी गुल थी कि अचानक दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी... तरन्नुम ने दरवाजा खोला तो देखा कि एक व्यक्ति बारिश से भीगे हुए बदन के कारण कांप रहा था। कांपते हुए बोला- कि मेरे पीछे कोई भाग रहा है वह मुझे मार डालने को तैयार है। आप मुझे कहीं छुपा कर मेरे प्राण बचाने का कष्ट करें। मैं आपका अहसान नहीं भूलूंगा। 

और सहसा तरन्नुम ने दरवाजा खोला तो देखा सामने आनन्द खड़ा था। जो उसका पहला प्यार था। तरन्नुम की शादी हो चुकी थी और आनन्द ने आजीवन शादी न करने का प्रण कर लिया था।

तरन्नुम ने उसे अपने घर में छुपा दिया। बहुत दिनों के बाद दोनों ने एक दूसरे को देखा था।......

तरन्नुम के हृदय पर सहसा चलचित्र की भांति पुरानी मुहोब्बत की बातें एक एक करके याद आने लगीं।

आनन्द कार्यालय में अपने काम में व्यस्त था कि यकायक एक पत्रकार के साथ नकाब में एक लड़की आई जिसे देखकर वह कुछ पल के लिए उस लड़की को निहारता रहा । वो लड़की भी उसे नक़ाब से एक टक देखती रही। आनन्द ने उससे पूछा कि क्या काम है तो उसने कहा कि मुझे अपनी अम्मी की महामाया पेंशन बनवानी है। 

आनन्द ने उस लड़की से कहा कि आपका राशनकार्ड कैसा बना हुआ है? तरन्नुम ने कहा- "कि गुलाबी वाला। 

तो मैंने बताया कि "आपका पेंशन का फार्म नहीं भरा जा सकता। यह सुनकर उसे कुछ झटका सा लगा। 

बोली कि क्यों ? 

आनन्द ने कहा कि जिन लोगों का राशनकार्ड बीपीएल श्रेणी का है उनकी पेंशन नहीं हो सकती। सरकारी योजनाओं का एक ही लाभ मिल सकता है।

फिर काफी देर तक विचार करने के बाद मैंने उसके परिवार की स्थिति के बारे में पता किया तो तरन्नुम ने कहा कि "मेरे पापा काफी बुजुर्ग हैं और मजदूरी का काम करते हैं।"

मैंने हमदर्दी जताते हुए कहा कि अन्य कोई योजना आई तो उसमें फार्म भरवा देंगे।

उसने आनन्द का मोबाइल नंबर नोट किया और चली गई। जाते जाते उसने पीछे मुड़कर आनन्द को एक नज़र देखा और आनन्द ने भी उसकी ओर देखा दोनों की आंखों में प्यार के इजहार की झलक साफ दिखाई दे रही थी।

धीरे-धीरे समय बीतता गया और एक दिन आनन्द के मोबाइल पर एक फोन आया तो किसी लड़की की आवाज़ आई उसने अपना परिचय दिया कि मैं आपके पास पत्रकार के साथ पेंशन फार्म के लिए आयी थी तो आनन्द तुरंत समझ गया और कुछ देर तक बातें होती रही।

उसकी आवाज़ बहुत सुरीली थी।

फिर कुछ दिनों बाद आनन्द ने उसके नम्बर पर फोन किया तो वही सुरीली आवाज़ आई सलाम दुआ हुई। फिर ऐसे ही हफ़्ते में एक दो बार एक दूसरे के फोन आने लगे और इधर उधर की बातें होने लगीं। लड़की ने अपना नाम तरन्नुम बताया। आनन्द ने उसके नाम का मतलब "गुनगुनाना" बताया तो वह हँसकर बोली हाँ। 

एक दिन आनन्द ने बात करते-करते हिम्मत करके धीरे से आई लव यू कह दिया। तो उसने कुछ नाराज़ से लहज़े में कहा कि "सर आप क्या कह रहे हैं, आप इसका मतलब भी जानते हैं।"

तो आनन्द ने कहा कि "हां, और हिन्दी में अनुवाद करते हुए कहा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ।"

तो तरन्नुम ने फिर कहा कि "सर आप प्यार का मतलब भी जानते हैं।"

आनन्द ने अनेक तरह के उदाहरण देकर अर्थ बताये।

फिर आनन्द ने उससे (तरन्नुम से) कहा कि क्या आप भी मुझे चाहतीं हैं? तो उसने शर्माते हुए बात को घुमा दिया। और बाद में बात करने को कह कर फ़ोन काट दिया।

आनन्द ने अगले दिन फोन किया तो उसने फोन रिसीव किया और फिर इधर उधर की बातें होने लगी। इसी बीच मैंने कहा कि "आपने कल की बात का जवाब नहीं दिया।"

उसने कहा कि "कौन सी बात का?" आनन्द ने फिर से वही वाक्य दोहराते हुए कहा- "आई लव यू।"

कुछ देर शान्त रहने के बाद उसने "हाँ " कहकर प्यार स्वीकार कर लिया।

इसके बाद तो दोनों को बातें किये बगैर चैन नहीं पड़ता था।

दो प्यार करने वालों को सब कुछ अधूरा सा लगता है जब तक एक दूसरे से बातें न कर लें। एक दिन में कई-कई बार दोनों की बातें होने लगी। 

दोनों की मुहोब्बत दिन प्रतिदिन परवान चढ़ती जा रही थी। कार्यालय में जनगणना का काम शुरू हो गया था तो उसने भी जनगणना का काम करने का फैसला किया और प्रगणक के रूप में आनन्द के सुपरविजन में ही काम करने की मांग की। 

आनन्द ने उसे अपने सुपरविजन में वार्ड नं० 10 में शामिल कर लिया। इससे दोनों का मिलन रोजाना होता रहता था। जिससे प्यार की बातें और परवान चढ़ने लगी। 

आनन्द का तरन्नुम के घर पर भी आना जाना हो गया। उसके घरवालों से भी परिचय हो गया। 

आनन्द जब भी कभी तरन्नुम के घर जाता तो उसके परिवार के लोग उसे देखकर तरन्नुम को आवाज़ लगाकर कहते तुम्हारे सर आये हैं और तरन्नुम आनन्द को लेकर अन्दर चली जाती। आनन्द के पहुंचने पर ऐसे स्वागत किया जाता जैसे किसी का ससुराल में किया जाता है। 

अन्दर जाकर बैठक में बैठते तो दोनों एक-दूसरे को निहारते रहते। स्थिति यहां तक पहुंच गई कि एक दूसरे के बिना अधूरा सा लगने लगा। 

दोनों को एक-दूसरे की यादें इस प्रकार बेचैन करने लगी जैसे किसी भूखे को भोजन और प्यासे को पानी की तलाश रहती है।

तो इसी बीच लड़की (तरन्नुम) के घरवालों ने उसकी शादी के लिए कहीं लड़का तलाश करते हुए तरन्नुम की शादी की बात करनी शुरू कर दी। 

जब उसने आनन्द को यह बात बताई तो आनन्द ने उससे कहा "कि क्या वह भी शादी करने को तैयार है।"

तो उसने कहा कि "मैं तो अभी दो साल तक शादी के लिए तैयार नहीं हूँ।" 

मैंने कहा तो "आप कह क्यों नहीं देतीं।" 

तरन्नुम ने कहा "लड़कियों की मजबूरियां आप नहीं समझ सकते जनाब। समाज ने सारी पाबंदियां हम लड़कियों पर ही तो थोप रखी हैं।हम अपनी मर्जी से अकेले कहीं आ-जा भी नहीं सकते।"

आनन्द-"यह बात तो है। 

तरन्नुम " चलो अब छोड़ो इस बात को और सुनाओ क्या हो रहा है।"

आनन्द- "आपके परिवार में सब ठीक-ठाक है।"

तरन्नुम- "हाँ जी सब ठीक-ठाक है।" बस बाबू जी की तबीयत थोड़ी नासाज सी हो रही है।

आनन्द और तरन्नुम दोनों एक-दूसरे को बेहद चाहते थे। 

एक बार तरन्नुम ने फोन किया तो आनन्द ने फोन उठाया तो सुरीली आवाज में बोली- चलो कहीं घूमने चलते हैं।

आनन्द ने कहा- कहां?

तरन्नुम- जहां मैं चलूं आप मेरे साथ नहीं चल सकते!

आनन्द- चल सकते हैं क्यों नहीं चल सकते।

आनन्द- नुमाइश में चलोगी।

तरन्नुम- नुमाइश में तो रात को घर वाले जाने नहीं देंगे।

आनन्द-मेरे साथ में भी नहीं?

तरन्नुम- किसी के साथ में भी नहीं जनाब।

आनन्द- मेरे साथ जाने में क्या बात है।

तरन्नुम- कुछ नहीं।

आनन्द- तो चलो आज मेरे साथ नुमाइश में।

तरन्नुम- एक बार मेरे जीजू नुमाइश में ले जाने को कह रहे थे तो अम्मी ने मना कर दिया था।

आनन्द- जीजा-साली का रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है। जिसे समाज शक की नजर से देखता है। शायद इसी वजह से मना कर दिया होगा।

तरन्नुम-"नहीं! ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो उनके सामने कभी बोलती भी नहीं हूँ।"

आनन्द- "डार्लिंग आप नहीं जानती कहीं-कहीं जीजा-साली का रिश्ता बहुत गुल खिलाता है।"

तरन्नुम-"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है।"

   समय बीतता गया और तरन्नुम की शादी हो गई। आनन्द ने तरन्नुम से उसके शौहर के बारे में पूछा कि वह कैसे हैं तो तरन्नुम ने कहा कि बस ठीक है।

समय बीतता गया और एक वर्ष बाद जब उसने नये नम्बर से फोन कर के बताया कि बेटा हुआ है तो आनन्द ने उसे बधाई दी।

कुछ महीनों बाद तरन्नुम ने बताया कि उसका शौहर नशा करता है और उसे मारता पीटता है तो आनन्द को बहुत बुरा लगा। आनन्द ने तरन्नुम से पूछा कि क्या आपके घर वालों ने उसके बारे में पहले से पता नहीं किया था।

तरन्नुम- पता तो किया था परन्तु किसी भी प्रकार का नशा आदि नहीं करने की बात कही गई थी।

आनन्द को सुनकर बहुत दुःख हुआ। 

तरन्नुम अपने मायके में आ गई और ससुराल में ना जाने की बात कही।

आनन्द ने कहा कि "यह ठीक नहीं है और न ही यह समस्या का समाधान है। आप उसके घर वालों से बात करके देखिए और अपने घर वालों को भी उनके घर वालों से बात करने को कहिए।

आनन्द की बात सुनकर तरन्नुम ने कहा- कि उनके घर वाले भी तो उसी की जुबानी बोलते हैं।

आनन्द ने तरन्नुम को समझाने की कोशिश की कि देखो तरन्नुम अब आप लड़की नहीं रही एक बच्चे की मां भी हो। किसी भी बच्चे की परवरिश के लिए जितनी जरूरत मां की होती है उससे कहीं ज्यादा बच्चे की जिंदगी में बाप की भी आवश्यकता होती है। जिस प्रकार एक गाड़ी के लिए दो पहियों की जरूरत होती है उसी प्रकार जीवन रुपी गाड़ी यानी ग्रहस्ति में एक बच्चे के लिए उसके माता-पिता भी दो पहियों की भांति अति आवश्यक होते हैं।

आनन्द और तरन्नुम की मुहोब्बत दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। 


अपने पुराने मोबाइल पर वह कांपते हुए हाथों से टाइप कर रही थी, 'मैं तुमसे प्यार करती हूँ लेकिन...'

आनन्द- मैं भी आपको बहुत चाहता हूं।

तरन्नुम- अब मैं क्या करूं?

आनन्द- मैंने तो आपसे पहले ही कहा था कि लड़के के बारे में पूरी जानकारी कर लेना।

तरन्नुम- अपने ऐब को बताता कौन है जनाब।

आनन्द- यह बात तो सोलह - आने सच है। 

तरन्नुम- आपको क्या बताऊं मेरी जिंदगी कहीं दुश्वार न हो जाए। मैंने तो आपसे ही मुहोब्बत की है और आप से ही शादी भी कर लेती तो अच्छा था।

आनन्द- आपने अपने घर वालों को एक बार हमारे बारे में कभी कुछ बताया कि हम दोनों एक दूसरे से मुहोब्बत करते हैं।

तरन्नुम- नहीं....।

आनन्द- यही तो होता है। हम डर के मारे अपने घर वालों को बता नहीं सकते और अपने प्रेम को पा भी नहीं सकते।

मुझे तो लगता है कि पूरी कब होगी.....वो हमारी अधूरी-सी महोब्बत की कहानी।


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