कहानी एक ग़रीब वृद्ध की
कहानी एक ग़रीब वृद्ध की
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इतवार का दिन था सड़क पर बहुत भीड़ थी।सड़क के पास ही एक स्थान पर इतवार की हॉट बाजार लगता था लोग आसपास के गांव से अपनी जरूरत का सामान खरीदने आ.. - जा... रहे थे तभी वहीं कहीं से एक बहुत ही दुबला पतला और कमजोर वृद्ध शहर से अपने गांव की ओर जा रहा था वह भी अपनी जरूरत का सामान खरीद कर ले जा रहा था वह बेचारा अपनी धुन में मस्त और कुछ सोचता विचार था इस दुनिया से बेखबर चलता है चला जा रहा था उधर उसे क्या खबर थी कि उसके साथ अब क्या घटना होने वाली है होनी विचित्र है पीछे से पशुओं का समूह सरपट दौड़ा चला आ रहा था। तभी कुछ लोगों ने शोर मचाया कि बूढ़े हट जा रे हट जा.. तेरे पीछे कुछ पशु भागे चले जा रहे हैं। तो बूढ़े ने जैसे ही हड़बड़ा कर पशुओं से बचना चाहा तो अचानक से उसे ठोकर लगी और वह धड़ाम से गिर पड़ा और पशु उसे कुचलते हुए आगे निकल गए और बेचारा वृद्ध वहां जमीन पर पड़ा हुआ कराहता रहा। वह काफी देर तक पड़ा रहा किंतु किसी भी व्यक्ति ने इस वृद्ध को सहानुभूति दिखाकर उठाया तक नहीं । उठाना तो दूर की बात है किसी ने स्नेह भरी नजरों से उस बेचारे की दयनीय और लहूलुहान हालत पर एक पल के लिए तरस खाकर देखा तक भी नहीं।
वृद्ध बेचारा चीखता कराहता हुआ अपनी लाठी को अपने समीप खींचकर उसी के सहारे स्वयं ही कई बार उठने का प्रयास करने लगा और जॉनी गए उठने का प्रयास करता क्योंकि वह गरीब बेचारा ऐसा है तो कर नीचे गिर जाता। और बेदर्द ज़माना उसकी ओर देखकर भी जैसे देखा ना हो की दशा में आगे गुजर जाता परंतु सभी व्यक्ति एक जैसे नहीं होते कुछ लोग उदार हृदय वाले भी होते हैं जो किसी का तनिक भी दुख देखते हैं तो उनका हृदय ममता के लिए उमड़ पड़ता है इसी प्रकार का हृदय रखने वाले हम व्यक्ति हैं जिनका नाम पता मालूम नहीं है निस्वार्थ सेवा के लिए हर समय तत्पर रहते हैं वे अचानक उसी और गुजर रहे थे जहां वह वृद्ध पड़ा हुआ था तब उन्होंने वृद्ध को देखा तो उनका हृदय उस व्यक्ति की सहायता के लिए बेचैन हो उठा उन्होंने जल्दी से उस वृद्ध को अपने हाथों के सहारे खड़ा किया और उसको लेकर धीरे-धीरे डॉक्टर के पास पहुंचे उस समय मैं भी अकस्मात डॉक्टर की डिस्पेंसरी पर बैठा था मैं अक्सर वहां जाता रहता था डॉक्टर ने उस व्यक्ति की हालत देखी और तुरंत उसके शरीर का रक्त जो वह करने लगा था उसे साफ किया और उसके मरहम पट्टी की और दर्द कम करने के लिए खाने की दवाई दी। जब है आराम महसूस करने लगा तो हम सज्जन ने डॉक्टर साहब का बिल चुकाया और उसे उसके गांव का पता पूछ कर किसी सवारी के द्वारा उसके गांव पहुंचा दिया।
पुराने जमाने में जब लोग गिरते हुए को सहारा दिया करते थे और असमर्थ लोगों की तन मन धन से निस्वार्थ ही सहायता किया करते थे खाने के समय पड़ोसी के चूल्हे में आग क्यों नहीं जलाई गई पड़ोसी के बच्चे भूखे तो नहीं रह गए और भी अनेक परिस्थितियों में लोग एक दूसरे की मदद किया करते थे कहां गए वे सारे आदर्श कहां गए वे लोग जो किसी के दुख दर्द को समझते थे ईश्वर तेरी इस अनोखी दुनिया का क्या कहना कि कल जहां कोई बेसहारा था उसे सहारा दिया जाता था कल जहां कोई भूखा होता था उसकी भूख मिटाने के लिए खाना दिया जाता था।
आज इस रंग बदलती दुनिया में उन्हीं परिस्थितियों में कोई किसी को दर्द भरी आवाज को भी लोग सुनना भी गंवारा नहीं करते और आगे बढ़ जाते हैं।
किसी ने कहा है
इस जहां में दर्द किसी का, कब अपनाते हैं लोग।
देख कर रुक हवा का असर बदल जाते हैं लोग।।
आज हमारे समाज के लोग गरीबों की मदद करना तो दूर की बात है । गरीबी की हंसी उड़ाते हैं कि फलां आदमी कैसे फटे पुराने कपड़े पहनते हैं और कैसे टूटी फूटी झोपड़ी में रहते हैं और हमारे महल अटारी के पास रहकर हमारी अटारी की वैल्यू को कम करते हैं।
वह बूढ़ा भी एक गांव में ऐसी ही विचारधारा वाले लोगों के मकानों के समीप अपनी एक छोटी सी टूटी-फूटी झोपड़ी में निवास करता था उसके साथ उसकी एक बुढ़िया भी रहती थी। अमीर लोग उस बूढ़े से मन ही मन घृणा करते थे कि इसकी झोपड़ी ने हमारी अटारी की शोभा खत्म कर दी है उसी दिन मौका देखकर उन्होंने उसकी झोपड़ी में आग लगा दी कुछ ही देर में देखते देखते झोपड़ी जलकर खाक होके राख के ढेर में बदल गई। उस समय वह बूढ़ा तो शहर गया हुआ था और उसकी चोट भी लगी हुई थी तथा बुढ़िया भी किसी काम से कहीं गई हुई थी। जब बूढ़े और बुढ़िया ने आकर देखा तो बुढ़िया के दिल पर गहरा धक्का लगा और वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी। तो बूढ़े ने पास के नल से एक अंजलि पानी भर कर जल्दी से उसके मुंह में डाला तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब क्या हो सकता है वह बहुत दूर जा चुकी थी। शाम ढल चुकी थी।
मन ही मन रो रहा था और टकटकी लगाए खड़ा सोच रहा था कि मेरे घर को किसने जला दिया! मैंने उसका क्या बिगाड़ा था? कहीं पास की बिल्डिंग वालों ने तो नहीं..... नहीं - नहीं वे ऐसा क्यों करेंगे? मैंने उनका कुछ बिगड़ा या उन्हें कभी कुछ कहा थोड़े ही है जो वे मेरे साथ ऐसा घिनौना काम करेंगे। ईश्वर जाने मुझे आज किस जन्म की गलती की सजा दे रहा है।
जाड़े के दिन थे और ठंड कड़ाके की पड़ रही थी अब बूढ़े के पास ओढ़ने के लिए वस्त्र भी नहीं थे और नहीं उसके पास सोने के लिए कोई चारपाई थी और न उसके पेट भरने के लिए अनाज ही शेष बचा था। इसलिए वह उस रात भूखा ही जमीन पर लेट गया वह रात भर ठंड के कारण सो भी ना सका और कमजोर होने और चोट लगने के कारण दर्द को सहन करने की सामर्थ भी न थी इस निर्दयी समाज ने उससे उसका सब कुछ छीन लिया था किसी को उसकी इस दयनीय दशा पर रहम नहीं आया और वह बेचारा उसी रात को अपने जीवन का कालचक्र पूरा करके इस निर्मम और बेदर्द संसार से विदा हो गया। किसे फिक्र थी कि कोई उनके ऊपर कफन डालता। शांत वातावरण था पाला पड़ रहा था उसका तन ढकने के लिए भी कोई कफ़न न डाला गया। शायद इसीलिए ईश्वर ने उन दोनों बूढ़े बुढ़िया के शरीर पर सफेद पतली सी परत के रूप में चादर के रूप में उसके ऊपर फैला दिया.... इति।