एहसास
एहसास
सुधा दफ्तर खत्म होने के बाद जब शाम को घर पहुँची तो गुस्से से झल्ला उठी। दफ्तर का काम करने के बाद घर पहुंचो तो घर अस्त व्यस्त मिलता है, जैसे सारी जिम्मेदारी मेरी ही है उसने पंकज और पलक की ओर देखते हुए कहा -मैं भी इंसान हूँ कोई मशीन नहीं थक जाती हूँ । उम्र बढ़ रही है मेरी अब इतना सब काम नहीं होता मुझसे। कुछ नहीं तो अपना अपना सामान ही संभाल लिया करो और हां पलक अब तुम छोटी बच्ची नहीं रही ,स्कूल खत्म होने वाला है तुम्हारा अपने आप को संभालो और अपनी जिम्मेदारियों को समझो। पंकज और पलक चुपचाप से सुधार को देखते जा रहे थे। किसी ने वापस कोई जवाब नहीं दिया, पंकज जानता था कि इस समय कुछ भी कहने का मतलब आग को हवा देना है इसलिए उसने पलक को इशारे से चुप रहने को कहा। सुधा बढ़ बढ़ाते हुए मुंह धोने के लिए बाथरूम में चली गई।
पापा चलो अपने काम पर लगे मम्मी आती ही होगी पलक ने कहा और दोनों उठकर किचन में चले गए। पंकज ने फ्रिज से केक निकाला पलक ने प्लेट और बाकी सब समान टेबल पर रख दीया। जैसे ही सुधा कमरे में घुसी पंकज और पलक ने उस पर फूलों की वर्षा कर दी और जोर से हैप्पी वूमेंस डे बोलकर चिल्ला उठे। सुधा यह सब देखकर फूली नहीं समाई उसकी आँखों से खुशी के आँसू छलक उठे। पलक ने माँ को गले लगा लिया और कहने लगी माँ आप मेरे आदर्श हो मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ और आप ही की तरह बनना चाहती हूँ । वसुधा का हाथ थाम ते हुए कहा तुम इस घर का मजबूत स्तंभ हो। मैं जानता और समझत कि तुम बहुत मेहनत करती हो। मुझे तुम जैसी पत्नी मिली यह मेरा सौभाग्य है नारी शक्ति को मेरा सलाम कह कर पंकज मुस्कुरा दिया।
पंकज और पलक के प्यार में सुधार की सारी झुंझलाहट खत्म हो गई। पलक और सुधा ने मिलकर केक काटा और फिर अपने ही ठाहको में खो गए। सुधा खुश थी कि उसकी मेहनत का एहसास उसके पति और बेटी दोनों को है। शायद हर रिश्ता इसी एहसास की तलाश में रहता है।