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neetu singh

Romance

4  

neetu singh

Romance

दुविधा

दुविधा

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"तुम कब समझोगे मेरे मन की बात पूरबमैं तुमसे वो बातें सुनना चाहती हूँ जो खामोशी की चादर ओढ़ कर तुम्हारी आंखें कहती हैं।" श्यामली नें मन ही मन अपनें सामने बैठे हुए पूरब की तरफ देखते हुए सोचा।

पूरब में पूछा ," कुछ सोच रही हो? "

श्यामली नें कहा ," नहीं मैं कुछ सोच नहीं रही हूँ।" और अपनें सामनें रखी चाय उठा कर पीनें लगी और मन में फिर से सोचनें लगी "मेरा चेहरा देख के समझ लेते हो कि कुछ सोच रही हूं शायद तुम को ही लेकर तो क्या तुम इतना नहीं सोच सकते कि मैं क्या सोच रही हूं।"

उसके ठीक सामने बैठे पूरब नें चाय पीते हुए मन ही मन सोचा ," मैं जानता हूं शामली कि तुम मेरे बारे में सोच रही हो तुम्हारी आंखें साफ साफ कहती हैं कि तुम मुझे पसंद करते हो तुम्हारे हाव-भाव तुम्हारे दिल की भावना प्रकट कर देते हैं लेकिन फिर भी सोच कर डर जाता हूं कि कहीं मैं कुछ कहूं और तुम बुरा ना मान जाओ मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम मेरे बारे में सोचती हो लेकिन अगर मैं गलत हुआ तो इसलिए मैं सोचता रह जाता हूं मेरी हिम्मत नहीं होती तुम ही कुछ क्यों नहीं कहती शामली।"

श्यामली नाम की ही श्यामली नहीं थी रंग उसका वाक‌ई सांवला था पर नैन नक्श इतनें तीखे थे कि कोई भी देखता तो देखता रह जाता लम्बें बालों का ढी़ला ढी़ला जूड़ाआंखों में काजलगले में पतली सी चेन..लम्बी छरहरी काया पर प्योर कॉटन की पतले किनारे की साड़ी और मैचिंग की नेल पॉलिश बस यही उसका श्रृंगार था।

इसके ठीक विपरीत गोरा चिट्टा छः फुट का पूरब घुंघराले बालों वाला हंसमुख और स्मार्ट व्यक्तित्व का मालिक उसके संपर्क में आने वाली लड़कियां यही सोचती थी काश पूरब मेरा हो जाता।

दोनों एक ही बैंक में काम करते थे शामली जहां कैशियर के पद पर थी वहीं पूरब बैंक का मैनेजर था श्यामली ने जब पहले दिन बैंक ज्वाइन किया था पूरब उसके पेपरों से ज्यादा उसका चेहरा देख रहा था और श्यामली की ये पहली ज्वाइनिंग होने की वजह से वो थोड़ा असहज महसूस कर रही थी । लेकिन पूरब नें उसको इस माहौल में ढलने में बहुत सहायता की और दोनों अच्छे दोस्त बन गए

अंदर ही अंदर शायद दोस्त से कुछ ज्यादा लेकिन दुविधा की सीढ़ी ना श्यामली पार कर पा रही थी और ना पूरब।

आज पहली बार श्यामली शिफॉन की साड़ी पहन कर आई थी जो उसके शरीर पर पूरी तरह चिपक के बैठ रही थी और और उसके सौंदर्य को उभार रही थी ।

पूरब ने उसे देखा और देखता ही रह गया।

टी टाइम में जब दोनों कैंटीन में बैठे चाय पीने के लिए

पूरब में बोलना चाहा ," शामली आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो इतना किजी कर रहा है कि मैं बस तुम्हें ही देखता रहूं सारा काम धाम छोड़कर और तुम्हें भी कोई काम ना करने दूँ तुम बस मेरे सामने बैठी रहो।"

शामली ने कहा ," आपने कुछ कहा क्या सर ?"

पूरब में अचकचा कर कहा ," नहीं नहीं मैंने कुछ नहीं कहा ।"

श्यामली नें चाय का ऑर्डर दिया और दोनों अपना अपना टिफिन खोल कर बैठ ग‌ए श्यामली एक एक निवाला तोड़ती और खाती जा रही थी साथ ही साथ सोचती भी जा रही थी," मन की भावनाओं को रोक पाना कितना कठिन होता जा रहा है दिन-ब-दिन । लेकिन तुम कुछ नहीं कह रहे हो । कहीं ऐसा तो नहीं है कि मेरी सोच ही निराधार है कहीं ऐसा तो नहीं है कि मैं ही गलत सोच रही हूं ।" मन बुझने सा लगा श्यामली का।

पूरब ने कहा ," क्या हुआ ? किसी टेंशन में हो ?"

श्यामली नें कहा," नहीं किसी टेंशन में नहीं हूँ.. लीजिए आप भी ये अचार खा कर देखिए मां ने बनाया है बहुत टेस्टी है।"

 पूरब ने अचार का एक टुकड़ा ले लिया अपने पराठे के साथ अचार को तोड़कर उसने मुंह में रखा और कहा," बहुत टेस्टी है श्यामली तुम्हारी मां के हाथ का बना ये है अचार ।" और मन ही मन सोचा " इसी अचार की तरह चटपटी सी तुम । तुम भी बहुत अच्छी हो पर कह नहीं सकता पता नहीं अगर मैं किसी बिंदु पर गलत हो गया तो तुम्हारे साथ इस तरह बैठकर कभी टिफिन नहीं कर पाऊंगा तुम्हारे साथ बैठने का अवसर खो दूंगा। नहीं नहीं मैं ये गलती कभी नहीं करूंगा।" और सोचते सोचते पूरब ने अपना सर वास्तव में हिला दिया।

 श्यामली ने कहा ," सर क्या सोच रहे हैं? सर क्यों हिला रहे हैं?"

 पूरब नें कहा," कुछ नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही कुछ ख्याल आ गया था दिमाग में। उसे दूर हटा रहा था ।"

श्यामली का चेहरा बुझ सा गया थाऑफिस से निकलते समय उसने सोचा ,"चाहे कुछ भी हो जाए कल पक्का मैं इस विषय पर पूरब से बात कर के रहूंगी।" और चेहरे पर एक मासूमियत से मुस्कान सजाकर श्यामली घर चली गई।

पूरब अपने ऑफिस में खिड़की के पास खड़ा होकर श्यामली के चेहरे पर खिलती मुस्कुराहट को देख रहा था और सोच रहा था," शामली तुम्हारे चेहरे की ये मासूम सी मुस्कुराहट मैं कभी खोना नहीं चाहता मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता पता नहीं मेरे किस बात का तुम क्या अर्थ निकालो इसलिए मैं तुम्हें चाहते हुए भी तुमसे एक निश्चित दूरी बना कर रहूंगा मैं तुम्हें कभी खोना नहीं चाहता श्यामली।" पूरब के चेहरे पर श्यामली के लिए अगाध स्नेह उमड़ आया।

अगले दिन श्यामली ने सिल्क की प्लेन पतले बॉर्डर की साड़ी में ऑफिस में कदम रखा चेहरे पर हमेशा की तरह मासूमियत और तीखापन प्रत्येक की नजरों की चमक बढ़ाते हुए।

पूरब ने उसे अपने केबिन से देखा और कुछ क्षण के लिए उसकी सुंदरता में खो गया।

आज का दिन कुछ विशेष नहीं होने वाला था इतने सालों से जो चलता चला आया था वही आगे भी जारी रहने वाला था इस दुविधा का कोई और जोर नहीं।

आज श्यामली के चाचा जी ऑफिस में आए थे उनके साथ एक और व्यक्ति भी था

श्यामली से मिलने के बाद चाचा जी ने कहा," बेटा मुझे मैनेजर साहब से कुछ काम है मैं उनसे मिलना चाहता हूं।"

श्यामली ने कहा," ठीक है मिल लीजिएसर अपनें केबिन में हैं।"

चाचा जी ने उस व्यक्ति के साथ मैनेजर के केबिन में प्रवेश किया ।

चाचा जी ने अपना परिचय दिया," बेटा मैं श्यामली का चाचा जी हूं और इनसे मिलो ये अपने बेटे के लिए श्यामली को देखना चाहते थे इसलिए मैं इन्हें लेकर बैंक आ गया था लेकिन बैंक आने का कोई ठोस कारण नहीं समझ आ रहा था इसलिए श्यामली के पूछने पर मैंने कह दिया कि मैं मैनेजर साहब से मिलने के लिए आया हूं बेटा तुम संभाल लेना अगर वो कुछ पूछे तो।"

पूरब में सर हिला कर हां में जवाब दिया ।

चाचा जी हाथ जोड़ कर चले गए।

पूरब पसीने पसीने हो रहा था उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए उसने फिर सोचा ," श्यामली की शादी हो जाएगी श्यामली तो वैसे भी चली जाएगी एक कोशिश करने में क्या हर्ज है एक बार पूछ कर देखता हूं क्या पता श्यामली हां कर दे।"

टी ब्रेक में श्यामली और पूरब एक साथ बैठे तब।

पूरब ने बात शुरू की ," श्यामली तुमने बताया नहीं कि तुम्हारी शादी तय हो रही है।"

श्यामली चौंक गई उसनें ने कहा," आपको किसने कहा कि मेरी शादी तय हो रही है ।"

पूरब ने कहा ," तुम्हारे चाचा जी आज आए थे वही बता रहे थे ।" इतना बोलते वक्त भी पूरब बहुत बेचैनी महसूस कर रहा था।

श्यामली ने कहा ," चाचा जी ने मुझसे तो कुछ नहीं कहा.. वो तो मुझसे कह रहे थे कि आपसे कोई काम है ।"

पूरब ने कहा ," उनके साथ जो व्यक्ति था वो अपने लड़के के लिए तुम्हें पसंद करने आया था।"

बात करते-करते भी पूरब अंदर से नर्वस फील कर रहा था उसे लग रहा था कि उसका हाथ पैर ठंडा हो रहा है और श्यामली श्यामली के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था ।

श्यामली ने हड़बड़ाते हुए कहा," ऐसे कैसे मुझे देखने आए थे अपने लड़के के लिए मैं शादी कर ही नहीं सकती।"

पूरब ने कहा ," सकती से मतलब? तुम शादी क्यों नहीं कर सकती ?"

श्यामली बोली ," नहीं सर नहीं मैं शादी नहीं कर सकती। बिल्कुल नहीं कर सकती। किसी कीमत पर नहीं कर सकती ।"

पूरब अब और भी ज्यादा परेशान हो गया मन ही मन सोचा उसने," हे भगवान लग रहा है मेरा दूर दूर तक कोई चांस नहीं।"

पूरब ने कहा," तुम किसी और को पसंद करती हो ?"

श्यामली बोली ," हां मतलबपता नहींमेरा मतलब हाँ मैं करती हूँ।"

पूरब का चेहरा उतर गया

पूरब ने कहा ," तो अपनें चाचा जी से बता दो ना लेकिन तुमने आज तक मुझसे भी तो नहीं बताया.. कि तुम किसी को पसंद करती हो।"

श्यामली ने पूरब के कहे ये आखिरी शब्द नहीं सुने

शामली ने कहा ," क्या बता दूं चाचा जी को क्या बता दूँ।" वो एकदम से झल्लाई थी तनाव उसके ऊपर हावी हो रहा था ।

पूरब ने कहा ," शांत हो जाओ श्यामली लो पानी पियो और चाचा जी को बता दो कि तुम किसी को पसंद करती हो।"

श्यामली बोली," क्या बता दूं सर क्या बता दूं ये बता दूँ कि मैं पूरब सर को चाहती हूँ।" और इतना कहने के साथ दोनों का चेहरा फक्क हो गया ।

श्यामली के मुंह से ये शब्द निकलते हीश्यामली पसीने से तरबतर हो गई और पूरब पूरब सन्न होकर उसे देखे जा रहा था ।

   श्यामली ने कहा ," सॉरी सर सॉरी .. मुझे माफ कर दीजिएगा मेरा मतलब वो नहीं था मैं ये नहीं कहना चाहती थी ।"

श्यामली को लगा भावुकता में उसनें पूरब को खो दियाउसकी आंखों में आंसू आ गयेउसनें बहुत दुखी हो कर कहा," सॉरी सर मेरा आप को हर्ट करने का इरादा नहीं था।।।"""""""

पूरब ने श्यामली के हाथों को पकड़ते हुए कहा," श्यामली शांत हो जाओ बिल्कुल शांत हो जाओ तुम शांति से पहले बैठो और ये पानी पियो ।"

श्यामली अब और भी ज्यादा परेशान हो गई बोली," सर प्लीज मुझे माफ कर दीजिए मेरा ये मतलब नहीं था.. गलती से मेरे मुंह से निकल गया।"

पूरब ने श्यामली के सिर पर हाथ रखा और उसके हाथों को मजबूती से पकड़ते हुए कहा," श्यामली तुम पहले शांत होकर मेरी बात सुनो ।"

श्यामली आंखें फैलाए माथे पर पसीना लिए. ढेर सारे तनाव के साथ पूरब को देख रही थी ।

पूरब ने कहा," मैं भी तुम्हें बहुत चाहता हूं .. और मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता ।"

कुछ क्षण के लिए लगा समय जैसे रुक गया हो फिर एक साथ दोनों ने इत्मिनान की लंबी सांस ली एक दूसरे की आंखों में देखते हुए दोनों ने चाय पी।

 दुविधा की बदली छट चुकी थी। निश्चिंतता की चादर में दोनों के दिल एक हो चुके थे।


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