दुर्दशा फौजी की
दुर्दशा फौजी की
देश के लिए उसने अपना सब छोड़ दिया, मगर जब वो लौटा तो परिवार की हालत देख कर बहुत दुखी हुआ।
वहाँ सरहद पर वो पड़ोसी देशों की घुसपैठ रोक रहा था, अपने देश और देशवासियों के लिए अपनी जान दांव पर लगा रहा था
और यहाँ अपने ही कुटुम्ब के लोगों ने उसके घर उसकी जमीन में घुसपैठ करके सब जगह कब्जा कर लिया था
उसका नाम तो बस परिवार रजिस्टर में ही रह गया था। जब वो गाँव लौटा तो पूरा घर खंडहर में तब्दील हो गया था।
वहीं ताया चाचा के मकान और ऊंचे हो गए थे। उसे देखकर भी अनदेखा किया उसकी चाची ने पानी भी नहीं था उसके घर पर तो वो चाचा के घर गया ये सोचकर की उसे वापिस जिन्दा देखकर सब खुश होंगे।
मगर वहाँ जाकर उसने महसूस किया कि कोई भी उसे देखकर खुश नहीं है। चाची तो बोल ही पड़ी,
,"बेटा तू तो बर्फ में गुम हो गया था जिन्दा कैसे बच गया ? शायद वैसे ही जैसे एक्सिडेंट में माँ बाप मर गए और तू बच गया।
अब आ ही गए हो तो ये खंडहर को ठीक करो ज़रा, आंखों के सामने नजर बट्टू हो जैसे। " और मुँह बनाकर चली गई।
बेचारा देश का रक्षक आज अपने घर में गांव में एक पानी के लिए मोहताज हो गया था।
दोनों हाथ खोकर देश के लिए, उसने खुद के लिए क्या पाया ?
एक जिल्लत भरी जिंदगी और उम्र भर का संघर्ष, एक मौत के इंतजार में।
