दुनिया की सब बातें झूठी
दुनिया की सब बातें झूठी
दुनिया की सब बातें झूठी
दौड़ यहां की यही पे छूटी
रोटी छूटी, पानी छूटा
अंत समय में बोली छूटी
हाथों की हथकड़ियां टूटी
पैरों से जंजीरें छूटी
पलक मूंदते ही पल भर में
बरसों की तैयारी छूटी
मैं भी झूठा तू भी झूठा
झूठी अपनी यारी छूटी
पश्चिम का ढलते ही सूरज
पूरब में किलकारी छूटी
