दरकते रिश्ते
दरकते रिश्ते
रजनी आज बहुत उत्साहित दिखायी दे रही है। उसे बहुत बड़ा साहित्यिक सम्मान जो मिलने वाला था, जिसे पाना एक साहित्यकार का सपना हो सकता है। वैसे तो उसे बचपन से लिखने का शौक है। शादी के पहले तक लिखती रहीऔर साहित्यिक अभिरुचियों में सक्रिय रही। उसकी अपनी एक पहचान थी।
बैठे बैठे कब अतीत की गलियारों में पहुँच गयी उसे पता न चला। जब वो पहली बार नितिन के घर ब्याह कर आई। मिलने आने वाले सब बहुत खुशी से उसके बारें में बातें करते --" आप कितना अच्छा लिखती हैं " --पर घर परिवार और स्वयं नितिन के मुँह से कभी प्रशंसा के शब्द अपने लिए आज तक नहीं सुन पाई। नितिन को ये सब समय की बर्बादी लगता। दोनों में इसी बात को लेकर तनाव बना रहता।
रजनी कहती आप तो जानते थे हमें साहित्य में रूचि है और नितिन का मानना था कि इसके कारण तुम्हारा मन घर परिवार के कामों में नहीं लगता। तुम बहुत महत्वकांक्षी हो। बस अपना ही सोचती हो। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं था। पूरा सब कमकाज के बाद ही अपनी रूचियों के लिए समय निकाल पाती थी जो बहुत कम था।
रजनी की महत्वाकांक्षाओं ने आज इस मुकाम तक पहुँचाया है। सम्मान समारोह में जा नहीं पायी।आपसी विचारधारा के टकराव में वह खुद कभी टूटी, पर टूटन को जोड़ती रही परत-दर-परत। दरकते रिश्ते को निभाना जैसे आदतों में शुमार हो चुका हो। वह सब छोड़ भी नहीं सकती अपने बच्चे की खातिर सब सहती रही आज तक। पिता और पारिवारिक संबंध से मरहूम नहीं करना चाहती थी अपने बेटे को।
आज उसका सम्मान उसके घर तक पहुँचाया गया। सब बहुत खुश है पर दिखावे के लिए क्योंकि यह सम्मान एक बहू, एक पत्नी ने पाया है। दरकते हृदय के साथ मुख पर हँसी अब जिदंगी यही है वह इतना ही जान पायी और समझ पायी।