दोस्त की आत्मा
दोस्त की आत्मा
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कहानी लिखने से पहले मैं आपको बताना चाहती हूं यह लेख meri खुद की नहीं है। यह लेख श्री आशीष सामंत महाशय के है।) मैंने इस कहानी को odia हॉलिडे मैगज़ीन प्रमेय अखबार के पेज 16 पर, रविवार को 16 वें "मेमोरी एक्सपीरियंस" सेक्शन में से पढ़ी थी "यह बस तब से मेरी ध्यान में थी।। तो मुझे लगा की ,,मुझे ए कहानी आप सब को सुनाना चाहिए जरूर
श्री आशीष कहते हैं कि यह घटना उनके छात्रावास के जीवन के दौरान हुई थी।
शुरू
यह घटना मेरे (आशीष सामंथा) हॉस्टल जीवन के है।
भले ही इतने साल बीत गए हों लेकिन (आशीष सामंथा) उस घटना को आज तक नहीं भूले हैं
उस दिन मुझे सुनकर हर कोई अचंभित था।
लेकिन मैंने जो देखा वो सच था।
मैं एक प्राइवेट छात्रावास में रहकर डिग्री कर रहा था।
मेरे पिता ने मुझे उस हॉस्टल में रखा क्योंकि वह हॉस्टल कॉलेज के पास था
कुछ दिनों बाद हर कोई मेरा दोस्त बन गया।
सभी लोगों में से, अंकित चटर्जी मेरा सबसे अच्छा दोस्त था।
वह कोलकाता का बच्चा था।
हम दोनों एक साथ एक ही कमरे में रहते थे। एक दिन अंकित को घर से एक फोन आया।
उसकी बड़ी बहन की शादी तय हो गई है और उसकी माँ ने कहा कि उसे घर आना है।
उस दिन अंकित बहुत खुश था। अंकित ने अपनी बड़ी बहन की सादी में भाग लेने के लिए हम सभी को कोलकाता आमंत्रित किया।
कुछ दिनों बाद, प्रिंसिपल को अपनी बहन के सदी के बारे में बताने के बाद अंकित दस दिनों के लिए कलकत्ता चला गया।
लेकिन हमने उसकी बहन से माफी मांगी सादी में शामिल नहीं होने के लिए।
पर उसे मुझ पर विश्वास था
क्योंकि वह जानता था कोई जाएगा या नहीं लेकिन मैं जरूर जाऊंगा। मैंने उससे वादा किया था कि मैं भी जाऊंगा सादी। में।
लेकिन मैं बहुत परेशान था क्योंकि मैं नहीं गया था। इसी वजह से अंकित मेरे ऊपर गुस्सा था।
मुझे लगा कि जब अंकित हॉस्टल में आएगा, तो मैं उसका बिस्वश फिर से जीत लूंगा।
अंकित को दस से पंद्रह दिनों के भीतर छात्रावास लौटना था। लेकिन वह होस्टल नहीं आया मैंने उसे फोन किया लेकिन उसने फोन नहीं उठाया।
मुझे लगा कि वह मुझसे नाराज है और अपना नंबर ब्लैकलिस्ट में डाल दिया है।
लगभग बीस दिन हो गए। एक रात मैं हॉस्टल की बालकनी पर टहल रहा था। मैं अक्सर होस्टल में देर से सोता हूं। मैं सो नहीं सका क्योंकि बहत गर्मी थी उस दिन।
बालकनी पर इधर उधर चलते समय, मैंने अचानक ध्यान दिया किसी को बालकनी के अंत में पोल के पास खड़ा हुआ देखा। मैं थोड़ी दूर खड़ा था। मैं स्पष्ट रूप से नहीं देख सकता था, लेकिन मुझे लगा कि वो अंकीत ही था।
क्योंकि उसका शरीर अंकित की तरह था…।
वो अपने पीठ को मेरे तरफ करके खडा था…।
इसलिए मैं उसका चेहरा नहीं देख सकता था। मुझे लगा कि अंकित उस दिन हॉस्टल को लौट आया था। पर उसेने मुझे मिलने नहीं आया क्योंकि वो घुशा था मेरे ऊपर।
मैंने उसे जोर से पुकारा उसका नाम ले कर। लेकिन उसने मुझे जवाब नहीं दिया। मैं ऐसे ही चिलता गया।। मैंने कई बार उससे पुकार पर वो नहीं जवाब दिया। लेकिन जैसे ही मैने आगे बढ़ कर देखा तो वहा कोई ना था। मैं हैरान था अभी तो अंकित यहां था ???
मुझे लगा कि यह एक नाटक था जो मुझे परेशान करने के लिए। इसलिए मैं कमरे में वापस आ गया। मुझे नहीं पता था कि मैं उसके बाद कब सो गया। सुबह करीब दो बजे की बात है ,,,जब मैं पानी पीने के लिए उठा। तब
मैंने अंकित को बिस्तर पर लेटते हुए देखा।
अंकित बिस्तर पर सोया हुआ था।
फिर मैं उसे बिना बुलाए पानी पी के सो गया।
यह सोचकर कि मैं उससे सुबह बात करूंगा।
अगली सुबह, अंकित का परिवार आया हुआ था।
जब दरवाजा खटखटाया तो मेरी नींद खुल गए।
और देखा
अंकित के घर के लोग मेरे सामने थे।
मैंने उनसे कहा कि अंकित अब कमरे में नहीं है। कुछ मिनट रुकिए वह आजाएगा।।
वे विस्मय में मुझे घूर रहे थे, मेरी बात सुन रहे थे। उसकी माँ रो रही थी और मुझसे कह रही थी अंकित हॉस्टल कैसे आएगा ???शादी के दो दिन बाद अंकित का एक्सीडेंट हो गया था। और उसी घटनास्थल पर मृत घोषित कर दिया गया Ankit को।
हम हॉस्टल से सबकुछ लेने आए हैं उसके।
जब मैंने उनसे सुना, तो मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी।
कल रात को मैंने किसे देखा था ?? अंकित का भूत ??
अंकित को वह हॉस्टल बहुत पसंद था। इसीलिए उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद भी छात्रावास नहीं छोड़ा। लेकिन उस घटना के बाद, मैंने छात्रावास छोड़ दिया।