SUMIT GURJAR

Romance

4.3  

SUMIT GURJAR

Romance

दो अजनबियों की प्रेम गाथा

दो अजनबियों की प्रेम गाथा

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ये उस समय की बात है जब जीवन की भाग दौड़ में हर कोई लगा हुआ था। ये कहानी है उन दो अजनबियों की जो किसी जगह एक साथ जॉब करते थे। अब बात कुछ ऐसी है जनाब की जब दो लोग साथ मिलकर काम करे तो ये जरूरी नहीं की सिर्फ काम की ही बात करे, बतियाने के लिए तो और भी कई सारी बातें हो सकती है। जैसे एक दूसरे का आम जीवन में व्यवहार या यूं कहे कि पेशेवर जीवन से भिन्न बातें और ये भी एक कटु सत्य है की बिना सम्प्रेषण किसी उद्देश्य को एक से अधिक लोगों के समूह ने कभी हासिल नही किया है। अर्थात ये की उन दो अजनबियों में बातें होना तो स्वाभाविक थी ।

चलिये हम आपको बता ही देते है कि वो दो अजनबी है कौन। जी जनाब उन दो में से एक सरल, स्वछंद और स्वाभिमानी पुरुष है तो दूसरी मनमस्त, मृदुभाषी और मनमोहिनी बाला है। नाम मत पूछियेगा जनाब क्योंकि ये समाज फिर उन्हें जीने नहीं देगा। पर ये बात भी ठीक है कि कहानी में बिना नाम के कैसे मालूम पड़ेगा कि कब कहाँ किसे याद किया जा रहा है इसलिए हम आपकी संतुष्टि के लिए कहानी के दोनों किरदारों को एक एक मन में आया नाम दे ही देते है। तो जो पुरुष है उन्हें हम "सौम्य" कह कर संबोधित करेंगे और जो बालिका है उन्हें हम "ज्ञानबाला" कह कर सम्बोधित करेंगे।


हाँ जनाब बात हम कर रहे थे कि दो लोग जो एक साथ काम करते है उनके बारे में, तो चलिए आज बढ़ते है। कार्यस्थल पर काफी रोक टोक होने के कारण और किसी भी व्यक्ति का विश्वास योग्य नहीं होने के कारण सौम्य जो थे वो बेहद सावधानी बरतने की कोशिश करते थे अपने संवादों में, लेकिन मनुष्य जीवन ऐसा है कि अगर इंसान किसी दूसरे इंसान से अपने मन की बात न कहे तो वो बेचैन हो जाता है और इसी लिए सौम्य अपने मन कि सारी बातें ज्ञानबाला से किया करते थे। ज्ञानबाला वह इकलौती थी जिस पर सौम्य को यकीन था कि वो और लोगो की तरह मतलबी नहीं है। साथ ही साथ सौम्य के साथ काम करते करते ज्ञानबाला ये जान चुकी थी कि सौम्य और लोगों से अलग है। जैसे जैसे समय बीतता गया दोनों की समझ बढ़ती गयी और एक दूसरे से मिलती गयी। कार्यस्थल पर कार्य वर्ष की समाप्ति के समय सौम्य पर कुछ लांछन लगाए गए जो कि बे बुनियाद थे और इस बारे में कुछ ही लोगों को पता था। ऐसे में सौम्य पर यकीन करने वाली सिर्फ ज्ञानबाला थी जिसे यकीन था की ये सब झूठ है और जबरदस्ती सौम्य पर आरोप लगाए गए है। असल में ज्ञानबाला अपने कार्यस्थल के अन्य कर्मचारियों से पहले से वाक़िफ़ थी और सौम्य को आए हुए सिर्फ वर्ष भर ही हुआ था इसलिए वो षड्यंत्रकारियों की बातों में उलझ गए।

कार्यस्थल पर कुछ दिनों के लिये कार्य को विराम दिया गया और इन्ही दिनों में नजदीकियां बढ़ी उन दोनों अजनबियों के बीच। जी हाँ, यही वो समय था जब उन दोनों ने एक दूसरे को जाना और जाना भी इस कदर की एक दूसरे को अपना प्रतिबिंब ही पाया अधिकांश बातों में। बचपन में हम सब ये सोचते थे कि क्या कोई ऐसा होगा जो बिल्कुल हम जैसा होगा ? ये बात सत्य साबित हुई सौम्य और ज्ञानबाला के बीच मे नजदीकियां बढ़ने के बाद। काफी हद तक पसदं-नापसंद, विचार, व्यवहार, सोच, संस्कार, कर्म और ना जाने क्या क्या दोनों में एक समान था। जो भी कहो अगर ये दोनों बचपन से साथ बढ़े हुए होते तो ज़माना इन दोनों से ख़ौफ़ खाता और लोग इन्हें उम्र भर याद रखते, क्योंकि इन दोनों का मिज़ाज कुछ था ही ऐसा। दोनों शौकीन थे तो चाय के, महादेव के और बाहर घूमने घुमाने के। अगर एक लाइन में कहा जाए तो दोनों स्वभाव से बेधड़क, बेझिझक, बिंदास जिंदगी जीने वाले लोग थे। बचपन दोनों का ऐसा गुजरा की भुलाए से भी नहीं भूलता और संकट का समय, परिश्रम की घड़ियाँ, अपने परायों का अंतर और परिवार की हिम्मत देखने के बाद दोनों में समय से पूर्व ही समझदारी आ गयी थी। कहने को दोनों की उम्र जवानी के समुद्र में हिलोरे मार रही थी यानी उम्र अभी भी कच्ची थी लेकिन बुरे वक्त ने दोनों को सहला कर सम्भलना सिखला दिया था।

खैर आगे की बात ये है कि दिन-दिन बीता और बातें बढ़ने लगी, हालांकि ये वो वक़्त नही था जिसमे बातों के साथ मुलाकातें भी बढ़ती है। बातों ही बातों में एक दूसरे को बेहद करीब से जान कर ये तो तय हो गया था कि अब दोनों कोशिश करेंगे कि ये जो एक बिना नाम का बेनामी रिश्ता बना है ये कभी टूटे नहीं। और सौम्य ने तो यहाँ तक कह दिया था कि ज्ञानबाला पर आँख बंद करके वो विश्वास कर सकता है। वैसे प्रभु की भी लीला अपरम्पार है, समझ ही नहीं आता कि वो कैसे, कब , कहाँ किन किन लोगों को मिला देते है। अब यही देख लो, भोलेनाथ के दो भोले भक्त ना जाने आपस मे कैसा संबंध स्थापित कर बैठे थे कि एक दूसरे का बातों पर जवाब पाने तक का इंतजार होने लगा था। सौम्य के अतीत और उससे जुड़ी हर एक कहानी को ज्ञानबाला जान चुकी थी और काफी हद तक सौम्य भी ज्ञानबाला को समझ चुका था लेकिन एक कमी थी सौम्य में और वो ये की उसे मन कि बातें पढ़ना नहीं आता था इसलिए वो ज्ञानबाला के मन में क्या चल रहा है वो नहीं जान पाता था। फिर भी दोनों बेहद मस्ती मज़ाक करते और जितना वक़्त मिलता एक दूसरे को देते। जरूरत पड़ने पर जब कभी सौम्य भावुक हो जाता या किसी बात की बेचैनी होने लगती तो ऐसे में ज्ञानबाला उसे समझाती और ये एहसास करवाती की जल्दी सब ठीक हो जाएगा। वैसे समाज की कु-दृष्टि के कारण दोनों को कुछ दूरियाँ बनानी पड़ी और उम्र के इस पड़ाव पर अक्सर लोग धोखा खा जाते है, इसलिए कोई भी व्यक्ति किसी भी बात को लेकर सवाल ना उठा सके इस बात का ध्यान रखते हुए थोड़ी बातें कम होने लगी। जैसा भी था शुरू हुआ ये सफर बेहद प्यारा था। अब देखना ये था कि ये दोनों अजनबी कब तक एक दूसरे को थामे आगे बढ़ते है और कहाँ तक जाते है। क्या ये सफर अजनबी की तरह ही आगे बढ़ेगा या इस सफर में कोई हसीं मोड़ आएगा, या ये सफर एक नया इतिहास लिखेगा या कहीं ऐसा तो नहीं की ये अजनबियों का जोड़ा प्रेमी युगल का खिताब जीतेगा ..?


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