दिल का सुकून

दिल का सुकून

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कभी -भी छोटी बातें भी आप में आह्लाद भर सकती हैं...आपको भावुक कर सकती हैं...आपको नए निर्णय लेने के लिए बाध्य कर सकती हैं...

आज चित्रगुप्त सभा ने एक कार्यक्रम रखा था... कार्यक्रम का अंत..भारी भरकम नाश्ते के साथ हुआ... ठंड ज़्यादा है सो अतिथि कम रह गए... नाश्ता बच गया... बची हुई खस्ता कचौड़ी को ठिकाने लगाने की ज़िम्मेदारी मेरे हवाले हुई...रात हो चुकी थी...मैं इस कार्य को सम्पादित करने निकला...

एक फ़टेहाल चौकीदार-नुमा बुज़र्ग शख्स दिखे...मैंने झिझकते हुए पूछा..." बाबू जी.. थोड़ी ताज़ा कचौड़ी हैं क्या लेना चाहेंगे ?... जीर्ण-काया वाले बुज़ुर्ग ने बेचारगी से हाथ बढ़ा दिए !..मैंने 4-5 कचौड़ियां उनके हाथों में रख दीं... बोले... आज रात का तो इंतज़ाम हो गया !... मेरा दिल बिखर सा गया.. बूढ़ा कांपता शरीर... कड़कड़ाती रात में बंद दुकानों की चौकीदारी... खाने का कोई ठिकाना नहीं !

मैंने पूंछा..बाबा कैसे खर्च चलता है... बोले... रात भर इन 40 दुकानों की रखवाली करता हूँ... सुबह रु 50/-मिल जाते हैं... क्या ? पूरे महीने की सर्दी-गर्मी....रात पर जाग कर चौकीदारी और बमुश्किल रु 1500/- महीना ?... मैंने पूंछा कि कोई और कोई काम भी करते हैं ?..बोले इस बुड्ढे शरीर में इतनी ताकत कहाँ ?

रहने की जगह ... मन्दिर के पिछवाड़े की सीढ़ियां...! भगवान कसम... गले में गोला सा अटक गया... दिल ने कहा... थोड़ा आंसू गिराएगा तो चैन मिलेगा... उफ यह गरीबी... यह विवशता ... आह...

जिन कचौड़ियों को लेकर निकलते समय मुझे लगा था कि इन्हें कैसे ठिकाने लगाया जाएगा... सड़क के किनारे तापते लोगों ने कचौड़ियों को ऐसे लपका.. जैसे वह किसी ऐसी ही मदद की उम्मीद में हों... कुछ हकीर सी कचौड़ियों के लिए दसियों दुआएं और आशीर्वाद !... आह गरीबी... आह भूख... सड़क पर कुछ बांटना सीखिए !... खोई हुई दया और विनम्रता वापस लौट आएगी... आपके अंदर !

मेरी मां की उम्र की महिला का...कचौड़ी हासिल कर...वहीं बैठकर खाने लगना... मेरी आंखों से अनायास ही गंगा-जमना बहने लगीं... गला रूंध गया... आह यह मेरा देश... यह प्रचंड गरीबी और भूख... कुछ कचौड़ियों के लिए फैले हाथ... हज़ार-हज़ार दुआएं और आशीर्वाद !.... रोया !...रोया खूब रोया... दिल आज बहुत साल बाद हल्का हुआ...

आज रात कसम खाई... सप्ताह में एक शाम कुछ ज़रूरतमंदों में अन्न-भोजन वितरण होगा...अपने दिल के सुकून के लिए...


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