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ishan mishra

Horror Fantasy Thriller Tragedy Crime

4.5  

ishan mishra

Horror Fantasy Thriller Tragedy Crime

Devi

Devi

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"सूर्यध्वज चंद्रोलकन्नौज और उसके आस-पास के इलाकों में बहुत बड़ा नाम है। उनके भक्त उन्हें कन्नौजी सरकार के नाम से बुलाते हैं। तंत्र विद्या के प्रख्यात पंडित हैं वो..."

"अब बस इस घर में काला जादू करने वालों की कमी थी। मानाहम लोगों पर बहुत बड़ी गाज़ गिर गई हैलेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि अब बस पूजा-पाठ करें और सब ठीक हो जाएगा।"

"आपसे बात करना किसी जंग लड़ने से कम नहीं। तंत्र विद्या को काला जादू समझने वाले नहीं जानते कन्नौजी सरकार की महिमा के बारे में।कासलीवाल सेठ को देखो। वह बुरी तरह से कर्ज में डूबा हुआ था। बैंक वाले घर नीलाम करने की धमकी देकर गए थे। अगर कन्नौजी सरकार का आशीर्वाद  होतातो वह किसी सड़क पर भीख मांगता हुआ मिलता। मेरे कहने पर कल खुद कासलीवाल सेठ सरकार को लेकर घर  रहे हैं। अब आप चाह रहे हैं कि मैं उन्हें आने से मना कर दूं?"

"हाँ तो मेरे कहने पर नहीं न्योता है तूने उन दोनों को..तेरी हिम्मत नहीं हो रही है..तो मुझे बोल मैं मना कर दूंगा"

"आप मना करोगेजैसे अब तक सब चीज़ों मना करते आए हो। जब मैंने आपसे कहा था कि यह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का तंत्र मत पालोतब आपने मुझे भी मना कर दिया। हमारे खेत पर वे कब्जा कर बैठे हैं। बैंक से करोड़ों का कर्ज लिया है। कैसे चुकाएंगेकासलीवाल सेठ ने कहा है कि वह कर्ज माफ कर देंगे और सरकार का आशीर्वाद रहा तो हम वह कोर्ट केस भी जीत जाएंगे। शांति से समझिएकल कार्तिक अमावस्या है और सरकार ने पूरे राजकोट में हमारा घर चुना है देवी की पूजा के लिए।"

"हम्म... जैसे मैं कुछ नहीं जानता...देखोजतिनतुम्हें इस पागलपन में शामिल होना है तो ठीक हैलेकिन मुझे और मेरे परिवार को इसमें शामिल मत करो।"

"ठीक हैतो अगर वे कोर्ट केस जीत गए तो आपका हिस्सा भी मैं…"

"जतिनअपनी हद में रहकर बात करो... बड़ा भाई हूं तेरा…"

"शांति से बात कीजिएबच्चे घर में हैं।"

"और उन्हीं बच्चों के खातिर मैं बोल रहा हूं... चुप हो जाओ... आगे एक शब्द नहीं... मैंने कहा मेरा परिवार इसमें शामिल नहीं होगा बस।"

 

ताया की आवाज़ में इतना ग़ुस्सा कभी नहीं देखा। मैं कान लगाकर सुनने की कोशिश कर रहा थालेकिन ठीक से कुछ समझ नहीं आया।

मेरा कान दीवार की तरफ़ लगा हुआ था। तभी कहीं से वज्र जैसे हाथों ने मेरे कान को ज़ोर से खींचते हुए मुझे हवा में लटका दिया।

"दीदीछोड़ोदर्द हो रहा है।"

"नितिनकितनी बार बोला है तुमसेऐसे कान लगाकर किसी की बात सुनना अच्छी बात नहीं।"

"अच्छानहीं करूंगा अबसे।"

"जल्दी ऊपर जाओमां बुला रही हैं तुम्हें... कल घर में पूजा हैतुम्हारे लिए कपड़े लाए हैंएक बार पहनकर देखनाठीक हैं ना।"

मैं भागते हुए ऊपर गया मां के पास और बताया कि "पता है मांपापा और ताया लड़ रहे थे कि कल पूजा है घर परकोई बहुत बड़े पंडित जी आने वाले हैं।"

"नितिनतुम फिर कान लगाकर सबकी बातें सुन रहे थे।"

"नहींमैं तो बस बाहर खड़ा थादोनों इतनी ज़ोर से लड़ रहे थे कि बाहर तक आवाज़  रही थी। ये किस चीज़ की पूजा है मां और ये कार्तिक अमावस्या क्या होती है?"

"बस बसअब चुप करपापा सुनेंगे तो ग़ुस्सा करेंगे।"

मैंने फिर भी अपनी ज़िद नहीं छोड़ी, "बताओ ना मां।"

मां झुंझलाते हुए बोलीं, "मुझे क्या कुछ बताते हैं तुम्हारे पापा... जल्दी से कपड़े बदलकर अब सो जाओकल खुद पता चल जाएगा।"

सुबह हुई तो पता चला ताया जी और गुड्डू भइया रात में ही घर से चले गए थे।

तैयारी बहुत ज़ोर से चल रही थी। घर में बीच में जो बहुत बड़ा सा आंगन थाजहाँ पर हम लोग बैठकर खाना खाते थेउसकी बीच में पापा ने एक छोटा सा खंभा बनवाया था और सारी कुर्सियाँ टेबल ऊपर रख दी। धीरे-धीरे शाम भी हो गई।

घर पर काफ़ी लोग आए थे। पापा ने बताया था कासलीवाल जी  रहे हैं इसलिए इतने सारे लोग आए थे उनसे मिलने। मां ने पहले ही बोल दिया था कि उनके पैर छूना। मैंने देखा काफ़ी लोग अपने परिवार के साथ आए थेउनके बच्चे भी थे उनके साथ। मैंने आज से पहले इनको कभी नहीं देखा था। इससे पहले पापा के दोस्तों से मैं मिला थापर ये अंकल लोग बिलकुल नए थे।

अचानक घर में एकदम भगदड़ सी मच गई। एक अंकल भागते हुए अंदर आए और चिल्लाने लगे, "वे लोग  गए!" मैंने भागकर ऊपर छत पर गया तो देखा एक बड़ी आलीशान गाड़ी हमारे कैंपस में प्रवेश कर रही थी। गुड्डू भइया ने बताया था कासलीवाल अंकल का बेटा गुड्डू भइया के स्कूल में पढ़ता था और रोज़ उनका ड्राइवर इसी गाड़ी में छोड़ने आता था... मैंने देखापहले सामने की सीट पर एक अंकल उतरेहाथ में छाता लिए और पीछे का दरवाज़ा खोला। उसमें से कासलीवाल अंकल उतरे। उन्होंने वह छाता अपने हाथ में ले लिया और उन्हें पीछे धकाते हुए वह छाता खोला और तभी उसी गाड़ी में से एक बूढ़े अंकल उतरे। उनकी उम्र ज़्यादा नहीं थी पर कासलीवाल अंकल और पापा से थोड़ी ज़्यादा लग रही थी। उन्होंने सफ़ेद धोतीउस पर भूरे रंग का कुर्ता और ऊपर से काले रंग का जैकेट पहना था। पाँव में उनके खड़ाऊँ चप्पल और गले में रुद्राक्ष की माला। आँखों में चश्माबालों को तेल से कंघी किया हुआ और क्लीन शेव किए हुए थे। वह जैसे ही उतरेअचानक भगदड़ सी मच गई। सरकार भी आए हैं उनके साथ। कन्नौजी सरकार भी आए हुए हैं। जैसे ही उन्होंने घर में प्रवेश कियातो देखा सरकार आगे-आगे चल रहे थे और हर कोई उनके पैरों में गिर गया था। कासलीवाल अंकल ठीक उनके पीछे चल रहे थे... सरकार के सामने हर कोई झुका हुआ था। तभी पापा की आवाज़ सुनाई दी, "नितिन कहाँ है... जल्दी बुलाओ उसे नीचे।मैं जैसे ही नीचे गया और भागता हुआ सीधा सरकार से टकरा गया। उन्होंने मेरी तरफ़ एक मुस्कान रखते हुए संस्कृत में एक श्लोक कहते हुए कहा, "ललिता सहस्रनाम"...

और मेरे माथे पर उन्होंने अपनी उँगलियों से एक चिन्ह स्मारक बनाया जो मैं समझ नहीं पाया क्या था।

पीछे से पापा की आवाज़ आई, "नितिनक्या बताया था मैंने..." और मैं घबराते हुए नीचे उनके पैरों में गिर गया। उन्होंने मुझे उठाया और कहा, "नितिन का मतलब पता है तुम्हें?"

मैंने घबराकर सिर हिलाकर मना किया।

"जिसका मतलब है नैतिकतानीतिका मार्गदर्शन करने वाला
 "
आओ नितिन हमारा मार्गदर्शक करो।इतने में पीछे से सबके हँसने की आवाज़ गूंजने लगी मैंने मुड़कर देखा तो पापा भी मुस्कुरा रहे थे।

पापा बोले—"जाओ ऊपर जाकर खेलो... जब पूजा होगी तो तुम्हें बुला लूंगा।मैंने ऊपर जाने लगा तो देखा 4 लोग अपने कंधे पर एक डोली रखकर ला रहे थे।

जो ढकी हुई थी और उसके आते ही बातों की कहर फूटने शुरू हो गए

पापा कासलीवाल अंकल के पास गए और आधा झुककर उनका हाथ पकड़ते हुए अपना सिर नीचे कर दिया... कासलीवाल अंकल तस से मस नहीं हुए... और बिलकुल सीधे खड़े थे। पापा ने उनसे पूछा, "भाभी जी नहीं दिख रही?"

उन्होंने बताया, "वह पीछे  रही हैं दूसरी गाड़ी मेंऋषभ भी उसके साथ है।"

पापा ने उनसे पूछा... "अब ऋषभ की तबियत कैसी हैडॉक्टर का क्या कहना हैआख़िर हुआ क्या है उसे?"

पापा की बातों को काटते हुए पीछे से सरकार की आवाज़ आई, "ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं इस दुनिया में जो विज्ञान की समझ के बाहर हैं। रोशनी कभी अंधेरे को ख़त्म नहीं करतीसिर्फ़ सीमित करती है। उस रोशनी के बाहर का अंधेरा  विज्ञान कभी समझा है  कभी समझेगा।"

कासलीवाल अंकल ने "शंभू वचनशंभू वचनकहते हुए सरकार की हाँ में हाँ मिला दी... तो बाकी के अंकल लोग भी कासलीवाल अंकल की हाँ में हाँ मिला रहे थे।

मैं ऊपर गया छत पर खेलने तो देखा और भी बच्चे आए हुए थे। घर मेरा था इसीलिए मैं धौंस जमा रहा था सब पर। "उस पर मत चढ़ोवह टूट जाएगा... ध्यान से खेलोवह खराब हो जाएगा..." पर मेरी कोई बात सुन ही नहीं रहा था। तभी पीछे से एक बच्चे की आवाज़ आई, "तुम्हारा नाम नितिन है?" मैंने सिर हिलाया, "ये तुम्हारा घर है?" मैंने उस लड़के को देख कर फिर से सिर हिलाया, "मेरे नाम अनंत है और ये मेरी बहन राधिका।"

अनंत ने पूछा "तुम्हें पता है क्या ये पूजा किस चीज़ की होने वाली है?" तभी राधिका ने उसे कोहनी मारते हुए कहा, "अनंतमना किया था मम्मा-पापा ने पूजा के बारे में बात करने से।"

"मुझे भी नहीं पताकल माँ बता रही थी कि देवी की पूजा है घर में और लोग आएंगे... पर मुझे नहीं पता था कि इतने लोग आने वाले हैं।"

"वो सब छोड़ोये बताओ क्या बोला तुम्हारी मम्मी ने पूजा के बारे में?" इस बार जिज्ञासा राधिका की तरफ़ से थी।

"नहीं मालूमतुम्हें कुछ पता है?"

राधिका ने बोला, "नहींबस इतना पता है कि इस पूजा में लड़कियों का आना मना है।"

अनंत ने बीच में पूछा—"तुम लोग इस घर में अकेले रहते हो?"

"नहींगुड्डू भइया और ताया जी भी रहते हैं... पर वो लोग इस पूजा में नहीं आने वाले।"

"गुड्डू भइयाकितने बड़े हैं तुमसे?"

"ज़्यादा नहींदो साल।"

राधिका हँसने लगी, "सिर्फ़ दो साल और तुम उसको भइया बुलाते हो।"

अनंत ने फिर बीच में कहा, "तब तोफिर वो ऋषभ की क्लास में होंगे।"

"हाँऋषभ और गुड्डू भइया एक ही स्कूल में ही पढ़ते थेशायद एक ही सेक्शन था दोनों का।"

"मैं दूसरे स्कूल जाता हूँ... पर गुड्डू भइया बताते थे ऋषभ के बारे में... शायद दोनों दोस्त भी थे।"

"तो फिर तुम्हें बताया क्या... क्या हुआ था ऋषभ को?"
 "
नहींसिर्फ़ इतना पता है कुछ बीमारी की वजह से वो कोमा में चला गया... अब पूरे दिन बिस्तर पर रहता है... और छत पर देखता रहता है... शायद गुड्डू भइया गए भी थे घर पर उससे देखने... पर मिलने नहीं दिया।"

अनंत ने बताया—"टेम्पररी पैरालिसिस कहते हैं उसे," मेरी तरफ़ एक गंदी मुस्कान रखते हुए मुझे नीचे दिखाते हुए कहा।

राधिका ने बोला, "पैरालिसिस में शरीर काम करना बंद करता हैदिमाग नहीं।"

"नितिन सही कह रहा हैवो कोमाटोज़ यानी कोमा में है... पर पता नहीं क्यों।"

"कितने साल से है वो कोमा में?"

"लगभग एक साल तो हो गया होगा।"

"पर कासलीवाल अंकल के पास तो इतना पैसा है फिर भी..."

मैंने सरकार की आवाज़ की नकल करते हुए कहा,
 "
ऐसी बहुत सी चीजें हैं इस दुनिया में जो विज्ञान की समझ के बाहर हैं।"

राधिका हँसते हुए बोली, "ये क्या है..." मैंने बताया उन दोनों को तो मेरे साथ हँसने लगे।

"अच्छा तुम दोनों को पता है उस डोली के अंदर क्या है..."

पीछे से आवाज़ आई...
 "
वराही... 64 योगिनी में से एक हैं... असम के बोडो और करबी आदिवासी इलाक़े में इसकी जंगल में पूजा करते थे... दक्षिण भारत में इसे वनराची भी बुलाते हैं... बहुत मुश्किल से इस मूर्ति को ढूंढकर लाए हैं... और साधना की शक्ति से... इस मूर्ति को नियंत्रण में रखा है।"

हम तीनों घबरा गए थे... क्योंकि हमारे सामने लगभग हमारी उम्र का लड़कामाथे पर तिलक सजाए... वही सरकार की तरह रुद्राक्ष की माला और धोती पहने खड़ा था।

मैंने पूछा "तुम कौन?"
 "
मैं वेदसरकार का शिष्य हूँ... हर साल कार्तिक अमावस्या की पूजा में मैं ही जाता हूँ उनके साथ।"

"कहते हैं कि बहुत कम लोग हैं जिन्हें नसीब होता है ये देवीदर्शन... इसका अर्थ समझते हो?"
 
हमने घबराते हुए तीनों ने सिर हिलाकर मना कर दिया।

"बहुत आसान है... देवी का दर्शन... देवीदर्शनऔर ख़ुशी से खुद ही हँसने लगा।
 
हम तीनों एक-दूसरे को अजीब से देख रहे थे कि इसमें हँसने वाली बात क्या है।

"तुम आजकल के अंग्रेज़ी माध्यम के छात्र सब भूल रहे हो अपनी संस्कृति के बारे में।"

 

"64 योगिनी भी नहीं मालूम होगा तुम तीनों को... मैं बताता हूँ सबसे ऊपर होती हैं आदि शक्तिउनकी रक्षा करती हैं 8 योगिनीजिसमें हर योगिनी के अंदर 8 योगिनी और आती हैं।"

"पर इनके बाहर भी ऐसी अपार शक्तियां हैं जिनके बारे में हमारे ग्रंथ में नहीं लिखा है... जैसे सभामोहिनी या कर्णपिशाचिनी।"

मैंने इंटरनेट पर पढ़ा था... अनंत ने अपनी होशियारी झाड़ना शुरू किया... "यूट्यूब पर देखा था।"

"इंटरनेटएक और बकवास।"

"इंटरनेट जो बताता है वो तुम लोग मान लेते हो... इसका अंदाज़ा नहीं तुम लोगों को कौन सी शक्ति अच्छी है या बुरी।"

इतने में राधिका ने पूछा, "लड़कियां इसमें क्यों नहीं हिस्सा ले सकतीं?"

"क्योंकि देवी को सिर्फ़ पुत्र प्रिय हैं।"

"हाँ... तुम दोनों इसमें भाग ले रहे हो ना?"

"क्या मालूम..." हम दोनों ने एक स्वर में उत्तर दिया।

"तंत्र में सिर्फ यही फ़र्क... तंत्र में देवी आपके पास आती हैं... मंत्र में आप देवी के पास जाते हो।"

वेद की बातें थोड़ी अजीब थीं जो हम लोग सुन रहे थे... पर था तो वो भी बच्चा... हमारी उम्र का लगभग... जब हम लोग खेल-खेल रहे थे वो दूर से देखता ऐसे दिखा रहा था कि वो हम लोगों से बहुत बड़ा है उम्र में और हम लोग कितने बच्चे हैं... पर उसकी आँखों में वो लालसा समझ  जाती कि वो कितना इच्छुक है पर बोलता नहीं अपने ज्ञान के घमंड की वजह से... जब हम लोगों ने उससे पूछा कि खेलोगे क्या?" तो बोला "2 मिनट देनाऔर भागकर नीचे गया... हमें लगा नहीं आएगा... पर वापस  गया और कहने लगा "हाँ... खेल सकते हैं... गुरुजी ने आज्ञा दे दी है... वैसे भी अभी पूजा में समय था..." खेल-खेल में हम चारों की दोस्ती हो गई।

इतने में दीदी  गई खेल का मज़ा ख़राब करने के लिए।

"नितिन माँ बुला रही है... नीचे जल्दी जाओ।"

मैं भागकर गया और धड़ाम से एक आंटी से टकरा गया, "सॉरी सॉरी आंटीकरने लगा।

मैं उन्हें देखकर सकपकाया। मेरे सामने ऋषभ की मम्मी खड़ी थी।

मैं इतना नर्वस हो गया था कि मेरे मुँह से "गुड ईवनिंगकी जगह "गुड मॉर्निंगनिकल गया।

उन्होंने उदासी भरी आँखों से मेरी तरफ़ देखा और कहा, "कोई बात नहीं बेटा।"

 

पीछे मम्मी खड़ी थीं, "ये मेरा बेटा है।"

"ओह... बड़ा प्यारा बच्चा है... क्या नाम है तुम्हारा?"

"नितिन।"

"नितिनचलो जल्दी तैयार हो जाओ... पूजा शुरू होने वाली है।"

मैंने नीचे जाकर देखा तो नीचे पूरा सन्नाटा सा छाया हुआ था... बहुत कम लोग दिख रहे थे... आधे से ज़्यादा लोग वापस चले गए थे... मुझे अजीब लगा क्योंकि मैं सोच रहा था कि सब लोग पूजा के लिए आए हुए हैं।

पता चला इतने लोग या तो सरकार या तो कासलीवाल अंकल से मिलने आए थे।

नीचे गया तो देखा... कासलीवाल अंकलपापासरकारवेदअनंत और एक अंकल और दो लड़के और खड़े थे... मैं भागकर अनंत के पास गया और पूछा "राधिका चली गई?"

"उसको और मम्मी को पापा ने वापस घर भेज दिया।"

"ये दो लड़के और कौन हैं?"

"मैं भी नहीं जानता।"

"श्श... वेद ने इशारा किया कि सरकार  रहे हैं।"

सरकार आकर उस मूर्ति के पास जाकर खड़े हो गए... हम सबकी तरफ़ देखते हुए... कहने लगे, "ललिता सहस्त्रनाम... इसका अर्थ होता है माँ के हज़ार नाम होते हैं... दुर्गासरस्वतीचंडीकाली और अन्य कई... जिनको शास्त्रों का ज्ञान नहीं है उन्हें पता भी नहीं होता कि इसके अलावा भी कई नाम होते हैं... कुछ भाग्यशाली होते हैं जिन्हें इसका ज्ञान है क्योंकि पूरा जीवन इनकी सेवा में लगा दिया... उन्हीं भाग्यशाली लोगों में से एक मैं हूँ... पर बहुत कम सौभाग्यशाली लोग होते हैं... जिन्हें उस शक्ति के दर्शन होते हैं... मेरा मानना है कि भाग्य का इसमें बड़ा हाथ है क्योंकि जो दर्शन ऋषि-मुनियों को कठोर साधना के बाद नहीं मिलती... वही दर्शन लोगों को बिना कुछ किए मिल जाते हैं...

दरअसलभाग्य और कर्म एक-दूसरे के प्रतीक हैं। जब आपकी मृत्यु होती हैतो कहते हैं कि आप कुछ नहीं लेकर जाते... ग़लतआप अपने कर्मों को लेकर जाते हैंऔर आपके पिछले कर्मों का ही फल होता है कि आपको थोड़ी सी आराधना से उस परम शक्ति के दर्शन हो जाते हैं। वह क्या कहते हैं अंग्रेज़ी में... "कैरी फ़ॉरवर्ड।"

 

"आज देखना हैकि किसके पिछले कर्म इतने अच्छे थेजिन्हें आज देवी के दर्शन होंगे..."
 
और यह कहकर सरकार ने उस मूर्ति से कपड़ा हटा दिया।

वह एक पत्थर की मूर्ति थीजो अजीब-सी आकार की थी।
 
मुझे उस मूर्ति में ऐसा कुछ ख़ास नहीं लगा... सिवाय दो बड़ी-बड़ी आँखों के।
 
और ध्यान से देखा तो बाल भी दिखाई दे रहे थे... और कुछ नहीं था उस चेहरे में...  होंठ गाल नाक — सिर्फ़ आँखें और मुँह।

मैंने अनंत से पूछा, "तुझे कुछ दिख रहा है क्या?"
 
उसने कहा, "मुझे कुछ समझ नहीं  रहा हैसिर्फ़ एक ख़ाली चेहरा दिख रहा हैजिसमें कुछ भी नहीं है।
 
सिर्फ़ ऐसा लग रहा है कि सिर पर बाल हैं।"

मैंने कहा, "ठीक से देखतुझे आँखें नहीं दिख रही हैं क्या?"
 
उसने कहा, "नहींपर हाँबहुत अजीब-सी मुस्कान उस मूर्ति में दिखाई दे रही है।"

"मुस्कान?" मैंने पूछा।
 "
हाँऐसा लग रहा हैवह मूर्ति मेरी तरफ़ देखकर दाँत दिखाकर हँस रही हो।"

मेरी हँसी निकल आईउसकी बातें सुनकर।
 
वेद ने फिर से "श्शकरके खामोश रहने को कहा।

सरकार ने फिर बताया,
 "
इस मूर्ति का इतिहास बहुत पुराना हैकितनामैं भी नहीं जानता।
 
कई लोगों ने इसे कई नाम दिए — कुछ लोग इसे 'वनराचिभी बुलाते थे।
 
कहते थे कि असम के भील वालों ने इसको हासिल किया।
 
इससे ज़्यादा इसके इतिहास में मैं नहीं जानता... और जानना भी नहीं चाहता।
 
क्योंकि मैं वर्तमान में विश्वास रखता हूँ।"

"हर माँ को अपने बालक प्रिय होते हैं,
 
पर देवी माँ के लिए सभी बालक उसके पुत्र समान होते हैं।
 
इसलिए इस पूजा में सिर्फ़ बालक हिस्सा लेंगे — 15 वर्ष की आयु से कम।
 
वो क्या कहते हैं अंग्रेज़ी में — 'एज रिस्ट्रिक्शन रिक्वायर्ड'"

सरकार की बात सुनकर वहाँ खड़े सभी लोग हँसने लगे,
 
पर मेरा ध्यान अब भी उस मूर्ति की तरफ़ था।

सरकार ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,
 "
आज कार्तिक अमावस्या हैआज का दिन तंत्र विद्या के लिए बहुत शुभ होता है।
 
ठीक सात बजे के बादजब अंधेरा हो जाएगाहम पूजा शुरू करेंगे।
 
इस मूर्ति की हमें कम से कम सात बार परिक्रमा करनी है,
 
तब तक जब तक हम में से किसी को देवी के दर्शन नहीं हो जाते।
 
हाथ में यह पुष्प रखना हैजब तक मेरा आदेश  हो।"

"चलिएपरिक्रमा करें। बोलिए — ललिता सहस्त्रनाम"

हम सभी ने परिक्रमा शुरू कर दी। इस में सिर्फ़ हम चार लोग थे।
 
धीरे-धीरे अंधेरा बढ़ने लगाऔर सरकार ने कहा,
 "
रोशनी के लिए या तो लालटेन या फिर मोमबत्तियाँ इस्तेमाल करो,
 
बाकी रोशनी बंद कर दीजिए।"

इस वजह से अंधेरा और गहराने लगा।

जब हमने पहली परिक्रमा की,
 
तो वेद ने रुकने को इशारा किया और हाथ में पुष्प की जगह दूध का लोटा पकड़ाते हुए कहा,
 "
अब उस मूर्ति की तरफ़ देख कर यह दूध अर्पण कर दो।"

 

मैंने अजीब सी चीज़ देखीअब मुझे उस मूर्ति में वह मुस्कान और आँखें दोनों दिख रही थींलेकिन इस बार मूर्ति के सिर पर असली बालघने काले रंग के दिख रहे थे। पहले जब मैंने देखा थातो सिर पर बाल नहीं थेलेकिन अब बाल असली लग रहे थे।

जैसे ही हमने तीसरी बार परिक्रमा कीतो मैंने देखा वही मुस्कानबड़ी-बड़ी आँखेंलेकिन इस बार बाल ज़मीन तक  गए थे। धीरे-धीरे चौथी परिक्रमा भी पूरी हो गई थीऔर मुझे समझ नहीं  रहा था कि ज़मीन पर बाल कैसे फैल गए थे। ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी पेड़ की जड़ की तरह ज़मीन में जा रहे हों और पेड़ की तरह उग रहे हों।

अनंत मेरे पास नहीं खड़ा थामुझे समझ नहीं  रहा था कि जो मैं देख रहा हूँक्या वह भी वही देख रहा है। मैंने दूर से उसकी तरफ देखातो वह उबासी ले रहा था।

पाँचवीं परिक्रमा के बादसरकार ने कहा, "जो हाथ में दूध हैवह पूरी तरह से अर्पण कर दो।"
 
मैंने वैसा ही किया।

वेद मेरे पास बहुत सारा चंदन का लेप लेकर आयाजैसे ही मैंने कुछ कहना चाहाउसने गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए जल्दी से कहा,
 "
चुप रहोकिसी को कुछ बताना मतअगर कुछ दिख भी रहा हो तो। चाहे कुछ भी हो जाए उस मूर्ति की तरफ मत देखना अगर कुछ दिख रहा हो तो।"

सरकार ने सभी से कहा, "जाओ और थाल में जितना चंदन का लेप हैउसे मूर्ति पर अच्छे से मल दो।"
 
सब ने एक-एक करके सरकार के इशारे पर वही किया।

मुझे बहुत डर लग रहा था। जब मैं उस मूर्ति के पास गयातो उसके सिर के बाल बिल्कुल असली लग रहे थे।
 
और जब वे मेरे पैरों के तलवों को छू रहे थेतो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो मूर्ति अपने बालों से मेरे पैर पकड़ लेना चाहती हो।

मूर्ति पूरी तरह से चंदन से लिपटी हुई थीलेकिन उसकी आँखें अब भी दिखाई दे रही थीं।
 
मैंने जैसे ही चंदन लगाना शुरू कियामुझे ऐसा लग रहा था कि मैं किसी पत्थर को नहींबल्कि किसी चमड़े या किसी के शरीर को छू रहा हूँ।
 
मैंने जल्दी से चंदन लगा कर वापस  गया।

सरकार ने कहा,
 "
बसअब दो परिक्रमा बाकी हैं।
 
आप लोग जो भी महसूस कर रहे हैंउसे अपने तक सीमित मत रखिए।
 
सभी अपनी आँखें बंद करिए और माँ का स्मरण करिए।
 
और जब मैं कहूँतो अपनी आँखें खोलिए।"

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीऔर ठीक दो मिनट बाद जब सरकार ने इशारा कियातो मैंने आँखें खोली।

जैसे ही मैंने आँखें खोलीमेरी डर के मारे चीख निकल गई।
 
सब लोग मेरी तरफ देखने लगेलेकिन मेरी नजर उस मूर्ति से हट नहीं रही थी।

अब जो मेरे सामने थावह कोई देवी की मूर्ति नहीं थीबल्कि एक विशालकाय औरत जैसी बैठी थी जो पूरी चंदन से लिपटी हुई थी और लाल साड़ी पहने हुए मुझे अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से मुस्कुराते हुए देख रही थी।
 
वह जोर-जोर से साँस ले रही थीऐसा लग रहा था कि जोर से साँस खींच कर मुझे अपने पास बुला लेगी।

उसके सिर के बाल ज़मीन तक फैले हुए थेजैसे जाल हो।

मैं चिल्लाते-चिल्लाते माँ को पुकारने लगा।

सरकार खुशी में चिल्लाते हुए बोले,
 "
देवी प्रसन्न हो गई। हमारी पूजा लगभग सफल हो गई।
 
सब बच्चे पीछे हट जाओ... सिवाय नितिन के... बाकी की परिक्रमा सिर्फ नितिन को करनी है।"

मेरी चाहने के बावजूद भी मेरी नजर और कदम वहाँ से हट नहीं रहे थे।
 
मैं वहाँ से भागने की कोशिश कर रहा थापर मेरे पैर ऐसा लग रहा था कि किसी ने उन्हें पकड़ कर रखा हुआ हो।

मैंने पापा को जोर से चिल्लाते हुए बोला,
 "
पापामैं गर्दन नहीं मोड़ पा रहा हूँ और मेरे पैर यहाँ से हिल नहीं पा रहे हैं।"

सरकार ने बीच में कहा,
 "
बेटातुम्हारा चुनाव देवी ने कर लिया है।
 
अब तुम जब तक बाकी की दो परिक्रमा नहीं करतेतुम यहाँ से नहीं जा पाओगे...
 
बस तुम कदम बढ़ाओचिंता मत करो।
 
अगर तुम्हारी नजर वहाँ से हट नहीं रही हैतब भी अपने आप परिक्रमा हो जाएगी।"

सरकार ने वेद को इशारा किया कि मेरे हाथ में फिर से वह पुष्प रख दो।

 

वेद मेरे पास आया और दबे हुए स्वर में कहा,

"नितिनजैसे तुम परिक्रमा शुरू करोचाहे कुछ भी हो जाए अपनी आँखें मत बंद करना। अपनी पलकें भी मत झपकाना। बस दो परिक्रमा कर लो। देवी को पसंद नहीं कोई उसे आँखें चुराए।"

मैं जैसे ही परिक्रमा लेना शुरू कियापता नहीं कैसे मेरी नज़र वहाँ से हट नहीं रही थी... मुझे बहुत अजीब लग रहा था। वह मुझे बड़ी-बड़ी आँखों से घूरते हुए हँस रही थी। उसकी वह आँखेंवह डरावनी हँसीऔर ज़मीन पर फैले बाल — सब कुछ बहुत ही भयानक लग रहा था।

तभी मैंने एक चीज़ देखीजिससे मेरी रूह काँप गई। उसका शरीर एक ही जगह पर ठहरा हुआ थालेकिन उसकी गर्दन हर उस दिशा में मुड़ रही थी जहाँ मैं जा रहा था… ताकि वह एक पल के लिए भी मुझे घूरना बंद  कर सके।

मैं उसकी परिक्रमा कर रहा थाइसलिए वह अपनी गर्दन ऐसे घुमा रही थी जैसे कोई उल्लू — पूरा मोड़करसिर्फ मुझे घूरते रहने के लिए।

पापा की आवाज़ सुनाई दी मुझे,
 "
बहुत बढ़िया नितिन बेटा... शाबाशबस एक परिक्रमा और बची है।"

बस एक परिक्रमा और और मैं  चाहते हुए भी वह कर रहा था। कुछ भी कर भी नहीं सकता था क्योंकि  चाहते हुए भी मेरी नज़र वहीं फंसी हुई थी। मेरी आँखों में अलग ही भारीपन महसूस हो रहा थाअलग ही जलन हो रही थी। पर पता नहीं क्योंवह डर था कि क्या होगा।

मैं चलता चला गयापर अब बर्दाश्त नहीं हुआ और मैंने जैसे ही पलक झपकाईतो देखा मेरे सामने सिर्फ घना अंधेरा था। ना मुझे कुछ सुनाई दे रहा थाना कुछ दिखाई दे रहा था।

मैं अंधेरे में चिल्ला-चिल्ला कर माँ को पुकारने लगापर कुछ नहीं — सिर्फ अपनी आवाज़ की गूंज  रही थी।

दूर से मुझे रोशनी के दो छेद दिखाई दे रहे थे। मैं उस रोशनी के पीछे-पीछे चलता चला गया।

जैसे ही मैं पास पहुंचामुझे मम्मी और पापा की आवाज़ सुनाई दी। मैं उस रोशनी के पास गया और उसमें अपनी आँखें गड़ा दी जहाँ से वह रोशनी  रही थी।

मैंने देखा माँ बहुत रो रही थी। मैंने आवाज़ दी उन्हेंपर उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया और रो रही थीं।

पापा वहाँ खड़े खड़े माँ को चुप करवा रहे थेऔर उनके बगल में कासलीवाल अंकल और आंटी खड़े थे।

पापा ने कहा,
 "
बस करोदेखो ना हमसे कितनी बड़ी मुसीबत हट गई। कासलीवाल जी को उनका बेटा वापस मिल गया है। वह कोमा से बाहर  गया है।"

कासलीवाल जी हमारे करोड़ों का कर्जा भी चुका देंगे और सबसे बड़ी बातउस देवी के आशीर्वाद से वह ज़मीन भी अब हमारी हो गई है पूरी।

"मत देवी बुलाओ..." माँ ने जोर से कहा,
 "
देवी नहीं है वो..."

"मुझे अगर आपके इरादे पता होते तो मैं नितिन को कभी उस पूजा में जाने देती। मैंने भरोसा करके बहुत बड़ी गलती की।"

"क्या मैं नहीं चाहता हूँ नितिन कोमुझे अफसोस नहीं है क्या उसकामैं भी बाप हूँ। पर यहाँ बैठ कर रोने से क्या होताआज हम लोगों के सिर पर ये हवेली है तो सब सरकार की वजह से।"

कासलीवाल आंटी बीच में बोली,
 "
भाइसाहबआप प्लीज़ दो मिनट के लिए शांत हो जाइए। मैं आपके दर्द को अच्छे से समझ सकती हूँ एक माँ होने के नाते।
 
जब मैंने ऋषभ को खोया था तो मैंने भी उसे इसी तरह कोसा थापर आज देखिएउसी देवी की कृपा से मेरा बेटा मेरे पास वापस  गया।"

"आपके नितिन का बलिदान मैं नहीं भूल सकती।
 
हम लोगों ने करोड़ों का कर्जा चुका कर कोई एहसान नहीं किया आपकाक्योंकि मैं जानती हूँ एक माँ के लिए उसके बेटे की कीमत कोई नहीं लगा सकता।"

"पर भरोसा रखिएआपका नितिन बहुत जल्दी आपको मिल जाएगा।
 
बस आप भगवान के खातिर जो भी यहाँ हुआ किसी को मत बताइए। वैसे भी कोई आपकी इन सब बातों को नहीं मानेगा।"

"और मेरा बेटा नितिन..."

कासलीवाल अंकल कहने लगे,
 "
आप चिंता मत कीजिए। वह देवी के साथ सुरक्षित हैंउसी मूर्ति में।
 
सिर्फ अगले कार्तिक अमावस्या की बात है। देवी को कोई और नितिन मिल जाएगा और आपका नितिन आपको मिल जाएगाजैसे हमें हमारा बेटा मिल गया।"

"और अगर अगली कार्तिक अमावस्या को कोई नहीं आया इस पूजा में..."

"आप उसकी चिंता मत कीजिए। इस दुनिया में कमी नहीं ज़रूरतमंद लोगों की। कोई  कोई मिल जाएगा जिसे देवी के आशीर्वाद की ज़रूरत होगी। उससे देवी का आशीर्वाद मिल जाएगा और आपको आपका नितिन।"

"बस एक साल की बात है... वे यूं पलकों झपकते हुए निकल जाएंगे।"

माँ चुपचाप रोते हुए सिर हिलाती हुई चली गई।

जैसे ही माँ उठीमैंने देखा मैं वहाँ बिस्तर पर लेटा हुआ था और मेरी आँखें खुली हुई छत की ओर देख रही थीं।

मैं डर के मारे जोर-जोर से माँ को पुकारने लगा।

तभी अचानक मेरे कंधे पर किसी ने हाथ रखा।

उसके हाथ मुझे बहुत सख्त और खुरदरे लग रहे थेजैसे कोई नुकीली चीज़ मेरे शरीर को चुभ रही हो।

मैं डर के मारे और चिल्लाने लगा।

उसने अपने हाथों से मेरा मुँह बंद कर दिया और मुझे अपनी छाती से लगा लियाऔर जोर-जोर से सांस लेते हुए उसने "sssshhhhh" की दहाड़ लगाई...

 


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