Dear Diary कोरोना से आई स्वछता
Dear Diary कोरोना से आई स्वछता


बचपन में हिसाब की किताब में सवाल पढ़ा था -मूलधन सौ रुपए हर प्रश्न में मूलधन सौ ही मान कर चलना पड़ता था ।लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि मूलधन सौ क्यों मानते हैं ।यही यही बात हमारे भारतीयों में सफाई के लिए मानी जाती थी कि सब साफ ही है हां - हाथ झाड़ के खा लिया जाता था ।साफ तो है हर चीज को साफ ही मानकर चला जाता था । चाहे आप बाजार में गंदगी के ढेर के पास पानी पूरी टिक्की खा रहे हो पर सब साफ है ।चाहे अपना घर साफ करके बाहर गंदगी का ढेर लगा दिया हो लेकिन सब साफ है।
कोरोना क्या आया।
अपने साथ स्वच्छता अभियान लाया। जीवन में सफाई के लिए जो आज जागरूकता उठी है मैं सोचती हूं कुछ समय पहले अगर भारत भी स्वच्छता की ओर ध्यान रखता और हर चीज साफ ही है मानकर ना चलता तो आज हम काफी हद तक बच गए होते।
सफाई की तरफ इतना ध्यान -इतना जागरूकता ।आज हर कोई है बार-बार हाथ हो रहा है ट्रेन ने साफ हो रही है , हैंडल बार-बार साफ हो रहे हैं ।सब अपने-अपने घरों में रुक गए है।
असल में स्वच्छता अभियान तब नहीं आया था ।जब मोदी जी ने स्वच्छता अभियान शुरू किया था तब तो लोगों ने झाड़ू पकड़ पकड़ के सिर्फ फोटो ही खिंचवाई थे ।मुझे याद है घर में ,मैं पहले से ही सफाई की तरफ बहुत ध्यान देती थी और मेरी सफाई हर चीज को साफ रखना और घर की सफाई रखना पर कई बार मुझे बातें भी सुननी पड़ती थी। अगर मैं जाले उतार रही हूं तो सब कहते साफ ही है कहां लगे हैं फिर मैं सोचती , मुझे लगता कि जाले सिर्फ मुझे ही दिख रहे हैं और किसी को नहीं दिखाई देते हर चीज को व्यवस्थित कर ढंग से रखना हर चीज को साफ सुथरा सजाकर रखना मेरी आदत थी और यह आदत मुझे परेशान भी करती थी क्योंकि बाक़ी किसी को लेना देना नहीं होता था सफाई से क्योंकि मुझे अच्छा नहीं लगता था। इसलिए मुझे सफाई करनी पड़ती थी अपनी खुशी के लिए अपनी संतुष्टि के लिए ।
कभी मुझे गुस्सा आता तो मन करता ,मैंने नहीं करनी देखती हूं कौन करता है। समझाने वाले कहते तू क्यों करती है पड़ा रहने दे ।लेकिन मैंने देखा अगर मैं गुस्से में दो-तीन दिन साफ ना करूं ।पूरे घर में जो जहां पड़ा है वहीं पड़ा रहेगा ,किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता और तीसरे दिन मुझे खुद ही साफ करना पड़ता तो इसलिए मैं अपनी खुशी के लिए हर चीज को साफ रखती।
क्योंकि मुझे ही रखना है यहां तक कई बार यह भी तू ही तो नहीं काम करती यह बातें भी सुनी है लेकिन आज कोरोना की वजह से सब सफाई के प्रति जागरूक हो गए हैं मुझे याद है दिसंबर की छुट्टियों में बच्चों ने मेरे साथ जाने से इनकार कर दिया मैं अकेले कुछ दिनों के लिए पठानकोट गई क्योंकि मुझे 6 महीने हो चुके थे अपनी मम्मी से मिले हुए तो मैंने अपना दिल पक्का करके पठानकोट चली गई। अक्सर जब भी मैं दोबारा , छुट्टियों के बाद वापस आती हूं मुझे एक हफ्ता वापस आकर घर की सफाई में लग जाता है।
पीछे से कोई चीज भी साफ नहीं की गई होती सारे बेडशीट बदलो ,कवर बदलो सब कुछ फिर से ठीक करो और एक हफ्ता यहां तक कि मुझे वापस आकर घरवालों से फोन पर बात करने का टाइम भी नहीं मिलता था ।
इस बार जब मैं छुट्टियों से वापस आई तो मैंने देखा सबने गंदे कपड़ों के ढेर लगाए हुए थे जो कपड़े धो कर गई थी उसके बाद कपड़े नहीं धुले थे और जो धो कर गई थी,छुट्टियों से पहले किसी ने बाद में वह भी सूखने नहीं डाले थे वह मैंने 10 दिन बाद आप धूप में डालें सारे कमरों की अस्त व्यस्तता , बच्चों के कपड़े हर किसी ने उतार उतार के ढेर लगाए हुए थे ,4 दिन लगातार कपड़े धोने में ही निकल गए साफ सफाई के बाद मुझे बहुत दुख हुआ कि इतना गंद किसी ने चीज उठा कर रखी नहीं । जबकि घर में उस समय 8 लोग थे इतनी अस्तव्यस्तता।
मम्मी ने जवाब दिया कि मैं तो बस खाना ही बना कर दे सकी सफाई नहीं की ।मेरे बच्चों ने कोई समान जहां -वहां फैका हुआ था। हर चीज बिखरी पड़ी थी ।बेटी ने बेड के पीछे पेपर अगर टॉफी टेस्टी नहीं लगी तो वह भी बेड के पीछे ही फेंकी हुई थी। मेरे पतिदेव जी इतना गंदा पजामा डाला हुआ था कि मेरे जाने के बाद बदला ही नहीं हो । मैंने जब पूछा इतनाा गंदा पजामा क्यों डाला है तो गुस्सा कर गए कि कपड़ों के ढेर लगाने थे मेरे मन में ही बात रह गई कितने गंदे कपड़े किए हुए हैं , एक पजामे से कपड़े कम हो जाने थे ऊपर इतना ढेर लगा हुआ है और जो कपड़े धो कर गई थी वह भी किसी से सूखने नहीं डालें और बातें कर रहे है ।मैंने तो कुछ नहीं कहा लेकिन गंदा पजामा कहने पर ही वह कई दिन मुंह बनाकर घूमते रहे। इनको आदत थी कि चार-पांच जोड़ें दरवाजे के पीछे कपड़ों के ढेर लगा देने आज कोरोना की वजह से पहली बार दरवाजे के पीछे कपड़े नहीं थे।
पहले कहते थे मंदिर में ही तो पजामा डाला है ।मन में सोचती मंदिर में डाला है तो वहां की मिट्टी गंदा नहीं करती वह पवित्र हो जाता है वही आज कोरोना के कारण मंदिर से आकर बार-बार कपड़े धोते हैं इससे यह हुआ कि वह मंदिर जाने के लिए जो कुर्ते पजामे इतने उसके घुटने काले कर लेते थे जो मुझे लगता था कि यह मंदिर में माथा टेकने नहीं घुटने ही रगड़ कर आते हैं। आज बस एक चक्कर में ही डालते हैं फिर आकर धो देते हैं कपड़े साफ ही रहते है।
अब वह अपनी सफाई के प्रति अपनी सफाई के प्रति बहुत जागरूक हो गये है । वह सब जो एक दूसरे के कपड़े भी डाल लेते थे बिना धोए अब कम से कम अपनी सफाई का तो ध्यान रखते हैं ।सारा घर व्यवस्थित करने में मुझे बहुत समय लगता है।आज बेटी थोड़ी थोड़ी देर बाद सैनिटाइजर का छिड़काव कर रही है ।वह सभी जिन्हें कहीं गंदगी दिखाई नहीं दे रही थी आज नालियों साफ करें रहे हैं घर की ।मेरे पति किचन की सफाई कर देते हैं। दरवाजों के हैंडल साफ करते हैं । डिटॉल से बार-बार हाथ धोते हैं चलो सफाई के प्रति जागरूकता आई है ।
मैंने कई बार सबको समझाया कि साफ रखो साफ रखो और मुझे ही कहते थे तेरा बस चले तो तू लोगों की गलियां भी साफ करने लग जायें।
आज वह सब सफाई के प्रति जागरूक देखकर कोरोना के डर से मुझे बहुत खुशी होती है और चाहती हूं कि कोरोना हटने के बाद भी सफाई के प्रति स्वच्छता के प्रति इनका यह जज्बा बना रहे। पूरे देश का सफाई के प्रति यह जज्बा बना रहे।