Akanksha Gupta

Drama

5.0  

Akanksha Gupta

Drama

डोसा

डोसा

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मेरा डोसा खाने का मन था। मैं किराये के घर के चबूतरे के बाहर मम्मी के साथ बैठी थी।

“मम्मी कुरकुर बना दो ना। बहुत दिन हो गए बनाया नही।”

“कुरकुर! यह कौन सी चीज है भई ? चलो ठीक है तुम बता देना,मैं बना दूँगी।”

“अरे यार मम्मी तुम समझ नहीं रही। यह तो हमारा कोड वर्ड है। बाहर इतने लोग बैठे हैं, अगर सीधे-सीधे बोल दिया तो सब सुन लेंगे और फिर……”

“ठीक है बना दूँगी लेकिन ऐसे गंदी बातें नहीं करते।”

अगले ही दिन डोसा तैयार था। हमेशा की तरह कुरकुरे और स्वादिष्ट।

“मम्मी डोसा बहुत अच्छा बना है।”

“हर बार तो यही कहते हो कि इससे अच्छा कभी नहीं बना।”

यह सिलसिला आज तक जारी है।


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