डायरी

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मार्च महीना हमेशा से ही मेरे लिए खास रहा है, इस साल परेशनियों से भरा होने के बावजूद भी विशेष महत्व लिए हुए था, आज 18 मार्च मेरा जन्मदिन होने की वजह से मेरे लिए खास है, और आज तो यह मेरे लिए ऐतिहासिक महत्व लिए हुए आया है l इंटरमीडिएट की कॉपी जाँच चल रही है। मेरा जन्मदिन होने की वजह से सुबह से ही फेसबुक और व्हाट्सएप पर शुभकामना संदेश आ रहा है। बीच-बीच में फ़ोन कॉल भी आ रहे थे लेकिन मेरी परेशानी यह थी कि अत्‍यधिक खांँसी होने की वजह से 13 मार्च से मेरी आवाज बिल्कुल बंद हो गई है, इसलिए उसे रिसीव नहीं कर पा रही थी। डॉक्टर की सख्त हिदायत थी कि मैं अपनी आवाज को पूर्णतः विश्राम दूँ।

दिन भर यह सिलसिला चलता रहा। इन्ही सिलसिलों के बीच मन अंदर चिंताओं से भरा था कि मेरी आवाज को क्या हो गया है ? मैं दुबारा कब बोल पाऊँगी ? डॉक्टर के अनुसार 24 से 48 घंटे में आवाज नॉर्मल हो जानी चाहिए थी परंतु आज 5 दिन हो चुके थे लेकिन मैं बोलने में बिल्कुल असक्षम थी। शाम में पुनः डॉक्टर के पास जाना था। साथ ही मन शुभकामना संदेश से गदगद था। शाम में उछलती-कूदती मैं घर वापस आयी। यहाँ ये कहना उचित होगा कि मैं नहीं मेरा मन उछल कूद रहा था। क्यूँकि देखने वालों की नजर में तो मेरी चाल समान्य ही थी। घर पहुँच कर कपड़े बदले, हाथ-पांव धोये और मोबाइल ले के बिछावन पर आराम करने आ गयी।

उसी समय हिन्दी भाषा साहित्य सम्मेलन की ओर से व्हाट्सएप पर अचानक एक पत्र आया जिसमें सम्मानित होने वाली सौ विदुषियों में मेरा नाम भी था। मेरे लिए आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मैं एक सीधी-साधी थोड़ी बेवकूफ सी गाँव के विद्यालय में इंटरमीडिएट स्कूल की शिक्षिका। जब कोई पुस्तक या कोई घटना दिल को छू जाय और कलम खुद ब खुद उठ जाय तभी किसी रचना का सृजन हो पाता है अन्यथा कुछ लिख नहीं पाती हूँ, हाँ जो भी लिखती हूँ दिल से लिखती हूँ, अंतर्आत्मा से लिखती हूँ। सम्मान समारोह का आमंत्रण पत्र देख कर मन आनन्दित हो उठा। गम भले ही चुपचाप दिल में दफन कर दिया जाय लेकिन खुशी, वो तो खुद ब खुद छलक-छलक कर बाहर आने लगती है, वो छुपाये नहीं छुपती। मैं बोल तो नहीं पा रही थी जो किसी से अपनी खुशी जाहिर करती। मैं व्हाट्सएप में अपने फेमिली ग्रुप पर निमंत्रण पत्र डाल कर सबों को सूचित कर दी कि मैं 25 मार्च की शाम में पटना आ रही हूँ। जन्मदिन की बधाई के साथ-साथ सम्मान समारोह में भी शामिल होने की बधाईयाँ मुझे मिलने लगी। एक खूबसूरत एहसास मन मस्तिष्क में छाने लगा और याद आने लगा परेशानियों भरा वो दिन जिस दिन मैं अपनी रचना भेज कर आयी थी। किस प्रकार हॉस्पिटल के आपा-धापी के बीच थोड़ा समय निकाल कर मोबाइल से प्रिंटआउट ले कर रचना भेज कर आयी थी।


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