STORYMIRROR

मेरुदंड

मेरुदंड

3 mins
1.8K


आशुतोष को जब पहली बार नौकरी मिली तो घर से जाते समय माँ ने बेटे को समझाते हुए कहा "बेटा जतन से पैसा खर्चा करियो। जैह-तैह समान नय खरीदीहो। भैया नौकरी नय करे छहुन ओकरा तीन-तीन गो बेटी छै। ओकर बिहा-शादी सब्भे के मिल के करे पड़तुन।" माता-पिता का आज्ञाकारी पुत्र माँ की बातों को सिर आंखों पर लेकर नौकरी के लिए प्रयान करता है। वह माँ की हर बात का ध्यान रखता है एवं अपनी गृहस्थी को हिसाब से चलाता है। उसकी कोशिश रहती थी कि अधिक से अधिक पैसा घर भेज सकूँ, ताकि पिताजी का बोझ कुछ हल्का हो और भैया के बच्चों की अच्छी परवरिश हो सके।

माँ-पिताजी एवं भैया जब भी आशुतोष से मिलने आते थे वह एवं उसकी पत्नी उनकी जरूरत का ज्यादा से ज्यादा समान खरीद कर भेजने की कोशिश करते थे। फिर भी जब कभी उनके मन के अनुरूप समान नहीं मिल पाता तो वह कहते मँझली बहुत कंजूस और हिसाबी है। हर बार लम्बी लिस्ट रहती थी, उनके पास। जिससे आशुतोष के अपने घर का बजट बिगड़ जाता था और उसे कभी बच्चों की फीस तो कभी जरूरी जरूरत भी अगले महीने के लिए टालना पड़ता था। समय के साथ सबों के सहयोग से बड़े भाई के तीनों बेटियों की शादी हो गई। आशुतोष के माता-पिता भी सभी जिम्मेदारियों से मुक्त हो कर आर्थिक रूप से संपन्

न हो गए। दोमंजिला इमारत भी बनवा ली गयी। तीनो बेटियों की शादी के बाद आशुतोष की बड़ी भाभी को भी नौकरी मिल गई। घर के सभी व्यक्ति आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़ा हो गए।

 समय का चक्र कुछ इस तरह चला कि जिस प्राइवेट कंपनी में आशुतोष काम पर करता था, वह उसे छोड़ना पड़ा। एक के बाद एक पाँच कंपनियां में उसने काम किया। किसी कंपनी का प्रोजेक्ट बंद तो कोई कंपनी। आशुतोष अपनी नौकरी छूट जाने के बाद बहुत तनाव में रहने लगा। वह सोचा कि इधर-उधर भटकने से अच्छा है कि घर पर जाकर परिवार वालों के साथ समय बिताया जाय एवं खेती-गृहस्थी के कामों में मदद की जाए। उसके मन मे यह बात भी थी कि बीस वर्षों तक जिस परिवार को जी-जान से सहयोग किया है वे उसके मुसीबत की घड़ी में सहयोग करेंगे। इधर माँ भी एक असाध्य बीमारी के कारण गुजर गई थी।

सबों को समझा-बुझाकर कर घर को एक सूत्र में पिरो कर रखने वाली की ही डोर टूट गई। सबों का अपना अपना आधिपत्य कायम हो गया। जो आशुतोषअपने परिवार के लिए मेरुदंड बना हुआ था, उसके जरूरत पर उसी परिवार का रंग बदल गया। उसकी डूबती किश्ती को तिनके का सहारा भी नहीं मिला। बहुत संघर्ष के बाद किसी तरह घर के वातावरण में वह अपना सामंजस्य बना पाया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama