डाक्टर रुपी संत
डाक्टर रुपी संत
एक महात्मा ने देखा कि एक मनुष्य एक तीर्थ स्थल की परिक्रमा करता हुआ यह प्रार्थना कर रहा था- हे ईश्वर ,मेरे भाइयों और मित्रों को नेक बंदा बना दे ।जब उन महात्मा ने उससे पूछा कि इस पवित्र धर्मस्थल पर पहुंचकर तू अपने लिए प्रार्थना क्यों नहीं करता ?अपने भाइयों और मित्रों ही के लिए प्रार्थना क्यों कर रहा है? तो उसने उत्तर दिया मेरे जो भाई हैं, मेरे जो मित्र हैं ,मैं उन्हीं के पास लौटकर जाऊंगा ,यदि वह नेक और सच्चरित्र हुए तो मैं भी उनकी संगत में नेक और सच्चरित्र बन जाऊंगा और यदि वह बुरे और चरित्रहीन हुए तो मैं भी वैसा ही हो जाऊंगा ।साधक !किसी तीर्थ स्थल पर पहुंचकर क्या अपने आप ने भी अपने भाइयों और मित्रों के लिए ऐसी दुआ की है ?यदि नहीं तो आप लोग भव रोग से पीड़ित हैं
यह ऊपर वर्णित छोटी छोटी बातें यद्यपि इतनी आसान है कि एक साधारण मनुष्य भी इन पर अमल कर सकता है। परंतु देखने में आता है कि बड़े-बड़े साधक भी इन साधारण साधना पर अमल नहीं कर पाते हैं ।क्यों? इसलिए कि प्रायः मनुष्य ईश्वरीय मार्ग में अपने मन के अनुसार ही चलता रहता है या फिर कुछ धर्म पुस्तकें पढ़कर समझने लगता है कि मैं इस मार्ग का यात्री हूं ।अरे आंखों का बड़े से बड़ा डॉक्टर भी अपनी आंखों के मोतियाबिंद का ऑपरेशन स्वयं नहीं कर सकता ।तो मनुष्य अपनी सामर्थ्य के भरोसे इतने रहस्य पूर्ण मार्ग में कैसे चल सकता है ?मनुष्य अपने आप साधना कर करके चाहे कितना ही का ज्ञान प्राप्त करले ,कितनी ही सिद्धियां प्राप्त कर ले, अपने आध्यात्मिक रोगों का इलाज अपने आप नहीं कर पाएगा।
कहीं ना कहीं त्रुटि कर ही बैठेगा -----कोई ना कोई कमी रह ही जाएगी -यदि कोई बताने वाला ना हुआ तो है इस त्रुटि को, इस कमी को कैसे जानेगा और जब जानेगा ही नहीं तो इसे दूर कैसे करेगा ?इसलिए संतों के यहां साधना में गुरु का विशेष स्थान है----- विशेष महत्व है ।अतः हे साधक, हे ईश्वर की राह के यात्री ,यदि आप इन लोगों में से किसी रोग से पीड़ित हैं और चाहते हैं कि इससे मुक्ति मिल जाए तो किसी अच्छे डॉक्टर रूपी संत को अपनी नब्ज दिखाइए ,उनके नर्सिंग होम रूपी सत्संग में दाखिल होकर उनकी देखरेख में अपना इलाज कराइए -----तभी आप स्वस्थ जीवन -–अध्यात्मिक जीवन का आनंद प्राप्त कर पाओगे –--तभी आप दूसरों को स्वस्थ जीवन -----आध्यात्मिक जीवन का आनंद लेने का अवसर दे पाओगे ----इसके लिए अन्य कोई दूसरा उपाय है नहीं।