दादी को पोती का खत

दादी को पोती का खत

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प्रिय दादी,  

आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है। इसीलिये तुम्हें खत लिख रही हूँ। मुझे मालूम है कि ये पत्र तुम्हें भेज नहीं पाऊंगी।क्योंकि तुम जहाँ हो, वहाँ कोई पत्र नहीं पहुँच सकता है! 

पर आज अपने मन की भावनायें तुमसे साझा कर रही हूँ। पता है क्यों? तुम्हें तो पता होगा ना?। दादी हो मेरी,परलोक से देख ही रही होगी कि मेरे साथ क्या हुआ? वैसे तो तुम्हारी दी हुई सभी सीखें याद हैं, पर कुछ दिनों से तुम्हारी कही हुई एक बात मुझे हर वक्त बहुत याद आती है! बचपन से ही मैं इत्र की बहुत शौकीन थी और दोपहर में सबके सो जाने के बाद अम्मा की अलमारी से इत्र की शीशी निकालकर चुपचाप सारे बदन में लगा लेती,

बगैर सोचे कि उसकी खुशबू नहीं छिपती। वह तो फैल ही जाती है! पर तुम समझ जाती और कभी गुस्से से तो कभी समझाते हुए कहतीं कि "बिटिया ज़्यादा सेंट-वेंट ना लगाया करो ! इतवार, मंगल को और घर के बाहर जाओ तब तो बिल्कुल भी नहीं लगाना! काहे कि मरे हुए लोगों की आत्मा पकड़ लेती है " सुनकर मैं अनसुना करती, हँस पड़ती। पर तुम्हारे डरवाने पर बिल्कुल भी ना डरती। अल्हड़ थी ना, इसीलिये! पर तुम भी कभी अपनी आदत से बाज़ नहीं आती और हमेशा टोक ही देतीं! फिर धीरे-धीरे मेरा ये शौक कब खत्म हो गया, पता ही नहीं चला!

पर देखो ना दादी, अब कितने दिनों से मैं हर दिन, हर वक्त खूब परफ़्यूम लगाती हूँ , बड़ी बेसब्री से इंतज़ार भी करती रहती हूँ। लेकिन पति की आत्मा तो कभी आती ही नहीं! तुम झूठ क्यों बोलती थी दादी। क्यों झूठ बोलती थी?" 


तुम्हारी लाडली पर अभागी पोती!


 



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