चंद्रिका एक पहेली भाग -7
चंद्रिका एक पहेली भाग -7
पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा- चंद्रिका पायल की आवाज सुनकर होश में आती है और आवाज का
पीछा करते हुए अपने आप को एक हवेली में पाती हैं। हवेली में घूमते हुए उसे एक कमरे में एक औरत मिलती है। उसके मिलते ही हवेली एक रेगिस्तान में बदल जाती हैं। इस बात से घबराई हुई चंद्रिका उस औरत के समझाने पर उसकी मदद लेने को तैयार हो जाती हैं। उसी औरत के सवाल पूछने पर चंद्रिका सही जवाब देती हैं। इसके बाद चंद्रिका खुद को अपने बिस्तर पर पाती हैं। चंद्रिका इसे सपना समझ कर स्नानघर मे हाथ मुंह धोने जाती हैं जहां उसे इस सपने के सच होने का पता चलता है। अब आगे-
उधर दर्शना देवी त्रिपाला के साथ एक कमरे के आगे पंहुचती है। उस कमरे का दरवाजा बंद था। एक विशेष धातु से बने हुए उस दरवाजे पर एक मोटी सी जंजीर में एक दूसरे के साथ जुड़े हुए सात ताले लगे हुए थे। उस दरवाजे की मोटाई सात ईटो के बराबर था और उसका रंग पिघलते हुए स्वर्ण जैसा था। उस दरवाजे के ऊपरी हिस्से पर एक निशान बना हुआ था जिसमें एक गोलाकार डंडे दोनों तरफ एक-एक नली जुड़ी हुई थीं। बाई ओर की नली का मुंह नीचे की ओर और दाईं ओर की नली का मुंह ऊपर की ओर बना हुआ था।
त्रिपाला ने अपनी उंगली में से एक अंगूठी निकाली और दरवाजे पर लगे हुए छह तालों के बीच मे लटके हुए सातवें बड़े ताले की ओर ले जाती हैं। उसके ऐसा करते ही अंगूठी एक लंबी सी चाबी में बदल जाती हैं। त्रिपाला चाबी को उस बड़े ताले में लगाती हैं और उसके ऐसा करते ही उस ताले के साथ साथ बाकी छः ताले अपने आप ही खुलने लगते हैं। थोड़ी देर बाद सभी ताले खुल जाते हैं। उसके बाद दरवाजा धीरे धीरे अंदर की ओर बिना किसी आवाज के खुल जाता हैं।
दर्शना और त्रिपाला दरवाजे से अंदर आते हैं। वहां एक भव्य कक्ष बना हुआ होता है जो किसी राजमहल जैसा लग रहा था। उस कमरे की दीवारें भी पिघलते हुए स्वर्ण की भांति चमक रही थीं। कमरे की दीवारों पर तरह तरह के चित्र बने हुए थे जो किसी यहां पर घटी किसी घटना पर आधारित थे।
कमरे मे दर्शना और त्रिपाला के अलावा और कोई नही था। त्रिपाला ने वहाँ खड़े होकर अपनी छड़ी तीन बार जमीन पर मारती है तो वहां पर एक अदृश्य पारदर्शी दीवार पानी की तरह तरंगित हो जाती हैं और फिर गायब हो जाती हैं।
दोनों आगे बढ़ते हैं और एक जगह पर खड़े हो जाते हैं। वहां पर धीरे धीरे एक पलंग उभर आता है। पलंग पर चादर बिछी हुई थी और तकिए लगे हुए थे। उसके पास ही एक छोटी सी मेज थीं जिस पर फलों से भरा हुआ के एक चांदी का नक्काशीदार कटोरा और पानी से भरा हुआ एक वैसा ही गिलास रखा हुआ था।
अब त्रिपाला वहां खड़े होकर कोई मंत्र बुदबुदाती हैं। उसके मंत्र के प्रभाव से वहां पर एक नौजवान की आकृति उभरती है। धीरे धीरे वो आकृति एक सजीव आकार ले लेती हैं। ऐसा होने पर उस कमरे की दीवारें एक सामान्य रूप धारण कर लेती हैं और फिर त्रिपाला अपनी आंखें खोल कर मंत्र बोलना बंद कर देती हैं
उस नौजवान ने एक शेरवानी पहन रखी थी और माथे पर तिलक लगाया हुआ था। वह नौजवान धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलता है और दर्शना की ओर देखता है। उसको देखकर दर्शना की आंखे नम हो गई। वह नौजवान आगे बढ़ा और उसने त्रिपाला और दर्शना के पैर छुए। दर्शना ने उसे कंधो से उठाकर गले लगाया।
"इतने समय बाद आप यहां आई हैं, अवश्य ही कोई विशेष प्रयोजन होगा।" उस नौजवान ने दर्शना और त्रिपाला की ओर देखकर कहा।
"आपसे भेंट करने की तीव्र उत्कंठा से विशेष कोई और प्रयोजन हो ही नही सकता।" दर्शना ने उसके गाल पर हाथ रखते हुए कहा।
आपकी उत्कंठा तो मेरे समक्ष तभी स्पष्ट हो गई थी जब त्रिपाला ने तरंगों द्वारा आपके यहाँ पर आने का संदेश भिजवाया था। और अब यदि मेरा अनुमान उचित है तो आप मुझे योजना के प्रथम चरण के विषय में अवगत कराने आई हैं, क्यों ठीक कहा ना हमने।" उस नौजवान ने त्रिपाला की ओर देखते हुए कहा।
"जी आपने बिल्कुल उचित समझा। हमारी योजना का प्रथम चरण पूर्ण हो चुका है। इस बार हम अपना लक्ष्य अवश्य ही प्राप्त करेंगे। बस आपको कुछ समय तक और प्रतीक्षा करनी होगी।" त्रिपाला ने उसकी ओर देखकर कहा तो उस नौजवान के चेहरे पर एक व्यंग्य भरी मुस्कान तैर गई।
"आपका यह आश्वासन हम जाने कितनी ही बार सुन चुके है। क्षमा कीजिये लेकिन आपके इस सत्य पर हमारा कोई विश्वास शेष नहीं रहा क्योंकि जब भी आप हमें सफलता का विश्वास दिलाती हैं, हम असफल हो जाते हैं।" उस नौजवान की आवाज में एक तिरस्कार झलक रहा था जिसे देखकर दर्शना को गुस्सा आ गया।
"यह आप किस प्रकार से बात कर रहे हैं त्रिपाला से? क्या आप नहीं जानते कि इनका हमारे जीवन मे क्या स्थान है? आप इनके त्याग और बलिदान को इतनी सरलता से कैसे भूल सकते हैं? क्या आप नहीं जानते कि यह कौन है और यहाँ क्यों है? चलिए अभी इसी समय इनसे क्षमा मांगिये।" दर्शना ने तेज और सख्त आवाज में आदेश दिया और त्रिपाला के पास जाकर खड़ी हो गई।
वो नौजवान अब उन दोनों की ओर पीठ करके खड़ा हो जाता हैं और कहना शुरू करता है- "कुछ नहीं भूले है हम लेकिन अब हमारे धैर्य की शक्ति समाप्त हो रही हैं। अब हम और अधिक प्रतीक्षा नही कर सकते। इन्हें शीघ्र ही कोई उपाय करना होगा अन्यथा हम कुछ अनुचित कर बैठेंगे।" गुस्से में यह सब बोलने के बाद वो नौजवान वहां से जाने लगा कि तभी दर्शना की आवाज उसे रोक लेती हैं।
"रुक जाइए शशांक।" दर्शना के मुंह से अपना नाम सुनकर चौंक जाता हैं और पीछे पलट कर देखता है। इससे पहले कि वह कुछ बोल पाता, दर्शना उसे रोक देती हैं और कहना शुरू करती हैं-
"आपको जो कहना था आप कह चुके हैं। अब आप मात्र मेरी बात सुनेंगे। अभी आप जिन्हें चेतावनी दे रहे थे, उन्हीं के प्रयासों के कारण आज हम एक बार फिर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं। और रहा प्रश्न प्रतीक्षा का तो इतने समय से मात्र आप ही नहीं हम सब भी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमारा धैर्य भी समाप्त हो रहा है किंतु
आपके कारण ही हमने अपने मन को स्थिर किया हुआ है।"
"और यदि आपने उस समय इतनी अधीरता नही दिखाई होती और कुछ समय की प्रतीक्षा कर ली होती तो आज ये परिस्थितियां होती ही नहीं।" दर्शना ने अपनी बात समाप्त करके चैन की सांस ली और शशांक की ओर देखा।
शशांक जो अब तक गुस्से में था, शांत हो गया और फिर जाकर पलंग पर बैठते हुए बोला- "ज्ञात है हमे इन परिस्थितियों का कारण
परंतु अब यह मेरे लिए असहनीय हैं।" इतना कहकर शशांक ने अपना सिर हाथ पर टिका दिया। उसे लग रहा था कि उसकी सारी आशाएं समाप्त हो चुकी हैं और उसे अब इसी प्रकार प्रतीक्षा करनी होगी।
दर्शना देवी और त्रिपाला शशांक के पास गए। दर्शना देवी शशांक के पास पलंग पर बैठ जाती हैं और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- "चिंता मत कीजिए शशांक, सब सामान्य हो जायेगा और आप इस पीड़ा से मुक्त भी हो जाएंगे परंतु आपको थोड़ा और धैर्य धारण करना होगा। जहां इतनी प्रतीक्षा कर चुके है, कुछ समय और सही। त्रिपाला के प्रयास अवश्य ही सफल होंगे। इस बार हमारी योजना अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करेगी।"
फिर उसने त्रिपाला की ओर देखते हुए पूछा- "लेकिन त्रिपाला, क्या चंद्रिका हमारे सच पर यकीन करेगी? अगर उसने चंद्रिका को अपने विश्वास में ले लिया तो एक बार फिर हमें......" दर्शना देवी ने शशांक के बारे मे विचार कर सवाल बीच में ही रोक दिया।
शशांक ने त्रिपाला की ओर देखा और कुछ इशारा किया। इशारे को समझते ही त्रिपाला ने एक मंत्र बुदबुदाया जिसके प्रभाव से शशांक का शरीर धीरे धीरे गायब होने लगता है और फिर पूरी तरह से गायब हो जाता हैं।
दर्शना देवी अब अपना सवाल जारी रखती हैं- "बताओ त्रिपाला अगर उसने हमारी योजना में कोई विघ्न उत्पन्न किया तो हम क्या करेंगे? और सच तो यह है कि अब मुझसे भी और इंतजार नही हो रहा। शशांक से अधिक मेरी उत्कंठा बढ़ती जा रही हैं।"
त्रिपाला ने दर्शना की ओर देखा और फिर धीरे से बोलना शुरू किया- "चिंता मत करो दर्शना, इस बार मेरी योजना कुछ इस प्रकार की है कि उसका प्रत्येक प्रयास उसे नही बल्कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर लेकर जाएगा।
जब दर्शना और त्रिपाला आपस में यह चर्चा कर रहे थे तो उनके पीछे मेज पर रखें हुए फल अपने आप ही छोटे होते जा रहे थे और गिलास में रखा पानी धीरे धीरे हवा में बदल रहा था।
जब त्रिपाला ने देखा कि दोनों बर्तन खाली हो चुके है तो उसने फिर एक मंत्र बुदबुदाया जिसके प्रभाव से दोनों बर्तन वहाँ से गायब हो जाते हैं। बर्तनों के गायब होते ही दर्शना पलंग से उठी और त्रिपाला के पास जाकर खड़ी हो गई।
अब दोनों ने उल्टे कदमों से चलना शुरू किया और वहीं जाकर खड़े हों गए जहाँ से वो अदृश्य दीवार गायब हुई थी। उन दोनों के वहाँ खड़े होते ही कमरे की सभी वस्तुएं गायब होने लगती हैं और कमरा फिर से पहले जैसा हो जाता हैं।
अब त्रिपाला अपनी छड़ी तीन बार जमीन पर मारती है जिससे वह अदृश्य दीवार अपने स्थान पर स्थापित हो जाती हैं। उसके बाद वे दोनों उस कमरे के दरवाजे से बाहर निकलती हैं और उनके बाहर निकलते ही दरवाजा अपने आप ही बंद हो जाता हैं।
अब त्रिपाला उस चाबी को निकाल कर उस बड़े ताले के अंदर डालती हैं। उसके ऐसा करते ही बड़े ताले से जुड़े बाकी छः ताले अपने आप ही जंजीर के साथ ऊपर उठ जाते है और बंद हो जाते हैं। इसके बाद चाबी फिर से अंगूठी में बदल जाती हैं जिसे त्रिपाला उंगली में पहन लेती हैं। इसके बाद वे दोनों वहाँ से चले जाते है।
उन दोनों के वहाँ से जाते ही कमरे में शशांक की गुस्से भरी आवाज गूँजती है-"यह कहानी तुम पर शुरू हुई थी और तुम पर ही खत्म होगी। इसे खत्म मैं ही करूंगा चंद्रिका।"
इसके साथ ही एक तेज हवा का झोंका स्नानघर में विचारों में खोई हुई चंद्रिका से होकर गुजरता है। चंद्रिका चौंक कर पीछे देखती हैं और उसे शशांक की आवाज में अपना नाम सुनाई देता है।
जारी......।
अगले भाग में पढ़िए चंद्रिका और शेखर की प्यार भरी नोंक-झोंक और शेखर और चंद्रिका का बढ़ता हुआ प्यार।