हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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चंदन का बाग

चंदन का बाग

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परमपिता परमेश्वर की हम पर असीम अनुकम्पा है जो हमें यह मनुष्य जीवन मिला है । 84 लाख योनियों में मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ योनि है क्योंकि केवल मनुष्य योनि ही एक ऐसी योनि है जो कर्म योनि है । शेष समस्त योनियां भोग योनि है । भोग योनि से तात्पर्य है कि वे केवल भोग करती हैं , कर्म नहीं । जो कर्म अन्य योनियां करती हैं वे केवल अपने भरण पोषण और अपनी यौनेच्छाओं की तृप्ति के लिए ही कर्म करती हैं । इसीलिए उन्हें भोग योनि कहा जाता है । किन्तु मनुष्य योनि के पास स्पष्ट विवेक और कर्म स्वातंत्र्यता होने के कारण वह कोई भी कर्म करने को स्वतंत्र है । इसीलिए रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है 


बड़े भाग मानुस तन पावा । 

सुर दुर्लभ ग्रंथहि सब गावा ।। 


मनुष्य योनि देवताओं के लिए भी दुर्लभ इसलिए है कि देवता अपने संचित पुण्यों को स्वर्ग लोक में भोगते रहते हैं । जब उनके संचित पुण्य समाप्त हो जाते हैं तब देवता मृत्यु लोक में आ जाते हैं । मोक्ष केवल मनुष्य योनि में ही संभव है अन्य किसी योनि में नहीं । यहां तक कि देवताओं को भी मोक्ष प्राप्त नहीं होता है । मोक्ष के लिए उन्हें भी मानव जन्म लेना ही पड़ता है । 

 इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुष्य जीवन बहुत मूल्यवान है , क्योंकि यह मोक्ष का द्वार है । पर क्या हर कोई व्यक्ति इस बात को जानता है ? 


इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है । एक व्यक्ति के पास नोकिया का 1100 रुपए वाला मोबाइल फोन था । वह उससे कॉल रिसीव करने और किसी को कॉल करने के काम में लेता था । इसके अलावा वह और कुछ नहीं जानता था । 

एक दिन उसके बेटे ने उसे उसके जन्म दिन पर एक एप्पल फोन उपहार में दे दिया । वह व्यक्ति एप्पल के फोन से भी केवल कॉल करने और रिसीव करने का काम करने लगा ‌। 

एक दिन उसे उसके पुत्र ने ऐसा करते हुए देख लिया तो पुत्र को अपनी त्रुटि पर बहुत अफसोस हुआ कि उसने एप्पल फोन के विभिन्न फंक्शन अपने पिता को पहले क्यों नहीं बताये ? 

जब उसने उसके सारे फंक्शन बताये तो पिता बहुत खुश हुआ और तब उसे नोकिया के 1100 रुपए के फोन और एप्पल फोन में अंतर पता चला । 

मनुष्य भी बिना ज्ञान के पशुओं की तरह केवल आहार , निद्रा, भय और मैथुन में लगा रहता है । उसे पता ही नहीं है कि वह परमपिता परमेश्वर का अंश है और उसका नैसर्गिक कर्तव्य है अपने अंशी अर्थात भगवान की सेवा करना । लेकिन हम लोग सांसारिक मोह माया और अज्ञान में ऐसे डूबे हुए हैं कि हमें इस मनुष्य जीवन की महत्ता का पता ही नहीं है । जिस दिन हमें यह ज्ञान होगा कि हमारा जीवन केवल खाने , सोने और काम क्रीड़ा के लिए ही नहीं है बल्कि भगवान की सेवा करने के लिए है , तब हमें बहुत देर हो चुकी होगी । आइये इसे हम "चंदन का बाग" नामक एक कथानक से समझने का प्रयास करते हैं । 

प्राचीन काल में एक राज्य था जिसका नाम था "धर्म चकरी" । उसका राजा था धर्मदेव । जैसा नाम वैसे गुण ! राजा बड़ा धर्मात्मा था । 

राजा को शिकार खेलने का बहुत शौक था । एक दिन वह शिकार खेलने एक जंगल में चला गया । एक हिरन का पीछा करता करता वह घने जंगल में प्रवेश कर गया । घने जंगल में हिरन उसकी आंखों से ओझल हो गया । राजा भूखा प्यासा जंगल में भटकता रहा । 


भटकते भटकते उसे एक कुटिया दिखाई दी । उस कुटिया में जब राजा अंदर गया तो वहां उसे एक भोला नामका लकड़हारा मिला । एक अतिथि को आया देखकर भोला लकड़हारे ने उसे बैठने को एक आसन दे दिया और एक गिलास ठंडा जल पीने को भी दिया । ठंडा जल पीने के बाद राजा की जान में जान आई और उसने अपना परिचय दिया । भोला लकड़हारा राजा के चरणों में झुक गया । राजा ने जब उससे उसका काम धंधा पूछा तो उसने बता दिया कि वह जंगल से लकड़ियां काटकर उन्हें जलाकर कोयला बनाता है और उन कोयलों को बाजार में बेचकर अपने परिवार का पालन पोषण करता है । 

राजा ने जब कुछ खाद्य पदार्थ मांगे तो उस लकड़हारे ने राजा को रूखा सूखा भोजन करा दिया जिससे राजा की आत्मा तृप्त हो गईं । थोड़ी देर में राजा के सैनिक वहां पर आ गये । राजा ने प्रसन्न होकर उस लकड़हारे को एक चंदन का वन उपहार में दे दिया और वापस अपने राज्य में लौट गया । 

बहुत वर्षों के पश्चात एक दिन राजा फिर से शिकार खेलने उसी जंगल में चला गया और रास्ता भटकते हुए उसी झोंपड़ी के आगे पहुंच गया । ईश्वर की कृपा से वह उस लकड़हारे को पहचान गया । राजा ने देखा कि भोला लकड़हारे की स्थिति जैसी पहले थी , आज भी वैसी ही है । राजा को बहुत आश्चर्य हुआ कि उसने इसे एक चंदन का बाग उपहार में दिया था , वह कहां गया ? तब राजा ने उससे पूछा 

"मैंने जो चंदन का बाग तुम्हें दिया था , क्या वह अभी भी तुम्हारे पास है" ? 

"जी हां, हजूर । हमारे ही पास है" । 

"क्या करते हो उस चंदन के बाग का" ? 

"करना क्या है महाराज ? जैसे पहले लकड़ी काटता था, वैसी ही अब काटता हूं । पहले भी उनका कोयला बनाता था , आज भी बनाता हूं । फिर उन्हें बाजार में ले जाकर बेच देता हूं । इस तरह अपने बच्चों का पेट पालता हूं" । 

भोला ने अपनी दयनीय स्थिति का पूरा वर्णन कर दिया । तब राजा ने अपना सिर पीट लिया और उस लकड़हारे को चंदन की लकड़ी का महत्व समझाया । तब जाकर लकड़हारे की समझ में आया । 


साथियों, ये मनुष्य जीवन भी एक चंदन का बाग ही है जिसका महत्व समझकर उसी के अनुरूप कर्म कीजिए । अपना कल्याण करने के लिए केवल और केवल प्रभो का आश्रय लीजिये । उनकी भक्ति भाव से सेवा कीजिए और भक्ति में आकंठ डूब जाइये । इतना होने के पश्चात भगवान को दर्शन देने ही होंगे इसमें कोई संशय नहीं है । 

आओ , एक बार प्रेम से मेरे साथ बोलिए 

हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं आपको भूलूं नहीं । 

हे नाथ ! हे मेरे नाथ ! मैं केवल और केवल आपका हूं । मुझ पर कृपा करें । 

हरे कृष्ण।



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