Shivangi Sharma

Drama Tragedy

5.0  

Shivangi Sharma

Drama Tragedy

चन्दा मामा क्या हुए ?

चन्दा मामा क्या हुए ?

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परसों तेरा पहला करवाचौथ है गुड़िया। बता क्या मिठाई लाऊँ तेरे लिए ? गुलाब जामुन, बर्फी जलेबी ? अरी बोल तो सही।

मैं तो यह सब खाऊँगी बाबा ! - लीला ने चहकते हुए कहा।

धनीराम हंसकर बोले - हाँ ज़रूर मिलेगा, मगर उससे पहले सारा दिन उपवास रखना होगा।

उपवास किस लिए ?

लो ! जैसे कुछ मालूम ही न हो, केशव की लम्बी उम्र के लिए।

मेरे उपवास करने से केशव लम्बा हो जाएगा ?

पगली लम्बा कद में नहीं, उम्र में हो जाएगा। दिन भर उपवास करके, रात को चाँद देखकर खा लीजो अपनी मनपसंद मिठाइयाँ।

चाँद ? यानि चन्दा मामा !

हाँ चन्दा मामा।

मामा होकर अपनी भाँजी को भूखों रखेंगे ?

यह कैसी अजब बात हो गयी। सेठ धनीराम ने कभी सोचा भी न था कि एक दिन एक अबोध बालिका उनसे ऐसा सवाल कर बैठेगी जिसका जवाब देवताओं के पास भी न होगा। नन्ही लाली अपने बाबा ससुर से इस विषय पर अपने नादान तर्क वितर्क करने लगेगी और उनके पास उसके मासूम सवालों का कोई जवाब न बनता था। धनीराम ठहरे व्यापारी आदमी। दिन भर दूकान में ग्राहकों से माथापच्ची में दिन गुज़रता। उनको भला इन व्रत त्योहारों और उनकी विशेषताओं का कौन ज्ञान होता ? उन्होंने तो केवल हर करवाचौथ पर अपनी पत्नी रमा को नवी साड़ी और व्यंजन ही खिलवाये थे। करवाचौथ के त्यौहार का महत्त्व, उपवास करने की आवश्यकता जैसे विषयों पर उनका कभी ध्यान ही न गया था।

लाली के सवालों पर वह कभी सकपकाते, कभी उलटे सीधे चुटकुले सुना के बात तो टालने की कोशिश करते। मगर लाली अड़ी रही।

उसने बिगड़ते हुए पूछा- बताइये न बाबा, मेरे उपवास करने से केशव को लाभ ? और मेरा कुछ लाभ नहीं ?

इस बार हिम्मत करके वह बोले - तेरा लाभ क्यों नहीं बेटी। उपवास करने से तेरा ही तो सुहाग अमर रहेगा। तू हमेशा भाग्यवान रहेगी। यह कोई कम बात है क्या।

नहीं ! मैं नहीं मानती। केशव यूँ भी मुझसे झगड़ता रहता है। कल उसने मुझे अपना गुड्डा छूने भी नहीं दिया और मैं उसके लिए उपवास करुँगी ?

धत पगली। यह सब तो चलता रहता है। अब कैसे समझाऊँ तुझे। - आखिर धनीराम ने चकरा कर अपना सर पकड़ लिया।

यह देख लाली उदास होकर बोली - बाबा आप परेशान न हों। मैं रख लूँगी उपवास।

शाब्बाश ! मेरी लाड़ली बेटी।

धनीराम ने अपनी आत्म-ग्लानि और संकोच को बड़ी चतुराई से ज़हन के किसी अँधेरे कोने में दबाया और वापस अपने बही खाते में लग गए।

अंततः करवाचौथ की बेला आई। रात के पौने नौ बज चुके थे। नन्ही लाली का भूख प्यास से मुरझाया हुआ चेहरा अब धनीराम से देखा न जाता था। यूँ तो वह उनकी बालिका बहू थी मगर धनीराम उसे अपनी सगी बेटी से भी ज़्यादा प्रेम करते थे। उनकी गोद में सिर छिपाये लाली आसमान की ओर देखती और फिर धीमी आवाज़ में पूछती - चन्दा मामा क्या हुए बाबा ? निकल क्यों नहीं आते ?

उसका ये सवाल धनीराम की आत्मा को बार-बार कचोटे जाता था। उनका बस चलता तो इस वक़्त दुनिया के सारे रीति रवाज़ों को ताक पे रख देते। लेकिन समाज का डर इंसान को अपाहिज बना देता है। वही समाज जो आज के समय में भी बाल विवाह जैसी आपराधिक प्रथाओं को बढ़ावा देता है।

बच्ची को किस तरह बहलाया जाए, धनीराम इस गहन सोच में डूबे थे कि अचानक छत पर हो हर्षोल्लास की चहक होने लगी। आखिर चाँद जो निकल आया था। सेठानी ने आवाज़ लगाई - अजी सुनते हैं, चाँद आ गया, चलिए गुड़िया और केशव को ले आइये।

सासूमाँ के निर्देश अनुसार लाली ने चाँद की पूजा की। बस अब मिठाइयों का इंतज़ार ख़त्म हुआ, मेज़ पर स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। लेकिन जब तक मिठाइयों का थाल आता, लाली कुर्सी पर बैठी सो चुकी थी। उसकी भूख अब मर चुकी थी। बच्ची भूखी ही सो गयी थी। करुणा से धनीराम का हृदय भर आया। वह भी उठकर अपने कमरे में सोने चले गए।

सेठानी जी ने मन में सोचा - चलो कोई बात नहीं जो सो गई, एक दिन भूखी रही तो कोई बीमार नहीं पड़ जाएगी।

उस रात सेठानी जी और केशव ने भर पेट भोजन किया।


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