chhat- short story
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वो एक अँधेरी रात थी। ऐसी रात जैसे के मानो बादल गरजकर रोने लगेंंगे ।घने बादलो के बीच तारो का चमकना- ये वाकई अजीब सी रात थी । ठंडी हवा मानो जैसे कानो में रात की कहानी गन गुना रही हो । मौसम और हवा का आनद लेते हुए छत्त पे टहल रही थी के तभी सूखे पत्तों पे पाव खीज़ कर चलने की आवाज़ सुनाई दी । पिछे मुड़ कर देखा लेकिन वह कोई नहीं था। में सागर की लहरों को छत्त से देखते हुए उस पग के गहरी सोच में पढ़ गया के तभी एक हाथ मेरे कंधो पर सहलाते हुए महसूस हुई। और जैसे ही मूढ़ के देखा वो अदृश्य हो गया ।
आखिर वो कौन था ? क्या ये मेरा वहम था या कुछ और ?

