चौरस्तेपे की "सोशल गॅदरिंग"

चौरस्तेपे की "सोशल गॅदरिंग"

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महाराष्ट्र के परभणी नमक हमारे गाँव में एक भोतीच गंम्मतीच्है देखो, क्या बोलरुं मैं सुनो तो! शिवाजी रोड से स्ट्रेट जाके, लेफ्ट मारेतो, नानलपेठ किरॉस करके शनी मंदिर होतेहुवे बढलियेतो, नॅशनल हायवे का डिवायडर वाला रोड लगता देखो। अब यांसे यसटिस्टॅंड कु जाना बोलेतो, लेफ्ट कलटना पडता। लेफ्ट कलटनेके टाइम पे, एक चौरस्ता आता, जेल रोड का किरॉस बोलतो ऊसकु। तुम मोटारसायकल पे जारे हुंगे, तो तुम डायरेक लेफ्ट कट ले सकते, ऐसा टिराफिक का रुल बोलता। बोलता हुंगा, तो क्या हुवा, इत्ता आसां हुंगा तो, हम 'परभणीकर' कैके। वहां कॉर्नर पे हवालदार तो, मार्च ऐंड' के अलावा, कब्बीच नहीं मिलता। मगर, ईत्ती गॅरेंटी फुल्लटु कि ऐखादा हौला मोबाईल में डुब के, गोते खातेवे खडेवा मिलता वांपे। ये हौला व्हांका पर्मानेंट ऑटो ड्रायव्हर, हमेशा कॉर्नर पे खडेवाच रैता, और लेफ्ट टरनिंग कु आडे आता। अब इसकु एक पुरा राऊंड मारके जाना बोलेतो राइटसे एखादी बडी गाडी, या बस तुम्हारे आंगपे आने का डर रेता। चलो बाशा ये कर्तब भी आप करके, जब आगे बढ़तेना तो, वांपे येक दुसरा कार्नर, बोलेतो किरॉस, आता ये है 'दर्गा रोड' कॉर्नर, ये ऐक भोत बडा "सोशल ग्यादरींग" प्वाईंट भी है। मै पिछले २५ साल से यांसेच ड्युटी कु जारुं, मेरे भोत सारे दोस्तां भी यांसेच ड्युटीयों कु जाते। अब आजीच डॉ. यशवंत पाटील भी गाडीपे, मेरे गाडी के साथ 'प्यारेलाल' होके (बोलेतो साथ-साथ होके यारो) यांपेसेच गये। हम दोनो की ८४५ मीटर तक, जिंदगी के भोत जरुरी चीजों पे, टशन के साथ डिस्कशन अौर फैसले हुय़े, बादमें उन्हों सिधे गये, और मैं राईट कट लिया। अब रोज यांपे ऐसेच गम्मतीच होता देखो.जैसाच तुम ये "सोशल ग्यादरींग" किरॉस के पास आईंगे, तो भोत बार य्ये मेले के मेले जम जाता व्हांपे। बोलेतो टिरॅफिक के सारे रुल्स काु, बैंगन बनाके, भर्ता भरते हमारे गांव के लोगां। उसका कैसा हैनां देखो, परभनी शहर जब प्रभावतीनगरी था, और जस्ट पैदा हुआ था, तब से लेके आज तक, रस्ते के लेफ्ट सेच चलतें लोगां। सै देखे तो पैदल लोगां, राईट से चलना बोलके किसकुच मालुम नै, तुमकु भी नै ना? अब जानद्यो, मुद्दे पे आव, तो एक मेनरोड गांवसे अाके, सिधा राइट कु दर्गे कु जाता। अब सैंमें देखे तो रोड कांपेच नै जाता, मांकी किरकिरी रोड हैसौ जगेपेच रैता, उसपेसे चलके हमारे गांव के, सब्बीच धरम करम के लोगां, भोत दिलोंजांसे दर्गे जाते। और राइट कु थोडा लंबा गये तो, हजरत तुर्रबुल हक साब का दर्गा अाता। जित्ती हमारे गाँव की आबादी है, उस्से डब्बल इस दर्गेके कहानियां हैं, और एक्सेय़ेक पॉजिटिव किस्से। मशहूर और मानु कि नक्को मानु ऐसे कहानियां, हिंदुअां भी बोलते वो हमराच भगवान है, और वांपे कंदुरीयां भी करते, ऑल सेक्युलर स्टोरीस, ये दरगाह के। तो पॉइंट येहै कि, हमारे गांवके सारे कौम के लोगां दरगेकु आते जाते रैते, तो चौरस्ते का एक पट्टा हो ग्या हमारे पुर्वजोंका (बोलेतो हमारे बाप का), ईसपे तो बातीच नै करनेका, नो प्रॉपर्टी डिस्पयुट्स प्लिज। अब बचे स्ट्रेट के दो पट्टे हायवे वाले डिव्हायडर के आरपार, उधर से इधर येक आता, दुसरा इधर से उधर जाता। तो टोटल हो गये ३ रस्ते। अब गंम्मत ये है कि हमारे गांववालें अपने दर्गा रोडकु हायवे के वैसा वापरते और हायवे कु गल्ली के जैसा।


अब ये सिच्युएशन कुच देखल्यो, हाईवे के चारों कार्नरां पे स्कूलाच स्कूलां, कालेजांच कालेजां, उप्पर वांपे एक निकम्मे जैसी पोलीस चौकी बैठेवी, लैनमें जाके खडे रैके करंट बिल भरने के काऊंटरां, जुगाडु वेल्डींग वाले, हफ्ते नै भरे बोलके नये जप्त करेवे और गल ग्ये बोलके बिकने कु रोड पे रख्केवे पुराने गाडीयां बेचनेके दुकानां, पुराने थु बोलके फेकेसो फरनीचरां - नये पेंटा मारके बेचनेवाले, ऊधर फूल-फल बेवनेवाले, और ईधर भेलपुरीवाले, ईधर मसनवाटा, ऊधर शमशान, बीच मे फंकशन हॉल. अर्रेरे! पुछो मत, मास्टर पीलान कि तो बॅंड बजाके कामा चलरे समझो। चारो तरफ स्टुडंटों का मजमा, पोट्टे ही पोट्टे, पोट्टिंयां ही पोट्टिंयां, सायक्लाच साक्लां, स्कुटियां ही स्कुटियां, पिर्रर्रपिर्र ईधर से ऊधर, घिर्रर्रघिर्र ऊधर से ईधर, वो अंग्रेजी मे क्या बोलते कते "ह्यापहजारड्स" वैसा देखो. तुम सोचरे हुंगे ईसमे गंम्मत क्या है बोलके, तो सुनो ना गंम्मतीच्है भोत।


गम्मत नंबर ऐक ~ 'ऐनी टाईम' देखे तो एखादी तो बी स्कूटि बीच रस्तेपे आडी पडेवी मिलेंगी, और एक पोट्टि औंधी गिरेवी मीलींगी, भोत नै लगेवा रैता खालाकु, और 'ईगो हर्ट' टाईपवाला "फिल्मी रोना" वो रोते रैती और पिछे दो 'एक्स पिल्लन' खडेवे रैते मोबाईल कु खुजाते (ट्रिप्पल सीट का 'न्याश्नल फ्याशन' है ना आजकल) अब क्या करना बोलके सोचे तो~ईत्ते में एेखादा हिरो, हिरोगिरी करके उनकु उठाने में लगेवा रैता। गम्मतीच रैता।


गम्मत नंबर दो ~ यांपे जिसकू राइट साइड जानेका वो राँग साइड जाते रैता और जो राँगसाइड नक्को जाना ऊन्हों तो राँगसाइडच जाते रैता। वो क्या है ना मामु हमारेकु कोईबी 'ट्राफिक सेन्स' नामकी चिज रैती बोलके कोई बी ईस्कूलवाले पढाय़ेच नै ना !! यांपे लोगां तो मनमर्जी आये जैसा, जिसकु जिधर आने-जानेका उधर आते-जाते रैते, वैसे हम निजामी वीरासत वाले है भई। और खैरखिदमत मानो की ईनकु उडने ने आता बोलके। वैसे बी हमेशा हवेमेच रैते यां सब लोगां, पांव जमीनपे कब्बीच नै रैते ईनके। ये कॉर्नर पे, अगर द्रोन लागा के पंधरा मिनिट की शूटिंग लेके, उसकु फास्ट फॉरवर्ड करके, एक मिनट का बना के देखे ना बाशा! ~ चार्ली चाप्लीन भी शरमा जाना ऐसे अजीबोगरीब हरकतों के मुवमेंटां देखने कु मिलते यांपे ।


गम्मत नंबर तीन ~ ऐसे डिस्को डान्स के कार्नर पे आये दिनतमाम-राततमाम, मांकी किरकिऱ्या क्याटागीरी के तंटे, झगडे, लफडे, होतेच रहते। बढते ऊम्र के बच्चे और लेटेस पैदा हुऐ जवानों कु तो 'लाइफ स्किल्स' वाला ट्रेनिंग ग्राऊंड कॉर्नर बोल सकते इस्को। सिर्फ़ दो चारीच पंगोंमेंच, पुरे सॉफ्ट, हार्ड, मीडियम लेवल के स्किल्सां आटोमॅटिक सिख लेते बच्चे यांपे। ऐसे ऐसे गालियां, टोचंना, टॉंटा, ढेड हुशारीयां के बातां सुनने को मिलते यांपे, पुछोच मत, हरबार नई डिक्शनरी छपना! हऊ !


गम्मत नंबर चार ~ चौथी गम्मत है ट्रॅफिक जॅम के टेमकी रैती, अब्बा!!अब्बा!! पुछोच मत दे मजा, दे मजा आता मालुम। जैसेच कॉर्नरपे ऐकदम, एकीच पॉइंट पे, सब लोंगा नाक खुपसाके ट्रॅफिक जाम करलेते, तो आपस में लोगां एकसे एक डायलॉग़ मारलेते, क्या बोलुं ~ वो यांपे लीखने नै आता ना मामु! वो सब यांपे आकेच सुनना पडता। ऐसे जॅम के वक्त लोगां फुरसत से 'आरएमडी' फाडके मुंह में दालले के (अरे आर.एम.डी. मालूम नैना तुमको अरेअ्रे!! वोतो यां के लोगों का गुल्कोज है) मुखशुद्धी करके शुद्ध गालियां शुरू कर देते। कैसा है ना आरएमडी या गायक्छाप जबतक अंदर नै जाता, तबतक स्ट्रेस और घुस्सा 'थुक' बनके बाहेर नै पिचकता, हम मराठवाडे और विधर्भ वालोंका। तो यांपे पिचकाऱ्या मारमार्के, तमाशे सुरुच रैते ~ ये भी गमतीचहै देखो।


गम्मत नंबर पांच ~ ऐसे ट्राफिक जामों में, 'जॅम क्लिअरन्स' कोन करता मालुम ? ये मालूम होने कु, आपकु एक यांका 'लोकल जनरल नॉलेज' होना जरूरी है। वो ये की परभनीकु युनिस्को ने 'मोस्ट फेवरेट मेंटल पिपुल्स टुरिझम प्लेस' बोलके औदा दि येवा है, ये भोत कम लोगों कु मालुम । हर रोज नए नये येडे, देश के अलग अलग कोनों से, पॅसंजर ट्रेन के रेल्वे पकड के से इस गांव कु आते जाते रैते। ऐसा टुरिझम यांपे सदियों से चलरा, करके कहावत फेमस है। तो कुछ यडोंकु ये गाव इत्ता पसंद आजाता, की वो यांपे पर्मानेंट हो जाते। कुछ घरा बांध की सेटल होते, (हौ आपुनबी वैसेच है समजलो) तो कुछ रोडपेच फिरते रैते। अब रोड पे रोमींग वाले अपने 'डेली ब्रेड' के वासते क्या करते बोलेतो, दिल में आयेसो नॅशनल ड्यूट्यां बजाते रैते। जैसे कुछ हमेशा कचरा साफ करते रैते और कुछ सेल्फ डिक्लेअर्ड ट्राफिक पोलिसां हो जाते। एक है बाश्शा कोई भी भीक नैं मंगता। दिलसे कोई भीक देनेकु गए तो ये ऐडे गालीया देते। तो ये 'लीगल' ईम्मीग्रंटां, यांपे सीट्टियां मारमारके, 'ट्राफिक जॅम' क्लियरंस करते रैता। हमारे लोगां बी एक बार का ट्राफिक पुलीस का नै सुनींगे, लेकीन ऐसे 'लीगल ईम्मीग्रंटों' की बात खामोशी से सुनके, तंटा झगडा मिटाके, अपने अपने काम कु निकल लेते, गम्मतीच रैता बोलरुं मैं, यांपे !! सैमें! आते क्या देखनेकु! देखो टेम निकालो थोडा - भोत गम्मतीच रैता!!सैंमे!!



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