बुजुर्गो का आशीर्वाद

बुजुर्गो का आशीर्वाद

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बुजुर्गो का आशीर्वाद,सलाह सदैव काम आती है ये उनके पास  अनुभव का ऐसा अनमोल खजाना होता है जिनको पीढ़ी दर पीढ़ी एक दूसरे प्रेरणा स्वरूप मिलता रहता है,बस उनकी बातों को सही तरीके से समझा जाए। कुछ लोग उनकी नेक सलाह को ठीक तरीके समझ से नहीं पाते या उनका ध्यान कही और रहता है। चित्त को स्थिर रखना अपनी सोच को सही लक्ष्य दिलाता है। यही बातें स्कूल मेंं मास्टरजी भी बताते थे।अक्सर कई बार ऐसा हो जाता है की सामने वाला क्या सोच रहा है या फिर हम उसी अंदाज में उसे देख रहे है मगर उसके बारे में सोच नहीं रहे है।यानि ध्यान कही और है। ऐसे में सामने वाला कोई नई बात सोच लेता हबात को पहले समझे बगैर दुसरो को कह देना भी एक नासमझी मानी  जाएगी। 

एक वाक्या याद आया वो यूँ था - बाबूजी ने साहब के बंगले पर जाकर बाहर  खड़े नौकर से पूछा साहब कहाँ  है ?उसने कहा "गए" यानि उसका मतलब था की साहब मीटिंग मेंं बाहर  गए।  बाबूजी ने ऑफिस मेंं कह दिया की साहब गए इस तरह उड़ती - उड़ती खबर ने जोर पकड़ लिया।जैसे वर्तमान मेंं नमक महँगे होने की  अफवाह भी कुछ लोगों ने उड़ाई थी।

खैर, कोई माला, सूखी तुलसी, टॉवेल आदि लेकर साहब के घर के सामने पेड़ की छाया  मेंं बैठ  गए। घर पर रोने की आवाज भी नहीं आरही थी। सब ने खिड़की मेंं से झाँक कर देखा।साहब के घर मेंं कोई लेटा  हुआ है और उस पर सफ़ेद चादर ढंकी हुई थी। सब घर के अंदर गए और साथ लाए फूलो को उनके ऊपर डाल दिया। वजन के कारण सोये हुए आदमी की आँखे खुल गई। मालूम हुआ की वो तो साहब के भाई थे जो उनसे मिलने बाहर गावं से रात को आये थे। सब लोग असमझ मेंं थे की बाबूजी को नौकर ने बात समझे बगैर सही तरीके से नहीं की। इसमेंं बाबूजी का कसूर।कुछ दिनों बाद बाबूजी रिटायर होकर अपने गावं चले गए। गाँव मेंं उन्हें वहां के लोग नान्या अंकल कह कर पुकारते थे। गाँव में रिवाज होता है की मेंहमान यदि किसी के भी हो अपने लगते है।गाँव में उन्हें अपने घर भी बुलाते है |एक वाक्या याद आता है कि- गर्मी की छुट्टियों में मेंहमान आए ,बुरा न लगे इसलिए सामने वाले अंकल जो की बाहर खड़े थे जिन्होंने ही घर का पता मेंहमान के पूछने पर बताया था। पता बताने के हिसाब से और नेक इंसान होने के नाते  गर्मी के मौसम में ठंडा पिलाने हेतु पप्पू को दौड़ा दिया कहा कि-"जा जल्दी से नान्या अंकल को बुला ला।" मेंहमान कहाँ  से आए की रोचकता समझने एवं आमंत्रण कि खबर पाकर वो इतना सम्मानित हुए जितना की कवि या शायर कविता/गजल पर दाद बतौर तालियाँ और वाह -वाह के सम्मान से जैसे  नवाजा गया हो।

 ठंडा पीने के लिए जैसे ही नान्या अंकल को मेंहमानों के सामने भाभीजी ने निम्बू का शरबत दिया शरबत का गिलास होठों से लगाया तो नान्या अंकल को कुछ ज्यादा ही खट्टा लगा। सोचा शायद महंगाई के मारे शक्कर के भाव बढ गए हो इसलिए शक्कर ही कम डाली हो। दूसरा घूंट भरा तो फिर कहना ही पड़ा - भाभीजी इसमेंं आप शक़्कर डालना शायद भूल गई हो  |भाभीजी बोली -क्या करे भाई साहब इनको डायबिटीज है इस कारण शक्कर कम ही डालने की आदत सी हो गई  है | बढ़ती महंगाई पर पर्दा डालने की कोशिश मृगतृष्णा सी लगती दिखाई देने लगी। 

नान्या अंकल ने कहा- भाई शरबत बहुत ही खट्टा है, पीने से मेंरे दांतों को बहुत तकलीफ़ होती है। खटाई ज्यादा होने पर तो हर किसी की आँख दब ही जाती है ना। मेंरी नजर तो पहले ही कमजोर है। जरा इमली को ही लिजिये, इमली का नाम सुनने पर या चूसने पर सामने वाले के मुँह  में भी पानी आ जाता है और जम्हाई लोगे तो तो सामने वाला भी मुह फाड़ने लग जाता है।कई लोग महत्वपूर्ण मीटिंगों में आप को सोते या जम्हाई लेते मिल ही जायेंगे। ऐसा शरीर में क्यों होता है ये मै नहीं जानता जो आप सोच रहे हो और ये भी नहीं जानता की मेंरा कसूर क्या है ?विदेशो मेंं घूमें जाने  के हजारो किस्से नान्या अंकल मेंहमानों को बता रहे मगर मेंहमानों ने कहा- अंकल अपने देश मेंं घूमने लायक एक से बढ़कर एक जगह है,बस इस बात का वे बुरा मान  गए और कहने लगे की मेंरे "मन की बात" को कोई ठीक तरीके से समझते  क्यूँ नहीं। और वे उठ कर चल दिए। कई सालो बाद वही मेंहमान फिर गाँव में आये तो उन्होंने नान्या अंकल को देखा जो की ज्यादा बुढे हो गए थे लेकिन अपने विचारो पर थे अडिंग।उनकी नजरे भी कमजोर हो गई, किन्तु सामने वाले मेंहमानों ने उन्हें पहचान ही लिया। वे एक दूसरे के कानो में खुसर-पुसर कर कहने लगे यही तो है अंकल, उन्होंने सोचा की शायद उस समय हमसे ही कोई समझने की भूल हो गई हो क्षमा मांगने का और उनसे कहने और समझने का यही मौका है। सबने नान्या अंकल से माफी मांगी। नान्या अंकल  मन ही मन सोचने लगे कि  मेंरा क्या कसूर है ? ये लोग वाकई नासमझ है जो बुजुर्गो की बातो को ठीक तरीके से नहीं समझता।


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