Sanjay Verma

Children Stories

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Sanjay Verma

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कागज की नाव

कागज की नाव

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रामू काका रिटायर हुए तो वे घर पर अपने लिखे नोट्स की कॉपी भी घर ले आए। घर पर उनका टाइम ही नही कटता क्योकिं उन्हें आदत थी। बच्चों को पढ़ाने की। घर पर उनका परिवार था यानि संयुक्त परिवार था। छोटे बच्चे घर मे उधम करते तो। रामूकाका उन्हें टीचर की तरह डांटते। बहू को उनकी ये बात अच्छी नही लगती। घर का वातावरण में खींचतान होने लगी। पोतों ने अपने दादा की नोट्स की कॉपी निकाल ली।

क्योकिं बारिश के मौसम में उन्हें नाव बनाने के लिए कागज नही मिल रहे थे। बच्चों को नाव बनाना तो याद नही उन्होंने दादा से जिद्ध कि के वो उन्हें नाव बनाकर दे। दादा तमाम खींचतान को भूलकर बच्चों की मदद करने लगे। बहुओं ने सोचा कि ससुरजी अपनी जान से प्यारी नोट्स की कॉपी। अपने बच्चों को नाव बनाने के लिए उन पन्नों का उपयोग कर लेंगे। बच्चों के लिए एक दर्जन छोटी छोटी नाव बना दी।

बच्चे उन्हें लेकर गड्डों में भरे बारिश के पानी मे नाव चलाकर खुश होने लगे। साथ ही अपने दोस्तों को गर्व से कहने लगे कि मेरे दादा ने बनाकर दी है। उन्हें नाव बनाना आता है। घर की खींचतान खत्म अपने आप हो गई। बच्चों ने अपनी मम्मी को ये बात बताई। अनुभव के नोट्स वाली कॉपी जो संभाल कर रखी थी। समय पर कागज की अनुपलब्धता ने नोट्स कॉपी का उपयोग अपने पोतों की खुशी के लिए कर दिया। समय की बात थी। यदि समय पर नाव नही बनती तो बारिश का पानी जो गड्डो में भरा था वो चला जाता।

और बारिश में नाव चलाने का मजा भी नही रहता। खुशी के लिए त्याग करना भी बडी बात होती है। अब पोतों के संग उनके दोस्त भी नाव बनवाने के लिए आए। रामूकाका से नाव बनाने वाले दादा के नाम से बच्चों में मशहूर हो गए। सेवा निवृति के बाद का समय और ज्यादा आनंद मयी हो गया। बच्चे अब उधम करते तो डाटने पर अब कोई नाराज नही होता। ऐसा लगता मानो परिवार कागज की नाव में बैठ कर खुशियों के गीत गा रहा हो।


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